भारत का पौराणिक इतिहास
भारत का पौराणिक इतिहास सृष्टि के आरंभ से लेकर कलियुग में हुए राजाओं एवं मुगल शासन तक का इतिहास है जिसका वर्णन वेद व्यास रचित विभिन्न पुराणों, रामायण आदि ग्रंथों में किया गया है। काल को सत्ययुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और कलियुग सहित चार भागों में विभाजित किया गया है। इस इतिहास में भूत, वर्तमान और भविष्य का गौरव किया गया है। पुराणिक इतिहास के अनुसार भारत का इतिहास करोड़ो वर्षो का है और अत्यंत ही गौरवपूर्ण था। भाषा, संस्कृति का उद्गम भारत से हुआ था और आध्यात्मिकता एवं उच्च आदर्शों के लिए भारत को जाना जाता है। भविष्य पुराण तथा अन्य कई पुराणों में महाभारत काल से गुप्त काल तक के समस्त राजाओं की सूचि दी गयी है, जिसके आधार पर कई विद्वानों ने भारत का पौराणिक इतिहास क्रम बनाया है। रामायण ग्रंथ में श्रीराम का इतिहास और महाभारत में भारत में हुए भीषण महायुद्ध का इतिहास लिखा गया है। दोनों ग्रंथो में उक्त काल में हुए राजा के वंश का भी वर्णन है और भविष्य पुराण में भारत में मुगल शासन काल और बादशाहों के वंश का भी वर्णन है।
तिथि एवं काल | राजवंश | मुख्य घटनाएँ |
३१००-२००० ईसा पूर्व | पाण्डव वंश | इस काल में सर्वप्रथम महाभारत युद्ध हुआ [1] तथा इस युद्ध के बाद युधिष्ठिर राजा बने। युधिष्ठिर से लगभग ३० पीढ़ियों तक यह राजवंश चला। इस वंश के अन्तिम सम्राट क्षेमक हुए, जो मलेच्छों के साथ युद्ध करते हुए मारे गये। क्षेमक के वेदवान् तथा वेदवान् के सुनन्द नामक पुत्र हुआ एवं सुनन्द पुत्रहीन ही रहा, इस प्रकार सुनन्द के अंत के साथ ही पाण्डव वंश का अंत हो गया। [2][3] |
३२००-२२०० ईसा पूर्व | मगध राजवंश | |
३०६७ ईसा पूर्व | महाभारत युद्ध | पौराणिक तथा ज्योतिषीय प्रमाणों के आधार पर यह महाभारत युद्ध की प्रसिद्ध परंपरागत तिथि है, परन्तु अभी यह विवादित है आधुनिक विद्वान् इसे १५००-१००० ईसा पूर्व हुआ मानते है यद्यपि आर्यभट व अन्य प्राचीन विद्वानों ने इसे ३००० ईसा पूर्व ही बताया है। [1] |
२२००-१६०० ईसा पूर्व | प्रद्योत एवं शिशुनाग राजवंश | यह राजवंश मगध में बृहद्रथ राजवंश के समापन के साथ ही स्थापित हुआ, बृहद्रथ राजवंश के अन्तिम राजा रिपुञ्जय के मन्त्री शुनक ने रिपुञ्जय को मारकर अपने पुत्र प्रद्योत को राजसिंहासन पर बिठाया। प्रद्योत वंश की समाप्ति इनके ५ राजाओं के १३८ वर्षों तक शासन करने के बाद अंतिम राजा नन्दिवर्धन की मृत्यु के साथ हुई। इसके बाद शिशुनाग राजा हुए जिनके वंश में १० राजाओं ने लगभग ३६०-४५० वर्षों तक शासन किया। इस प्रकार कुल ६०० वर्षों तक इस राजवंश का शासन रहा। [2][3] |
२१०० ईसा पूर्व | पाण्डव वंश का अंत एवं काश्यप की उत्पत्ति | इस समय के प्रारम्भ में ब्राह्मणों के पूर्वज काश्यप नामक ब्राह्मण का जन्म हुआ, इन्होने मिश्र में जाकर मलेच्छों को मोहित कर आर्यावर्त आने से रोक दिया। फिर काश्यप ने अपने प्रतिनिधि मागध को आर्यावर्त का सम्राट बनाया। मागध ने इस देश को कई विभागों में बाँट दिया। मागध के पुत्र के पुत्र ही शिशुनाग थे। जिनके नाम से शिशुनाग राजवंश चला। इस समय तक पाण्डव वंश भी समाप्त हो गया, जिससे भारत में मगध राज्य की शक्ति बहुत बढ गयी। सिन्धु नदी से पश्चिम के भाग पर यवनों व मलेच्छों ने अधिकार कर लिया। [2][3] |
२००० ईसा पूर्व | सरस्वती नदी का लुप्त होना | इस अवधि काल तक सरस्वती नदी लुप्त हो गयी, जिसके कारण ८८००० ऋषि-मुनि कलियुग के बढ़ते प्रभाव को देखकर आर्यावर्त छोड़कर हिमालय पर चले गये, इस प्रकार ज्ञान की देवी सरस्वती नदी के लुप्त हो जाने पर भारत से वैदिक ज्ञान-विज्ञान भी लुप्त हो गया। इसी काल तक सरस्वती सिंधु सभ्यता भी लुप्त हो गयी थी। इसके बाद काश्यप नामक ब्राह्मण के वंशियों ने वैदिक परम्पराओं तथा ज्ञान को बचाये रखा जिससे उन्हें समाज में प्रधानता दी गयी, परन्तु उनमें से कुछ कलियुग के प्रभाव से न बच सके और पतित हो गये जिससे आने वाले हिन्दू समाज में कई कुरीतियाँ फैल गयीं। [2][3][4] |
१६००-१४०० ईसा पूर्व | नन्द राजवंश | |
१४००-११०० ईसा पूर्व | मौर्य वंश | मौर्यों के १२ राजाओं ने लगभग ३०० वर्षों तक मगध पर शासन किया [3] |
११००-७०० ईसा पूर्व | शुंग एवं कण्व वंश | |
७००-३०० ईसा पूर्व | शातवाहन आन्ध्र राजवंश | |
४००-१०० ईसा पूर्व | गुप्त वंश |
सन्दर्भ
टीका एवं स्रोत
- भविष्य पुराण,प्रतिसर्ग पर्व,प्रथम खण्ड
- भागवत पुराण,द्वादश स्कन्ध,प्रथम अध्याय
- महाभारत,गीताप्रेस गोरखपुर
- ऐज आफ महाभारत वार
- इण्डिकस्टडी डॉट कॉम,इतिहास