भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास
भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन काल में राजाओं द्वारा भारतीय परिवारों को ऊंची और नीची जातियों में विभाजित कर दिया गया। यहीं से संभवतः भ्रष्टाचार की शुरुआत हुई जिस कारण सामाजिक ढांचा कमजोर हो गया, फलस्वरूप विभिन्न आक्रमणकारी तथा अंग्रेज़ भारत पर शासन करने में सफल रहे। भारत की आजादी के पूर्व अंग्रेजो ने सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भारत के सम्पन्न लोगों को सुविधास्वरूप धन देना प्रारंभ किया। राजे-रजवाड़े और साहूकारों को धन देकर उनसे वे सब प्राप्त कर लेते थे जो उन्हे चाहिए था। अंग्रेज भारत के रईसों को धन देकर अपने ही देश के साथ गद्दारी करने के लिए कहा करते थे और ये रईस ऐसा ही करते थे।
बाबरनामा में उल्लेख है कि कैसे मुट्ठी भर बाहरी हमलावर भारत की सड़कों से गुजरते थे। सड़क के दोनों ओर लाखों की संख्या में खड़े लोग मूकदर्शक बन कर तमाशा देखते थे। बाहरी आक्रमणकारियों ने कहा है कि यह मूकदर्शक बनी भीड़, अगर हमलावरों पर टूट पड़ती, तो भारत के हालात भिन्न होते। इसी तरह पलासी की लड़ाई में एक तरफ़ लाखों की सेना, दूसरी तरफ़ अंगरेजों के साथ मुट्ठी भर सिपाही, पर भारतीय हार गये। एक तरफ़ 50,000 भारतीयों की फ़ौज, दूसरी ओर अंगरेजों के 3000 सिपाही. पर अंगरेज जीते. भारत फ़िर गुलाम हआ. जब बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर ग्यारहवीं शताब्दी में आक्रमण किया, तो क्या हालात थे? खिलजी की सौ से भी कम सिपाहियों की फ़ौज ने नालंदा के दस हजार से अधिक भिक्षुओं को भागने पर मजबूर कर दिया। नालंदा का विश्वप्रसिद्ध पुस्तकालय वषों तक सुलगता रहा।
ब्रिटिश राज और भ्रष्टाचार
भारत को भ्रष्ट बनाने में अंग्रेजो की प्रमुख भूमिका रही है।
स्वतंत्रता-प्राप्ति और लाइसेंस-परमिट राज्य का उदय
द्वितीय विश्वयुद्ध की तबाही के कारण ब्रिटेन सहित पूरे विश्व में आवश्यक सामानों की भारी कमी पैदा हो गयी थी जिससे निपटने के लिये राशनिंग की व्यवस्था शुरू हुई। भारत की आजादी के बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था राशनिंग, लाइसेंस, परमिट, लालफीताशाही में जकड़ी रही। लाइसेंस-परमिट राज था, तब भी लाइसेंस या परमिट पाने के लिए व्यापारी और उद्योगपति घूस दिया करते थे।
उदारीकरण और भ्रष्टाचार का खुला खेल
1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की विश्वव्यापी राजनीति-अर्थशास्त्र से जोड़ा गया। तब तक सोवियत संध का साम्यवादी महासंघ के रूप में बिखराव हो चुका था। पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश पूंजीवादी विश्वव्यवस्था के अंग बनने की प्रक्रिया में प्रसव-पीड़ा में गुजर रहे थे। साम्यवादी चीन बाजारोन्मुखी पूंजीवादी औद्योगिकीकरण के रास्ते औद्योगिक विकास का नया मॉडल बन चुका था।
पहले भ्रष्टाचार के लिए परमिट-लाइसेंस राज को दोष दिया जाता था, पर जब से देश में वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण, विदेशीकरण, बाजारीकरण एवं विनियमन की नीतियां आई हैं, तब से घोटालों की बाढ़ आ गई है। इन्हीं के साथ बाजारवाद, भोगवाद, विलासिता तथा उपभोक्ता संस्कृति का भी जबर्दस्त हमला शुरू हुआ है।
इन्हें भी देखें
- भारत में भ्रष्टाचार
- भारत के प्रमुख घोटाले
- ब्रिटिश काल के महान भ्रष्टाचारी गंगागोविन्द सिंह, अमीचंद
बाहरी कड़ियाँ
- न्यायपालिका और भ्रष्टाचार
- न्यायपालिका में पारदर्शिता ज़रूरी है
- गिर रहा है न्यायपालिका का स्तर[मृत कड़ियाँ]
- न्यायपालिका का करप्शन
- न्यायपालिका की साख का सवाल
- History of Corruption in Indian Judiciary since Independence: 1947 - 2003
- Political Corruption in India: An Analysis - by R. Upadhyay
- Economy & Business; Corruption, Crime, Chicanery: Business Through the Ages
- SONIA GANDHI IS THE MODERN ROBERT CLIVE
- A Brief History of Corruption in India