भागलपुर
भागलपुर | |
— जिला — | |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | भारत |
राज्य | बिहार |
जिलाधिकारी प्रणव कुमार | |
उपायुक्त | श्री राजेश कुमार |
जनसंख्या • घनत्व | २४३०३३१ (२००१ के अनुसार [update]) |
क्षेत्रफल | २५६९ ।वाहन कोड = BR-10 कि.मी² |
आधिकारिक जालस्थल: bhagalpur.bih.nic.in |
निर्देशांक: 25°09′N 87°01′E / 25.15°N 87.02°Eभागलपुर बिहार प्रान्त का एक शहर है। गंगा के तट पर बसा यह एक अत्यंत प्राचीन शहर है। पुराणों में और महाभारत में इस क्षेत्र को अंग प्रदेश का हिस्सा माना गया है। भागलपुर के निकट स्थित चम्पानगर महान पराक्रमी शूरवीर कर्ण की राजधानी मानी जाती रही है। यह बिहार के मैदानी क्षेत्र का आखिरी सिरा और झारखंड और बिहार के कैमूर की पहाड़ी का मिलन स्थल है। भागलपुर सिल्क के व्यापार के लिये विश्वविख्यात रहा है, तसर सिल्क का उत्पादन अभी भी यहां के कई परिवारों के रोजी रोटी का श्रोत है। वर्तमान समय में भागलपुर हिन्दू मुसलमान दंगों और अपराध की वजह से सुर्खियों में रहा है। यहाँ एक हवाई अड्डा भी है जो अभी चालू नहीं है। यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा गया और पटना है। रेल और सड़क मार्ग से भी यह शहर अच्छी तरह जुड़ा है।
जो गंगा नदी के किनारे स्थित है। यह जिला पूर्वी भारत में स्थित है।
प्राचीन काल के तीन प्रमुख विश्वविद्यालयों यथा तक्षशिला, नालन्दा और विक्रमशिला में से एक विश्वविद्यालय भागलपुर में ही था जिसे हम विक्रमशिला के नाम से जानते हैं। पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन में प्रयुक्त मथान अर्थात मंदराचल तथा मथानी में लपेटने के लिए जो रस्सा प्रयोग किया गया था वह दोनों ही उपकरण यहाँ विद्यमान हैं और आज इनका नाम तीर्थस्थलों के रूप में है ये हैं बासुकीनाथ और मंदार पर्वत।
पवित्र् गंगा नदी को जाह्नवी के नाम से भी जाना जाता है। जिस स्थान पर गंगा को यह नाम दिया गया उसे अजगैवी नाथ कहा जाता है यह तीर्थ भी भागलपुर में ही है।
भागलपुर जिला को "सिल्क सिटी" के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यहाँ पर मुख्य रूप से टूसर रेशम की सिल्क उत्पादन की जाती है।
इतिहास
बीते समय में भागलपुर भारत के दस बेहतरीन शहरों में से एक था। आज का भागलपुर सिल्क नगरी के रूप में भी जाना जाता है। इसका इतिहास काफी पुराना है। भागलपुर को (ईसा पूर्व 5वीं सदी) चंपावती के नाम से जाना जाता था। यह वह काल था जब गंगा के मैदानी क्षेत्रों में भारतीय सम्राटों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था। अंग 16 महाजनपदों में से एक था जिसकी राजधानी चंपावती थी। अंग महाजनपद को पुराने समय में मलिनी, चम्पापुरी, चम्पा मलिनी, कला मलिनी आदि आदि के नाम से जाना जाता था।
अथर्ववेद में अंग महाजनपद को अपवित्र माना जाता है, जबकि कर्ण पर्व में अंग को एक ऐसे प्रदेश के रूप में जाना जाता था जहां पत्नी और बच्चों को बेचा जाता है। वहीं दूसरी ओर महाभारत में अंग (चम्पा) को एक तीर्थस्थल के रूप में पेश किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार अंग राजवंश का संस्थापक राजकुमार अंग थे। जबकि रामयाण के अनुसार यह वह स्थान है जहां कामदेव ने अपने अंग को काटा था।
शुरुआत से ही अपने गौरवशाली इतिहास का बखान करने वाला भागलपुर आज कई बड़ों शहरों में से एक है तथा अब तो उसने अपना नाम समार्ट सिटी में भी दाखिल कर लिया है।
आज का साहेबगंज जिला,पाकुड़ जिला,दुमका जिला,गोड्डा जिला,देवघर जिला,जामताड़ा जिला( 15 नवम्बर 2000 ई॰ से ये सभी जिले अब झारखण्ड राज्य में है।) कभी भागलपुर जिला के सभ-डिवीज़न थे।जबकी देवघर जिला और जामताड़ा जिला बिहार के भागलपुर जिला और पश्चिम बंगाल के बिरभूम जिला से शेयर किए जाते थे।मुंगेर जिला(संयुक्त मुंगेर)और बाँका जिला भी पहले भागलपुर जिला में ही थे।ये दोनों ही जिले अब बिहार राज्य में हैं।
पुराणों के अनुसार भागलपुर का पौराणिक नाम भगदतपुरम् था जिसका अर्थ है वैसा जगह जो की भाग्यशाली हो।आज का भागलपुर जिला बिहार में पटना जिला के बाद दुसरे विकसित जिला के स्थान पर है तथा आस-पास के जिलों का मुख्य शहर भी भागलपुर जिला हीं है।यहाँ के लोग अंगिका भाषा का मुख्य रूप से इस्तमाल करते हैं तथा यहाँ के लोग अक्सर रुपया को टका(जो की बंगलादेश की मुद्रा है)कहकर संबोधित करते है। भागलपुर नगर के कुछ मुहल्लों के नाम की हकीकत – मोजाहिदपुर – इसका नाम 1576 ई बादशाह अकबर के एक मुलाज़िम मोजाहिद के नाम पर नामित हुआ था / सिकंदर पुर – बंगाल के सुल्तान सिकंदर के नाम पर यह मुहल्ला बसा । ततारपुर – अकबर काल मे एक कर्मचारी तातार खान के नाम पर इस मुहल्ले का नाम रखा गया । काजवली चक – यह मुहल्ला शाहजहाँ काल के मशहूर काज़ी काजी काजवली के नाम पर पड़ा । उनकी मज़ार भी इसी मुहल्ले मे है । कबीरपुर – अकबर के शासन काल मे फकीर शाह कबीर के नाम पर पड़ा ,उनकी कब्र भी इसी मुहल्ले मे है । नरगा – इसका पुराना नाम नौगजा था यानी एक बड़ी कब्र ।कहते हैं कि खिलजी काल मे हुये युद्ध के शहीदो को एक ही बड़े कब्र मे दफ़्नाया गया था । कालांतर नौ गजा नरगा के नाम से पुकारा जाने लगा । मंदरोजा – इस मुहल्ले का नाम मंदरोजा इस लिए पड़ा क्योंकि यहाँ शाह मदार का रोज़ा (मज़ार ) था जिसे बाद मे मदरोजा के नाम से जाना जाने ल्लगा । मंसूर गंज – कहते हैं कि अकबर के कार्यकाल मे शाह मंसूर की कटी उँगलियाँ जो युद्ध मे कटी थी , यहाँ दफनाई गई थी ,इस लिए इसका नाम मंसूरगंज हो गया । आदमपुर और खंजरपुर – अकबर के समय के दो भाई आदम बेग और खंजर बेग के नाम पर ये दोनों मुहल्ले रखे गए थे । मशाकचक – अकबर के काल के मशाक बेग एक पहुंचे महात्मा थे ,उनका मज़ार भी यही है इस लिए इस मुहल्ले का नाम मशाक चक पड़ा । हुसेना बाद,हुसैन गंज और मुगलपुरा – यह जहांगीर के समय बंगाल के गवर्नर इब्राहिम हुसैन के परिवार की जागीर थी ,उसी लिए उनके नाम पर ये मुहल्ले बस गए । बरहपुरा – सुल्तानपुर के 12 परिवार एक साथ आकर इस मुहल्ले मे बस गए थे ,इस लिए इसे बरहपुरा के नाम से जाना जाने लगा । फ़तेहपुर – 1576 ई मे शाहँशाह अकबर और दाऊद खान के बीच हुई लड़ाई मे अकबर की सेना को फ़तह मिली थी ,इस लिए इसका नाम फ़तेहपुर रख दिया गया था / सराय – यहाँ मुगल काल मे सरकारी कर्मचारिओ और आम रिआया के ठहरने का था ,इसी लिए इसे सराय नाम मिला । / सूजा गंज – यह मुहल्ला औरंगजेव के भाई शाह सूजा के नाम पर पड़ा है । यहाँ शाह सुजा की लड़की का मज़ार भी है उर्दू बाज़ार – उर्दू का अर्थ सेना होता है । इसी के नजदीक रकाबगंज है रेकाब का मानी घोड़सवार ऐसा बताया जाता है कि उर्दू बाज़ार और रेकाबगंज का क्षेत्र मुगल सेना के लिए सुरक्षित था । हुसेनपुर – इस मुहल्ले को दमडिया बाबा ने अपने महरूम पिता मखदूम सैयद हुसैन के नाम पर बसाया था । मुंदीचक – अकबर काल के ख्वाजा सैयद मोईनउद्दीन बलखी के नाम पर मोइनूद्दीनचक बसा था जो कालांतर मे मुंदीचक कहलाने लगा । खलीफाबाग- जमालउल्लाह एक विद्वान थे जो यहाँ रहते थे ,उन्हे खलीफा कह कर संबोधित किया जाता था । जहां वे रहते थे ,उस जगह को बागे खलीफा यानि खलीफा का बाग कहते थे । उनका मज़ार भी यहाँ है ।इस लिए यह जगह खलीफाबाग के नाम से जाना जाने लगा । आसानन्दपुर – यह भागलपुर स्टेशन से नाथनगर जाने के रास्ते मे हैं शाह शुजा के काल मे सैयद मुर्तजा शाह आनंद वार्शा के नाम पर यह मुहल्ला असानंदपुर पड़ गया ।
मुख्य आकर्षण
मंदार पहाड़ी
यह पहाड़ी भागलपुर से 48 किलोमीटर की दूरी पर है, जो अब बांका जिले में स्थित है। इसकी ऊंचाई 800 फीट है। इसके संबंध में कहा जाता है कि इसका प्रयोग सागर मंथन में किया गया था। किंवदंतियों के अनुसार इस पहाड़ी के चारों ओर अभी भी शेषनाग के चिन्ह को देखा जा सकता है, जिसको इसके चारों ओर बांधकर समुद्र मंथन किया गया था। कालिदास के कुमारसंभवम में पहाड़ी पर भगवान विष्णु के पदचिन्हों के बारे में बताया गया है। इस पहाड़ी पर हिन्दू देवी देवताओं का मंदिर भी स्थित है। यह भी माना जाता है कि जैन के 12वें तिर्थंकर ने इसी पहाड़ी पर निर्वाण को प्राप्त किया था। लेकिन मंदार पर्वत की सबसे बड़ी विशेषता इसकी चोटी पर स्थित झील है। इसको देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। पहाड़ी के ठीक नीचे एक पापहरनी तलाब है, इस तलाब के बीच में एक विश्नु मन्दिर इस द्रिश्य को रोमान्चक बानाता है। यहाँ जाने के लिये भागलपुर से बस और रेल कि सुविधा उप्लब्ध है।
विक्रशिला विश्वविद्यालय
विश्व प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्वविद्यालय भागलपुर से 38 किलोमीटर दूर अन्तीचक गांव के पास है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय नालन्दा के समकक्ष माना जाता था। इसका निर्माण पाल वंश के शासक धर्मपाल (770-810 ईसा ) ने करवाया था। धर्मपाल ने यहां की दो चीजों से प्रभावित होकर इसका निर्माण कराया था। पहला, यह एक लोकप्रिय तांत्रिक केंद्र था जो कोसी और गंगा नदी से घिरा हुआ था। यहां मां काली और भगवान शिव का मंदिर भी स्थित है। दूसरा, यह स्थान उत्तरवाहिनी गंगा के समीप होने के कारण भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। एक शब्दों में कहा जाए तो यह एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान था।
कर्नलगंज रॉक कट मंदिर
कर्नलगंज के चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर भागलपुर में पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षणों में से एक हैं. सुल्तानगंज शहर के पश्चिम में लगभग 8 किमी दूर स्थित मंदिरों पर आपको चट्टानों पर की गई ये नक्काशी गुप्त राजवंश के काल से चली आ रही है. इन नक्काशियों में कई बौद्ध, जैन और हिंदू देवताओं को चित्रित किया गया है. आगंतुकों को इन मंदिरों में कलात्मक रूप से की गई कई नक्काशी भी देखने को मिलेगी, जिन्हें विभिन्न शहरों से खोदकर निकाला गया है, जिनमें बिहार के कहलगांव और सुल्तानगंज शामिल हैं. संभव है कि ये नक़्क़ाशी सम्राट अशोक के समय की हो.
महर्षि मेंहीं आश्रम
महर्षि मेंही परमहंस, जिन्हें गुरुमहाराज के नाम से भी जाना जाता है, ने वेदों और उपनिषद के अलावा भगवद गीता के साथ-साथ पवित्र बाइबिल का भी अध्ययन किया और संत मत परंपरा में एक संत थे. वह बौद्ध धर्म और कुरान के भी अच्छे जानकार थे. उन्होंने सत्संग और ध्यान की मदद से मोक्ष प्राप्त करने की सबसे आसान विधि का प्रचार किया. यूपी के मुरादाबाद के बाबा देवी साहब के प्रत्यक्ष शिष्यों में से एक, वे अखिल भारतीय संतमत सत्संग के मुख्य गुरु थे. 28 अप्रैल 1885 को बिहार के एक छोटे से गाँव मझुआ में जन्मे महर्षि मेंही भगवान शिव के गहन उपासक थे. जब ऋषि दसवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तभी उन्होंने गृहस्थ जीवन छोड़ दिया.
रवीन्द्र भवन
रवीन्द्र भवन का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा है. यह भागलपुर से केवल 4.7 किमी दूर सिटानाबाद में स्थित है और इस जगह के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है. यह स्मारक टिल्हा कोठी के नाम से जाना जाता था और यह भी भागलपुर विश्वविद्यालय से जुड़ी विभिन्न इमारतों में से एक है. एक टीले की चोटी पर स्थित यह इमारत वाकई खूबसूरत है. यह इमारत महत्वपूर्ण हस्तियों से जुड़ी है जिनमें क्लीवलैंड, हेस्टिंग्स और अवध के राजा चेत सिंह शामिल हैं. लेकिन, जिस मुख्य व्यक्तित्व के नाम पर इस इमारत का नाम रखा गया है, वह निश्चित रूप से रबींद्रनाथ टैगोर हैं, जिन्होंने 1910 में इस स्थान का दौरा किया था और यहां रुके थे. यह समझा जाता है कि कवि पुरस्कार विजेता ने टिल्हा कोठी में रहते हुए गीतांजलि के कुछ छंद लिखे थे. प्रवेश निःशुल्क है. यह स्थान रविवार को बंद रहता है।[1]
राजमहल जीवाश्म अभयारण्य
राजमहल जीवाश्म अभयारण्य झारखंड राज्य के संथाल परगना में भागलपुर से लगभग 117 किमी दूर राजमहल पहाड़ियों में स्थित है. ये पहाड़ियाँ प्रागैतिहासिक पौधों के जीवाश्मों का घर हैं जो 68 से 145 मिलियन वर्ष पुराने हैं. लखनऊ में पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान इन जीवाश्मों का संरक्षक है. इन पहाड़ियों को कवर करने वाला क्षेत्र संथालों द्वारा बसा हुआ है और लगभग 2600 वर्ग किमी में फैला हुआ है. पहाड़ियाँ और उनके आस-पास का क्षेत्र जुरासिक युग के दौरान हुई गंभीर ज्वालामुखीय गतिविधि का परिणाम था और आज आप गंगा नदी को इन पहाड़ियों के आसपास घूमते हुए पाएंगे, भले ही यह पूर्व से दक्षिण की ओर प्रवाह की दिशा बदलती हो.
कहलगांव
कहलगांव भागलपुर से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तीन छोटे-छोटे टापू हैं। कहा जाता है कि जाह्नु ऋषि के तप में गंगा की तीव्र धारा से यहीं पर व्यवधान पड़ा था। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने गंगा को पी लिया। बाद में राजा भागीरथ के प्रार्थना के उपरांत उन्होंने गंगा को अपनी जांघ से निकाला। तत्पश्चात गंगा का नाम जाह्नवी कहलाया। बाद से गंगा की धाराएं बदल गई और यह दक्षिण से उत्तर की ओर गमन करने लगी। एक मात्र पत्थर पर बना हुआ मंदिर भी देखने लायक है। इस प्रकार का मंदिर बिहार में अन्यत्र नहीं है। कहलगांव में डॉल्फीन को भी देखा जा सकता है। यहाँ एन. टी. पी. सी. भी है।
इसके अलावा कुप्पा घाट, विषहरी स्थान, भागलपुर संग्रहालय, मनसा देवी का मंदिर, जैन मन्दिर, चम्पा, विसेशर स्थान, 25किलोमीटर दूर सुल्तानगंज आदि को देखा जा सकता है।
भागलपुर से 40 किमी की दुरी पर स्थित है। यहाँ आने की सुविधा सड़क मार्ग से है। यह भागलपुर से पूर्व -दक्षिण में स्थित है। यहाँ की मुख्य कृषि चावल की खेती होती है।
कृषि और खनिज
यह कृषि उत्पादो और वस्त्रो का व्यापार केंद्र है। खाद्यान्न और तिलहन यहाँ पर उगाई जाने वाली प्रमुख फ़सलें है। चीनी मिट्टी, अग्निसह मिट्टी और अभ्रक के भंडार यहाँ पाए जाते हैं। इसके आसपास के क्षेत्र में जलोढ मैदान और दक्षिण में छोटा नागपुर पठार की वनाच्छादित अपरी भूमि है। गंगा और चंदन नदियों द्वारा इस क्षेत्र की सिंचाई होती है। यहाँ एक कृषि विश्वविद्यालय भी है।
उद्योग और व्यापार
प्रदेश उद्योगों में चावल और चीनी की मिलें और ऊनी कपड़ों की बुनाई शामिल है। भागलपुर रेशम के उत्पादन के लिए भी विख्यात है। यहाँ एक रेशम उत्पादन संस्थान और एक कृषि अनुसंधान केंन्द स्थापित किए गए हैं।भागलपुर के सन्हौला के अंतर्गत ग्राम पंचायत (TARAR) के दोगच्छी ग्राम में अधिक में आम का उत्पादन किया जाता है।
शिक्षण संस्थान
भागलपुर विश्वविद्यालय यहाँ का प्रमुख शिक्षा केन्द्र हैं। भागलपुर शहर में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (1960) से संबद्ध तेजनारायण बनैली कॉलेज , मारवाड़ी कॉलेज , भागलपुर इंजिनीयरिंग कॉलज, जे .एल .एन .मेडिकल कॉलेज, ताड़र कॉलेज ताड़र (दोगच्छी के नजदीक स्थित हैं )और अनेक महाविद्यालय है। सबौर में कृषि विश्वविद्यालय भी है। वर्ष 2011 से भागलपुर में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय का क्षेत्रीय केन्द्र भी खुल गया है। जेल रोड, तिलकामांझी स्थित इग्नू के क्षेत्रीय केन्द्र ने यहाँ कई नए पाठ्यक्रम आरम्भ किये हैं और बांका, मुंगेर और भागलपुर के भीतरी हिस्सों में अपने नए केन्द्रों और प्रोजेक्ट्स के माध्यम से उच्च शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने में योगदान दे रहा है। वर्ष 2014 में यहां सम्पूर्ण कम्पयूटर शिक्षा के लिये मानव भारती एजुकेशन मिशन तथा लाल बहादुर शास्त्री ट्रेनिंग संस्थान खुल गया है। विक्रमशीला विश्वविद्यालय (KAHALGOAN)को जीवीत करने का काम चालू है।
जनसंख्या
2001 की जनगणना के अनुसार भागलपुर शहर कुल जनंसख्या 3,40,349 है।
ख्यात व्यक्ति
आवागमन
भागलपुर रेल और सड़क मार्ग दोनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यह शहर पटना से कोई 220 किलोमीटर तथा कोलकाता से 410 किलोमीटर दूर स्थित है।
- रेल मार्ग
भागलपुर के लिए राजधानी पटना से सीधी ट्रेनें हैं। दिल्ली जाने के लिए विक्रमशिला, ब्रह्मपुत्र एक्सप्रेस, फरक्का एक्सप्रेस, सप्ताहिक एक्सप्रेस, गरीब रथ आदि ट्रेनें जाती हैं। इसके अलावा दिल्ली से पटना पहुंचकर स्थानीय ट्रेन से भागलपुर जाया जा सकता है। कोलकाता से इस शहर के लिए सीधी ट्रेन है। कोलकाता से आने के लिए दिल्ली हावड़ा रूट की ट्रेन लेकर लक्खीसराय स्थित कियूल जंक्शन से भी भागलपुर के लिए ट्रेन ली जा सकती है।
- सड़क मार्ग
भागलपुर बिहार के अन्य शहरों से सड़क के माध्यम से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 80 पर स्थित है। विक्रशिला पुल के बन जाने से यह शहर बिहार के उत्तरी राज्यों से सीधा जुड़ गया है। भागलपुर की आंतरिक परिवहन ऑटो रिक्शा, रिक्शा, तांगा, ई-रिक्शा आदि पर निर्भर है। भागलपुर में उल्टापुल के पास बस टर्मिनल स्थित है, जहां से विभिन्न स्थानों के लिए बसें जाती है।जिसे कोयल डिपो के नाम से जानते है।
- हवाई मार्ग
जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा, पटना उतरकर भागलपुर आया जा सकता है। यह हवाई अड्डा भागलपुर स्टेशन से 5 .8 किलोमीटर दूर है।
सन्दर्भ
- ↑ "भागलपुर भी है बिहार का एक प्रमुख पर्यटन स्थल, जरूर घूमें इन जगहों पर". प्रभात खबर. 2 अगस्त 2023. अभिगमन तिथि 13 दिसंबर 2023.