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भारत में संचार

भारतीय दूरसंचार उद्योग तेजी से बढ़ता हुआ उद्योग है।

३१ दिसंबर २०१९ तक ग्राहकों की संख्या 1,17,24,40,000 थी। [1] भारती एयरटेल, जियो, वोडाफोन, आइडिया, बीएसएनएल (BSNL) प्रमुख दूरसंचार सेवा प्रदाता है।

आधुनिक विकास

राज्य के स्वामित्व वाला पदस्थ पहला संचालक (ऑपरेटर) बीएसएनएल (BSNL) है। बाद में भारती एयरटेल ने सेवाएं शुरू की। समय के साथ अन्य ऑपरेटरों ने भी सेवाएं प्रदान करनी शुरू की। भारती एयरटेल ने सबसे पहले ४जी शुरू की। [2] कुछ समय बाद ही वोडाफोन तथा आईडिया ने ४जी सेवाएं शुरू की। ५ सितम्बर २०१६ को जियो ने राष्ट्रव्यापी ४जी VoLTE सेवा शुरू की। 31 दिसंबर 2019 तक, जियो भारत का सबसे बड़ा मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर है और 370.07 मिलियन से अधिक ग्राहकों के साथ दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर है। [1] वर्तमान में ऑपरेटरों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा चल रही है। इसी कारण ऑपरेटरों ने लगभग पूरे भारत में अपना नेटवर्क खड़ा कर दिया।

इतिहास

टेलीकॉम का वास्तविक अर्थ अंतरिक्ष में दूर की दो जगहों के बीच सूचना का स्थानांतरण है। दूरसंचार के लोकप्रिय अर्थ में हमेशा बिजली के संकेत शामिल रहे हैं और आजकल लोगों ने डाक या दूरसंचार के किसी भी अन्य कच्चे तरीके को इसके अर्थ से बाहर रखा है। इसलिए, भारतीय दूरसंचार के इतिहास को टेलीग्राफ की शुरूआत के साथ प्रारंभ किया जा सकता है।

तार की शुरूआत

भारत में डाक और दूरसंचार क्षेत्रों में एक धीमी और असहज शुरुआत हुई थी। 1850 में, पहली प्रायोगिक बिजली तार लाइन डायमंड हार्बर और कोलकाता के बीच शुरू की गई थी। 1851 में, इसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए खोला गया था। डाक और टेलीग्राफ विभाग उस समय लोक निर्माण विभाग[3] के एक छोटे कोने में था। उत्तर में कोलकाता (कलकत्ता) और पेशावर को आगरा सहित और मुंबई (बॉम्बे) को सिंदवा घाट्स के जरिए दक्षिण में चेन्नई, यहां तक कि ऊटकमंड और बंगलोर के साथ जोड़ने वाली 4000 मील (6400 किमी) की टेलीग्राफ लाइनों का निर्माण नवंबर 1853 में शुरू किया गया। भारत में टेलीग्राफ और टेलीफोन का बीड़ा उठाने वाले डॉ॰ विलियम ओ' शौघ्नेस्सी लोक निर्माण विभाग में काम करते थे। वे इस पूरी अवधि के दौरान दूरसंचार के विकास की दिशा में काम करते रहे। 1854 में एक अलग विभाग खोला गया, जब टेलीग्राफ सुविधाओं को जनता के लिए खोला गया था।

टेलीफोन की शुरूआत

1880 में, दो टेलीफोन कंपनियों द ओरिएंटल टेलीफोन कंपनी लिमिटेड और एंग्लो इंडियन टेलीफोन कंपनी लिमिटेड ने भारत में टेलीफोन एक्सचेंज की स्थापना करने के लिए भारत सरकार से संपर्क किया। इस अनुमति को इस आधार पर अस्वीकृत कर दिया गया कि टेलीफोन की स्थापना करना सरकार का एकाधिकार था और सरकार खुद यह काम शुरू करेगी। 1881 में, सरकार ने अपने पहले के फैसले के खिलाफ इंग्लैंड की ओरिएंटल टेलीफोन कंपनी लिमिटेड को कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई (मद्रास) और अहमदाबाद में टेलीफोन एक्सचेंज खोलने के लिए एक लाइसेंस दिया, जिससे 1881 में देश में पहली औपचारिक टेलीफोन सेवा की स्थापना हुई। [4] 28 जनवरी 1882, भारत के टेलीफोन के इतिहास में रेड लेटर डे है। इस दिन, भारत के गवर्नर जनरल काउंसिल के सदस्य मेजर ई. बैरिंग ने कोलकाता, चेन्नई और मुंबई में टेलीफोन एक्सचेंज खोलने की घोषणा की। कोलकाता के एक्सचेंज का नाम "केन्द्रीय एक्सचेंज" था जो 7, काउंसिल हाउस स्ट्रीट इमारत की तीसरी मंजिल पर खोला गया था। केन्द्रीय टेलीफोन एक्सचेंज के 93 ग्राहक थे। बॉम्बे में भी 1882 में टेलीफोन एक्सचेंज का उद्घाटन किया गया।

आगे का विकास

  • 1902 - सागर द्वीप और सैंडहेड्स के बीच पहले वायरलेस टेलीग्राफ स्टेशन की स्थापना की गयी।
  • 1907 - कानपुर में टेलीफोनों की पहली केंद्रीय बैटरी शुरू की गयी।
  • 1913-1914 - शिमला में पहला स्वचालित एक्सचेंज स्थापित किया गया।
  • 23 जुलाई 1927 - इंग्लैण्ड के राजा के साथ अभिवादन का आदान-प्रदान कर ब्रिटेन और भारत के बीच इम्पेरियल वायरलेस चेन बीम द्वारा खड़की और दौंड स्टेशनों के जरिये रेडियो टेलीग्राफ प्रणाली शुरू की गयी, जिसका उद्घाटन लार्ड इरविन ने किया।
  • 1933 - भारत और ब्रिटेन के बीच रेडियोटेलीफोन प्रणाली का उद्घाटन.
  • 1953-12 चैनल वाहक प्रणाली शुरू की गई।
  • 1960 - कानपुर और लखनऊ के बीच पहला ग्राहक ट्रंक डायलिंग मार्ग अधिकृत किया गया।
  • 1975 - मुंबई सिटी और अंधेरी टेलीफोन एक्सचेंज के बीच पहली पीसीएम (PCM) प्रणाली अधिकृत की गई।
  • 1976 - पहला डिजिटल माइक्रोवेव जंक्शन शुरू किया गया।
  • 1979 - पुणे में स्थानीय जंक्शन के लिए पहली ऑप्टिकल फाइबर प्रणाली अधिकृत की गई।
  • 1980 - सिकंदराबाद, आंध्र प्रदेश में, घरेलू संचार के लिए प्रथम उपग्रह पृथ्वी स्टेशन स्थापित किया गया।
  • 1983 - ट्रंक लाइन के लिए पहला अनुरूप संग्रहित कार्यक्रम नियंत्रण एक्सचेंज मुंबई में बनाया गया।
  • 1984 - सी-डॉट स्वदेशी विकास और उत्पादन के लिए डिजिटल एक्सचेंजों की स्थापना की गई।
  • 1985 - दिल्ली में गैर वाणिज्यिक आधार पर पहली मोबाइल टेलीफोन सेवा शुरू की गई।

ब्रिटिश काल में जबकि देश के सभी प्रमुख शहरों और कस्बों को टेलीफोन से जोड़ दिया गया था, फिर भी 1948 में टेलीफोन की कुल संख्या महज 80,000 के आसपास ही थी। स्वतंत्रता के बाद भी विकास बेहद धीमी गति से हो रहा था। टेलीफोन उपयोगिता का साधन होने के बजाय हैसियत का प्रतीक बन गया था। टेलीफोनों की संख्या इत्मीनान से बढती हुई 1971 में 980,000, 1981 में 2.15 मिलियन और 1991 में 5.07 मिलियन तक पहुंची, जिस वर्ष देश में आर्थिक सुधारों को शुरू किया गया।

हालांकि समय-समय पर कुछ अभिनव कदम उठाये जा रहे थे, जैसे कि उदाहरण के लिए 1953 में मुंबई में टेलेक्स सेवा और 1960 के बीच दिल्ली और कानपुर एवं लखनऊ के बीच पहला [ग्राहक ट्रंक डायलिंग] मार्ग शुरू किया गया, अस्सी के दशक में सैम पित्रोदा ने परिवर्तन की लहरों का दौर शुरू किया।[5] वे ताजा हवा का झोंका लेकर आये। 1994 में राष्ट्रीय दूरसंचार नीति की घोषणा के साथ परिवर्तन का असली परिदृश्य नजर आया।[6]

भारतीय दूरसंचार क्षेत्र: हाल की नीतियां

  • 2002 के अंत तक सभी गांवों को दूरसंचार सुविधा द्वारा कवर किया जाएगा.
  • 31 अगस्त 2001को संसद में पेश संचार अभिसरण विधेयक (कम्युनिकेशन कनवर्जेन्स बिल) 2001 इस समय टेलिकॉम और आईटी संबंधी स्थायी संसदीय समिति के सामने है।
  • राष्ट्रीय लंबी दूरी की सेवा (एनएलडी) को अप्रतिबंधित प्रविष्टि के लिए खोला गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय लंबी दूरी की सेवाओं (ILDS) प्रतियोगिता के लिए खोला गया है।
  • बुनियादी सेवाएं प्रतियोगिता के लिए खुली हैं।
  • मौजूदा तीन के अतिरिक्त, चौथे सेलुलर संचालक (ऑपरेटर) को, प्रत्येक को चार महानगरों में से एक और तेरह परिमंडलों के लिए अनुमति दी गई है। सेलुलर संचालकों (ऑपरेटरों) को आवाज और गैर आवाज संदेश, डाटा सेवाओं सहित सभी प्रकार की मोबाइल सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए और सर्किट और/या पैकेज स्विच सहित कुछ आवश्यक मानकों को पूरा करने वाले किसी भी प्रकार के नेटवर्क उपकरण का प्रयोग कर पीसीओ (PCOs) के लिए अनुमति प्रदान की गई है।
  • नई दूरसंचार नीति (NTP), 1999 के अनुसार कई नई सेवाओं, जिनमें सैटेलाइट सेवा के द्वारा ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन (GMPCS), डिजिटल पब्लिक मोबाइल रेडियो ट्रंक सर्विस (PMRTS), वॉयस मेल/ ऑडियोटेक्स/ एकीकृत संदेश सेवा शामिल है, में निजी भागीदारी की अनुमति देने वाली नीतियों की घोषणा की गई है।
  • शहरी, अर्द्ध शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में तुरंत टेलीफोन कनेक्शन प्रदान करने के लिए स्थानीय लूप (डब्ल्यूएलएल) (WLL) में वायरलेस शुरू किया गया है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के दो दूरसंचार उपक्रमों वीएसएनएल (VSNL) और एचटीएल (HTL) को विनिवेशित किया गया है।
  • वैश्विक सेवा बाध्यता (यूएसओ), इसके निवेश और प्रशासन को पूरा करने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं।
  • सामुदायिक फोन सेवा की अनुमति देने के एक निर्णय की घोषणा की गई है।
  • कई निश्चित सेवा प्रदाताओं (FSPs) के लाइसेंसिंग के दिशा निर्देशों की घोषणा की गई थी।
  • इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी) को समुद्र की सतह के नीचे ऑप्टिकल फाइबर केबल के लिए उपग्रह और लैंडिंग स्टेशन दोनों पर अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट गेटवे की स्थापना की अनुमति दी गई है।
  • अवसंरचना प्रदाताओं की दो श्रेणियों को एक छोर से दूसरे छोर तक बैंडविड्थ और गहरे फाइबर, रस्ते, टावरों, डक्ट स्पेस आदि के लिए अधिकार प्रदान करने की अनुमति दी गई है।
  • सरकार द्वारा इंटरनेट टेलीफोनी (आईपी) को खोलने के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं।

एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उद्भव

1975 में, दूरसंचार विभाग (डीओटी) को पी एंड टी से अलग कर दिया गया था। दूरसंचार विभाग 1985 तक देश में सभी दूरसंचार सेवाओं के लिए जिम्मेदार था, जब महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) को दूरसंचार विभाग से अलग करके उसे दिल्ली और मुंबई की सेवाओं को चलाने की जिम्मेदारी दी गयी। 1990 के दशक में सरकार द्वारा दूरसंचार क्षेत्र को उदारीकरण- निजीकरण- वैश्वीकरण नीति के तहत निजी निवेश के लिए खोल दिया गया। इसलिए, सरकार की नीति शाखा को उसकी कार्यपालिका शाखा से अलग करना जरूरी हो गया था। भारत सरकार ने 1 अक्टूबर 2000 को दूरसंचार विभाग के परिचालन हिस्से को निगम के अधीन कर उसे भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) का नाम दिया। कई निजी ऑपरेटरों, जैसे कि रिलायंस कम्युनिकेशंस, टाटा इंडिकॉम, हच, लूप मोबाइल, एयरटेल, आइडिया आदि ने उच्च संभावना वाले भारतीय दूरसंचार बाजार में सफलतापूर्वक प्रवेश किया।

भारत में दूरसंचार का निजीकरण

भारत सरकार कई गुटों (पार्टियों) द्वारा बनी थी, जिनकी विचारधाराएं अलग-अलग थीं। उनमें से कुछ विदेशी खिलाड़ियों (केंद्रीय) के लिए बाजार खुला रखना चाहते थे, जबकि अन्य चाहते थे कि सरकार बुनियादी ढांचे को विनियमित करे और विदेशी खिलाड़ियों की भागीदारी को सीमित रखे. इस राजनीतिक पृष्ठभूमि के कारण दूरसंचार में उदारीकरण लाना बहुत मुश्किल था। जब एक विधेयक संसद में पारित किया गया था, उसे बहुमत का वोट मिलना चाहिए था, मगर अलग-अलग विचारधाराओं वाले दलों की संख्या को देखते हुए इस तरह का बहुमत प्राप्त करना मुश्किल था।

उदारीकरण 1981 में शुरू हुआ जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हर साल 5,000,000 लाइनें लगाये जाने के प्रयास के तहत फ्रांस की अल्काटेल सीआईटी के साथ राज्य संचालित दूरसंचार कंपनी (आईटीआई) के विलय के अनुबंध पर हस्ताक्षर किया। लेकिन राजनीतिक विरोध के कारण जल्द ही इस नीति को त्यागना पड़ा। उन्होंने अमेरिका स्थित अप्रवासी भारतीय सैम पित्रोदा को सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स(सी-डॉट) स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया, पर राजनीतिक दबावों के कारण यह योजना विफल हो गयी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, इस अवधि के दौरान, राजीव गांधी के नेतृत्व में, कई सार्वजनिक क्षेत्र जैसे कि दूरसंचार विभाग (डीओटी), वीएसएनएल और एमटीएनएल जैसे संगठनों की स्थापना हुई। इस कार्यकाल में कई तकनीकी विकास हुए फिर भी विदेशी खिलाड़ियों को दूरसंचार व्यापार में भाग लेने की अनुमति नहीं थी।[7]

टेलीफोन की मांग लगातार बढ़ती गयी। इसी अवधि के दौरान ऐसा हुआ कि 1994 में पीएन राव के नेतृत्व में सरकार ने राष्ट्रीय दूरसंचार नीति [एनटीपी] लागू की, जिसमें निम्नलिखित क्षेत्रों: स्वामित्व, सेवा और दूरसंचार के बुनियादी ढांचे के विनियमन में परिवर्तन लाया गया। वे राज्य के स्वामित्व वाली दूरसंचार कंपनियों और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के बीच संयुक्त उपक्रम स्थापित करने में भी सफल हुए. लेकिन अभी भी पूर्ण स्वामित्व की सुविधा केवल सरकारी स्वामित्व वाले संगठनों तक सीमित रखी गयी थी। विदेशी कंपनियां कुल हिस्सेदारी का 49% रखने की हकदार थीं। बहु-राष्ट्रीय केवल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में शामिल थे, नीति बनाने में नहीं। [7]

इस अवधि के दौरान विश्व बैंक और आईटीयू ने भारत सरकार को लंबी दूरी की सेवाओं को उदार करने की सलाह दी थी जिससे राज्य के स्वामित्व वाले दूरसंचार विभाग और वीएसएनएल का एकाधिकार खत्म हो सके और लंबी दूरी के वाहक व्यापार में प्रतिस्पर्धा बढ़े जिससे प्रशुल्क कम करने में मदद मिलेगी और देश की अर्थव्यवस्था बेहतर हो सकेगी. राव द्वारा चलाई जा रही सरकार ने विपरीत राजनीतिक दलों को विश्वास में लेकर स्थानीय सेवाओं का उदारीकरण किया और 5 साल के बाद लंबी दूरी के कारोबार में विदेशी भागीदारी देने का विश्वास दिलया. देश को बुनियादी टेलीफोनी के लिए 20 दूरसंचार परिमंडलों और मोबाइल सेवाओं के लिए 18 परिमंडलों में बांटा गया था। इन परिमंडलों को प्रत्येक परिमंडल में राजस्व के मूल्य के आधार पर ए, बी और सी श्रेणी में विभाजित किया गया। सरकार ने प्रति परिमंडल में सरकारी स्वामित्व वाले दूरसंचार विभाग के साथ प्रति परिमंडल एक निजी कंपनी के लिए निविदाओं को खुला रखा। सेलुलर सेवा के लिए प्रति परिमंडल में दो सेवा प्रदाताओं को अनुमति दी जाती थी और हर प्रदाता को 15 साल का लाइसेंस दिया जाता था। इन सुधारों के दौरान, सरकार को आईटीआई (ITI), दूरसंचार विभाग, एमटीएनएल (MTNL), वीएसएनएल (VSNL) और अन्य श्रमिक यूनियनों के विरोधों का सामना करना पड़ा, लेकिन वह इन बाधाओं से निपटने में कामयाब रही। [7]

1995 के बाद सरकार ने ट्राई (भारत का दूरसंचार नियामक प्राधिकरण) बनाया, जिसने प्रशुल्क तय करने और नीतियों को बनाने में सरकारी हस्तक्षेप को कम कर दिया। दूरसंचार विभाग ने इसका विरोध किया। राजनीतिक शक्तियां 1999 में बदल गयीं और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली नयी सरकार नए सुधारों की और अधिक समर्थक थी, जिसने उदारीकरण की बेहतर नीतियों की शुरुआत की। उन्होंने डॉट को 2 भागों में बांटा-1 नीति निर्माता और अन्य सेवा प्रदाता (डीटीएस) जिसे बाद में बीएसएनएल का नाम दिया गया। विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी को 49% से बढ़ाकर 74% करने के प्रस्ताव को विरोधी राजनीतिक दल और वामपंथी विचारकों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था। घरेलू व्यापार समूह चाहते थे कि सरकार वीएसएनएल का निजीकरण कर दे। आखिर में अप्रैल 2002 में अंत में, सरकार ने वीएसएनएल में अपनी हिस्सेदारी को 53% से घटाकर 26% कर दी और इसे निजी उद्यमों को बिक्री के लिए आमंत्रित करने का फैसला किया। अंत में टाटा ने वीएसएनएल में 25% हिस्सेदारी ले ली। [7]

यह कई विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय दूरसंचार बाजार में शामिल होने के लिए एक प्रवेश द्वार जैसा था। मार्च 2000 के बाद, सरकार नीतियों को बनाने और निजी संचालकों (ऑपरेटरों) को लाइसेंस जारी करने में और अधिक उदार बन गयी। सरकार ने आगे सेलुलर सेवा प्रदाताओं के लिए लाइसेंस शुल्क कम कर दिया और विदेशी कंपनियों की स्वीकार्य हिस्सेदारी को बढ़ाकर 74% कर दिया। इन सभी कारकों की वजह से, अंत में सेवा शुल्क कम हो गया और कॉल की लागत में भारी कमी आयी, जिससे भारत में हर आम मध्यम वर्ग परिवार के लिए सेल फोन हासिल करना आसान हो गया। भारत में तकरीबन 32 मिलियन हैंडसेट बिके थे। आंकड़े से भारतीय मोबाइल बाजार के विकास की असली क्षमता का पता चलता है।[8]

मार्च 2008 में देश में जीएसएम (GSM) और सीडीएमए (CDMA) मोबाइल ग्राहकों का आधार 375 मिलियन था, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 50% विकास का प्रतिनिधित्व करता है।[9] बिना ब्रांड वाले चीनी सेल फोन जिनके पास इंटरनेशनल मोबाइल उपकरण पहचान आईएमईआई (IMEI) नंबर नहीं होता, देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा होते हैं, इस वजह से मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटरों ने तकरीबन 30 मिलियन मोबाइल फोन (देश के कुल मोबाइलों का 8%) का इस्तेमाल 30 अप्रैल तक बंद करने की योजना बनायी। [10] 5-6 सालों में औसतन मासिक ग्राहकों में तकरीबन 0.05 से 0.1 मिलियन वृद्धि होती थी और दिसंबर 2002 में कुल मोबाइल उपभोक्ताओं का आधार 10.5 मिलियन तक पहुंच गया। हालांकि, नियामकों और लाइसेंसदाताओं द्वारा कई सक्रिय पहल करने के बाद मई 2010 तक मोबाइल उपभोक्ताओं की कुल संख्या बढ़कर 617 मिलियन ग्राहकों तक पहुंच गयी है।[11][12]

भारत ने मोबाइल सेक्टर में दोनों जीएसएम (मोबाइल संचार के लिए वैश्विक प्रणाली) और सीडीएमए (कोड डिवीजन मल्टीपल एक्सेस) प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का चयन किया है। लैंडलाइन और मोबाइल फोन्स के अलावा, कुछ कंपनियां डब्ल्यूएलएल (WLL) की सेवा भी प्रदान करती हैं। भारत में मोबाइल दरें भी दुनिया में सबसे कम हो गई हैं। एक नया मोबाइल कनेक्शन अमेरिकी डॉलर $0.15 की मासिक प्रतिबद्धता के साथ ही सक्रिय किया जा सकता है। 2003-04 और 2004-05 वर्ष में से अकेले 2005 में ग्राहकों में हर महीने लगभग 2 मिलियन की वृद्धि हुई। []

जून 2009 में, भारत सरकार ने गुणवत्ता में कमी और आईएमईआई नंबर के न होने पर चिंता जाहिर करते हुए चीन में निर्मित कई मोबाइल फोनों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि भारत में ऐसे फोन की बिक्री का पता लगाने में अधिकारियों को मुश्किलें होती थीं।[13] अप्रैल 2010 में सरकार ने भारतीय सेवा प्रदाताओं को चीनी मोबाइल प्रौद्योगिकी खरीदने से यह हवाला देते हुए रोका कि चीनी हैकर्स राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भारतीय दूरसंचार नेटवर्क को अवरुद्ध कर सकते हैं। भारत सरकार की वेबसाइटों और कंप्यूटर नेटवर्क पर चीनी हैकर्स द्वारा लगातार हमलों ने भारतीय नियामकों को चीन में तैयार संभावित संवेदनशील उपकरणों के आयात के प्रति संदिग्ध बना दिया है। इनसे प्रभावित कंपनियों के नाम हैं हुआई प्रौद्योगिकी और ज़ेडटीई.[14][15][16]

भारत में दूरसंचार नियामक पर्यावरण

एलईआरएनईएशिया (LIRNEasia) का दूरसंचार विनियामक पर्यावरण (टीआरई) सूचकांक, जो टीआरई के कुछ आयामों पर हितधारकों की धारणा को सारांशित करता है और अनुकूल माहौल में पर्यावरण विकास और प्रगति तय करने की अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। सबसे हाल ही में जुलाई 2008 में आठ एशियाई देशों में सर्वेक्षण कराया गया था, जिनमें बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया, श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान, थाईलैंड और फिलीपींस शामिल है। यह उपकरण सात आयामों को मापता है:i) बाजार में प्रवेश; ii) दुर्लभ संसाधनों के उपयोग, iii) एक दूसरे से संबंध, iv) शुल्क विनियमन; v) विरोधी प्रतिस्पर्धी तरीके और vi) सार्वभौमिक सेवाएं; vii) फिक्स्ड, मोबाइल और ब्रॉडबैंड क्षेत्रों के लिए सेवा की गुणवत्ता. भारत के परिणाम इस तथ्य को दर्शाते हैं कि साझेदार टीआरई (TRE) को मोबाइल क्षेत्र के बाद फिक्स्ड और फिर ब्रॉडबैंड के लिए सबसे अधिक अनुकूल मानते हैं। दुर्लभ के अलावा प्रवेश के लिए स्थाई (फिक्स्ड) क्षेत्र संसाधनों में मोबाइल क्षेत्र से पीछे है। निश्चित और मोबाइल क्षेत्रों के पास शुल्क नियमन के लिए उच्चतम स्कोर हैं। मोबाइल सेक्टर के लिए भी बाजार में प्रवेश भी सुलभ है हर परिमंडल में 4-5 मोबाइल सेवा प्रदाताओं के होने की वजह से अच्छी प्रतिस्पर्धा है। प्राप्तांक में ब्रॉडबैंड सेक्टर का सबसे कम अंक है। ब्रॉडबैंड का कम प्रवेश 2007 के आखिर में 9 मिलियन की जगह महज 3.87, स्पष्ट करता है कि विनियामक वातावरण बहुत अनुकूल नहीं है।[17]

राजस्व और विकास

दूरसंचार सेवा क्षेत्र में 2004-2005 के 71,674 करोड़ (US$10.5 अरब) की तुलना में 2005-06 में कुल राजस्व 86,720 करोड़ (US$12.7 अरब) 21% की वृद्धि दर्ज की गई है। दूरसंचार सेवा क्षेत्र में पिछले वित्तीय वर्ष के 1,78,831 करोड़ (US$26.1 अरब) की तुलना में वर्ष 2005-06 में कुल निवेश 2,00,660 करोड़ (US$29.3 अरब) से ऊपर चला गया।[18]

दूरसंचार तेजी से बढ़ रही सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की जीवन रेखा है। इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 2005-2006 में 6.94 मिलियन तक पहुंच गयी है। इनमें से 1.35 करोड़ के पास ब्रॉडबैंड कनेक्शन थे।[18] विश्व में एक अरब से अधिक लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं।

भारत निर्माण कार्यक्रम के तहत भारत सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि देश के 66,822 राजस्व गांवों को, जिन्हें सार्वजनिक ग्रामीण टेलीफोन (वीपीटी) अभी तक नहीं मिला है, उन्हें जोड़ा जाएगा. हालांकि, देश में इस बारे में संदेह जाहिर किया गया है कि आखिर गरीबों के लिए यह कितना काम आयेगा.[19]

दूरसंचार क्षेत्र में रोजगार की पूरी क्षमता का पता लगाना मुश्किल है लेकिन अवसरों की व्यापकता का पता इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2004 में इसकी संख्या 2.3 मिलियन थी जबकि दिसंबर 2005[20] में सार्वजनिक कॉल के कार्यालयों की संख्या 3.7 मिलियन हो गई थी।

भारत के मोबाइल उद्योग में वैल्यू एडेड सर्विसेज़ (वीएएस) के बाजार में 2006 के US$500 से बहुत अधिक बढ़कर 2009 में US$10 बिलियन तक विकसित करने की क्षमता है।[21]

टेलीफोन

लैंडलाइन्स पर, इंट्रा सर्कल कॉल को स्थानीय कॉल और इंटर-सर्कल कॉल को लंबी दूरी का कॉल माना जाता था। लंबी दूरी का कॉल करने के लिए, उस क्षेत्र के कोड के पहले एक शून्य लगाया जाता था उसके बाद नंबर मिलाया जाता था। वर्तमान में यह समस्या समाप्त हो गयी है | केवल अंतरराष्ट्रीय कॉल करने के लिए ही कोड लगाया जाता है | भारत का कोड +91 है | 31 दिसम्बर 2019 तक भारत में कुल ग्राहकों की संख्या ११७.२४४ करोड़ है |[1]

  • लैंडलाइन्स 21004534 (31 दिसम्बर 2019)
  • वायरलेस 1151437099 (31 दिसम्बर 2019)

मोबाइल टेलीफोन्स

31 दिसम्बर 2019 तक भारत में कुल ग्राहकों की संख्या ११७.२४४ करोड़ थी | [1]

भारत 22 टेलीकॉम परिमंडलों में विभाजित है। वे नीचे हैं-

31 दिसम्बर 2019 तक ग्राहक आधार-

ऑपरेटर / चालकग्राहक आधार[22]मार्केट शेयर[22]
भारती एयरटेल327297725 28.43 %
जिओ370016160 32.14
वोडाफोन आइडिया332612871 28.89
बीएसएनएल118025372 10.26
सभी 1151437099 100%

लैंडलाइन्स

यहां प्रमुख सेवा प्रदाताओं की सारणी दी गयी है-

ऑपरेटर / चालकग्राहक आधार
बीएसएनएल95,79,279
एमटीएनएल31,23,023
भारती एयरटेल43,09,755
रिलायंस कम्युनिकेशंस5,53,866
टाटा टेलिसर्विसेज17,88,221
जियो10,50,702
वोडाफोन आइडिया4,01,807
सभी 2,10,04,534

इंटरनेट

2009 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के कुल ग्राहकों का आधार 81 मिलियन था।[23] संयुक्त राष्ट्र, जापान या दक्षिण कोरिया की तुलना में, जहां इंटरनेट प्रवेश उल्लेखनीय रूप से काफी ऊंचा है, भारत में इंटरनेट प्रवेश विश्व के सबसे कम इंटरनेट प्रवेश में से एक है, जो आबादी का 7.0% है।[23]

2006 की शुरुआत के बाद से भारत में ब्रॉडबैंड कनेक्शनों की संख्या में सतत विकास देखा गया है। जनवरी 2010 के अंत तक, देश में ब्रॉडबैंड कनेक्शनों की कुल संख्या 8.03 मिलियन तक पहुंच गयी है।

पश्चिमी यूरोप/ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में भारत में ब्रॉडबैंड अधिक महंगा है।[24]

1992 में आर्थिक उदारीकरण के बाद, कई निजी आईएसपीज ने अपने खुद के स्थानीय लूप और आधारभूत संरचनाओं के साथ बाजार में प्रवेश किया है। दूरसंचार सेवाओं का बाजार ट्राई और (दूरसंचार विभाग) डॉट द्वारा विनियमित होता है, जो कुछ वेबसाइटों पर सेंसरशिप लागू करने के लिए जाने जाते हैं।

कम स्पीड ब्रॉडबैंड (256 kbit/s - 2 Mbit/s)

भारत में ब्रॉडबैंड की वर्तमान परिभाषा 256 केबिट्स/एस की गति है। ट्राई ने जुलाई 2009 को इस सीमा को 2 एमबिट/एस तक बढ़ाने की सिफारिश की है।[25]

जनवरी 2010 के अनुसार भारत में 9.24 मिलियन ब्रॉडबैंड उपयोगकर्ता हैं जो कि जनसंख्या का 6.0% है।[26] जापान, दक्षिण कोरिया और फ्रांस की तुलना में भारत सबसे कम गति वाला ब्रॉडबैंड प्रदान करने वाले देशों में से एक है।[24][27]

ब्रॉडबैंड प्रवेश में बढ़ती दिलचस्पी और सेवा की गुणवत्ता में लगातार सुधार की वजह से कई अप्रवासी भारतीय विश्व में कहीं से भी भारत में रहनेवाले अपने परिवार के साथ संवाद करने का आनंद उठा रहे हैं। हालांकि, कई उपभोक्ताओं की शिकायत है कि कई आईएसपी अभी भी विज्ञापित गति प्रदान करने में विफल हैं - और कुछ तो मानक गति 256 kbit/s भी मुहैया नहीं कर पाते हैं।

हाई स्पीड ब्रॉडबैंड (2 Mbit/ s पर)

  • एयरटेल ने ADSL2 + सक्षम लाइनों पर 16 Mbit/s तक की योजना का शुभारंभ किया गया है और सीमित क्षेत्रों में 30 Mbit/s और 50 Mbit के संचालन की नई योजनायें बना रहा है।[28]
  • बीम टेलीकॉम घरेलु उपयोगकर्ताओं के लिए 6 Mbit/s तक की योजनायें प्रदान करता है और केवल हैदराबाद सिटी में पावर उपयोगकर्ताओं के लिए के लिए 20 Mbit/s की योजना उपलब्ध है।[29]
  • बीएसएनएल कई शहरों में 24 Mbit/s तक के एडीएसएल (ADSL) की पेशकश करता है। तथा FTTH के द्वारा 100 Mbit/s के सेवा की पेशकश कई शहरों मे कर चुका है।[30]
  • हयाई ब्रॉडबैंड 1 Gbit/s के आंतरिक अंतर्जाल (इन्टरनल नेटवर्क) पर 100 Mbit/s तक की एफटीटीएच (FTTH) सेवा की पेशकश करेगा।
  • ऑनेस्टी नेट सॉल्यूशंस केबल पर 4 Mbit/s तक ब्रॉडबैंड प्रदान करता है।
  • एमटीएनएल चुने हुए क्षेत्रों में 20 Mbit/s तक की गति का वीडीएसएल (VDSL) प्रदान करता है, साथ ही 155 Mbit/s की आश्चर्यजनक गति का बैंडविड्थ भी प्रदान करता है, इस तरह इसे भारत में सबसे तेज आईएसपी बना रही है।[31]

[32]

  • रिलायंस कम्युनिकेशंस चयनित क्षेत्रों में 10 Mbit/s और 20 Mbit/s ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाएं प्रदान करता है।[33]
  • टाटा इंडिकॉम "लाइटनिंग प्लस" दर-सूची संरचना के तहत 10 Mbit/s, 20 Mbit/s और 100 Mbit/s के विकल्प प्रदान करता है।[34]
  • टिकोना डिजिटल नेटवर्क्स वायरलेस ब्रॉडबैंड सेवा है, जो 2 Mbit/s के साथ ओएफडीएम (OFDM) और एमआईएमओ (MIMO) चौथी पीढ़ी प्रौद्योगिकी (4G) द्वारा संचालित है।[35]
  • ओ-क्षेत्र (O-Zone) नेटवर्क्स प्राइवेट लिमिटेड अखिल भारत (Pan-India) सार्वजनिक वाई-फाई (WI-Fi) हॉटस्पॉट प्रदाता है, जो 2 Mbit/s तक का वायरलेस ब्रॉडबैंड दे रहा है।[36]

भारत में हाई स्पीड ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की मुख्य समस्या यह है कि वे अक्सर महंगी होती हैं और/या वे योजना में शामिल डाटा को सीमित मात्रा में ही हस्तांतरित कर पाते हैं।

सांख्यिकी

इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) और मेजबान: 86571 (2004) स्रोत: सीआईए विश्व तथ्य बुक (CIA World FactBook)

देश कोड (शीर्ष स्तर डोमेन) :में

प्रसारण

आकाशवाणी कादरी मंगलौर, पर एफएम टॉवर.

रेडियो प्रसारण स्टेशन: एएम 153, एफएम 91, शार्टवेव 68 (1998)

रेडियो: 116,000,000 (1997)

टेलीविजन स्थलीय प्रसारण स्टेशन 562 (जिनमें से 82 स्टेशन 1 किलोवाट या उससे अधिक शक्ति और 480 स्टेशन 1 किलोवाट से कम शक्ति से युक्त हैं) (1997)

दूरदर्शन 110,000,000 (2006)

भारत में, केवल सरकारी स्वामित्व वाले दूरदर्शन (दूर = दूरी = टेली, दर्शन =विजन) को स्थलीय टेलीविजन संकेतों का प्रसारण करने की अनुमति है। शुरू में इसमें एक प्रमुख राष्ट्रीय चैनल (डीडी नैशनल) और कुछ बड़े शहरों में एक मेट्रो चैनल था (डीडी मेट्रो के रूप में भी जाना जाता था)।

उपग्रह/केबल टीवी खाड़ी युद्ध के दौरान सीएनएन के साथ शुरू हुआ। सैटेलाइट डिश एंटेना के स्वामित्व, या केबल टेलीविजन प्रणाली के नियंत्रण का कोई विशेष नियम नहीं है, जिसकी वजह से स्टार टीवी ग्रुप और ज़ी टीवी के बीच दर्शकों की संख्या और चैनलों को लेकर घमासान हुआ था। शुरुआत में ये संगीत और मनोरंजन चैनलों तक सीमित थे, बाद में दर्शकों की संख्या में वृद्धि हुई और प्रादेशिक भाषाओं और राष्ट्रीय भाषा, हिंदी में कई चैनल शुरू हो गये। मुख्य समाचार चैनलों में सीएनएन और बीबीसी वर्ल्ड उपलब्ध हैं। 1990 के अंत में, समसामयिक मुद्दों और समाचारों के कई चैनल शुरू हुए, जो दूरदर्शन की तुलना में वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश करने की वजह से काफी लोकप्रिय हुए. इनमें से कुछ प्रमुख चैनल हैं आज तक (जिसका मतलब है आज तक (टिल टुडे), जो इंडिया टूडे ग्रुप द्वारा संचालित है) और स्टार न्यूज, सीएनएन-आईबीएन, टाइम्स नाउ, शुरुआत में यह एनडीटीवी ग्रुप और उनके प्रमुख एंकर, प्रणव राय द्वारा संचालित किया जाता था (और अब एनडीटीवी के खुद के चैनल हैं, एनडीटीवी 24x7, एनडीटीवी प्रॉफिट, एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी इमेजिन)। नई दिल्ली (न्यू डेल्ही) टेलीविजन

यहां भारतीय टेलीविजन स्टेशनों की यथोचित विस्तृत सूची दी जा रही है।

अगली पीढ़ी के नेटवर्क

अगली पीढ़ी के नेटवर्कों में, एकाधिक उपयोग वाले नेटवर्क आईपी प्रौद्योगिकी के आधार पर ग्राहकों को मुख्य नेटवर्क से जोड़ सकते हैं। इस तरह के उपयोग वाले नेटवर्कों में निश्चित स्थानों या ग्राहकों से वाई-फाई द्वारा जुड़े फाइबर ऑप्टिक्स या समाक्षीय केबल नेटवर्क और मोबाइल ग्राहकों के साथ जुड़े 3 जी नेटवर्क शामिल हैं। इसके परिणामस्वरुप भविष्य में, यह पहचान करना असंभव होगा कि अगली पीढ़ी का नेटवर्क स्थायी होगा या मोबाइल नेटवर्क होगा और वायरलेस अधिगम के ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल स्थायी (फिक्स्ड) और मोबाइल दोनों सेवाओं के लिए किया जायेगा. उस समय स्थायी (फिक्स्ड) और मोबाइल नेटवर्क के बीच अंतर करना मुश्किल हो जायेगा-क्योंकि स्थायी और मोबाइल उपयोगकर्ता दोनों एकल कोर नेटवर्क के जरिए सेवाओं का उपयोग करेंगे।

भारतीय दूरसंचार नेटवर्क विकसित देशों के दूरसंचार नेटवर्क जितना गहन नहीं है और भारत का दूरसंचार घनत्व केवल ग्रामीण क्षेत्रों में कम है के रूप में गहन नहीं हैं। प्रमुख संचालकों (ऑपरेटरों) द्वारा तक भारत में यहाँ तक कि दूरस्थ क्षेत्रों में भी 670000 रूट किलोमीटर (419000 मील) ऑप्टिकल फाइबर बिछाई गई है और यह प्रक्रिया जारी है। अकेले बीएसएनएल ने अपने 36 एक्सचेंजों से 30,000 टेलीफोन एक्सचेंजों तक फाइबर ऑप्टिकल बिछाई है। ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करने की व्यवहार्यता का ध्यान रखते हुए एक आकर्षक समाधान प्रस्तुत किया गया है, जो कम लागत में एकाधिक सेवा सुविधा प्रदान करता प्रतीत होता है। गहन फाइबर ऑप्टिकल नेटवर्क पर आधारित एक ग्रामीण नेटवर्क, इंटरनेट प्रोटोकॉल का उपयोग करता है और विभिन्न प्रकार की सेवाओं की पेशकश कर रहा है तथा अगली पीढ़ी के नेटवर्क जैसी सेवाओं के विकास के लिए एक खुले प्लेटफार्म की उपलब्धता का प्रस्ताव आकर्षक प्रतीत होता है। फाइबर नेटवर्क को आसानी से अगली पीढ़ी के नेटवर्क के लिए परिवर्तित किया जा सकता है और फिर सस्ती कीमत पर कई सेवाओं के वितरण के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है।

मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) (एमएनपी)

नंबर सुवाह्यता: ट्राई ने अपने 23 सितम्बर 2009 को जारी मसौदे में उन नियमों और विनियमों की घोषणा की जिनका मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) के लिए पालन किया जाएगा। मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) (MNP) उपयोगकर्ताओं को एक अलग सेवा प्रदाता के नेटवर्क में जाने पर भी उनकी मोबाईल संख्या (नंबर) को बनाए रखने के लिए अनुमति देता है, बशर्ते कि वे ट्राई द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन करें। जब एक ग्राहक अपने सेवा प्रदाता को बदलता है और अपने पुराने मोबाइल नंबर को ही रखता है तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह एक अन्य सेवा प्रदाता के तहत स्थानांतरित होने का फैसला करने के पहले कम से कम 90 दिनों के लिए एक प्रदाता द्वारा आबंटित मोबाइल नंबर को बनाये रखेगा. यह प्रतिबंध एक सेवा प्रदाताओं द्वारा प्रदान की गई एमएनपी सेवाओं के शोषण पर नियंत्रण रखने के लिए स्थापित किया गया है।[37]

समाचार रिपोर्टों के अनुसार, भारत सरकार ने 31 दिसम्बर 2009 से महानगरों और वर्ग 'ए' सेवा क्षेत्रों के लिए तथा 20 मार्च 2010 को देश के बाकी हिस्सों में एमएनपी लागू करने का फैसला किया है।

31 मार्च 2010 को यह महानगरों और वर्ग 'ए' सेवा क्षेत्रों में से स्थगित कर दिया। बहरहाल, सरकारी कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल द्वारा बार-बार पैरवी की वजह से मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) के कार्यान्वयन में अगणित बार देरी हुई है। नवीनतम रिपोर्टों ने सुझाया है कि अंततः बीएसएनएल और एमटीएनएल 31 अक्टूबर 2010 से मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) लागू करने के लिए राजी हो गए हैं।[38]

ताजा सरकारी रिपोर्ट है कि मोबाइल नंबर सुवाह्यता (मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी) को धीरे-धीरे चरणबद्ध किया जाएगा, एमएनपी को 1 नवम्बर 2010 से या उसके तुरंत बाद हरियाणा से शुरू किया जायेगा।[39]

अन्तर्राष्ट्रीय

समुद्र तल केबल

  • एलओसीओएम (LOCOM) चेन्नई को पेनांग, मलेशिया से जोड़ने वाला
  • भारत-संयुक्त अरब अमीरात केबल मुंबई को अल फुजायारा, संयुक्त अरब अमीरात से जोड़ने के लिए।
  • एसईए-एमई-डब्ल्यूई 2 (दक्षिण पूर्व एशिया-मध्य पूर्व-पश्चिमी यूरोप 2)
  • एसईए-एमई-डब्ल्यूई 3) (दक्षिण पूर्व एशिया-मध्य पूर्व-पश्चिमी यूरोप 3) - लैंडिंग साइट कोचीनऔर मुंबई में. 960 Gbit/s की क्षमता .
  • एसईए-एमई-डब्ल्यूई 4 (दक्षिण पूर्व एशिया-मध्य पूर्व-पश्चिमी यूरोप 4) - लैंडिंग साइट मुंबई और चेन्नई में. 1.28 Tbit/s की क्षमता.
  • फाइबर ऑप्टिक लिंक अराउंड द ग्लोब (FLAG-FEA) मुम्बई में एक लैंडिंग साइट के साथ (2000)। प्रारंभिक डिजाइन क्षमता 10 Gbit/s, 2002 में 80 Gbit/s के लिए उन्नत, 1 Tbit/s के लिए उन्नत (2005)।
  • टीआईआईएससीएस (TIISCS) (टाटा इंडिकॉम भारत - सिंगापुर केबल सिस्टम), टीआईसी (TIC) (टाटा इंडिकॉम केबल) के रूप में भी जाना जाता है, चेन्नई से सिंगापुर के लिए। 5.12 Tbit/s की क्षमता.
  • i2i - चेन्नई से सिंगापुर. 8.4 Tbit/s की क्षमता
  • एसईएसीओएम (SEACOM) दक्षिण अफ्रीका होकर मुंबई से भूमध्य के लिए। वर्तमान में यह यातायात को लंदन की ओर आगे ले जाने के लिए स्पेन के पश्चिमी समुद्र तट पर एसईए-एमई-डब्ल्यूई 4 के साथ जुड़ जाता है (2009)। 1.28 Tbit/s की क्षमता.
  • आई-एमई-डब्ल्यूई (I-ME-WE) (भारत-मध्य पूर्व -पश्चिमी यूरोप) मुंबई में दो लैंडिंग साइटों के साथ (2009)। 3.84 Tbit/s की क्षमता.
  • ईआईजी (EIG) (यूरोप-इंडिया गेटवे), मुंबई में लैंडिंग (Q2 2010 तक अपेक्षित)।
  • एमईएनए (MENA) (मध्य पूर्व उत्तरी अफ्रीका)।
  • टीजीएन-यूरेशिया (TGN-Eurasia) (घोषित) मुंबई में लैंडिंग (2010 में अपेक्षित?), 1.28 Tbit/s की क्षमता.
  • टीजीएन-खाड़ी (TGN-Gulf) (घोषित) मुंबई में लैंडिंग (2011 में अपेक्षित?), क्षमता अज्ञात.

भारत में दूरसंचार प्रशिक्षण

पदस्थ दूरसंचार संचालकों (बीएसएनएल और एमटीएनएल) ने क्षेत्रीय, परिमंडल (सर्किल) और जिला स्तर पर कई दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये हैं। बीएसएनएल के पास गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में एडवांस्ड लेवल टेलीकॉम ट्रेनिंग सेंटर (एआईटीटीसी)(ALTTC), जबलपुर, मध्य प्रदेश में भारत रत्न भीम राव अम्बेडकर इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेलीकॉम ट्रेनिंग और नैशनल एकेडमी ऑफ़ फिनांस एंड मैनेजमेंट नामक राष्ट्रीय स्तर के तीन संस्थान हैं।

एमटीएनएल ने 2003-04 में दूरसंचार प्रौद्योगिकी और प्रबंधन में उत्कृष्टता के लिए केंद्र (CETTM (सेंटर फॉर एक्जीलेंस इन टेलीकॉम टेक्नॉलॉजी आने मैनेजमेंट) शामिल किया। यह भारत में सबसे बड़ा दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र और 100 करोड़ (US$14.6 मिलियन) की एक केपेक्स योजना के साथ एशिया के सबसे बड़े दूरसंचार प्रशिक्षण केन्द्रों में से एक है। सीईटीटीएम (CETTM) 486,921 वर्ग फुट (45,236.4 मी2) के क्षेत्र के साथ हीरानंदानी गार्डेन्स, पवई, मुंबई गार्डन में स्थित है486,921 वर्ग फुट (45,236.4 मी2) . वह अपने निजी आंतरिक कर्मचारियों के अलावा और कंपनियों और छात्रों को भी दूरसंचार स्वीचिंग, प्रसारण, बेतार संचार, दूरसंचार संचालन और प्रबंधन में प्रशिक्षण प्रदान करता है।

सरकारी संचालकों के अलावा भारती (आईआईटी दिल्ली के दूरसंचार प्रबंधन भारती स्कूल का हिस्सा), एजीस स्कूल ऑफ़ बिजनेस एंड टेलीकम्युनिकेशन (बंगलोर और मुंबई) और रिलायंस जैसी कुछ निजी कंपनियों ने अपने निजी प्रशिक्षण केंद्र शुरू किये हैं।

इसके अलावा दूरसंचार प्रशिक्षण प्रदान करने वाले टेलकोमा टेक्नोलॉजीज जैसे कुछ स्वतंत्र केन्द्र भी भारत में विकसित हुए हैं।

इन्हें भी देखें

  • ट्राई (TRAI)
  • भारतीय दूरसंचार सेवा
  • भारतीय बेतार संचार सेवा प्रबन्धक की सूची
  • भारत में दूरसंचार सांख्यिकी
  • भारत में मोबाइल फोन उद्योग
  • भारत का मीडिया
  • संख्या में मोबाइल फोन का उपयोग करने वाले देशों की सूची
  • संख्या में टेलीफोन लाइनों का उपयोग करने वाले देशों की सूची
  • टेलीकॉम न्यूज़ इंडिया

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ