भारत में सामूहिक विनाश के हथियार
भारत | |
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परमाणु कार्यक्रम प्रारंभ दिनांक | १९६७ |
प्रथम परमाणु हथियार परीक्षण | १८ मई १९७४ |
प्रथम फ्यूज़न हथियार परीक्षण | ११ मई १९९८ |
सबसे हाल का परीक्षण | १३ मई १९९८ |
सबसे बड़ा उपज परीक्षण | ४५ किलोटन; २०० किलोटन परीक्षित आकार |
परीक्षणों की संख्या अब तक | ६ |
सर्वाधिक भंडार | १८० - २०० |
वर्तमान भंडार | १७२ |
अधिकतम मिसाइल सीमा | ५,५८० - ८,००० किलोमीटर (अग्नि-५) |
एनपीटी पार्टी | नहीं |
भारत के पास परमाणु हथियार के रूप में सामूहिक विनाश के हथियार हैं और अतीत में, रासायनिक हथियार भी थे। हालांकि भारत ने अपने परमाणु शस्त्रागार के आकार के बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है पर हाल के अनुमान के मुताबिक भारत के पास लगभग १७२ परमाणु हथियार हैं।[1][2] १९९९ में भारत के पास ८०० किलो रिएक्टर ग्रेड और कुल ८३०० किलो असैनिक प्लूटोनियम था जो लगभग १,००० परमाणु हथियारों के लिए पर्याप्त है।[3][4] भारत ने १९६८ की परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं, भारत का तर्क है कि यह संधि केवल कुछ देशों तक ही परमाणु तकनीक को सीमित करती है और सामान्य परमाणु निरशास्त्रिकारण भी को रोकती है।[5]
भारत ने जैविक हथियारों सम्मेलन और रासायनिक हथियार कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किये हैं व पुष्टि भी की है। भारत मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) का एक सदस्य है और द हेग आचार संहिता (The Hague Code of Conduct) की सदस्यता लेने वाला देश है।
जैविक हथियार
भारत के पास काफी अच्छी तरह से विकसित जैव प्रौद्योगिकी इन्फ्रास्ट्रक्चर है जिसमें घातक रोगजनकों के साथ काम करने के लिए कई दवा उत्पादन फेसिलिटी और जैव नियंत्रण प्रयोगशालायें (बीएसएल -3 और बीएसएल-4 सहित) भी शामिल हैं। भारत की कुछ सुविधाओं का प्रयोग जैविक हथियारों (BW) रक्षा उद्देश्यों के अनुसंधान और विकास का समर्थन करने के लिए किया जा रहा है। भारत ने अपने दायित्वों का पालन करने के लिए जैविक हथियार कन्वेंशन (BWC) पर हस्ताक्षर किया है और इसकी सीमाओं का पालन करने की शपथ ली है। ऐसे कोई स्पष्ट सबूत नहीं हैं जो सीधे तौर पर BW कार्यक्रम के आक्रामक प्रयोग की ओर इशारा करते हैं, हालांकी भारत के पास ऐसा करने के लिए वैज्ञानिक क्षमता और बुनियादी सुविधायें मौजूद हैं, लेकिन भारत ने ऐसा करने का निश्चय नहीं किया है। वितरण के संदर्भ में, भारत के पास एयरोसौल्ज़ और कई संभावित वितरण प्रणालियों को बनाने की क्षमता है जिसमें फसल डस्टर से लेकर परिष्कृत बैलिस्टिक मिसाइलें तक शामिल हैं।[6]
कोई सूचना सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है जो ऐसे या किसी अन्य माध्यम से जैविक एजेंटों के वितरण में भारत सरकार की रूचि को दर्शाती हो। दूससे बिंदु को दोहराना के लिए, अक्टूबर 2002 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम ने कहा कि "भारत जैविक हथियार नहीं बनाएगा। यह मानव जाति के लिए क्रूर है"।[6]
रासायनिक हथियार
जून 1997 में, भारत ने रासायनिक हथियारों के अपने स्टॉक (सल्फर मस्टरड का 1,045 टन) घोषित कर दिया।[7][8] 2006 के अंत तक भारत ने अपने रासायनिक हथियारों के सामग्री भंडार का 75 प्रतिशत से अधिक नष्ट कर दिया और अप्रैल 2009 तक शेष स्टॉक को नष्ट करने के लिए विस्तार प्रदान किया गया और उस समय सीमा के भीतर 100 प्रतिशत स्टॉक को नष्ट करने की उम्मीद थी।[7] भारत ने मई 2009 में संयुक्त राष्ट्र को सूचित किया है कि इसने अंतरराष्ट्रीय रासायनिक हथियार कन्वेंशन के अनुपालन में रासायनिक हथियारों के अपने भंडार को नष्ट कर दिया था। भारत, दक्षिण कोरिया और अल्बानिया के बाद ऐसा करने वाला तीसरा ऐसा देश बन गया है।[9][10] संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षकों द्वारा इस पर क्रॉस-जाँच भी की गई थी।
भारत का एक उन्नत वाणिज्यिक रासायनिक उद्योग है जो घरेलू खपत के लिए अपने स्वयं के रसायनों को थोक में पैदा करता है। यह भी व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है कि भारत के पास एक व्यापक असैनिक रसायन और दवा उद्योग है और सालाना ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका और ताइवान जैसे देशों के लिए रसायनों का काफी मात्रा में निर्यात करता है।[11]
परमाणु हथियार
26 जून 1946 से पूर्व, जवाहर लाल नेहरू, जल्द ही भारत के होने वाले प्रथम प्रधानमन्त्री ने घोषणा की:
“ | जब तक दुनिया सामान रूप में है। हर देश के लिए चिन्तन और इसके संरक्षण के लिए नवीनतम उपकरणों का इस्तेमाल करना होगा। मुझे कोई सन्देह नहीं भारत अपने वैज्ञानिक शोध का विकास करेगा और मुझे उम्मीद है कि भारतीय वैज्ञानिक रचनात्मक प्रयोजनों के लिए परमाणु शक्ति का उपयोग करेंगे लेकिन अगर भारत धमकी दी जाती है। तो वह स्वयं का बचाव करने की के लिये उपलब्ध प्रत्येक वस्तु का उपयोग करेगा।[12] | ” |
भारत का परमाणु कार्यक्रम मार्च 1944 को आरम्भ किया गया और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपने तीन चरण के प्रयासों को डॉ होमी भाभा द्वारा स्थापित किए गया। जब उन्होंने परमाणु अनुसन्धान केन्द्र मूलभूत अनुसन्धान संस्थान की स्थापना की।[13][14] भारत ने अक्टूबर 1962 में एक संक्षिप्त हिमालय सीमा युद्ध में चीन से अपना क्षेत्र खो दिया। सम्भावित चीनी आक्रमण भयभीत हो परमाणु हथियारों के विकास के लिए नई दिल्ली सरकार ने प्रोत्साहन प्रदान किया।[15] भारत ने पहली बार 1974 में एक परमाणु उपकरण का परीक्षण (कोड नाम: "मुस्कुराते बुद्धा") किया। जिसे शान्तिपूर्ण परमाणु विस्फोट कहा गया। परीक्षण में इस्तेमाल किया गया प्लूटोनियम कनाडा के साइरस रिएक्टर में उत्पादित किया गया था और यह ही परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) की शुरुआत की वजह बना। भारत ने 1998 में पुनः परमाणु परीक्षण (कोड नाम "ऑपरेशन शक्ति") किया। 1998 में परीक्षण जारी रखने के प्रतिक्रिया के रूप में, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान ने भारत पर प्रतिबन्ध लगाया। जो बाद में हटा लिया गया।[16]
न्यूट्रॉन बम
डॉ आर चिदम्बरम जिन्होंने भारत के पोखरण 2 परमाणु परीक्षणों का नेतृत्व किया ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि भारत न्यूट्रॉन बम के उत्पादन में सक्षम है।[17]
भारत की, पहले इस्तेमाल न करने की नीति (नो-फ़र्स्ट-यूज़ पाॅलिसी)
भारत ने परमाणु पहले-नहीं इस्तेमाल की नीति की घोषणा की है और इस परमाणु सिद्धान्त पर "विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता" को विकसित किया है। अगस्त 1999 में भारत सरकार ने एक मसौदा प्रस्तुत किया जिसमें दावा किया गया कि भारत के परमाणु हथियार केवल बचाव के लिए हैं और इनका प्रयोग केवल प्रतिशोध के लिए किया जायेगा। दस्तावेज़ में कहा गया है कि भारत पहले परमाणु हमला नहीं करेगा पर अगर बचाव असफल हो जाता है तो केवल प्रतिशोध के लिए इनका प्रयोग किया जायेगा और परमाणु हथियारों के प्रयोग का निर्णय प्रधानमन्त्री या उसके 'नामित उत्तराधिकारी द्वारा किया जायेगा।[18] एनआरडीसी के अनुसार, 2001-2002 में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की वृद्धि के बावजूद भारत अपनी परमाणु नो-फ़र्स्ट नीति के लिए प्रतिबद्ध है।[18]
परमाणु त्रय
भूमि-आधारित बैलिस्टिक मिसाइलें
भूमि आधारित भारत के परमाणु हथियार भारतीय सेना के नियंत्रण में हैं। इसमें वर्तमान में बैलिस्टिक मिसाइलों के तीन अलग-अलग प्रकार हैं, अग्नि-1, अग्नि-2, अग्नि 3 और पृथ्वी मिसाइल परिवार का सेना का संस्करण - पृथ्वी 1। अग्नि मिसाइल शृंखला के अतिरिक्त वेरिएंट, सबसे हाल ही में अग्नि-4 और अग्नि 5, का अभी विकास किया जा रहा है जो निकट भविष्य में पूर्ण परिचालन सेवा में प्रवेश करेंगे। अग्नि -4 को सशस्त्र बलों में शामिल किया गया है और अग्नि 5 को 2016 के परीक्षणों में 4 सफलतापूर्वक लॉन्च किया जा चुका है। अग्नि-4 की रेंज 4000 किमी और अग्नि 5 की रेंज 5500-6000 किलोमीटर (अनुमानित) है। अग्नि 6 का विकास किया जा रहा है इसकी प्रस्तावित रेंज 8000-12,000 किमी है इसमें मल्टीप्ल इंडिपेंडेंट टारगेटेबल रीएंट्री व्हीकल्स (MIRVs) और मन्युवेरबल रीएंट्री व्हीकल (MARVs) के रूप में अनेक सुविधाओं की कल्पना की गयी है।[19][20] भारत की इस कामयाबी का पाकिस्तान ने काफी विरोध किया है। चीन व पाकिस्तान का मानना है कि भारत ऐसी तकनीक से अमेरिका और यूरोप को निशाना बना सकता है। पाकिस्तानी डिप्लोमेट के अनुसार भारत अपने आप को एक सुपर पावर के रूप में देखना चाहता है जो चीन के साथ-साथ अमेरिका व उसके सहयोगियों के लिए भी खतरा है। हालांकि अमेरिका, भारत को चीन के बराबर खड़ा करना चाहता है।
वायु-आधारित परमाणु हथियार
भारत के हवा-आधारित परमाणु हथियारों की वर्तमान स्थिति स्पष्ट नहीं है। उनकी जमीन हमले में भूमिका के अलावा, हालांकि, यह माना जाता है कि डसॉल्ट मिराज -2000 और भारतीय वायुसेना के SEPECAT जगुआर एक माध्यमिक परमाणु स्ट्राइक भूमिका प्रदान करने में सक्षम हैं।[21] SEPECAT जगुआर को परमाणु हथियारों को ले जाने के लिए डिजाईन किया गया था और भारतीय वायु सेना ने जेट को भारतीय परमाणु हथियार पहुंचाने में सक्षम होने के रूप में पहचान की है।[22][23]
समुद्र-आधारित बैलिस्टिक मिसाइलें
भारतीय नौसेना ने परमाणु हथियारों का वितरण (डिलीवरी) करने के लिए दो समुद्र आधारित प्रणाली विकसित की हैं। जो परमाणु वितरण के लिए भारतीय महत्त्वाकांक्षा को पूरा करेंगी। जिसे 2015 में तैनात किये जाने की सम्भावना थी।[24][25]
पहली पनडुब्बी आधारित लॉन्च प्रणाली है जिसमें परमाणु शक्ति चालित अरिहंत वर्ग की कम से कम चार 6,000 टन वाली पनडुब्बियाँ व बैलिस्टिक मिसाइल हैं। पहली पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत समुद्री परीक्षणों को पूरा करने के बाद परिचालन हेतु कमीशन की गई। वह भारत द्वारा बनायी गयी पहली परमाणु संचालित पनडुब्बी है।[26][27] सीआईए की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि रूस के नौसैना ने परमाणु प्रणोदन कार्यक्रम के लिए तकनीकी सहायता प्रदान की है।[28][29] पनडुब्बियों को परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम 12 सागरिका (के-15) मिसाइलों से युक्त किया जाएगा। भारत के डीआरडीओ ने अग्नि 3 मिसाइल के एक पनडुब्बी लांच बैलिस्टिक मिसाइल संस्करण पर भी काम शुरू कर दिया है। जिसे अग्नि 3 एसएल के रूप में जाना जाता है। भारतीय रक्षा सूत्रों के अनुसार, अग्नि 3 एसएल की सीमा 3,500 किलोमीटर (2,200 मील) है। नई मिसाइल पुरानी और कम सक्षम पनडुब्बी लांच सागरिका बैलिस्टिक मिसाइलों की कमी को पूरा करेगी। हालांकि, अरिहंत वर्ग की पनडुब्बियाँ अधिकतम केवल चार अग्नि 3 एसएल बैलिस्टिक मिसाइल ले जाने में सक्षम होगी।
दूसरी जहाज लांच प्रणाली जो कम दूरी की धनुष बैलिस्टिक मिसाइल (पृथ्वी मिसाइल का एक संस्करण) आधारित प्रणाली है। इसकी सीमा लगभग 300 किलोमीटर की है। वर्ष 2000 में आईएनएस सुभद्रा से इस मिसाइल का परीक्षण किया गया था। आईएनएस सुभद्रा को परीक्षण के लिए संशोधित किया गया था और मिसाइल को रीइन्फोर्सड हेलिकॉप्टर डेक से लांच किया गया था। जिस कारण इसे आंशिक रूप से सफल माना गया। 2004 में, मिसाइल को फिर से आईएनएस सुभद्रा से टैस्ट किया गया और इस बार परिणाम सफल रहा था। दिसंबर 2005 में मिसाइल का फिर से परीक्षण किया गया, लेकिन इस बार यह विध्वंसक आईएनएस राजपूत से किया गया था। परीक्षण भूमि आधारित लक्ष्य से टकराने के साथ यह सफल घोषित हुआ था।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
भारत ने ना तो परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर और ना ही व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर किये हैं लेकिन अक्टूबर 1963 में आंशिक परीक्षण प्रतिबंध संधि को स्वीकार किया है। भारत अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) का सदस्य है और अपने 17 परमाणु रिएक्टरों में से चार आईएईए के सुरक्षा उपायों के अधीन कर दिये हैं। भारत ने 1997 में संयुक्त राष्ट्र के एक महासभा संकल्प के पैरा के खिलाफ मतदान के द्वारा परमाणु अप्रसार संधि को स्वीकार करने से मना करने की घोषणा की।[30][31] जो जल्द से जल्द संभव सभी गैर हस्ताक्षर देशों को इस संधि को स्वीकार करने के लिए दबाब डालती। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा संकल्प सीटीबीटी के खिलाफ भी वोट दिया। जो 10 सितंबर 1996 को अपनाया गया था। भारत सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए प्रावधान के अभाव पर आपत्ति भी जता चुका है। भारत ने यह भी मांग की है कि संधि प्रयोगशाला सिमुलेशन को भी प्रतिबंधित करे। इसके अलावा, भारत ने सीटीबीटी की संधि के अनुच्छेद 14 के प्रावधान का विरोध किया। भारत ने इसके लिये तर्क दिया है कि क्या किसी देश को अपने संप्रभु अधिकार का उल्लंघन करवाकर इस संधि पर हस्ताक्षर करवाया जायेगा। जल्दी ही फरवरी 1997 में, विदेश मंत्री इन्द्र कुमार गुजराल ने संधि पर भारत के विरोध को दोहराया और कहा कि "भारत परमाणु हथियारों को नष्ट करने के उद्देश्य से किसी भी कदम के पक्ष में है, लेकिन मानता है कि अपने मौजूदा रूप में संधि व्यापक नहीं है और परीक्षण के केवल कुछ प्रकार पर ही रोक लगाई गयी है।"
अगस्त 2008 में, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने भारत के साथ सुरक्षा मानक समझौते को मंजूरी दी। जिसके तहत धीरे-धीरे भारत के असैनिक परमाणु रिएक्टरों के लिए पहुँच प्राप्त होगी।[32] सितम्बर 2008 में, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह ने भारत को अन्य देशों से असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधन उपयोग करने की अनुमति दे दी।[33] इस छूट के बाद भारत अब एक ऐसा देश है जिसने बिना परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर किये यह छूट हासिल की है। लेकिन अभी भी बाकी दुनिया के साथ परमाणु व्यापार के लिए भारत को अनुमति नहीं दी गयी है।[34]
एनएसजी छूट के कार्यान्वयन के बाद से, भारत ने फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, मंगोलिया, नामीबिया, कज़ाकस्तान और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों के साथ परमाणु सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं। जबकि कनाडा और ब्रिटेन के साथ इसी तरह के सौदों के लिए रूपरेखा भी तैयार की जा रही है।[35][36]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
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