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भैरोनाथ

भैरो बाबा का मन्दिर जहाँ भक्त उनके शीश की पूजा करते हैं। यह वही स्थान है जहाँ भैरोनाथ का वध होने के बाद उनका शीश गिरा था।

भैरो या भैरोनाथ एक प्रसिद्ध तान्त्रिक हैं। कुछ स्थानों पर इन्हें अघोरी साधु के रूप में भी वर्णित किया गया है। भैरोनाथ गोरखनाथ के शिष्य थे और इनका मुख्य अस्त्र तलवार है। भैरो एक दानव कुल से थे और इनके पिता दुर्जय का वध भी माता वैष्णो देवी ने किया था। इन्हें अघोरी और तांत्रिक अपना गुरु मानते हैं।

जन्म

भैरोनाथ का जन्म दुर्जय नाम के एक दानव के यहाँ हुआ था। दुर्जय महर्षि कश्यप का पुत्र था जिसका जन्म दनु के गर्भ से हुआ था।

तांत्रिक के रूप में

दुर्जय ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या कर उनसे वरदान माँगा कि कोई भी गर्भ से जन्मा प्राणी उसका वध ना कर सके। उसने इसी वर के आधार पर पृथ्वी वासियों पर अत्याचार करना शुरु कर दिया और स्वयं को ईश्वर घोषित कर दिया। नारद मुनि के कहने पर त्रिदेवियों ने वैष्णो देवी को अपनी सामूहिक शक्तियों से उत्पन्न किया। भगवान विष्णु के कहने पर वैष्णो देवी देवी बाघ पर सवार होकर अपनी आठों भुजाओं में अस्त्र शस्त्र लिए दुर्जय से युद्ध करने गई और पलभर में दुर्जय का वध कर दिया जिससे उसका पुत्र भैरोनाथ बड़ा क्रोधित हुआ और प्रतिशोध लेने को आतुर हुआ। उसने राजपाट का त्याग कर दिया और अपने पिता का दाह संस्कार करने के पश्चात् उसने भगवान शिव के अवतार गुरु गोरखनाथ से तंत्रविद्या की सम्पूर्ण शिक्षा प्राप्त की।

भैरोनाथ का उद्धार

दिव्य कन्या के कहने पर श्रीधर ने समस्त गांव वालों को भण्डारे का निमंत्रण दिया और अन्त में गुरु गोरखनाथ जी और उनके शिष्य बाबा भैरोनाथ जी के साथ गोरखनाथ जी के अन्य शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया। भण्डारे में माता वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण कर आई और एक कड़छी और जादुई बर्तन से सबको उनकी इच्छा का भोजन देने लगी। जब वे भैरो के पास आई तो भैरो ने खीर पूड़ी के स्थान पर मान्स खाने और मदिरा पीने की बात कही। माता ने भैरोनाथ को।बहुत समझाया किन्तु उन्होंने एक न सुनी। भैरो ने कन्या रूपी माता को जब पकड़ना चाहा तो वह कन्या भैरोनाथ से अपना हाथ छुड़वाकर त्रिकुट पर्वत की ओर चल दी। भैरो भी उनके पीछे पीछे आ गए। माता की रक्षा के लिए वीर लंगूर बालाजी महाराज थे। उन्होंने भैरोनाथ से युद्ध किया। जब वीर लंगूर निढाल होने लगे तो माता वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरोनाथ का वध कर दिया। माता को ज्ञात था कि भैरो की प्रमुख मन्शा मोक्ष प्राप्त करने की थी। जिस स्थान पर माता वैष्णो ने भैरोनाथ को संहारा था वह स्थान भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माता महाकाली (दाएं) , महालक्ष्मी (मध्य) और महासरस्वती (बाएं) पिण्डी के रूप में विराजमान हैं। भैरो का वध करने के बाद उनका सिर भवन से तीन किलोमीटर दूर एक घाटी में जा गिरा और और जिस स्थान पर उनका सिर गिरा वह स्थान भैरोनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। जिस घाटी में भैरोनाथ का कटा हुआ सिर गिरा था वह घाटी भैरो घाटी कहलाती है। माता वैष्णो देवी ने भैरो को क्षमा कर दिया और कहा कि जो भक्त मेरे दर्शन के बाद तेरे दर्शन नहीं करेगा तो मेरे दर्शन भी अमान्य होंगे। इसलिए भक्त माता वैष्णो के दर्शन के बाद ३ किमी दूर खड़ी चढ़ाई करके भैरो बाबा के दर्शन के लिए जाते हैं क्योंकि भैरो बाबा के दर्शन किए बिना माता वैष्णो देवी के दर्शन अधूरे माने जाते हैं।