भ्रूणविज्ञान
भ्रूणविज्ञान (Embroyology) के अंतर्गत अंडाणु के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक जीव के उद्भव एवं विकास का वर्णन होता है। अपने पूर्वजों के समान किसी व्यक्ति के निर्माण में कोशिकाओं और ऊतकों की पारस्परिक क्रिया का अध्ययन एक अत्यंत रुचि का विषय है। स्त्री के अंडाणु का पुरुष के शुक्राणु के द्वारा निषेचन होने के पश्चात जो क्रमबद्ध परिवर्तन भ्रूण से पूर्ण शिशु होने तक होते हैं, वे सब इसके अंतर्गत आते हैं, तथापि भ्रूणविज्ञान के अंतर्गत प्रसव के पूर्व के परिवर्तन एवं वृद्धि का ही अध्ययन होता है। :ऍस्तुदिअ एल देसर्रोल्लो प्रेनतल्। ऍच्ह पोर ंअर्तिन्
परिचय
क्रोमोसोम के आंतरिक घटक, अर्थात जीन (gene), जो गर्भधारण के पश्चात भ्रूण में रहते हैं, यदि उनको अनुकूल वातावरण प्राप्त होता है, तो वे विकास की दर एवं स्वरूप का नियंत्रण करते हैं।
एककोशिकीय अंडाणु का शिशु में परिवर्तन होने का मुख्य कारण दो प्रक्रियाएँ (1) वृद्धि और (2) विभेदन (differentiation), होती है।
वृद्धि
इसमें कोशिकाओं का आकार और संख्यात्मक वर्धन होता है, जो विभाजन एवं पोषण के द्वारा संपादित होता है। इसके अंतर्गत वह क्रिया भी आ जाती है जिसके द्वारा भ्रूण के आकार की पुनर्रचना भी होती है।
विभेदन
इस प्रक्रिया से कुछ कोशिकाओं का समूह कोई एक निश्चित कार्य करने के लिये एक विशेष प्रकार का स्वरूप ग्रहण कर लेता है। यह विभेदन आनुवंशिकता, अंत:स्राव तथा पर्यावरण आदि पर निर्भर करता है।
निषेचन अंडाणु से जो कोशिकाएँ प्रारंभ में विभाजन द्वारा प्राप्त होती हैं, उनमें पूर्णशक्तिमत्ता (totipotency), होती है, अर्थात उनमें से एक के द्वारा संपूर्ण भ्रूण का निर्माण हो सकता है, परंतु इस अल्प सामयिक अवस्था के तुरंत पश्चात सुघट्यता (plasticity) की अवस्था होती है। इस अवस्था में कोशिका समूह में सर्वशक्तिमत्ता नहीं रहती है। अब वे विशेष प्रकार के ऊतकों का ही निर्माण कर सकते है, जो उनके लिये निश्चित किया जा चुका है। यह अवस्था तुरंत रासायनिक विभेदन (chemo-differentiation) में परिवर्तित हो जाती है। अब इस अवस्था में कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) के रासायनिक घटकों का पुन: वितरण होता है। कोशिका की शक्तिमत्ता का ह्रास होता है तथा अंत में उसमें कार्यशक्ति की भिन्नता उत्पन्न हो जाती है।
इस विज्ञान के अंतर्गत शुक्राणु तथा उनका परिपाक, गर्भाधान, खंडीभवन, वपन, दैनिक वृद्धि, जरायु, अपरा एवं अंगों का निर्माण, भ्रूण पोषण, यमल तथा सहज विकृतियों का पूर्ण वर्णन किया जाता है।
महत्व
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में मानव भ्रूणविज्ञान के अध्ययन का अत्यंत महत्व है, क्योंकि शरीरचना संबंधी अनेक विचित्र वास्तविकताओं को हम भ्रूणविज्ञान के ज्ञान से अब ठीक से समझ सकते हैं, जिन्हें पहले नहीं समझ पाते थे। शरीर-रचना-विकृतियों का वास्तविक कारण तथा प्रक्रम अब समझाया जा सकता है। यह विज्ञान तुलनात्मक शरीर-रचना-विज्ञान एवं मानव-शरीर-रचना-विज्ञान, जातिवृत्त के मध्य सेतु का काम करता है। मानव विकास की कई जटिलताओं को समान्यत: समझ पाना बड़ा कठिन होता है, अतएव निम्नकोटि के प्राणियों के विकास का तुलनात्मक ज्ञान प्राप्त कर मानव विकास के सिद्धांतों का निर्णय करना होता है। इस अध्ययन को तुलनात्मक भ्रूण वृद्धिज्ञान कहा जाता है।
इन्हें भी देखें
- अपृष्ठवंशी भ्रूणतत्व (इनवर्टेब्रेट एंब्रिऑलोजी / Invertebrate embryology)
- कशेरुकदंडी भ्रूणतत्व (वर्टेब्रेट एंब्रिऑलोजी / Vertebrate embryology)
बाहरी कड़ियाँ
- Embryo Research UK philosophy and ethics website discussing the ethics of embryology
- Human embryo research Canadian website covering the ethics of human embryo research
- Indiana University's Human Embryology Animations
- What is a human admixed embryo?
- UNSW Embryology Large resource of information and media
- Definition of embryo according to Webster