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भास्कर प्रथम

भास्कर प्रथम (600 ई – 680 ईसवी) भारत भारत के सातवीं शताब्दी के गणितज्ञ थे। संभवतः उन्होने ही सबसे पहले संख्याओं को हिन्दू दाशमिक पद्धति में लिखना आरम्भ किया। उन्होने आर्यभट्ट की कृतियों पर टीका लिखी और उसी सन्दर्भ में ज्या य (sin x) का परिमेय मान बताया जो अनन्य एवं अत्यन्त उल्लेखनीय है। आर्यभटीय पर उन्होने सन् ६२९ में आर्यभटीयभाष्य नामक टीका लिखी जो संस्कृत गद्य में लिखी गणित एवं खगोलशास्त्र की प्रथम पुस्तक है। आर्यभट की परिपाटी में ही उन्होने महाभास्करीय एवं लघुभास्करीय नामक दो खगोलशास्त्रीय ग्रंथ भी लिखे। ऐसा प्रतीत होता है कि महाभास्करीय प्रथम रचना है और लघुभास्करीय उसके बाद की रचना है। महाभास्करीय के कुछ भागों का बाद में अरबी में अनुवाद हुआ। महाभास्करीय की टीका में शङ्करनारायण ने भास्कर प्रथम को 'श्रीमद्गुरूभास्कर' कहकर सम्बोधित किया है। उन्हें 'सर्वज्ञ भास्कर' भी कहा जाता रहा।

भास्कर प्रथम के काल के विषय में कलियुग के 3730 वर्ष बीत जाने के बाद अर्थात् इसवी सन् 629 लगभग माना गया है। भास्कर प्रथम के जन्म स्थान के विषय में स्पष्ट जानकारी तो नहीं है, अन्तःसाक्ष्य के आधार पर ये अष्मक या सौराष्ट्र के रहने वाले होंगे, ऐसा प्रतीत होता है। आर्यभट्टीय की टीका उन्होंने सौराष्ट्र के वल्लभी नामक स्थान पर रहकर लिखा, ऐसा लगता है। कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म अष्मक में हुआ था और वे वहाँ से वल्लभी चले गए। अष्मक खगोल विज्ञान अध्ययन का एक प्रधान केन्द्र रहा होगा, यह भी प्रतीत होता है। अष्मक एक देश विशेष का नाम था या जनपद, यह स्पष्ट नहीं हो पया है। अष्मक पश्चिमोत्तर भारत का स्थान था या नर्मदा और गोदावरी के मध्य का स्थान था, यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया है। भास्कर प्रथम द्वारा की गयी आर्यभट्टीय की टीका उनकी महत्वपू्र्ण कृतियों में से एक है।

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