भारतीय वन्यजीव संस्थान
भारतीय वन्यजीव संस्थान WII | |
संस्था अवलोकन | |
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स्थापना | १९८२ |
मुख्यालय | देहरादून (उत्तराखंड), भारत |
संस्था कार्यपालक | सी के मिश्र, अध्यक्ष |
वेबसाइट | |
wii.gov.in |
भारतीय वन्यजीव संस्थान १९८२ में स्थापित एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारतीय संस्थान है। यह संस्थान प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, अकादमिक कार्यक्रम के अलावा वन्यजीव अनुसंधान तथा प्रबंधन में सलाहकारिता प्रदान करता है। भारतीय वन्यजीव संस्थान का परिसर समस्त भारतवर्ष में जैव विविधता सम्बन्धी मुद्दों पर उच्च स्तर के अनुसंधान के लिये श्रेष्ठतम् ढाँचागत सुविधाओं से सुसज्जित किया गया है।[1]
ध्येय एवं लक्ष्य
संस्थान का ध्येय है: वन्यजीव विज्ञान के विकास को परिपुष्ट करना और क्षेत्र में उसके अनुप्रयोग को इस तरह से प्रोन्नत करना है, जो हमारे आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण के अनुरूप हो। इस संस्थान के उद्देश्य इस प्रकार से हैं:
- वन्यजीव संसाधनों पर वैज्ञानिक ज्ञान को समृद्ध करना;
- वन्यजीव संरक्षण एवं प्रबंधन के लिये कार्मिकों को विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षित करना;
- विकास की तकनीकों सहित तथा भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप प्रबंधन से सम्बन्ध अनुसंधान करना;
- वन्यजीव अनुसंधान प्रबंधन तथा प्रशिक्षण पर अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से साझेदारी करना;
- वन्यजीव तथा प्राकृतिक संसाधन संरक्षण पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के क्षेत्रीय केन्द्र के रूप में विकास करना;
- वन्यजीव प्रबंधन सम्बन्धी विशेष समस्याओं पर सूचना एवं सलाह देना।
इतिहास
संस्था का उद्देश्य प्रभावशाली रूप से वनों की परिपूर्ण सुरक्षा, उनका प्रबंधन, उनकी जैव विविधता तथा उनके परिवेश में रहने वाले लोगों के हितों की रक्षा करना था। यह संस्था व्यवाहारिक तथा वैज्ञानिक पद्धति से यह कार्य करती है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारतीय वन्यजीव संस्थान (भावसं) की स्थापना देहरादून में १९८२ में की गई। संस्थान की स्थापना का आश्य था कि यह संस्था सरकारी तथा गैर सरकारी कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने, अनुसंधान कराने की सुविधा प्रदान करने, संसाधनों का प्रबंधन तथा वन्यजीवों की सुरक्षा एवम परामर्श का कार्य करे।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के लिये यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, विशेषकर जबकि वन प्रबंधन शिक्षा में वन्यजीवों पर कोई पाठयक्रम सम्मिलित नहीं किया गया था तथा वन्यजीव विज्ञान पाठ्यक्रम को विश्वविद्यालय शिक्षा प्रणाली में कोई महत्व नहीं दिया गया था। इस कारण कोई ऐसा उदाहरण भी नहीं था, जिसका भारतीय वन्यजीव संस्थान अनुसरण कर सके। इस कारण भारतीय वन्यजीव संस्थान को न केवल अपने विवेक से वन शिक्षा में वन्यजीव विज्ञान का समावेश करना पड़ा, बल्कि इस पाठयक्रम को सुचारू रूप से चलाने के लिये संसाधनों का भी निर्माण करना पड़ा।
इन संगठनों के सहयोग से भारतीय वन्यजीव संस्थान को कठोर परिक्षण तथा आधुनिक और विश्लेषणात्मक तकनीक के द्वारा अपने संकाय को सक्षम बनाने में सहायता मिली। संस्थान को अप्रैल १९८६ में स्वायत्तता के लिये स्वीकृति प्रदान की गयी, जिससे इसकी प्रगति की रफ्तार में और वृद्धि हुई। दक्षिण एशिया तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों से इस संस्था में प्रशिक्षण के लिये लोग निरन्तर आते रहते हैं इस कारण से भी भारतीय वन्यजीव संस्थान को प्रशिक्षण और शिक्षा के लिये वन्यजीव प्रबंधन और संरक्षण में एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय केन्द्र माना जाता है।[1]
सन्दर्भ
- ↑ अ आ "पृष्ठभूमि". भारतीय वन्यजीव संस्थान. मूल से 7 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 दिसंबर 2017.