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भारतीय राष्ट्रीय पंचांग

भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या 'भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर' (संक्षिप्त नाम - भारांग) भारत में उपयोग में आने वाला सरकारी सिविल कैलेंडर है। यह शक संवत पर आधारित है और ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ २२ मार्च १९५७ , (भारांग: चैत्र १८७९) से अपनाया गया। भारत मे यह भारत का राजपत्र, आकाशवाणी द्वारा प्रसारित समाचार और भारत सरकार द्वारा जारी संचार विज्ञप्तियों मे ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ प्रयोग किया जाता है।

चैत्र भारतीय राष्ट्रीय पंचांग का प्रथम माह होता है। राष्ट्रीय कैलेंडर की तिथियाँ ग्रेगोरियन कैलेंडर की तिथियों से स्थायी रूप से मिलती-जुलती हैं। चन्द्रमा की कला (घटने व बढ़ने) के अनुसार माह में दिनों की संख्या निर्धारित होती है।

राष्ट्रिय कैलेंडर की समीक्षा करते हुए महान समीक्षक पण्डित नीरज तिवारी लिखते हैं कि ,

१) राष्ट्रिय कैलेंडर में जिसको चैत्र कहा गया है वास्तव में वह वसन्त ऋतु का दूसरा मास वैशाख है। क्योंकि शास्त्रों में चैत्र वैशाख वसन्त की, ज्येष्ठ आषाढ़ ग्रीष्म की, श्रावण भाद्रपद वर्षा की , आश्विन कार्तिक शरदृतु की,अग्रहायन (मार्गशीर्ष) पौष हेमन्त ऋतु की एवं माघ फाल्गुन शिशिर ऋतु के मास कहे गए हैं।

२) नववर्ष का आरम्भ वसन्त विषुव(२१/२२मार्च) से न करके सूर्य के उत्तरायण होने(२२/२४ दिसम्बर) से करना अधिक वैज्ञानिक और सनातन शास्त्र सम्मत है। वसन्त संपात से नववर्ष मानने पर केवल वर्ष और मास ही बदलते हैं ऋतु नहीं । वसन्त संपात पर सूर्य के जाने पर वसन्त ऋतु का दूसरा मास वैशाख का आरम्भ होता है अर्थात् तब तक आधा वसंत बीत चुकी होती है।

यदि नववर्ष का आरम्भ सूर्य के उत्तरायण से करें तो उससे यह लाभ होता कि नए वर्ष, नए अयन, नई ऋतु एवं नए मास का एक साथ आरम्भ होता जो सर्वथा व्यावहारिक , वैज्ञानिक एवं वेद,वेदांग एवं पुराणों द्वारा समर्थित है। वसन्त संपात/ या शरद संपात से नववर्ष मानने पर ऐसा नहीं हो सकता है।


कैलेंडर का प्रारूप

माह देशज नाम अवधि शुरुआत की तिथि (ग्रेगोरियन)
चैत्रचैत30/31मार्च 22*
वैशाखबैसाख31अप्रेल 21
ज्येष्ठजेठ / हाड़31मई 22
आषाढ़असाढ़31जून 22
श्रावणसावन31जुलाई 23
भाद्रपदभादों31अगस्त 23
आश्विनआसिन30सितम्बर 23
कार्तिककार्तिक30अक्टूबर 23
अग्रहायण/मार्गशीर्षअगहन30नवम्बर 22
१० पौषपूस30दिसम्बर 22
११ माघमाघ30जनवरी 21
१२ फाल्गुनफागुन30फरवरी 20

अधिवर्ष में, चैत्र मे 31 दिन होते हैं और इसकी शुरुआत 21 मार्च को होती है। वर्ष की पहली छमाही के सभी महीने 31 दिन के होते है, जिसका कारण इस समय कांतिवृत्त में सूरज की धीमी गति है।

महीनों के नाम पुराने, हिन्दू चन्द्र-सौर पंचांग से लिए गये हैं इसलिए वर्तनी भिन्न रूपों में मौजूद है और कौन सी तिथि किस कैलेंडर से संबंधित है इसके बारे मे भ्रम बना रहता है।

शक् युग का पहला वर्ष सामान्य युग के 78 वें वर्ष से शुरु होता है, अधिवर्ष निर्धारित करने के शक् वर्ष मे 78 जोड़ दें- यदि ग्रेगोरियन कैलेण्डर में परिणाम एक अधिवर्ष है, तो शक् वर्ष भी एक अधिवर्ष ही होगा।

अंगीकरण

इस कैलेंडर को कैलेंडर सुधार समिति द्वारा 1957 में, भारतीय पंचांग और समुद्री पंचांग के भाग के रूप मे प्रस्तुत किया गया। इसमें अन्य खगोलीय आँकड़ों के साथ काल और सूत्र भी थे जिनके आधार पर हिन्दू धार्मिक पंचांग तैयार किया जा सकता था, यह सब परेशानी इसको एक समरसता प्रदान करने की थी। इस प्रयास के बावजूद, पुराने स्रोतों पर आधारित स्थानीय रूपान्तर जैसे सूर्य सिद्धान्त अभी भी मौजूद हैं।

इसका आधिकारिक उपयोग 1 चैत्र, 1879 शक् युग, या 22 मार्च 1957 में आरम्भ किया था। हालाँकि, सरकारी अधिकारियों ने इस कैलेंडर के नये साल के बजाय धार्मिक कैलेंडरों के नये साल को प्राथमिकता देते प्रतीत होते हैं।[1].

राष्ट्रीय पंचांग

सुधार समिति ने राष्ट्रीय पंचांग नामक एक धार्मिक कैलेंडर को भी औपचारिक रूप दिया। यह, अन्य कई क्षेत्रीय चन्द्र-सौर पंचांग पर आधारित पंचांगों की तरह 10 वीं शताब्दी के सूर्य सिद्धांत पर आधारित था। []

शब्द पंचांग संस्कृत के पंचांगम् (पाँच+अंग) से लिया गया है, जो कि पंचांग के पाँच अंगों का द्योतक है: चंद्र दिन,चांद्र मास, अर्ध दिन, सूर्य और चंद्रमा के कोण और सौर दिन[]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  • Mapping Time: The Calendar and its History by E.G. Richards (ISBN 0-19-282065-7), 1998, pp. 184–185.

बाहरी कड़ियाँ