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भोरमदेव

भोरमदेव
मुख्य शिव मंदिर
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिचौरागॉव छत्तीसगढ़
वास्तु विवरण
प्रकारनागर वास्तुकला
निर्माताराजा गोपाल देव

भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ के कबीरधाम जिले में कबीरधाम से 18 कि॰मी॰ दूर तथा रायपुर से 125 कि॰मी॰ दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है।

मंदिर के चारो ओर मैकल पर्वतसमूह है जिनके मध्य हरी भरी घाटी में यह मंदिर है। मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब भी है। इस मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान है जिसके कारण लोग इस मंदिर को 'छत्तीसगढ का खजुराहो' भी कहते हैं। यह मंदिर एक एतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे एवं वे भगवान शिव के उपासक थे। भोरमदेव , शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पडा।

निर्माण काल

मंदिर के मंडप में रखी हुइ एक दाढी-मूंछ वाले योगी की बैठी हुइ मुर्ति पर एक लेख लिखा है जिसमे इस मुर्ति के निर्माण का समय कल्चुरी संवत 8.40 दिया है। इससे यह पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण छठवे फणी नागवंशी राजा गोपाल देव के शासन काल में हुआ था। कल्चुरी संवत 8.40 का अर्थ 10 वीं शताब्दी के बीच का समय होता है।

कला शैली

मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनो प्रवेश द्वारो से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौडाई 40 फुट है। मंडप के बीच में में 4 खंबे है तथा किनारे की ओर 12 खम्बे है जिन्होने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक है। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है। जो कि छत का भार संभाले हुए है। मंडप में लक्ष्मी, विश्नु एवं गरूड की मुर्ति रखी है तथा भगवान के ध्यान में बैठे हुए एक राजपुरूष की मुर्ति भी रखी हुई है। मंदिर के गर्भगृह में अनेक मुर्तियां रखी है तथा इन सबके बीच में एक काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मुर्ति है साथ ही नृत्य करते हुए गणेश जी की मुर्ति तथा ध्यानमग्न अवस्था में राजपुरूष एवं उपासना करते हुए एक स्त्री पुरूष की मुर्ति भी है। मंदिर के ऊपरी भाग का शिखर नहीं है। मंदिर के चारो ओर बाहरी दीवारो पर विश्नु, शिव चामुंडा तथा गणेश आदि की मुर्तियां लगी है। इसके साथ ही लक्ष्मी विश्नु एवं वामन अवतार की मुर्ति भी दीवार पर लगी हुई है। देवी सरस्वती की मुर्ति तथा शिव की अर्धनारिश्वर की मुर्ति भी यहां लगी हुई है। और रही बात मंदिर के कलश की तो मंदिर का कलश गायब है अब कहा जाता है की इस मंदिर को 6 महीने की रात्रि में पूरा किया गया लेकिन पूरा नहीं हो पाने की वजह से कलश नही बनाया गया लेकिन इतिहासकारों की माने तो मंदिर के अंदर एक शिलालेख के अनुसार 1551 ई.को माडवपति शाह नाम के राजा और रतनपुर के महाराजा बाहूराय ने राज्य जीतने के बाद मंदिर के कलश को संगमेश्वर नामक स्थान पर ले गये थे चूकि उस समय राजाओं को किसी राज्य को जीतने के बाद प्रतीक के स्वरूप मंदिरों का कलश को जीतने का चिन्ह मानते थे इसलिए भोरमदेव मंदिर के कलश को अपने साथ ले गये थे,साथ ही यह भी उल्लेख की बाद मे दादूजी नामक राजा ने उस कलश वापस लाया था लेकिन उस कलश को कहा रखा है उस शिलालेख मे उल्लेख नही

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ