भारतीय मिडिया और पक्षपात
मीडिया-पक्षपात और भारतीय मीडिया का समीकरण पश्चिम जैसा नहीं रहा है। आज़ादी से पहले पूरा भारतीय मीडिया दो ध्रुवों में बँटा हुआ था। अंग्रेज़ी के सभी बड़े अख़बार खुल कर औपनिवेशिक शासन का समर्थन करते थे और भारतीय भाषाओं का मीडिया बिना किसी अपवाद के राष्ट्रीय आंदोलन के पक्ष में खड़ा हुआ था। इसे ‘पक्षपात’ और ‘पक्षधरता’ के बीच किये जा सकने वाले फ़र्क की मिसाल समझा जा सकता है। 1947 में पंद्रह अगस्त को सत्ता-हस्तांतरण होते ही अंग्रेज़ी मीडिया रातों-रात राष्ट्रीय मीडिया में बदल गया। इसके बाद कमोबेश अस्सी के दशक के अंत तक भारत के सामाजिक-राजनीतिक आधुनिकीकरण और वैकासिक अर्थशास्त्र पर आधारित मिश्रित अर्थनीतियों के मॉडल का रास्ता साफ़ करने के लिए बनी राष्ट्रीय सहमति में मीडिया के सभी पहलुओं ने अपने-अपने तरह से योगदान किया। नब्बे के दशक में मंदिर, मण्डल और बाज़ार की उदीयमान ताकतों के इर्द-गिर्द भारतीय राजनीति और समाज में नये ध्रुवीकरण हुए जिन्होंने उस राष्ट्रीय सहमति को भंग कर दिया। मीडिया के विभिन्न हिस्से कभी पक्षधरता और कभी पक्षपात का रवैया अपनाते हुए समय-समय पर इन शक्तियों का समर्थन और विरोध करने लगे। आज स्थिति यह है कि भारतीय मीडिया लगभग बिना किसी अपवाद के आर्थिक सुधारों और भूमण्डलीकरण का पक्ष ले रहा है। मीडिया ने इसे नयी राष्ट्रीय सहमति के रूप में ग्रहण कर लिया है।
सन्दर्भ
1. स्टीव फ़लर (2007), ‘मास मीडिया’, द नॉलेज बुक, एकुमन, स्टॉक्सफ़ील्ड.
2. पीटर स्टीवन (2004), द नो-नॉनसेंस गाइड टु ग्लोबल मीडिया, न्यू इंटरनेशनलिस्ट पब्लिकेशंस और बिटवीन द लाइंस, टोरंटो, ओंटारियो.
3. डेल जैकिट (2006), जर्नलिस्टिकि इथिक्स : मॉरल रिस्पांसिबिलिटी इन द मीडिया, प्रेंटिस हाल.
4. वाल्टर लिपमैन (1922), पब्लिक ओपीनियन, मैकमिलन, न्यूयॉर्क.