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ब्रिटिश साम्राज्य

ब्रिटिश साम्राज्य
British Empire
ध्वज
वो सारे भूक्षेत्र जो किसी न किसी समय ब्रिटिश साम्राज्य का भाग रहे हैं।
वो सारे भूक्षेत्र जो किसी न किसी समय ब्रिटिश साम्राज्य का भाग रहे हैं।
वो सारे भूक्षेत्र जो किसी न किसी समय ब्रिटिश साम्राज्य का भाग रहे हैं।

ब्रिटिश साम्राज्य, ग्रेट ब्रिटेन द्वारा शासित साम्राज्य था जो मानव इतिहास सबसे बड़ा साम्राज्य था।[1] एक सदी से भी अधिक समय तक यह दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य और आर्थिक महाशक्ति थी। यह साम्राज्य यूरोप में खोज युग का परिणाम था जो 15 वीं शताब्दी के ज्ञानोदय यात्राओं के साथ शुरू हुआ, जिसके कारण यूरोपीय औपनिवेशिक साम्राज्यों का निर्माण हुआ। 1921 तक, ब्रिटिश साम्राज्य की आबादी 45 करोड़ थी। यह उस समय विश्व की कुल आबादी का चौथाई हिस्सा था जो केवल ब्रिटेन की सरपरस्ती के अंतर्गत था। 3.3 करोड़ वर्ग किलोमीटर पर फैला यह साम्राज्य न केवल इतिहास का सबसे बड़ा साम्राज्य था, बल्कि दुनिया के सभी महाद्वीपों पर फैले होने के साथ-साथ यह साम्राज्य अपने वृहदतम रूप में धरती के एक-तिहाई भूभाग को नियंत्रित करता था। इस प्रकार इसकी भाषा और सांस्कृतिक प्रसार दुनिया भर में थी, और मौजूद समय में अंग्रेज़ी भाषा, संस्कृति तथा अंग्रेजी शासन शैली एवं वेस्टमिंस्टर शैली से प्रभावित सरकारी प्रणालियों में देखि जा सकती है। दुनिया के सभी महाद्वीपों, क्षेत्रों और लगभग हर भूभाग पर इसकी मौजूदगी होने के कारण, इस प्रचलित कथन का जन्म हुआ: "ब्रिटिश साम्राज्य पर कभी सूरज नहीं डूबता है।"

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के पांच दशकों में, साम्राज्य के भीतर के कई देश आजाद हुए। तथा उनमें से कई स्वतंत्र होकर ब्रिटिश साम्राज्य के राष्ट्रकुल में शामिल हो गए हैं। कुछ देशों ने ब्रिटिश संसद से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी ब्रिटिश संप्रभु को अपने संप्रभु के रूप में स्वीकार कर लिया, जिन्हें आज राष्ट्रमंडल प्रजाभूमि कहते हैं।[2]

व्युत्पत्ति

स्टुअर्ट काल:मूल

ब्रिटिश साम्राज्य की नींव तब रखी गई थी जब इंग्लैंड और स्कॉटलैंड अलग-अलग राज्य थे। अपने देश की सीमाओं का विस्तार दुनिया के अन्य भूभागों तक करके एक "साम्राज्य" स्थापित करने की मंशा यूरोप की कई राजशाहियों में, अटलांटिक के उसपर अमेरिका की खोज के कारण उठी थी। तथा इस कार्य में स्पेन और पुर्तगाल जैसे देशों की सफलता ने साम्राज्य सत्यापन की इस स्वप्न को और भी प्रोत्साहना दी, इसके बाद कई यूरोपीय राज्यों में समुद्र पार बस्तियाँ स्तापित करने और अपने राज्य का विस्तार करने की होड़ लग गयी। शुरूआती समय में अटलांटिक पर करके पश्चिम के रस्ते एशिया पहुंच कर एशियाई देशों (चीन, भारत, इत्यादि) से व्यापार सम्बन्ध स्तापित करने की इच्छा से समुद्री अभियान भेजे गए थे। जिसके कारण सर्वप्रथम क्रिस्टोफर कोलंबस अमेरिका के तट पर पहुँचे और यह सोचकर की यह एशिया है। कोलंबस के अभियान के कुछ वर्ष बाद यह सिद्ध हुआ की वह भूभाग एक नयी ज़मीन है (जिसे बाद में "अमेरिका" कहा गया)। 1496 में, इंग्लैंड के राजा हेनरी सप्तम ने परदेशिक अन्वेषण में स्पेन और पुर्तगाल की सफलताओं का अनुसरण करते हुए, उत्तरी अटलांटिक महासागर के माध्यम से एशिया का समुद्री रास्ता खोजने हेतु खोज यात्रा का नेतृत्व करने के लिए जॉन कैबट को आयुक्त किया। यूरोपीय खोज के पांच साल बाद, कैबट 1497 में अमेरिका की यात्रा पर रवाना हुए थे, लेकिन वे न्यूफाउंडलैंड के तट पर पहुंचे, जो उन्हें गलती से एशिया मालूम पड़ा,[3] कैबट ने औपनिवेशिक बस्ती स्थापित करते का प्रयास नहीं किया। अगले वर्ष कैबट पुनः अमेरिका के लिए रवाना हुए मगर इस बार उनके जहाजों का कुछ पता नहीं चला।[4]

एलिज़ाबेथ प्रथम का शासनकाल

इंग्लैंड राज्य की रानी एलिजाबेथ प्रथम के शासनकाल में औपनिवेशिक विस्तार में अपने सबसे बड़े दुश्मन स्पैनिश साम्राज्य के साथ पहली लड़ाई लड़ते हुए ब्रिटिश साम्राज्य की नींव पड़ी।

"नयी दुनिया" में अंग्रेज़ी औपनिवेशिक बस्तीयां स्थापित करने की पहली नाकामयाब प्रयास के बाद, 16 वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में दौरान रानी एलिजाबेथ प्रथम के शासनकाल तक अमेरिका में अंग्रेजी उपनिवेश स्थापित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया था।[5] इस बीच, इंग्लैंड में संसद द्वारा संयम की अपील की संविधि, 1533 में यह घोषणा किया गया की "इंग्लैंड का यह क्षेत्र एक 'साम्राज्य'(एम्पायर) है"।[6] तत्पश्चात, प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार ने इंग्लैंड को कैथोलिक स्पेन का अकल्पनीय दुश्मन बना दिया। 1562 में, अंग्रेजी मुकुट ने जॉन हॉकिंस और फ्रांसिस ड्रेक को निजी तौरपर स्पेन और पुर्तगाल की अटलांटिक दास व्यापार में सेंध लगाने के उद्देश्य से पश्चिम अफ्रीका के तट पर स्पेनिश और पुर्तगाली जहाजों के खिलाफ छापेमार हमले करने के लिए "प्रोत्साहित" किया। इन हमलों में कुछ समय की रोक के बाद एंग्लो-स्पैनिश युद्ध के तेज होने पर इस प्रयास को फिर से शुरू कर दिया गया। एलिजाबेथ प्रथम ने अमेरिका में स्पेनिश बंदरगाहों और नयी दुनिया के ख़ज़ाने ले कर लौट रही जहाहाज़ों के खिलाफ अटलांटिक में निजी छापेमारी हमलों को और भी प्रोत्साहित किया। उसी समय, रिचर्ड हकलूइट और जॉन डी (जिन्होंने "ब्रिटिश साम्राज्य" जैसे शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया था)[7] जैसे प्रभावशाली लेखकों ने इंग्लैंड को एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करने के ख़याल लो प्रचलित करने लगे। इस समय तक, स्पेन अमेरिका में प्रमुख शक्ति बन गया था और प्रशांत महासागर में अन्वेषण यात्राओं की शुरुआत कर रहा था, पुर्तगाल ने अफ्रीका और ब्राजील के तटों से चीन तक व्यापारिक डेरे और किले स्थापित कर लिए थे, तथा फ्रांस ने सेंट लॉरेंस नदी क्षेत्र पर आवासन शुरू भी कर दिया था, जो न्यू फ्रांस बना।[8]

आयरलैंड के प्लांटेशन

यद्यपि इंग्लैंड राज्य विदेशी उपनिवेशों की स्थापना में अन्य यूरोपीय शक्तियों से पीछे था, यह 16 वीं शताब्दी के दौरान आयरलैंड में इंग्लैंड के स्कॉटलैंड के प्रोटेस्टेंट आबादकारों के साथ आयरलैंड के निपटान में लगा था, जो 1169 में आयरलैंड [9]के नॉर्मन आक्रमण से प्रेरित था। कई लोग जिन्होंने आयरलैंड के बागानों को स्थापित करने में मदद की थी, उत्तरी अमेरिका के शुरुआती उपनिवेशों को बसाने में भी अहम भूमिका निभाई थी, विशेष रूप से एक समूह जिसे "पश्चिम देश के लोग" के नाम से जाना जाता है।[10][11][12]

"पहला" साम्राज्य

अमरीका के तेरह उपनिवेश

तेरह उपनिवेश (इस नक़्शे में गाढ़े गुलाबी रंग वाले क्षेत्र)

तेरह ब्रिटिश उपनिवेश पूर्वी उत्तर अमेरिका के आंध्र महासागर के तट पर सन् 1607 से 1733 तक स्थापित किये गए। इन उपनिवेशों ने 1776 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता का ऐलान किया और केवल उपनिवेश न रहकर संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्य बन गए। यही वजह है के आधुनिक अमेरिकी ध्वज में 13 लाल और सफ़ेद धारियाँ हैं और मूल अमेरिकी झंडे में 13 तारे थे।

यह तेरह उपनिवेश थे: डेलावेयर, पॅनसिल्वेनिया, न्यू जर्ज़ी, जोर्जिया, कनेक्टिकट, मैसाच्यूसॅट्स बे, मॅरिलैंड, दक्षिण कैरोलाइना, न्यू हैम्शर, वर्जीनिया, न्यूयॉर्क, उत्तर कैरोलाइना और रोड आयलॅन्ड व प्रॉविडॅन्स। प्रत्येक उपनिवेश ने स्वशासन की अपनी प्रणाली विकसित की। किसान स्वयं ही की स्थानीय और प्रांतीय सरकार का चुनाव करते और स्थानीय निर्णायक मंडल में सेवा प्रदान करते। वर्जीनिया, कैरोलाइना और जॉर्जिया जैसे कुछ उपनिवेशों में अफ्रीकी गुलामों की संख्या भी अधिक थी। 1760 और 1770 के दशकों में कर (टैक्स) पर हुए विरोध के दौर के बाद सभी उपनिवेश राजनीतिक और सैन्य तौर पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एकजुट हो गए और मिलकर अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध (1775-1783) लड़ा। सन् 1776 में, उन्होंने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की और पेरिस संधि (1783) पर हस्ताक्षर कर उस लक्ष्य को प्राप्त किया। स्वतंत्रता से पहले, यह तेरह उपनिवेश ब्रिटिश अमेरिका के दो दर्जन अलग-अलग कालोनियों में बटे थे। ब्रिटिश वेस्ट इंडीज, न्यूफाउंडलैंड, क्युबेक, नोवा स्कॉटिया और पूर्व और पश्चिम फ्लोरिडा के प्रांत समूचे युद्ध के दौरान राजशाही के प्रति वफादार रहे।

अफ़्रीका और दास व्यापार

नेदरलैंड के साथ स्पर्धा

फ़्रांस के संग वैश्विक संघर्ष

भारतीय उपमहाद्वीप पर ईस्ट इंडिया कंपनी की पकड़

शाह आलम दीवानी के अनुदान लॉर्ड क्लाइव को दिया।

अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी (इसके बाद, कंपनी) 1600 में कंपनी व्यापारियों की लंदन के ईस्ट इंडीज में व्यापार के रूप में स्थापित किया गया था यह 1612 में भारत में एक पैर जमाने बाद मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा दिए गए अधिकारों के एक कारखाने, या सूरत के पश्चिमी तट पर बंदरगाह में व्यापारिक पोस्ट 1640 में स्थापित की। विजयनगर शासक से इसी तरह की अनुमति प्राप्त करने के बाद आगे दक्षिण, एक दूसरे कारखाने के दक्षिणी तट पर मद्रास में स्थापित किया गया था। बंबई द्वीप, सूरत से अधिक दूर नहीं था, एक पूर्व पुर्तगाली चौकी ब्रागणसा की कैथरीन के चार्ल्स द्वितीय शादी में दहेज के रूप में इंग्लैंड के लिए भेंट की चौकी, 1668 में कंपनी द्वारा पट्टे पर दे दिया गया था। दो दशक बाद, कंपनी पूर्वी तट पर एक उपस्थिति के रूप में अच्छी तरह से स्थापित हुई और, गंगा नदी डेल्टा में एक कारखाने को कोलकाता में स्थापित किया गया था। के बाद से, इस समय के दौरान अन्य कंपनियों पुर्तगाली, डच, फ्रेंच और डेनिश थे इसी तरह इस क्षेत्र में विस्तार की स्थापना की, तटीय भारत पर अंग्रेजी कंपनी की शुरुआत भारतीय उपमहाद्वीप पर एक लंबी उपस्थिति निर्माण करे ईस का कोई सुराग पेशकश नहीं की।

प्लासी का पहला युद्ध 1757 में कंपनी ने रॉबर्ट क्लाइव के तहत जीत और 1764 बक्सर की लड़ाई (बिहार में) में एक और जीत,[13] कंपनी की शक्ति मजबूत हुई और सम्राट शाह आलम यह दीवान की नियुक्ति द्वितीय और बंगाल का राजस्व कलेक्टर, बिहार और उड़ीसा। कंपनी इस तरह 1773 से नीचा गंगा के मैदान के बड़े क्षेत्र के वास्तविक शासक बन गए। यह भी डिग्री से रवाना करने के लिए बम्बई और मद्रास के आसपास अपने उपनिवेश का विस्तार। एंग्लो - मैसूर युद्धों(1766-1799) और आंग्ल-मराठा युद्ध (1772-1818) के सतलुज नदी के दक्षिण भारत के बड़े क्षेत्रों के नियंत्रण स्थापित कर लिया।

कंपनी की शक्ति का प्रसार मुख्यतः दो रूपों लिया। इनमें से पहला भारतीय राज्यों के एकमुश्त राज्य-हरण और अंतर्निहित क्षेत्रों, जो सामूहिक रूप से ब्रिटिश भारत समावेश आया के बाद प्रत्यक्ष शासन था। पर कब्जा कर लिया क्षेत्रों उत्तरी प्रांतों (रोहिलखंड, गोरखपुर और दोआब शामिल) (1801), दिल्ली (1803) और सिंध (1843) शामिल हैं। पंजाब, उत्तर - पश्चिम सीमांत प्रांत और कश्मीर, 1849 में एंग्लो - सिख युद्धों के बाद कब्जा कर लिया गया है, तथापि, कश्मीर तुरंत जम्मू के डोगरा राजवंश अमृतसर (1850) की संधि के तहत बेच दिया है और इस तरह एक राजसी राज्य बन गया। बरार में 1854 पर कब्जा कर लिया गया था और दो ​​साल बाद अवध के राज्य।[14]

अमेरिकी उपनिवेशों का खोना

अमेरिका के स्वतंत्रता युद्ध ने यूरोपीय उपनिवेशवाद के इतिहास में एक नया मोड़ ला दिया। उसने अफ्रीका, एशिया एवं लैटिन अमेरिका के राज्यों की भावी स्वतंत्रता के लिए एक पद्धति तैयार कर दी। इस प्रकार अमेरिका के युद्ध का परिणाम केवल इतना ही नहीं हुआ कि 13 उपनिवेश मातृदेश ब्रिटेन से अलग हो गए बल्कि वे उपनिवेश एक तरह से नए राजनीतिक विचारों तथा संस्थाओं की प्रयोगशाला बन गए। पहली बार 16वीं 17वीं शताब्दी के यूरोपीय उपनिवेशवाद और वाणिज्यवाद को चुनौती देकर विजय प्राप्त की। अमेेरिकी उपनिवेशों का इंग्लैंड के आधिपत्य से मुक्ति के लिए संघर्ष, इतिहास के अन्य संघर्षों से भिन्न था। यह संघर्ष न तो गरीबी से उत्पन्न असंतोष का परिणाम था और न यहां कि जनता सामंतवादी व्यवस्था से पीडि़त थी। अमेरिकी उपनिवेशों ने अपनी स्वच्छंदता और व्यवहार में स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए इंग्लैंड सरकार की कठोर औपनिवेशिक नीति के विरूद्ध संघर्ष किया था। अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है।

यॉर्कटाउन में कॉर्नवॉलिस का आत्मसमर्पण: अमेरिकी उपनिवेशों के नुकसान को "पहले ब्रिटिश साम्राज्य" के अंत का चिह्नक माना जाता है।

अमेरिकी क्रन्तिकारी युद्ध ग्रेट ब्रिटेन और उसके तेरह उत्तर अमेरिकी उपनिवेशों के बीच एक सैन्य संघर्ष था, जिससे वे उपनिवेश स्वतन्त्र संयुक्त राज्य अमेरिका बने। शुरूआती लड़ाई उत्तर अमेरिकी महाद्वीप पर हुई। सप्तवर्षीय युद्ध में पराजय के बाद, बदले के लिए आतुर फ़्रान्स ने 1778 में इस नए राष्ट्र से एक सन्धि की, जो अंततः विजय के लिए निर्णायक साबित हुई।

इसकी शुरुआत लॉड नार्थ की चाय नीति-1773 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी को वित्तीय संकट से उबारने के लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री लॉर्ड नार्थ ने यह कानून बनाया कि कम्पनी सीधे ही अमेरिका में चाय बेच सकती है। अब पहले की भांति कम्पनी के जहाजों को इंग्लैंड के बंदरगाहों पर आने और चुंगी देने की आवश्यकता नहीं थी। इस कदम का लक्ष्य था कम्पनी को घाटे से बचाना तथा अमेरिकी लोगों को चाय उपलब्ध कराना। परन्तु अमेरिकी उपनिवेश के लोग कम्पनी के इस एकाधिकार से अप्रसन्न थे क्योंकि उपनिवेश बस्तियों की सहमति के बिना ही ऐसा नियम बनाया गया था। अतः उपनिवेश में इस चाय नीति का जमकर विरोध हुआ और कहा गया कि “सस्ती चाय” के माध्यम से इंग्लैंड बाहरी कर लगाने के अपने अधिकार को बनाए रखना चाहता था। अतः पूरे देश में चाय योजना के विरूद्ध आंदोलन शुरू हो गया। 16 दिसम्बर 73 को सैमुअल एडम्स के नेतृत्व में बॉस्टन बंदरगाह पर ईस्ट इंडिया कम्पनी के जहाज में भरी हुई चाय की पेटियों को समुद्र में फेंक दिया गया। अमेरिकी इतिहास में इस घटना को बोस्टन टी पार्टी कहा जाता है। इस घटना में ब्रिटिश संसद के सामने एक कड़ी चुनौती उत्पन्न की। अतः ब्रिटिश सरकार ने अमेरिकी उपनिवेशवासियों को सजा देने के लिए कठोर एवं दमनकारी कानून बनाए। बोस्टन बंदरगाह को बंद कर दिया गया। मेसाचुसेट्स की सरकार को पुनर्गठित किया गया और गवर्नर की शक्ति को बढ़ा दिया गया तथा सैनिकों को नगर में रहने का नियम बनाया गया और हत्या संबंधी मुकदमें अमेरिकी न्यायालयों से इंग्लैंड तथा अन्य उपनिवेशों में स्थानांतरित कर दिए गए।

"दूसरा" साम्राज्य

प्रशांत अन्वेषण

नेपोलियन-शासित फ़्रांस के साथ युद्ध

दास प्रथा का अंत

पश्चिम में दासप्रथा उन्मूलन संबंधी वातावरण 18वीं शती में बनने लगा था। अमरीकी स्वातंत्र्य युद्ध का एक प्रमुख नारा मनुष्य की स्वतंत्रता था और फलस्वरूप संयुक्त राज्य के उत्तरी राज्यों में सन् 1804 तक दासताविरोधी वातावरण बनाने में मानवीय मूल अधिकारों पर घोर निष्ठा रखनेवाली फ्रांसीसी राज्यक्रांति का अधिक महत्व है। उस महान क्रांति से प्रेरणा पाकर सन् 1821 में सांतो दोमिंगो में स्पेन के विरुद्ध विद्रोह हुआ और हाईती के हब्शी गणराज्य की स्थापना हुई। अमरीकी महाद्वीपों के सभी देशों में दासताविरोधी आंदोलन प्रबल होने लगा।

संयुक्त राज्य अमरीका के उदारवादी उत्तर राज्यों में दासता का विरोध जितना प्रबल होता गया उतनी ही प्रतिक्रियावादी दक्षिण के दास राज्यों में दासों के प्रति कठोरता बरती जाने लगी तथा यह तनाव इतना बढ़ा कि अंतत: उत्तरी तथा दक्षिणी राज्यों के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में अब्राहम लिंकन के नेतृत्व में दासविरोधी एकतावादी उत्तरी राज्यों की विजय हुई। सन् 1888 के अधिनियम के अनुसार संयुक्त राज्य में दासता पर खड़े पुर्तगाली ब्राजील साम्राज्य का पतन हुआ। शनै: शनै: अमरीकी महाद्वीपों के सभी देशों से दासता का उन्मूलन होने लगा। 1890 में ब्रसेल्स के 18 देशों के सम्मेलन में हब्श दासों के समुद्री व्यापार को अवैधानिक घोषित किया गया। 1919 के सैंट जर्मेन संमेलन में तथा 1926 के लीग ऑव नेशंस के तत्वावधान में किए गए संमेलन में हर प्रकार की दासता तथा दासव्यापार के संपूर्ण उन्मूलन संबंधी प्रस्ताव पर सभी प्रमुख देशों ने हस्ताक्षर किए। ब्रिटिश अधिकृत प्रदेशों में सन् 1833 में दासप्रथा समाप्त कर दी गई और दासों को मुक्त करने के बदले में उनके मालिकों को दो करोड़ पौंड हरजाना दिया गया। अन्य देशों में कानूनन इसकी समाप्ति इन वर्षों में हुई - भारत 1846, स्विडेन 1859, ब्राजिल 1871, अफ्रिकन संरक्षित राज्य 1897, 1901, फिलिपाइन 1902, अबीसीनिया 1921। इस प्रकार 20वीं शती में प्राय: सभी राष्ट्रों ने दासता को अमानवीय तथा अनैतिक संस्था मानकर उसके उन्मूलनार्थ कदम उठाए। संभवत: अफ्रीका में अंगोला जैसे पुर्तगाली उपनिवेशों की तरह के दो एक अपवादों को छोड़कर इस समय कहीं भी उस भयावह दासव्यवस्था का संस्थात्मक अस्तिव नहीं है जो आज की पाश्चत्य सभ्यता की समृद्धि तथा वैभव का एक प्रधान आधार रही है।

भारत पर कंपनी राज और ब्रिटिश राज

यद्यपि 1857 के विद्रोह ने ब्रितानी उद्यमियों को हिलाकर रख दिया और वो इसे रोक नहीं पाये थे। इस गदर के बाद ब्रितानी और अधिक चौकन्ने हो गये और उन्होंने आम भारतीयों के साथ संवाद बढ़ाने का पर्यत्न किया तथा विद्रोह करने वाली सेना को भंग कर दिया।[15] प्रदर्शन की क्षमता के आधार पर सिखों और बलूचियों की सेना की नई पलटनों का निर्माण किया गया। उस समय से भारत की स्वतंत्रता तक यह सेना कायम रही।[16] 1861 की जनगणना के अनुसार भारत में अंग्रेज़ों की कुल जनसंख्या 125,945 पायी गई। इनमें से केवल 41,862 आम नागरिक थे बाकी 84,083 यूरोपीय अधिकारी और सैनिक थे।[17] 1880 में भारतीय राजसी सेना में 66,000 ब्रितानी सैनिक और 130,000 देशी सैनिक शामिल थे।[18]

यह भी पाया गया कि रियासतों के मालिक और जमींदारों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया था जिसे लॉर्ड कैनिंग के शब्दों में "तूफान में बांध" कहा गया।[15] उन्हें ब्रितानी राज सम्मानित भी किया गया और उन्हें आधिकारिक रूप से अलग पहचान तथा ताज दिया गया।[16] कुछ बड़े किसानों के लिए भूमि-सुधार कार्य भी किये गये जिसे बादमें 90 वर्षों तक वैसा ही रखा गया।

अन्त में ब्रितानियों ने सामाजिक परिवर्तन से भारतीयों के मोहभंग को महसूस किया। विद्रोह तक वो उत्साहपूर्वक सामाजिक परिवर्तन से गुजरे जैसे लॉर्ड विलियम बेंटिंक ने सती प्रथा पर रोक लगा दी।[15] उन्होंने यह भी महसूस किया कि भारत की परम्परा और रिति रिवाज बहुट कठोर तथा दृढ़ हैं जिन्हें आसानी से नहीं बदला जा सकता; तत्पश्चात और अधिक, मुख्यतः धार्मिक मामलों से सम्बद्ध ब्रितानी सामाजिक हस्तक्षेप नहीं किये गये।

रूस के संग संघर्ष

अफ्रीका पर पकड़

श्वेत उपनिवेशों में स्वशासन

शीत युद्ध

1962 में हुए प्रहार जिसे शीत युद्ध कहते हैं

शीत युद्ध का चरम बिन्दु"क्यूबा का मिसाइल संकट"था/

यह युद्ध 1962 में क्यूबा जो एक अमेरिकी तटीय स्थित व्दीपीय देश है वहां अमरीका की सीमा पर रुस ने मिसाइले तैनात कर दी थी।

विश्वयुद्ध

प्रथम विश्वयुद्ध

अन्तरयुद्ध काल

द्वितीय विश्वयुद्ध

विउपनिवेशीकरण और पतन

विरासत

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Ferguson, Niall (2004). Empire, The rise and demise of the British world order and the lessons for global power. Basic Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-465-02328-2.
  2. "ब्रिटिश राजशाही: महारानी और राष्ट्रमंडल". मूल से 25 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 मार्च 2020.
  3. Andrews 1985, p. 45.
  4. Ferguson 2004b, पृ॰ 4.
  5. Canny, p. 35.
  6. Koebner, Richard (May 1953). "The Imperial Crown of This Realm: Henry VIII, Constantine the Great, and Polydore Vergil". Historical Research. 26 (73): 29–52. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 1468-2281. डीओआइ:10.1111/j.1468-2281.1953.tb02124.x.
  7. Canny, p. 62.
  8. Lloyd, pp. 4–8.
  9. "आयरलैण्ड", विकिपीडिया, 2023-06-13, अभिगमन तिथि 2024-08-27
  10. Canny, p. 7.
  11. Kenny, p. 5.
  12. Taylor, pp. 119,123.
  13. "ब्रिटेन भारत से कितनी दौलत लूट कर ले गया?". मूल से 18 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 मार्च 2020.
  14. Ludden 2002, पृष्ठ 135
  15. Spear 1990, पृष्ठ 147
  16. Spear 1990, पृष्ठ 147–148
  17. European Madness and Gender in Nineteenth-century British India Archived 2008-07-04 at the वेबैक मशीन, सोशल हिस्ट्री ऑफ़ मेडिसिन 1996 9(3):357-382
  18. रोबिन्सन, रोनाल्ड एडवर्ड & जॉन गल्लाफर, 1968. Africa and the Victorians: The Climax of Imperialism. गार्डन सिटी, एन॰वाय॰: डबलडे [1]

बाहरी कड़ियाँ