भोई
यह जनजाति मेघालय के पहाड़ी क्षेत्रों में पायी जाती हैभोई' भारत की एक प्राचीन क्षत्रिय जाती है, जिसका उल्लेेख महाभारत और रामायण जैसे भारत के प्राचीनतम महाकाव्यों में मिलता है। भोई जनजाति अनेक जातियों में विभाजित है। इसकी कई शाखाएँ है राजगोंड भोई, राज भोई, झिंगा भोई तथा परदेशी भोई ऐसी अनेक जातियाँ इस वर्ग में है। इनके साम्राज्य का वर्णन 'ओरिसा' में स्थित प्रदेशों था। जिसका वर्णन ओरिसा के इतिहास में पाया जाता है। यह क्षत्रिय वंश के है। ये लोग चंद्र की पूजा करते है।[]
भोई भारत की एक प्राचीन जाति है। यह एक आखेटक जाति है जिसका उल्लेख महाभारत और रामायणजैसे भारत के प्राचीनतम महाकाव्यों में मिलता है। भोई समाज हिन्दू धर्म के अंग है। वर्णाश्रम व्यवस्था में वे शूद्र माने जाते रहे हैं। ये आदिकाल से जल जंगल और ज़मीन पर आश्रित होकर अपना जीवन यापन प्राकृतिक संसाधनों की सहायता से करते चले आ रहे हैं।महाभारत के भिष्म पितामह की दुसरी माता सत्यवती एक धीवर(निषाद)पुत्री थी और रामायण मे प्रभु श्रीरामचंद्र और केवट के संवाद का वर्णन है इस बात से यह साबीत होता हे की भोई एक आदिम जाती है उपजाति संपादित करें इसे कई नामो से जाना जाता है जिनमेँ मांझी, मल्लाह, मछ्वा, मल्लाहर, मल्हार, मछुआ, मंझवार, मच्छावा मंडोरा, मछीदा, मछावा, मछीमार, मुंडास, Mudaha, मछेद्रा, मालाकार, मुलाया, मुलन्दा, मुकाया, मुक्कूर्क, मुन्दीराजा, मनिगरा, मेवारी, मोगेरा, मीनूगारा, माली, बर्मन, बरमैया, बरचाई, बाथम, बाधव, बरिकार, बगवारी, बड़े, बारी, बन्स्था, बोई, बैगा, बौदी, बिन्द, भोई, भीमर, धीमर, ढीमर, झींगर, झरी, कहार, कश्यप, कदमा, कार, कव्वर, कब्बेश, केवट, केड्त, कब्बालिंगा, किरात, कोली, कोल्वा, कोलमा, कोरवा, कोतल, कर्ताधार, कीर, कोची, केबर्ता, केवटी, कर्वत, तोरिया, तुरहा, तुरैहा, तुरैया, तुराई, तुगये, तन्हेल, तोमर, रैकवार, रायकवार, राजद्वार, जूलगेरा, जलक्षत्रिय, सोंधिया, सिंधिया, सिंगरहा, सिविन्यार, सफालिंगा, सुनामारा, सरदिया, संभा, सीवर, सालो, बराऊ, बड़ावतीला, वन्नेकपू, बड्डी, वर्मा, वेस्था, बर्वे, वन्नारेड्डू, वन्याफुला, क्षत्रीय, हरिकंभरा, खरवार, खादीभोई, खरवी, खेरवार, खागी, आर्य, आम्बिगा, आग्ने, कुलाक्षत्रीय, टोकरेचाई, पल्लीरेड्डी, पल्लीकापू, पल्ली, पटती, पट्नो, पवेहा, पवैया, डेवर, धीमर, धीवर, धुरिया, धेवर, धेवरा, धोरेवा, दुले, नंदा, नन्दाने, नदेहा, नादिया, नंदानिया, नवाडी, नरयल, नोरिया, नायक, नाविक, निषाद, नायकारा, नालेफेरा, नामदास, नामयुद्ध, नीरागंती, गंगापुत्र, गंगवार, गंगाफुला, गाधर, गरिया, गूंडला, गोड़िया, गोंड, गोंडराज, गोरीमाथा, गुरिया, गंगेयकाल, गुर्री, गोन्ति, गौर, शुक्ला, खरवार, खदीभोई, खरवी, खागी, खेरवार आदि कई उपजातिया है। निवासी संपादित करें यह जाति भारत के महाराष्ट्र मे मुंबई, नासिक, धुलिया, जलगाँव, अहमदनगर, पुणे औरगांबाद, कोल्हापुर,रत्नागिरी सोलापुर मध्यप्रदेश के मन्दसौर, रामपुरा, आलोट, फतेहपूर, ताल, रतलाम, सैलाना मे रहते है। वर्तमान में, भोई समुदाय के लोग पूरे मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात ओरीसा,कर्नाटक आंध्रप्रदेश पंजाब ,हिमाचल प्रदेश, राजस्थान मे निवास करते है।
बांसवाड़ा में भोई जाति राजा को सब्जियां देती थी और उनके यहां भोजन बनाती थी इसलिए भोई लोग अच्छा भुजन बनाने में माहिर है।और सेना में लड़ना उनका पेशा था कट्टर हिन्दू भोई राज आज भी बांसवाड़ा में रहते हैं। शहर के बीच उपलाभोई वारा और निचला भोईवारा राजा इनसे खाने पीने के लिए सब्जियां भी लेता था जिसकी बदौलत बांसवाड़ा की सबसे पुरानी सब्जीमंडी भी भोई समाज ही संभालता ।