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भरथरी लोकगाथा

भरथरी कथा में दो पात्र है - भरथरी और गोपीचन्द, जिनसे ये कथा शुरु होती है। राजा भरथरी और भान्जा गोपीचन्द। भरथरी की कथा बिहार में, उत्तरप्रदेश में, बंगाल में प्रचलित है। छत्तीसगढ़ में भरथरी की कथा कैसे आई - इसके सम्बन्ध में विद्वानों का अलग अलग मत है। नन्दकिशोर तिवारी जी का कहना है कि बंगाल के जोगी जब उज्जैन जाते थे, उस यात्रा के वक्त छत्तीसगढ़ में भी भरथरी की कथा प्रचलित हो गई थी - भरथरी और गोपीचन्द दोनों नाथ-पंथी थे।

नाथ-पंथी योगियों का जो सम्प्रदाय हैं, वह सम्प्रदाय नवीं दसवीं शताब्दी में आरम्भ हुआ। बंगाल बिहार और उसके आसपास योगी नाम की एक जाति रहती थी। ये लोग छुआछूत नहीं मानते थे, जात पात नहीं मानते थे। बहुत ही उन्नत मानसिकता के थे वे लोग। वे लोग नाथ पंथी योगियों जैसे थे। नाथ पंथी योगियों का समप्रदाय नेपाल में बौद्ध और शैव साधनों के मिश्रण से हुई थी। और इसके बाद यह सम्प्रदाय पूरे हिन्दी प्रदेश में फैल गई। इस सम्प्रदाय के लोग पढ़े लिखे नहीं होने के कारण अशिक्षित माना जाता था। पर इनसे जो शिक्षा मिलती थी, वह बहुत से शिक्षित लोग नहीं दे पाये थे। ये लोग अपने को जोगी कहते थे। लोग उन्हें नकारते थे ये कहके कि ये लोग शास्र विहीन है। ये लोग लोक-गीतों के माध्यम से लोगों का दिल जीत लेते थे। छत्तीसगढ़ में भरथरी को योगी कहते है। छत्तीसगढ़ी भरथरी किसी जाति विशेष का गीत नहीं है। जो भरथरी का गीत का गीत गातें है वे योगी कहलाते है। गीत में भी अपने आप को वे योगी कहते हैं:

सुनिले मिरगिन बात
काल मिरगा ये राम
मोला आये हे ओ
एक जोगी ये न
ओ कुदवित है ओ

शुरु में भरथरी एक अकेला इन्सान गाया करता था वह खंजरी बजाकर गाता था। बाद में वाद्यों के साथ भरथरी का गायन होने लगा। वाद्यों में तबला, हारमोनियम, मंजीरा के साथ साथ बेंजो भी था। धीरे धीरे इसका रूप बदलता गया और भरथरी योगी गाना गाते और साथ साथ नाचते भी है। ये बहुत स्वाभाविक है कि गीत के साथ नृत्य भी शामिल हो गया। न सिर्फ छत्तीसगढ़ में बल्कि पूरे हिन्दी बेल्ट में बहुत प्रेम से गाया जाता है और सुना जाता है। लोक कथा एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करती है और जहाँ पहुँचती है वहाँ के परम्पराओं से प्रभावित होकर वहीं की बन जाती है। छत्तीसगढ़ की भरथरी में हम देखते है कि कई जगह "सतनाम" का उल्लेख है -

तैहर ले ले बेटी
सतनामे ल ओ

छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ प्रचलित है जिसमे सतनाम का अर्थ है नाम की महिमा। इसीलिये धीरे धीरे भरथरी में भी "सतनाम" शब्द को इस्तेमाल किया गया है

भरथरी के बारे में बहुत किंवदन्तियाँ हैं।

भरथरी एक ऐसा चरित्र है जिसके बारे में कहा जाता है कि वे योगी बने थे। भरथरी उज्जैन का राजा था। अब भरथरी क्यों योगी बनकर राज्य छोड़कर चले गये थे, इसके बारे में अलग अलग कहानियाँ प्रचलित है जिसमें आखिर में गोरखनाथ के कृपा से सब ठीक हो जाता है और भरथरी गोरखनाथ के शिष्य बन जाते हैं।

एक कथा के अनुसार भरथरी की पत्नी पिंगला जब किसी और पुरुष से प्यार करने लगती है, भरथरी संन्यासी बनकर राज्य छोड़कर दूर चले जाते हैं।

और एक कहानी बिल्कुल इसके विपरीत है जिसमें रानी पिंगला पति से बेहद प्रेम करती है। कहानी में राजा भरथरी एक बार शिकार खेलने गए थे। उन्होंने वहाँ देखा कि एक पत्नी ने अपने मृत पति की चिता में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। राजा भरथरी बहुत ही आश्चर्य चकित हो गए उस पत्नी का प्यार देखकर। वे सोचने लगे कि क्या मेरी पत्नी भी मुझसे इतना प्यार करती है। अपने महल में वापस आकर राजा भरथरी जब ये घटना अपनी पत्नी पिंगला से कहते हैं, पिंगला कहती है कि वह तो यह समाचार सुनने से ही मर जाएगी। चिता में कूदने के लिए भी वह जीवित नहीं रहेगी। राजा भरथरी सोचते हैं कि वे रानी पिंगला की परीक्षा लेकर देखेंगे कि ये बात सच है कि नहीं। फिर से भरथरी शिकार खेलने जाते हैं और वहाँ से समाचार भेजते हैं कि राजा भरथरी की मृत्यु हो गई। ये खबर सुनते ही रानी पिंगला मर जाती है। राजा भरथरी बिल्कुल टूट जाता है, अपने आप को दोषी ठहराते हैं और विलाप करते हैं। पर गोरखनाथ की कृपा से रानी पिंगला जीवित हो जाती है। और इस घटना के बाद राजा भरथरी गोरखनाथ के शिष्य बनकर चले जाते हैं।

नन्दकिशोर तिवारी जी जिन्होंने भरथरी-छत्तीसगढ़ी लोकगाथा पर गहन अध्ययन किया, और अनुवाद किया, बहुत ही रोचक है उनका अनुवाद। नीचे उनका अनुवाद दिया गया है - जिसमें भरथरी की माता भरथरी के जन्म से पहले पुत्र कामना की अग्नि से भुन रही है और फिर भरथरी का जन्म वृतान्त है।

बालक टेर ये बबूर के
पर के पथरा ल ओ
कय दिन नोनी ह का सहय
बालक टेर ये बबूर के
पर के पथरा ल ओ
कय दिन कइना ह का सहय
कइना तय्मूर ओर, जेमा नइये दीदी
मोर लाठी के मार ले खावय ओं,
बाई खाये ओ, रानी ये दे जी
जऊने समय कर बेरा मा
सुनिले भगवान
कइसे विधि कर कइना रोवत है
सतखण्डा ए ओ
सातखण्ड के ओगरी
बत्तीस खण्ड के न अंधियारी मा राम
साय गु मा
मोर कलपी-कलप रानी रोवय
बाई रोवय ओ, रानी ये दे जी
हिन्दी अनुवाद -
बबूल के पेड़ में फूल के सादृश्य
पुत्र की कल्पना है
दु:खों के पहाड़ का वजन
कब तक सहे रानी
और,
सहती रहे लाठी की मार
हे ! भगवान
इस दारुण दु:ख का भार लिए
रो रही है कन्या
सातखण्डों का जलाशय
और बत्तीस खण्डों के अंधियारे
में घिरी
कलप-कलप रो रही है रानी।
मुझसे छोटे और छोटों की गोद में
देखो तो
गूंज रही है बच्चों की किलकारी
सूनी है गोद
मुझ अभागिन की
कलप-कलप रो रही है रानी।
छत्तीसगढ़ी में -
मोर ले छोटे अऊ छोटे के
सुन्दर गोदी मा ओ
देख तो दीदी बालक खेलते हैं
मोर अभागिन के ओ
मोर गोदी मा राम
बालक नइये गिंया
मोर जइसे विधि कर रानी ओ
बाई रोवय ओ, बाई ये दे जी।
तरिया बैरी नदिया मा
संग जंवसिहा ओ
देख तो दीदी ताना मारते हैं
छोटे छोटे के ओ
सुन्दर गोदी मा राम
बालक खेलत हयँ न
मोर अभागिन के गोदी मा बालक ओ
बाई नइये ओ, आनी रोवय ओ,
बाई ये दे जी
सोते बैरी सतखण्जा ये
सोरा खण्ड के ओगरी
छाहें जेखर मया बइठे है
फुलवा रानी ओ
चल सोचथे राम
सुनिले भगवान
मोला का तो जोनी ए दे दिये ओ
भगवान ओ, बाई ये दे जी।
कइसे विधि कर लिखा ल
नई तो काटय दाई
का दु:ख ला रानी का रोवत है
बाल ऊ मर है
बालक नई ये गिंया
ठुकरावथे राम
मोल गली-गली रानी रोवय ओ
बाई रोवय ओ, रानी ये दे जी।
हिन्दी अनुवाद -
मुझसे छोटे और छोटों की गोद में
देखो तो
गूँज रही है बच्चों की किलकारी
सूनी है गोद
मुझ अभागिन की
कलप-कलप रो रही है रानी।
सँगी सहेलियाँ
तालाब और नदी में
देती है ताना
उनकी सुन्दर गोद में
खेल रहे हैं बच्चे
मुझ अभागिन की है गोद खाली
सात खण्डों के जलाशय
की छाँह में भी
प्यासा मातृत्व है
कहती है रानी फुलबा
हे ! भगवान
किस योनि में दिया है जन्म तुमने?
लेख करम का
मिटता नहीं
बाली ऊमर है
पुत्र के अभाव में
गली गली ठोकर-खाती
रो रही है रानी।