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भू-ज्योतिष

स्योना पृथवी भवानृक्षरा निवेशनि। यच्छा न शर्म सप्रथः।

हे पृथ्वी! आप सुख देने वाली बाधा हरने वाली और उत्तम वास देने वाली है।

====                                                    हम सभी को उत्तम वास और सुख प्रदान करें।

[1]=== 1-WHY BHOO-JYOTISH  भू-ज्योतिष की आवश्कता क्यों ? ===

                                         प्राचीन व आधुनिक ज्योतिष  शास्त्र में  महत्वपूर्ण प्रश्न ,कि पृथ्वी भी एक ग्रह है ,जिस ग्रह पर मनुष्य व सभी जीवों का जीवन प्रारम्भ  होता है ,जीवन संचालन के लिए समस्त आवश्कताएं जैसे-श्वांस,जल, भोजन,निवास,व अन्य आवश्यक  चींजें पृथ्वी ग्रह से ही प्राप्त होती हैं, अतः पृथ्वी ग्रह का प्रभाव ? पृथ्वी के सभी जींवों  पर कुछ न कुछ अवश्य होना चाहिए ? क्योंकि  जब कई प्रकाश वर्ष  दूर स्थित नक्षत्रों,राशियों व लाखों करोड़ों किलोमीटर  दूर स्थित नवग्रहों का शुभ या अशुभ प्रभाव पृथ्वी पर स्थित जींवों पर हो सकता है ,तब पृथ्वी ग्रह का प्रभाव ,पृथ्वीवासियों क्यों नहीं होगा बल्कि पृथ्वी ग्रह का प्रभाव ,पृथ्वी पर जन्म लेने व निवास वाले जीवों पर सबसे अधिक होना ही चाहिए |

                                     क्योंकि ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति वेदों से  मानी जाती है इसलिये भारतीय ज्योतिष को वैदिक ज्योतिष कहा जाता है |अतः हमारा कर्तव्य बनता है की एक बार पुनः वेदों का अध्ययन   करें एवम ज्योतिष शास्त्र को विश्व हित व कल्याण के लिए एवम अधिकतम उपयोगी बनाने का प्रयास करें ,तभी हमारें प्राचीन ऋषियों की भावना व सोच ‘ सत्यम शिवम् सुन्दरम” सावित होगी |

2-वेदों में ज्योतिष का वर्णन

                                          वेद शब्द संस्कृत भाषा के विद धातु शब्द से बना है विद का आशय विदित अर्थात जाना हुआ ,विद्या अर्थात ज्ञान विद्वान अर्थात ज्ञानी | वेद भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म के मूल अर्थात प्राचीनतम और आधारभूत धर्म ग्रन्थ है, जिन्हें ईश्वर की वाणी समझा जाता है | वेद ज्ञान के भंडार है एवं वेदों से अन्य शास्त्रों, पुराणों की उत्पत्ति मानी जाती हैं | वेदों को अपौरूषेय अर्थात बिना पुरुष के , ईश्वर कृत मन जाता हैं, इन्हें श्रुति भी कहते है | हिन्दुओ में अन्य ग्रन्थ स्मृति  भी कहलाते है अर्थात मानव बुद्धि या श्रुति पर  आधारत ज्ञान | ज्योतिष संबंधी ज्ञान वेदों में हैं ,जिसमे ऋगवेद में करीब 30 श्लोक ,यागुर्वेद में करीब 45 श्लोक एवं अथर्वेद में करीब 165 श्लोक एवं प्राचीन वास्तु ग्रन्थ ‘स्थापत्यवेद’ की अथर्वेद से लिया गया है जिसमे वास्तु से सम्बंधित ज्ञान संकलित है | सबसे महत्वपूर्ण बात जो की वेदों में ज्योतिष सम्बन्धी श्लोक वर्णित है उनका सम्बन्ध भविष्य से नहीं है अर्थात फलित ज्योतिष सम्बन्धी विवरण वेदों में नहीं है लेकिन नक्षत्रों ,ग्रहों व राशिंयों सम्बन्धी प्रार्थनाएं वर्णित हैं | क्योंकि वेद कहते है की आपके विचार ,आपकी उर्जा,आपकी  योग्यता ,आपके कर्म ,आपकी प्रार्थना से ही शुभ वर्तमान व शुभ भविष्य का निर्माण होता है इस प्रकार वैदिक ऋषि उस परम शक्ति परम ब्रह्म  अर्थात ईश्वर ,परमात्मा ,खुदा परमेश्वर के साथ साथ प्रकृति के पंच तत्वों व अन्य कारकों को की प्रार्थना को महत्व देते हैं|सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की हमारें वेदों में की ज्योतिष विषय से सम्बंधित बहुत श्लोक  वर्णित है लेकिन माँ पृथ्वी से सम्बन्धित श्लोक सबसे अधिक हैं इससे सिद्ध होता की हमारे माँ पृथ्वी का महत्त्व सत्ताइश नक्षत्रों,बारह राशियों व नव ग्रहों से  अधिक है |

                      यथा शिखा मयुरानाम,नागानां मणयो यथा |

                      तद  वेदांग शास्त्रांनाम ,ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम |

                                                    जिस प्रकार  मयूर के ऊपर शिखा का स्थान ,नागों  में मणि का  स्थान महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार वेंदो व शास्त्रों में ज्योतिष का उच्च स्थान है ,ठीक उसी प्रकार फलित ज्योतिष  में नवग्रहों ,बारह राशिओं,व सत्ताइस नक्षत्रों में पृथ्वी ग्रह सबसें महत्वपूर्ण है |

बल्लित्था पर्वतानां खिद्रं बिभर्षि पृथिवी| प्र या भूमिं प्रवत्वति महा जिनोषी महिनी|

                                          हे प्रकृष्ट गुणवती और महिमावती पृथ्वी देवी! आप भूमिचर प्राणियों को अपनी सामर्थ्य से पुष्ट करती हैं और साथ ही अत्यंत विस्तृत समूहों को भी धारण करती हैं |

                                         इस प्रकार भू-ज्योतिष सिद्धांत का उदेश्य ,मानव व अन्य जीवो पर ,पृथ्वी के सापेक्ष,नवग्रहों,बारह राशियों व सत्ताईश नक्षत्रों का शुभ या अशुभ प्रभाव का सूक्ष्मातिसूक्ष्म अध्ययन करना ,जन्मकुंडली व फलित ज्योतिष में  पृथ्वी  जैसे मुख्य ग्रह को महत्व प्रदान करना है ,जो  की अति आवश्यक  है.

सूर्यः पितामहो व्याशो वशिष्ठोअत्रिःपराशराः,कश्यपो नारदो गर्गो मरीचिर्मनुअंगिराः|

लोमशः पौलिशश्चैव च्यवनो भृगः , शौनिकोअष्टादशाश्चैते ज्योतिशास्त्रः प्रवत्तरकाः|

                  सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्री, पारासर, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पुलिश, च्ववन, यवन, भृगु एवम शौनक

                     ये अठारह ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक बतलाये गए है,ऋषि पाराशर जी ने उक्त अठारह आचार्यों के अतिरिक्त पुलस्त्यनाम के आचार्य जी को भी प्राचीन  ज्योतिष आचार्यों में सम्मिलित किया है|

   हे ! परं ब्रह्म परमात्मा आपके द्वारा रचित समस्त प्रकृति और आपके द्वारा संचालित ब्रह्माडीय प्रक्रिया के गूढ़ रहस्य आप ही जानते है,मैं तो मात्र  आपकी प्रक्रिया का कण मात्र भाग हूँ ! हे! परं ब्रह्म परमात्मा ,भू ज्योतिष विषय कार्य का उद्देश्य प्राचीन और आधुनिक ज्योतिष सिद्धान्तों का खंडन या आलोचना करना व स्वम् की अहम संतुष्टी करना,किसी भी प्रकार का कोई उदेश्य नहीं है , वरन  भू- ज्योतिष सिद्दांत व अनुसंधान विषय  का उद्देश्य प्राचीन ज्योतिष पराविज्ञान को तर्क संगत, वैज्ञानिक नया व मजबूत आधार प्रदान करना है |

                                                        जैसा की सभी जानते है की आधुनिक ज्योतिष सिद्धान्तों में अन्धविश्वाश, रुढ़िवाद, अवैज्ञानिक सिंद्धांतो के कारण ज्योतिष जैसा महत्वपूर्ण व उपयोगी ज्ञान एक तरफ गर्त में जा रहा है, दूसरी ओर ज्योतिष की ओट में अधिकांश ज्योतिषी जनता को गुमराह करते है , परिवर्तन प्रकृति का सिद्धांत है, अतः सभी ज्ञान व विज्ञान के क्षेत्र में देश,काल ,समय व परिस्थिती के अनुसार  परिवर्तन अवश्य होते है,लेकिन ज्योतिष विषय में परिवर्तन या अनुसन्धान तो दूर की बात,हमारे प्राचीन  ऋषियों की धरोहर को भारतीय लोग जीवित रखनें में असफल सिद्ध हो रहे है I अतः ज्योतिष ज्ञान के पतन को रोककर ,प्राचीन व आधुनिक ज्योतिष सिद्धान्तों , नियमों में सुक्ष्मातिसुक्ष्म अध्ययन कर,आधुनिक विज्ञान के सिद्धान्तो के आधार पर उचित,पूर्ण व सही ज्ञान तैयार करना है, जो सत्यम, शिवम्, सुन्दरम, सिद्धांत पर आधारित हो एवम मानव समाज के साथ साथ ,सभी जीवो ,वनस्पतिओं के साथ -साथ प्रकृति के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो |

  मानव स्वभाव प्रारंभ से ही सदैव जिज्ञासु रहा है, इसी जिज्ञासा के फलस्वरूप प्राचीन मानव ने सर्वप्रथम पंच तत्वों ( अग्नि,पृथ्वी,जल,वायु व आकाश ) के महत्व व उपयोगिता को समझने का प्रयास किया | तत्पश्चात  सूर्य ग्रहण ,चन्द्र ग्रहण व ज्वर भाटा जैसी घटनाओं को जानने का प्रयास किया व  क्रमशः प्रतिदिन सूर्य उदय,कुछ समय के बाद सूर्य अस्त ,दुसरे दिन पुनः सूर्य दर्शन ,शाम को सूर्य अस्त के बाद चन्द्र उदय ,कुछ दिनों चन्द्र के दर्शन होना व कुछ दिनों के बाद चन्द्र का आकाश में गायब होना,आकाश में  अनेक प्रकार के तारें ,कुछ स्वतंत्र तारे ,कुछ समूह में तारे ,विभिन्न तारा समूहों का कुछ अन्तराल के बाद अद्रश्य होना व पुनः दिखाई देना , ये कुछ येंसें  अनसुलझे प्रश्न थे , जिनका प्राचीन बुद्धिजीवियों  ने  बिना दूरबीन की मदद के उत्तर जानने का प्रयास किया व  इसी क्रम में क्रमशः सत्ताईस नक्षत्र अश्वनी, भरणी,कृतिका, रोहणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वशु, पुष्य ,अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति,विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वषाडा, उत्तराषाडा, श्रवण ,धनिस्ठा शतभिषा, पूर्व भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, रेवती इसके अतिरिक्त  येंसा माना जाता की पूर्व समय में , दिनों के नामग्रहों के स्थान पर,नक्षत्रों के नाम पर सप्ताह के सात दिनों के नाम होते थे|  

        जैसे अश्वनीवार,भरणीवार,  कृतिकावार, रोहणीवार,मृगशिरावार, आर्द्रावार,पुनर्वशुवार,पुष्यवार,……………………….अर्थात सत्ताईस दिनों के नाम थे , इस प्रकार क्रमशः भचक्र या राशी मंडल  की बारह राशियां मेष,वर्ष,मिथुन ,कर्क ,सिंह, कन्या, तुला,वृश्चिक, धनु,मकर, कुम्भ व मीन  के साथ,साथ, सात ग्रहों सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, ब्रहस्पति,शुक्र. शनि, आदि ग्रहों की ग्रहों की अद्रश्य किरणों  के  प्रभाव  को मानव जीवन  पर अध्ययन किया है,यंहा तक की पृथ्वी  के उत्तर  व दक्षिण  में सूर्य व चन्द्र की कक्षा के काटन बिन्दु,राहू, केतु, जैसे छाया ग्रहों को भी ज्योतिष ज्ञान में महत्वपूर्ण मन गया है |

                                                                    इस प्रकार ज्योतिष में सत्ताईस नक्षत्र,बारह राशियों व नव ग्रहों का पृथ्वी पर उपस्थित जींवों पर (विशेषकर मानव पर) क्रमशः  अध्ययन से प्राचीन ज्योतिष शास्त्र की खोज हुई लेकिन कभी कभी दूर देखनें की आदत ह जाने के कारण मनुष्य निकट को भूल जाता है,जिसे  दिया तले अँधेरा कहते है .क्योंकि प्राचीन ज्योतिषियों से लेकर आधुनिक कम्पुटर ज्योतिष के समय में भी सभी बुद्धिजीवियों ने नक्षत्र मंडल,राशी मंडल,व नवग्रहों  से निकलने वाली अद्रश्य किरणों का पृथ्वी पर उपस्थित जीवों  पर शुभ या अशुभ  प्रभाव के बारे में काफी अध्ययन किया गया एवम अध्ययन जारी है |

                                                                             लेकिन एक महत्वपूर्ण प्रश्न ,कि पृथ्वी भी एक ग्रह है ,जिस ग्रह पर मनुष्य व सभी जीवों का जीवन प्रारम्भ  होता है ,जीवन संचालन के लिए समस्त आवश्कताएं जैसे-श्वांस,जल, भोजन,निवास,व अन्य आवश्यक  चींजें पृथ्वी ग्रह से ही प्राप्त होती हैं, अतः पृथ्वी ग्रह का प्रभाव ? पृथ्वी के सभी जींवों  पर कुछ न कुछ अवश्य होना चाहिए ? क्योंकि  जब कई प्रकाश वर्ष  दूर स्थित नक्षत्रों,राशियों व लाखों करोड़ों किलोमीटर  दूर स्थित नवग्रहों का शुभ या अशुभ प्रभाव पृथ्वी पर स्थित जींवों पर हो सकता है ,तब पृथ्वी ग्रह का प्रभाव ,पृथ्वीवासियों क्यों नहीं होगा बल्कि पृथ्वी ग्रह का प्रभाव ,पृथ्वी पर जन्म लेने व निवास करने वाले जीवों पर सबसे अधिक होना ही चाहिए |

                                          इस प्रकार भू-ज्योतिष सिद्धांत का उदेश्य ,मानव व अन्य जीवो पर  ,पृथ्वी के सापेक्ष ,नवग्रहों,बारह राशियों व सत्ताईश नक्षत्रों का शुभ या अशुभ प्रभाव का सूक्ष्मातिसूक्ष्म अध्ययन करना एवम फलित ज्योतिष में  पृथ्वी  जैसे मुख्य ग्रह को महत्व प्रदान करना है |

  1. patel, Acharya Rajjan (2015). भू-ज्योतिष bhoojyotish. damoh mp[. मूल से 21 अगस्त 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अगस्त 2017.