ब्रिटिश राज का इतिहास
ब्रिटिश राज का इतिहास, 1858 और 1947 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश शासन की अवधि को संदर्भित करता है।[1] शासन प्रणाली को 1858 में स्थापित किया गया था जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता को महारानी विक्टोरिया के हाथों में सौंपते हुए राजशाही के अधीन कर दिया गया (और विक्टोरिया को 1876 में भारत की महारानी घोषित किया गया)।[2] यह 1947 तक चला, जब ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य को संपूर्ण-प्रभुत्व-सम्पन्न दो देशों में विभाजित कर दिया गया: भारतीय संघ (बाद में भारतीय गणराज्य) और पाकिस्तान रियासत (बाद में पाकिस्तानी इस्लामी गणतंत्र, जिसका पूर्वी भाग बाद में बांग्लादेश गणराज्य बना). भारतीय साम्राज्य के पूर्वी क्षेत्र में बर्मा प्रांत को 1937 में एक अलग उपनिवेश बनाया गया और वह 1948 में स्वतंत्र हुआ।
प्रस्तावना
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
19वीं शताब्दी के दूसरे भाग में ब्रिटिश राजशाही द्वारा भारत का प्रत्यक्ष प्रशासन और औद्योगिक क्रांति से शुरु हुआ प्रौद्योगिकी परिवर्तन,दोनों ने ग्रेट ब्रिटेन और भारत की अर्थव्यवस्थाओं को नज़दीकी रूप से मिला दिया.[3] बल्कि परिवहन और संचार (जो आम तौर पर भारत के राजशाही शासन से जुड़े हैं) के कई बड़े बदलाव वास्तव में गदर से पहले ही शुरू हो गए थे। चूंकि डलहौजी ने प्रौद्योगिकीय परिवर्तन को अपनाया जो उस वक्त ग्रेट ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर चल रहा था, भारत ने भी उन सभी प्रौद्योगिकी का तेजी से विकास देखा. रेलवे, सड़क, नहर और पुल को भारत में तेज़ी से बनाया गया और साथ ही टेलीग्राफ लिंकों को भी स्थापित किया गया ताकि कच्चे माल, जैसे कि कपास को भारत के सुदूर क्षेत्रों से बंबई जैसे बंदरगाहों के लिए प्रभावी रूप से भेजा जा सके और उसे फिर इंग्लैंड निर्यात किया जा सके.[4] इसी तरह, इंग्लैंड में तैयार माल को तेज़ी से बढ़ते भारतीय बाज़ार में बिक्री के लिए वापस उसी कुशलतापूर्वक भेजा जाता था।[5] हालांकि, खुद ब्रिटेन के विपरीत, जहां बुनियादी सुविधाओं के विकास में जोखिम, निजी निवेशकों द्वारा वहन किये जाते थे, भारत में करदाताओं-मुख्य रूप से किसान और कृषि मजदूरों- को जोखिम सहना पड़ता था, जो अंत में, 50 मीलियन पाउंड होता था।[6] इन लागतों के बावजूद, भारतीयों के लिए बहुत कम कुशल रोजगार सृजित किये गए। 1920 तक, विश्व में चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क अपने निर्माण के 60 वर्षों के इतिहास के साथ भारतीय रेल में "बेहतर पदों" पर केवल दस फीसदी भारतीय काबिज थे।[7]
प्रौद्योगिकी की बाढ़ भी भारत में कृषि अर्थव्यवस्था को बदल रही थी: 19वीं सदी के आखिरी दशक में, कच्चे माल की बड़ी मात्रा- न केवल कपास, बल्कि कुछ खाद्यान्न- को सुदूर बाज़ारों में निर्यात किया गया।[8] नतीजतन, कई छोटे किसानों ने, जो उन बाजारों के उतार-चढ़ाव पर निर्भर थे, सूदखोरों के हाथों अपनी भूमि, पशुधन और उपकरणों को गंवा दिया.[8] अधिक प्रभावशाली ढंग से, 19वीं सदी के उत्तरार्ध में भारत में अकाल पड़े जो बड़े पैमाने पर गंभीर थे। हालांकि अकाल इस उपमहाद्वीप के लिए नए नहीं थे, लेकिन ये गंभीर थे, जिसके चलते लाखों लोग मारे गए[9] और कई ब्रिटिश और भारतीय आलोचकों ने इसके लिए भीमकाय औपनिवेशिक प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया.[8]
- भारतीय रेलवे का 1909 का नक्शा, जब भारत का रेलवे नेटवर्क विश्व में चौथा सबसे बड़ा था। भारत में रेलवे निर्माण 1853 में शुरू हुआ।
- "विश्व का सबसे शानदार रेलवे स्टेशन." विक्टोरिया टर्मिनस, मुंबई की स्टीरियोग्राफिक छवि, जो 1888 में पूरा हुआ था।
- आगरा नहर (लगभग 1873), पूर्ण होने से एक साल दूर. नहर को 1904 में आवागमन के लिए बंद कर दिया गया था ताकि सिंचाई में वृद्धि हो सके और अकाल की रोकथाम में सहायता मिले.
- लॉर्ड रिपन, भारत का उदार वायसराय, जिसने अकाल संहिता का गठन किया
स्वशासन की शुरुआत
ब्रिटिश भारत में स्व-शासन की ओर पहला कदम 19वीं सदी में उठाया गया जब ब्रिटिश वाइसराय को सलाह देने के लिए भारतीय सलाहकारों की नियुक्ति की गई और भारतीय सदस्यों वाली प्रांतीय परिषदों का गठन किया गया; ब्रिटिश ने बाद में भारतीय परिषद अधिनियम 1892 के साथ विधायी परिषदों में भागीदारी को और विस्तृत किया। नगर निगम और जिला बोर्ड को स्थानीय प्रशासन के लिए बनाया गया; उनमें चुने हुए भारतीय सदस्य शामिल थे।
1909 का भारत सरकार अधिनियम - जिसे मॉर्ले-मिंटो सुधार के रूप में भी जाना जाता है (जॉन मॉर्ले भारत के लिए राज्य सचिव था और गिल्बर्ट इलियट, मिंटो का चौथा अर्ल, वाइसराय था) - ने केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं में जिसे विधान परिषद के रूप में जाना जाता था भारतीयों को सीमित भूमिकाएं सौंपी. भारतीयों को इससे पहले विधान परिषदों में नियुक्त किया गया था, लेकिन सुधार के बाद उन्हें इसके लिए चुना जाने लगा. केंद्र में परिषद के अधिकांश सदस्य सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी ही थे और वाइसराय किसी भी रूप में विधायिका के प्रति जिम्मेदार नहीं था। प्रांतीय स्तर पर अनौपचारिक रूप से नियुक्त सदस्यों के साथ निर्वाचित सदस्यों की संख्या नियुक्त अधिकारियों से अधिक थी, लेकिन विधायिका के प्रति राज्यपाल के दायित्वों पर विचार नहीं किया गया था। मॉर्ले ने ब्रिटिश संसद में इस नियम को पेश करते समय यह स्पष्ट कर दिया था कि संसदीय स्वशासन ब्रिटिश सरकार का लक्ष्य नहीं था।
मॉर्ले-मिंटो सुधार मील का पत्थर थे। कदम दर कदम, भारतीय विधान परिषद में सदस्यता के लिए ऐच्छिक सिद्धांत को शुरू किया गया। "निर्वाचन क्षेत्र" उच्च वर्ग के भारतीयों के एक छोटे समूह के लिए सीमित था। ये निर्वाचित सदस्य "आधिकारिक सरकार" के एक "विरोधी" बन गए। जातीय निर्वाचन क्षेत्र को बाद में अन्य समुदायों में विस्तारित किया गया और धर्म के माध्यम से समूह की पहचान करने की भारतीय प्रवृत्ति का एक राजनैतिक पहलू बन गया।
- जॉन मॉर्ले, 1905 से 1910 तक भारत का राज्य सचिव और ग्लैडस्टोनियन लिबरल. 1909 का भारत सरकार अधिनियम, जिसे मॉर्ले-मिंटो सुधार के रूप में भी जाना जाता है ने भारतीयों को विधान परिषद में निर्वाचित होने की अनुमति दी.
- 12 दिसम्बर 1911 को दिल्ली दरबार में किंग जॉर्ज पंचम और महारानी मेरी के सामने से मार्च करते गॉर्डन हाईलैंडर की पोस्ट कार्ड छवि जब किंग को भारत के राजा का ताज पहनाया गया।
- मेसोपोटामिया में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मेसोपोटेमिया अभियान सेना के घायल सैनिकों का उपचार कर रहे भारतीय चिकित्सा टुकड़ी.
- सिपाही खुदादाद खान, प्रथम भारतीय जिन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया, जो युद्ध में वीरता के लिए ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा प्रदान किया जाने वाला उच्चतम पदक था। खान, जो वर्तमान पाकिस्तान में स्थित चकवाल जिले, पंजाब के रहने वाले थे, उनकी 1971 में मृत्यु हो गई।
प्रथम विश्व युद्ध और उसका परिणाम
प्रथम विश्व युद्ध, भारत और ब्रिटेन के बीच शाही संबंध के लिए एक विभाजक साबित हुआ। युद्ध में ब्रिटिश इंडियन आर्मी के 1.4 मीलियन भारतीय और ब्रिटिश सैनिकों ने भाग लिया और युद्ध में उनकी भागीदारी से व्यापक सांस्कृतिक प्रभाव पड़े: ब्रिटिश सैनिकों के साथ युद्ध में हिस्सा ले रहे और मर रहे भारतीय सैनिकों की खबर और साथ ही कनाडाई और ऑस्ट्रेलियाई उपनिवेश के सैनिकों की खबर अखबारों और रेडियो के नवीन माध्यम से विश्व के सुदूर क्षेत्रों में फैली.[10] भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत उसके बाद बढ़ी और 1920 के दशक में उभरती रही.[10] इसके परिणामस्वरूप भारत 1920 में लीग ऑफ नेशंस का एक संस्थापक सदस्य बन गया और usne एंटवर्प में 1920 के greeshm ओलंपिक में "लेस इंडस अन्ग्लैसेस" (ब्रिटिश इंडीज) नाम के तहत हिस्सा लिया।[11] यहां भारत में विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं के बीच भारतीयों के लिए अधिक स्व-शासन की मांग उठने लगी.[10]
1916 में, लखनऊ संधि पर हस्ताक्षर होने के साथ ही राष्ट्रवादियों द्वारा प्रदर्शित की गई नई शक्ति और होम रूल लीग की स्थापना और मेसोपोटेमिया अभियान में विफलता के बाद यह एहसास कि युद्ध लंबा चल सकता है, नए वाइसराय, लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने सतर्क किया कि भारत की सरकार को भारतीय मांगों के प्रति अधिक उत्तरदायी होने की ज़रूरत है।[12] वर्ष के अंत में, लंदन में सरकार के साथ विचार विमर्श के बाद उन्होंने सुझाव दिया कि युद्ध में भारतीयों की भूमिका के मद्देनजर ब्रिटिश लोगों को उनके प्रति बेहतर विश्वास जताना चाहिए और विभिन्न सार्वजनिक कार्यों के माध्यम से जिसमें शामिल हैं राजाओं को पुरस्कार और खिताब का सम्मान, सेना में भारतीयों को कमीशन देना और कपास पर अत्यधिक धिक्कारित आबकारी कर को हटा कर ऐसा किया जाना चाहिए, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है, भारत के लिए ब्रिटेन की भावी योजना और कुछ ठोस कदम का संकेत देना.[12] अधिक चर्चा के बाद, अगस्त 1917 में, नए लिबरल, भारत के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट एडविन मोंटेगू ने ब्रिटिश उद्देश्य की घोषणा की जिसके तहत "प्रशासन की हर शाखा में भारतीयों की बढ़ती भागीदारी और स्व-शासी संस्थाओं का क्रमिक विकास किया जाएगा, ताकि ब्रिटिश साम्राज्य के अभिन्न हिस्से के रूप में भारत में एक जिम्मेदार सरकार को स्थापित किया जा सके."[12] इससे शिक्षित भारतीयों में एक बार फिर विश्वास पैदा किया गया, जिन्हें अब तक पृथक अल्पसंख्यक के रूप में तिरस्कृत किया गया था, जिन्हें मोंटेगू ने "बौद्धिक रूप से हमारे बच्चे" कह कर वर्णित किया।[13] सुधारों की गति को ब्रिटेन द्वारा निर्धारित किया जाना था जिन्होंने महसूस किया भारतीयों ने इसके लिए अपनी अधिकारिता को साबित किया था।[13] लेकिन, यद्यपि योजना के तहत सीमित स्वशासन को शुरुआत में केवल प्रान्तों तक सीमित रखा जाना था - चूंकि भारत प्रभावी रूप से ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत था - इसने एक गैर-श्वेत उपनिवेश में किसी भी प्रकार की प्रतिनिधि सरकार के लिए प्रथम ब्रिटिश प्रस्ताव को प्रदर्शित किया।
इससे पहले प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत पर, भारत की अधिकांश ब्रिटिश सेना की यूरोप और मेसोपोटामिया में पुनः तैनाती के कारण पूर्व वायसराय लॉर्ड हार्डिंग को "भारत से सेना हटाने में निहित खतरे" के प्रति चिंतित कर दिया था।[10] क्रांतिकारी हिंसा पहले से ही ब्रिटिश भारत में एक चिंता का विषय थी; इसके परिणामस्वरूप 1915 में, नाज़ुक हालातों को देखते हुए अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए, भारत सरकार ने डिफेन्स ऑफ़ इंडिया एक्ट पारित किया, जिसने उसे राजनीतिक रूप से खतरनाक विरोधियों को बिना किसी आवश्यक प्रक्रिया के हिरासत में लेने का अधिकार सौंपा और 1910 के प्रेस अधिनियम के तहत मिले अधिकार के अलावा उन्हें और अधकार दिए जिसके दम पर वे पत्रकारों को बिना किसी मुकदमे के कैद कर सकते थे और प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा सकते थे।[14] पर अब, जब संवैधानिक सुधार पर गंभीरता से चर्चा होने लगी, ब्रिटिश ने विचार करना शुरू किया कि कैसे नए उदारवादी भारतीयों को संवैधानिक राजनीति में लाया जाए और साथ ही साथ स्थापित संवैधानवादियों के हाथ कैसे मज़बूत किये जाएं.[14] बहरहाल, सुधार योजना को एक ऐसे समय में तैयार किया गया था जब युद्ध काल के सरकारी नियंत्रण के परिणामस्वरूप उग्रपंथी हिंसा दब गई थी और अब क्रांतिकारी हिंसा के एक बार फिर उभरने की आशंका थी,[13] सरकार ने यह भी योजना बनानी शुरू कर दी थी कि कैसे युद्ध काल की शक्तियों को शांति काल में विस्तारित किया जाए.[14][14]
इसके परिणामस्वरूप 1917 में, तब भी जब एडविन मोंटेगू ने नए संवैधानिक सुधारों की घोषणा की, ब्रिटिश जज, मिस्टर एस.ए.टी. रोलेट की अध्यक्षता में एक राजद्रोह समिति को युद्धकालिक क्रांतिकारी षड्यंत्र और भारत में हिंसा के लिए जर्मन और बोल्शेविक संबंधों की जांच का जिम्मा सौंपा गया[15][16][17] जिसका अनकहा लक्ष्य सरकार की युद्धकाल की शक्तियों को विस्तारित करना था।[12] रोलेट कमेटी ने जुलाई 1918 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और षड़यंत्रपूर्ण विद्रोह के तीन क्षेत्रों की पहचान की: बंगाल, बम्बई और पंजाब.[12] इन क्षेत्रों में विध्वंसक कृत्यों का मुकाबला करने के लिए, समिति ने सिफारिश की कि सरकार को युद्धकाल की समानता वाले आपात अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें शामिल था बिना निर्णायक मंडल के तीन न्यायाधीशों के एक पैनल द्वारा राजद्रोह के मामलों का मुकदमा चलाना, संदिग्धों से प्रतिभूतियों की वसूली, संदिग्धों के घरों की सरकारी निगरानी,[12] और प्रांतीय सरकारों का संदिग्धों को बिना मुकदमे के गिरफ्तार करना और अल्प अवधि हिरासत में रखने का अधिकार.[18]
प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ, आर्थिक माहौल में भी एक बदलाव देखा गया। वर्ष 1919 की समाप्ति तक, 1.5 मीलियन भारतीयों ने सशस्त्र सेना में अपनी सेवाएं दीं, या तो लड़ाकू के रूप में या फिर गैर-लड़ाकू के रूप में और भारत ने युद्ध के लिए £146 मिलियन का राजस्व प्रदान किया।[19] घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अवरोधों के साथ-साथ करों में वृद्धि के फलस्वरूप 1914 और 1920 के बीच भारत में कीमतों के समग्र सूचकांक में लगभग दोगुनी वृद्धि हुई.[19] युद्ध से लौटने वाले सैनिकों के चलते, विशेष रूप से पंजाब में बेरोजगारी का संकट बढ़ गया[20] और युद्ध-पश्चात की मुद्रास्फीति ने बॉम्बे, मद्रास और बंगाल प्रान्तों में खाद्य दंगों को भड़काया,[20] और इस स्थिति को 1918-19 के मानसून और मुनाफाखोरी और सट्टेबाज़ी ने और भी भयावह बना दिया.[19] वैश्विक इन्फ्लूएंजा महामारी और 1917 की बोल्शेविक क्रान्ति ने जनमानस को और भयग्रस्त किया; पहले वाले ने पहले से ही आर्थिक संकट का सामना कर रही आबादी को डराया,[20] और दूसरे वाले ने सरकारी अधिकारियों को, जिन्हें भारत में ऐसी ही क्रांति होने का भय था।[21]
संभावित संकट का मुकाबला करने के लिए, सरकार ने रोलेट समिति की सिफारिशों को दो रोलेट विधेयक के मसौदे के रूप में तैयार किया।[18] यद्यपि ये विधेयक एडविन मोंटेगू द्वारा विधायी विचारार्थ अधिकृत थे, इसे बड़ी अन्यमनस्कता से किया गया कि और साथ में यह घोषणा की गई, "पहली नज़र में मैं इस सुझाव की निंदा करता हूं कि भारत रक्षा अधिनियम को शान्ति काल में भी संरक्षित किया जाए, वह भी इस हद तक जितना रोलेट और उनके मित्र आवश्यक समझते हैं।"[12] इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में आगामी चर्चा और मतदान में, सभी भारतीय सदस्यों ने विधेयक के विरोध में आवाज उठाई. फिर भी भारत सरकार ने अपने "आधिकारिक बहुमत" का प्रयोग करते हुए 1919 के पूर्वार्ध में इन विधेयक को पारित करने में सफल हुई.[12] हालांकि, इसने भारतीय विपक्ष के सम्मान में जो पारित किया वह पहले विधेयक का लघु संस्करण था, जिसने अतिरिक्त न्यायिक शक्तियां प्रदान की, लेकिन वास्तव में तीन साल की अवधि के लिए और केवल "अराजक और क्रांतिकारी आंदोलनों" के अभियोजन के लिए और भारतीय दंड संहिता के संशोधन संबंधित दूसरे विधेयक को छोड़ दिया गया।[12] फिर भी, जब इसे पारित किया गया तब इस नए रोलेट एक्ट ने भारत भर में व्यापक रोष जगाया और राष्ट्रवादी आंदोलन के अगुआ के रूप में मोहनदास गांधी को प्रस्तुत किया।[18]
इस बीच, मोंटेगू और चेम्सफोर्ड ने खुद अंत में पिछली सर्दियों में भारत में एक लम्बी तथ्य खोजी यात्रा के बाद जुलाई 1918 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की.[22] ब्रिटेन में संसद और सरकार के बीच काफी चर्चा के बाद और और भारत की जनसंख्या के बीच भावी चुनाव में कौन मतदान कर सकता है इसकी पहचान के उद्देश्य से फ्रेंचाईज़ एंड फंक्शन कमिटी की एक अन्य यात्रा के पश्चात, भारत सरकार अधिनियम 1919 (मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार के रूप में भी ज्ञात) को दिसंबर 1919 में पारित किया गया।[22] नए अधिनियम ने प्रांतीय परिषदों को अधिक बड़ा किया और इम्पीरियल विधान परिषद को एक विशाल केन्द्रीय विधान परिषद में परिवर्तित किया। इसने, "आधिकारिक बहुमत" को प्रतिकूल वोटों के रूप में भारत सरकार के सहारे को निरसित कर दिया.[22] यद्यपि रक्षा, विदेशी मामले, आपराधिक कानून, संचार और आय कर जैसे विभाग वायसराय और नई दिल्ली में केन्द्रीय सरकार के अधीन ही थे, अन्य विभाग जैसे कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, भू-राजस्व और स्थानीय स्व-शासन को प्रान्तों को हस्तांतरित कर दिया गया था।[22] स्वयं प्रांतों को अब नए द्विशासन प्रणाली के तहत प्रशासित किया जाना था, जहां कुछ क्षेत्र जैसे शिक्षा, कृषि, बुनियादी ढांचे का विकास और स्थानीय स्व-शासन और अंततः भारतीय चुनाव क्षेत्र भारतीय मंत्रियों और विधायिकाओं के अधीन आ गए, जबकि सिंचाई, भू-राजस्व, पुलिस, जेल और मीडिया नियंत्रण ब्रिटिश गवर्नर और उसकी कार्यकारी परिषद के दायरे के भीतर बने रहे.[22] नए कानून ने भारतीयों के लिए सिविल सेवा और सेना अधिकारी कोर में भर्ती होने को भी आसान कर दिया.
भारतीयों की अब एक बड़ी संख्या को मताधिकार मिल गया, यद्यपि, राष्ट्रीय स्तर के मतदान में, वे कुल वयस्क पुरुष जनसंख्या का 10% ही थे, जिनमें से कई अभी भी निरक्षर थे।[22] प्रांतीय विधायिकाओं में, ब्रिटिश ने कुछ नियंत्रण बनाए रखा जिसके लिए उन्होंने सीटों को विशेष हितों के लिए अलग रखा जिसे वे सहकारी या उपयोगी मानते थे। विशेष रूप से, ग्रामीण उम्मीदवारों को जो आमतौर पर ब्रिटिश शासन के प्रति सहानुभूति रखते थे और कम विरोधी थे, उन्हें शहरी समकक्षों की तुलना में अधिक सीटें मिलती थीं।[22] गैर-ब्राह्मण, जमींदारों, व्यापारियों और कॉलेज के स्नातकों के लिए भी सीटें आरक्षित थी। मिंटो-मॉर्ले सुधारों का अभिन्न हिस्सा, "सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व" का सिद्धांत और अधिक हाल में कांग्रेस-मुस्लिम लीग लखनऊ संधि, की पुनः पुष्टि की गई, जिसके तहत सीटों को मुस्लिम, सिख, भारतीय ईसाई, एंग्लो-इंडियन और अधिवासित यूरोपियों के लिए प्रांतीय और इंपीरियल विधायी परिषदों, दोनों जगह आरक्षित किया गया।[22] मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधारों ने भारतीयों को विधायी शक्ति का प्रयोग करने का अब तक का सबसे महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किया, विशेष रूप से प्रांतीय स्तर पर; लेकिन वह अवसर भी मतदाताओं की सीमित संख्या के आधार पर, प्रांतीय विधानसभाओं के लिए उपलब्ध लघु बजट के आधार पर और ग्रामीण और विशेष हित वाली सीटें जिन्हें ब्रिटिश नियंत्रण के उपकरणों के रूप में देखा जाता था, प्रतिबंधित किया गया था।[22]
1930 का दशक: भारत सरकार अधिनियम (1935)
1935 में, गोलमेज सम्मेलन के बाद, ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम को मंजूरी दे दी, जिसने ब्रिटिश भारत के सभी प्रान्तों में स्वतन्त्र विधानसभाओं की स्थापना, एक केंद्रीय सरकार का निर्माण जिसमें ब्रिटिश प्रांत और राजघराने, दोनों शामिल होंगे और मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को अधिकृत कर दिया.[5] आगे चलकर स्वतंत्र भारत के संविधान ने इस अधिनियम से काफी कुछ ग्रहण किया।[23] इस अधिनियम ने एक द्विसदनीय राष्ट्रीय संसद और ब्रिटिश सरकार के दायरे में एक कार्यकारी शाखा का भी प्रावधान प्रस्तुत किया। हालांकि राष्ट्रीय महासंघ कभी अस्तित्व में नहीं आया, प्रांतीय विधानसभाओं के लिए देशव्यापी चुनाव 1937 में आयोजित किये गए। प्रारंभिक हिचकिचाहट के बावजूद, कांग्रेस ने चुनाव में भाग लिया और ब्रिटिश भारत के ग्यारह में से सात प्रान्तों में जीत हासिल की[24] और इन प्रान्तों में व्यापक शक्तियों के साथ कांग्रेस की सरकार का गठन किया गया। ग्रेट ब्रिटेन में, जीत की इन घटनाओं ने भारतीय स्वतंत्रता के विचार के ज्वार उभारा.[24]
द्वितीय विश्वयुद्ध
1939 में द्वितीय युद्ध के शुरू होने पर, वाइसराय, लॉर्ड लिनलिथगो ने बिना भारतीय नेताओं से परामर्श किये भारत की ओर से युद्ध घोषित कर दिया, जिसके चलते कांग्रेस प्रांतीय मंत्रालयों ने विरोध में इस्तीफा दे दिया. इसके विपरीत मुस्लिम लीग ने युद्ध के प्रयासों में ब्रिटेन का समर्थन किया; लेकिन अब यह विचार पनपने लगा कि कांग्रेस के वर्चस्व वाले स्वतन्त्र भारत में मुसलमानों के साथ गलत तरीके से व्यवहार किया जाएगा. ब्रिटिश सरकार ने अपने क्रिप्स मिशन के माध्यम से युद्ध की खातिर भारतीय राष्ट्रवादियों के सहयोग को प्राप्त करने का प्रयास किया जिसके बदले में स्वतंत्रता का वादा किया गया; लेकिन, कांग्रेस और उनके बीच वार्ता खंडित हो गई। गांधी ने, बाद में अगस्त 1942 में "भारत छोड़ो" आंदोलन शुरू किया और मांग की कि अंग्रेज तुरंत भारत से वापस चले जायें अन्यथा उन्हें राष्ट्रव्यापी नागरिक अवज्ञा का सामना करना पड़ेगा. कांग्रेस के अन्य सभी नेताओं के साथ, गांधी को तुरंत कैद कर लिया गया और पूरे देश भर में छात्रों की अगुआई में हिंसक प्रदर्शन भड़क उठे और बाद में इसमें किसान, राजनितिक समूह भी शामिल हो गए, विशेष रूप से पूर्वी संयुक्त प्रांत, बिहार और पश्चिमी बंगाल में. युद्ध के प्रयोजन से भारत में मौजूद ब्रिटिश सेना की बड़ी संख्या ने, छह सप्ताह से कुछ अधिक समय में ही आंदोलन को कुचल दिया;[25] फिर भी, आंदोलन के एक हिस्से ने कुछ समय के लिए नेपाल की सीमा पर एक भूमिगत अस्थायी सरकार का गठन कर लिया।[25] भारत के अन्य भागों में, आंदोलन कम सहज और विरोध कम तीव्र था, लेकिन फिर भी यह 1943 की गर्मियों तक चला.[26]
कांग्रेस नेताओं के जेल में होने से, ध्यान सुभाष बोस पर गया, जिन्हें अपेक्षाकृत अधिक रूढ़िवादी हाई कमान के साथ मतभेद के बाद 1939 में कांग्रेस से निकाल दिया गया था;[27] बोस ने अब अपना रुख धुरी शक्तियों की तरफ किया ताकि भारत को बलपूर्वक आज़ाद कराया जा सके.[28] जापानी समर्थन के साथ, उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया, जिसमें मुख्य रूप से ब्रिटिश इंडियन आर्मी के भारतीय सिपाही थे जिन्हें सिंगापुर में पकड़ा गया था। युद्ध की शुरुआत से, जापानी गुप्त सेवा ने ब्रिटिश युद्ध प्रयासों को अस्थिर करने के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया में अशांति को बढ़ावा दिया था;[29] और उसने कब्जा किये गए क्षेत्रों में कई अस्थायी और कठपुतली सरकारों का समर्थन किया, जिसमें बर्मा, फिलीपींस और वियतनाम शामिल थे और साथ ही बोस की अध्यक्षता में आज़ाद हिंद की अस्थाई सरकार को भी.[30] बोस के प्रयास, हालांकि अल्पकालिक रहे; 1944 की फेर-बदल के बाद, प्रबल ब्रिटिश सेना ने 1945 में जापान के यू गो आक्रमण को पहले रोका और फिर पलट दिया और सफल बर्मा अभियान की शुरुआत की. बोस की आजाद हिंद फौज ने सिंगापुर पर पुनः कब्जा हो जाने के बाद आत्मसमर्पण कर दिया और उसके शीघ्र बाद बोस की मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हो गई। 1945 के उत्तरार्ध में लाल किले में आजाद हिंद फौज के सिपाहियों पर चलाये गए मुकदमे ने भारत में सार्वजनिक अशांति और राष्ट्रवादी हिंसा को भड़काया.[31]
सत्ता का हस्तांतरण
जनवरी 1946 में, सशस्त्र सेवाओं में कई विद्रोह भड़क उठे, जिसकी शुरुआत आरएएफ सैनिकों से हुई जो ब्रिटेन के लिए अपनी स्वदेश वापसी की धीमी गति से व्यथित थे।[32] फरवरी 1946 में ये विद्रोह मुंबई में हुए रॉयल इंडियन नेवी के विद्रोह के साथ ही अपने चरम पर पहुंच गए, जिसके बाद कलकत्ता, मद्रास और करांची में अन्य हुए. हालांकि इन विद्रोहों को तेज़ी से दबा दिया गया, इन्हें भारत में काफी सार्वजनिक समर्थन हासिल हुआ और इसने ब्रिटेन में नई लेबर सरकार की गतिविधियों को प्रोत्साहित किया, जिसके परिणामस्वरूप कैबिनेट मिशन को भारत भेजा गया जिसकी अध्यक्षता भारत के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट, लॉर्ड पेथिक लॉरेंस कर रहे थे और उनके साथ थे सर स्टैफोर्ड क्रिप्स जो यहां पूर्व में चार साल पहले आ चुके थे।[32]
इसके अलावा 1946 के शुरू में, भारत में नए चुनाव आयोजित किये गए जिसमें कांग्रेस को ग्यारह प्रान्तों में से आठ में जीत हासिल हुई.[33] कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच वार्ता, विभाजन के मुद्दे पर लड़खड़ा गई। जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को डाइरेक्ट एक्शन डे (सीधी कार्रवाई दिवस) घोषित किया और ब्रिटिश भारत में शांतिपूर्वक एक मुस्लिम राष्ट्र की मांग को लक्ष्य बनाया. अगले ही दिन कलकत्ता में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे और जल्दी ही पूरे भारत में फैल गइ. हालांकि, भारत सरकार और कांग्रेस, दोनों ही तेज़ी से बदलते घटनाक्रम से आवाक थे, सितंबर में, कांग्रेस के नेतृत्व वाली एक अंतरिम सरकार को स्थापित किया गया, जहां जवाहर लाल नेहरू एकजुट भारत के प्रधानमंत्री बने.
बाद में उस वर्ष, ब्रिटेन में लेबर सरकार ने, जिसका राजकोष हाल ही में समाप्त हुए द्वितीय विश्व युद्ध से खाली हो चुका था, भारत के ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का फैसला किया और 1947 के आरम्भ में ब्रिटेन ने जून 1948 तक सत्ता के हस्तांतरण के अपने इरादे की घोषणा की.
जैसे-जैसे स्वतंत्रता नज़दीक आती गई, पंजाब और बंगाल के प्रांतों में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हिंसा बेरोकटोक जारी रही. बढ़ती हुई हिंसा को रोक पाने में ब्रिटिश सेना की अक्षमता को देखते हुए, नए वाइसराय, लुईस माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की तारीख को आगे बढ़ा दिया, जिसके चलते स्वतंत्रता के लिए एक सर्वसम्मत योजना तैयार करने को छह महीने से कम बचे थे। जून 1947 में, राष्ट्रवादी नेताओं ने, जिनमें शामिल थे कांग्रेस की ओर से नेहरू और अबुल कलाम आज़ाद, मुस्लीम लीग का प्रतिनिधित्व करते जिन्ना, अछूतों का प्रतिनिधित्व करते बी.आर.अम्बेडकर और सिखों की तरफ से मास्टर तारा सिंह, धार्मिक आधार पर देश के विभाजन के लिए सहमती जताई. हिंदू और सिख के वर्चस्व वाले क्षेत्रों को नए भारत में शामिल किया गया और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान में; योजना के अंतर्गत पंजाब और बंगाल के मुस्लिम बहुल प्रांतों का विभाजन शामिल था।
लाखों मुसलमान, सिख और हिन्दू शरणार्थी इस नई खिंची सीमा को पैदल ही पार कर गए। पंजाब में, जहां इस नई विभाजन रेखा ने सिख क्षेत्रों को दो हिस्सों में बांटा, वहां इसके बाद भारी रक्तपात हुआ; बंगाल और बिहार में, जहां गांधी की उपस्थिति ने सांप्रदायिक गुस्से को शांत किया वहां हिंसा काफी हद तक कम थी। कुल मिला कर, नई सीमा के दोनों ओर के 250000 से 500000 लोग इस हिंसा में मारे गए।[34] 14 अगस्त 1947 को, पाकिस्तान की नई सत्ता अस्तित्व में आयी जहां मोहम्मद अली जिन्नाह ने गवर्नर जेनेरल के रूप में कराची में शपथ ग्रहण की. उसके अगले दिन, 15 अगस्त 1947 को, भारत जो अब एक लघु भारतीय संघ था, अब एक स्वतंत्र देश बन चुका था और नई दिल्ली में इसके सरकारी समारोह शुरू हो चुके थे और जिसमें जवाहरलाल नेहरु ने प्रधान मंत्री का पद सम्भाला और वाइसरॉय लुई माउंटबेटन, इसके गवर्नर जेनेरल बने रहे.
इन्हें भी देखें
- ब्रिटिश राज
- कंपनी राज
- भारत में कंपनी के नियम
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी
सन्दर्भ
- ↑ "ब्रिटेन भारत से कितनी दौलत लूट कर ले गया?". मूल से 18 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अगस्त 2018.
- ↑ "How Britain stole $45 trillion from India". मूल से 17 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 दिसंबर 2018.
- ↑ (Stein 2001, p. 259), (Oldenburg 2007)
- ↑ (Oldenburg 2007), (Stein 2001, p. 258)
- ↑ अ आ (Oldenburg 2007)
- ↑ (Stein 2001, p. 258)
- ↑ (Stein 2001, p. 159)
- ↑ अ आ इ (Stein 2001, p. 260)
- ↑ (Bose & Jalal 2003, p. 117)
- ↑ अ आ इ ई Brown 1994, पृष्ठ 197–198
- ↑ ओलिंपिक खेल एंटवर्प 1920: सरकारी रिपोर्ट Archived 2011-05-05 at the वेबैक मशीन, नोम्ब्रे डे बातिओन प्रतिनिधि, पी. 168. Quote: "31 Nations avaient accepté l'invitation du Comité Olympique Belge: ... la Grèce - la Hollande Les Anglaises Indes - l'Italie - le Japon ... "
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ Brown 1994, पृष्ठ 203–204
- ↑ अ आ इ Metcalf & Metcalf 2006, पृष्ठ 166
- ↑ अ आ इ ई Brown 1994, पृष्ठ 201–203
- ↑ Lovett 1920, पृष्ठ 94, 187–191
- ↑ Sarkar 1921, पृष्ठ 137
- ↑ Tinker 1968, पृष्ठ 92
- ↑ अ आ इ Spear 1990, पृष्ठ 190
- ↑ अ आ इ Brown 1994, पृष्ठ 195–196
- ↑ अ आ इ Stein 2001, पृष्ठ 304
- ↑ Ludden 2002, पृष्ठ 208
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ Brown 1994, पृष्ठ 205–207
- ↑ (Low 1993, pp. 40, 156)
- ↑ अ आ (Low 1993, p. 154)
- ↑ अ आ (Metcalf & Metcalf 2006, pp. 206–207)
- ↑ Bandyopadhyay 2004, पृष्ठ 418–420
- ↑ Nehru 1942, पृष्ठ 424
- ↑ (Low 1993, pp. 31–31)
- ↑ Lebra 1977, पृष्ठ 23
- ↑ Lebra 1977, पृष्ठ 31, (Low 1993, pp. 31–31)
- ↑ Chaudhuri 1953, पृष्ठ 349, Sarkar 1983, पृष्ठ 411, Hyam 2007, पृष्ठ 115
- ↑ अ आ (Judd 2004, pp. 172–173)
- ↑ (Judd 2004, p. 172)
- ↑ (Khosla 2001, p. 299)
टिप्पणियां
समकालीन सामान्य इतिहास
- Bandyopadhyay, Sekhar (2004), From Plassey to Partition: A History of Modern India, New Delhi and London: Orient Longmans. Pp. xx, 548., आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-250-2596-0[मृत कड़ियाँ] .
- Bose, Sugata; Jalal, Ayesha (2003), Modern South Asia: History, Culture, Political Economy, London and New York: Routledge, 2nd edition. Pp. xiii, 304, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-415-30787-2 .
- Brown, Judith M. (1994), Modern India: The Origins of an Asian Democracy, Oxford and New York: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. Pp. xiii, 474, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-873113-2, मूल से 3 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Copland, Ian (2001), India 1885-1947: The Unmaking of an Empire (Seminar Studies in History Series), Harlow and London: Pearson Longmans. Pp. 160, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-582-38173-8 .
- Judd, Dennis (2004), The Lion and the Tiger: The Rise and Fall of the British Raj, 1600-1947, Oxford and New York: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. Pp. xiii, 280, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-280358-1, मूल से 27 मार्च 2008 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Kulke, Hermann; Rothermund, Dietmar (2004), A History of India, 4th edition. Routledge, Pp. xii, 448, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-415-32920-5, मूल से 19 जुलाई 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Ludden, David (2002), India And South Asia: A Short History, Oxford: Oneworld Publications. Pp. xii, 306, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-85168-237-6, मूल से 16 जुलाई 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011
- Markovits, Claude (ed) (2005), A History of Modern India 1480-1950 (Anthem South Asian Studies), Anthem Press. Pp. 607, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-84331-152-6, मूल से 20 जनवरी 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: authors list (link) .
- Metcalf, Barbara; Metcalf, Thomas R. (2006), A Concise History of Modern India (Cambridge Concise Histories), Cambridge and New York: Cambridge University Press. Pp. xxxiii, 372, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-68225-8, मूल से 30 जनवरी 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Peers, Douglas M. (2006), India under Colonial Rule 1700-1885, Harlow and London: Pearson Longmans. Pp. xvi, 163, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-582-31738-X .
- Robb, Peter (2004), A History of India (Palgrave Essential Histories), Houndmills, Hampshire: Palgrave Macmillan. Pp. xiv, 344, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-333-69129-6 .
- Sarkar, Sumit (1983), Modern India: 1885-1947, Delhi: Macmillan India Ltd. Pp. xiv, 486, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-333-90425-7, मूल से 6 मई 2013 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 23 अक्तूबर 2019 .
- Spear, Percival (1990), A History of India, Volume 2, New Delhi and London: Penguin Books. Pp. 298, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-14-013836-6, मूल से 19 जुलाई 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Stein, Burton (2001), A History of India, New Delhi and Oxford: Oxford University Press. Pp. xiv, 432, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-565446-3, मूल से 19 जुलाई 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Wolpert, Stanley (2003), A New History of India, Oxford and New York: Oxford University Press. Pp. 544, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-516678-7, मूल से 19 जनवरी 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
मोनोग्राफ और संग्रह
- Anderson, Clare (2007), Indian Uprising of 1857–8: Prisons, Prisoners and Rebellion, New York: Anthem Press, Pp. 217, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-84331-249-9, मूल से 11 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011
- Ansari, Sarah (2005), Life after Partition: Migration, Community and Strife in Sindh: 1947–1962, Oxford and London: Oxford University Press, Pp. 256, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-597834-X
- Bayly, C. A. (1990), Indian Society and the Making of the British Empire (The New Cambridge History of India), Cambridge and London: Cambridge University Press. Pp. 248, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-38650-0 .
- Bayly, C. A. (2000), Empire and Information: Intelligence Gathering and Social Communication in India, 1780-1870 (Cambridge Studies in Indian History and Society), Cambridge and London: Cambridge University Press. Pp. 426, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-66360-1
- Brown, Judith M. (ed.); Louis (ed.), Wm. Roger (2001), Oxford History of the British Empire: The Twentieth Century, Oxford and New York: Oxford University Press. Pp. 800, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924679-3, मूल से 16 मार्च 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: authors list (link)
- Butalia, Urvashi (1998), The Other Side of Silence: Voices from the Partition of India, Durham, NC: Duke University Press, Pp. 308, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-8223-2494-6
- Chandavarkar, Rajnarayan (1998), Imperial Power and Popular Politics: Class, Resistance and the State in India, 1850-1950, (Cambridge Studies in Indian History & Society). Cambridge and London: Cambridge University Press. Pp. 400, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-59692-0, मूल से 26 मई 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Chatterji, Joya (1993), Bengal Divided: Hindu Communalism and Partition, 1932–1947, Cambridge and New York: Cambridge University Press. Pp. 323, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-52328-1 .
- Copland, Ian (2002), Princes of India in the Endgame of Empire, 1917-1947, (Cambridge Studies in Indian History & Society). Cambridge and London: Cambridge University Press. Pp. 316, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-89436-0, मूल से 9 दिसंबर 2007 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Fay, Peter W. (1993), The Forgotten Army: India's Armed Struggle for Independence, 1942-1945., Ann Arbor, University of Michigan Press., आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0472083422 .
- गिलमार्टिन, डेविड. 1988. इम्पायर एंड इस्लाम: पंजाब एंड मेकिंग ऑफ़ पाकिस्तान बर्कले: कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय प्रेस. 258 पृष्ठ. आईएसबीएन 0-520-06249-3.
- Gould, William (2004), Hindu Nationalism and the Language of Politics in Late Colonial India, (Cambridge Studies in Indian History and Society). Cambridge and London: Cambridge University Press. Pp. 320, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-83061-3, मूल से 25 सितंबर 2010 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Hyam, Ronald (2007), Britain's Declining Empire: The Road to Decolonisation 1918-1968., Cambridge University Press., आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0521866499 .
- Jalal, Ayesha (1993), The Sole Spokesman: Jinnah, the Muslim League and the Demand for Pakistan, Cambridge, UK: Cambridge University Press, 334 pages, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-45850-1 .
- Khan, Yasmin (सितंबर 18, 2007), The Great Partition: The Making of India and Pakistan, New Haven and London: Yale University Press, 250 pages, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-300-12078-8
- Khosla, G. D. (2001), "Stern Reckoning", प्रकाशित Page, David; Inder Singh, Anita; Moon, Penderal; Khosla, G. D.; Hasan, Mushirul (संपा॰), The Partition Omnibus: Prelude to Partition/the Origins of the Partition of India 1936-1947/Divide and Quit/Stern Reckoning, Delhi and Oxford: Oxford University Press, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-565850-7, मूल से 4 जून 2008 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011
- Low, D. A. (1993), Eclipse of Empire, Cambridge and London: Cambridge University Press. Pp. xvi, 366, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-45754-8, मूल से 5 अप्रैल 2008 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Low, D. A. (2002), Britain and Indian Nationalism: The Imprint of Amibiguity 1929-1942, Cambridge and London: Cambridge University Press. Pp. 374, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-89261-9, मूल से 23 नवंबर 2007 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Low, D. A. (ed.) (1977, 2004), Congress & the Raj: Facets of the Indian Struggle 1917-47, New Delhi and Oxford: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. Pp. xviii, 513, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-568367-6
|date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: authors list (link) . - Metcalf, Thomas R. (1991), The Aftermath of Revolt: India, 1857-1870, Riverdale Co. Pub. Pp. 352, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-85054-99-1
- Metcalf, Thomas R. (1997), Ideologies of the Raj, Cambridge and London: Cambridge University Press, Pp. 256, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-58937-1
- Pandey, Gyanendra (2002), Remembering Partition: Violence, Nationalism and History in India, Cambridge, UK: Cambridge University Press, पृ॰ 232, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-00250-8
- Porter, Andrew (ed.) (2001), Oxford History of the British Empire: Nineteenth Century, Oxford and New York: Oxford University Press. Pp. 800, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924678-5, मूल से 13 अप्रैल 2011 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: authors list (link)
- Ramusack, Barbara (2004), The Indian Princes and their States (The New Cambridge History of India), Cambridge and London: Cambridge University Press. Pp. 324, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-03989-4, मूल से 25 अप्रैल 2008 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011
- शेख फरजाना. 1989. इस्लाम में समुदाय और आम सहमति: औपनिवेशिक भारत में मुस्लिम प्रतिनिधित्व 1860-1947. कैंब्रिज, ब्रिटेन: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस. 272 पृष्ठ. ISBN 0-521-36328-4
- टैलबोट, इयान और गुरहर्पाल सिंह (eds). 1999. क्षेत्र और विभाजन: बंगाल, पंजाब और उपमहाद्वीप का विभाजन ऑक्सफ़ोर्ड और न्यूयॉर्क: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. 420 पृष्ठ. ISBN 0-19-579051-0
- टैलबोट, इयान. 2002. खिज्र तिवाना: पंजाब संघी पार्टी और भारत का विभाजन. ऑक्सफ़ोर्ड और न्यूयॉर्क: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. 216 पृष्ठ. ISBN 0-19-579551-2.
- Wainwright, A. Martin (1993), Inheritance of Empire: Britain, India, and the Balance of Power in Asia, 1938-55, Praeger Publishers. Pp. xvi, 256, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-275-94733-5, मूल से 28 जून 2013 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 24 फ़रवरी 2011 .
- Wolpert, Stanley (2006), Shameful Flight: The Last Years of the British Empire in India, Oxford and New York: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. Pp. 272, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-515198-4 .
पत्रिकाओं या संग्रह में लेख
- Banthia, Jayant; Dyson, Tim (1999), "Smallpox in Nineteenth-Century India", Population and Development Review, 25 (4): 649–689
- Brown, Judith M. (2001), "India", प्रकाशित Brown, Judith M.; Louis, Wm. Roger (संपा॰), Oxford History of the British Empire: The Twentieth Century, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 421–446, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924679-3
- Caldwell, John C. (1998), "Malthus and the Less Developed World: The Pivotal Role of India", Population and Development Review, 24 (4): 675–696
- Derbyshire, I. D. (1987), "Economic Change and the Railways in North India, 1860-1914", Population Studies, 21 (3): 521–545
- Drayton, Richard (2001), "Science, Medicine, and the British Empire", प्रकाशित Winks, Robin (संपा॰), Oxford History of the British Empire: Historiography, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 264–276, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924680-7
- Dyson, Tim (1991), "On the Demography of South Asian Famines: Part I", Population Studies, 45 (1): 5–25
- Dyson, Tim (1991), "On the Demography of South Asian Famines: Part II", Population Studies, 45 (2): 279–297
- Frykenberg, Robert E. (2001), "India to 1858", प्रकाशित Winks, Robin (संपा॰), Oxford History of the British Empire: Historiography, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 194–213, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924680-7
- Gilmartin, David (1994), "Scientific Empire and Imperial Science: Colonialism and Irrigation Technology in the Indus Basin", The Journal of Asian Studies, 53 (4): 1127–1149
- Goswami, Manu (1998), "From Swadeshi to Swaraj: Nation, Economy, Territory in Colonial South Asia, 1870 to 1907", Comparative Studies in Society and History, 40 (4): 609–636
- Harnetty, Peter (1991), "'Deindustrialization' Revisited: The Handloom Weavers of the Central Provinces of India, c. 1800-1947", Modern Asian Studies, 25 (3): 455–510
- Heuman, Gad (2001), "Slavery, the Slave Trade, and Abolition", प्रकाशित Winks, Robin (संपा॰), Oxford History of the British Empire: Historiography, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 315–326, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924680-7
- Klein, Ira (1988), "Plague, Policy and Popular Unrest in British India", Modern Asian Studies, 22 (4): 723–755
- Klein, Ira (2000), "Materialism, Mutiny and Modernization in British India", Modern Asian Studies, 34 (3): 545–580
- Kubicek, Robert (2001), "British Expansion, Empire, and Technological Change", प्रकाशित Porter, Andrew (संपा॰), Oxford History of the British Empire: The Nineteenth Century, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 247–269, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924678-5
- Moore, Robin J. (2001a), "Imperial India, 1858-1914", प्रकाशित Porter, Andrew (संपा॰), Oxford History of the British Empire: The Nineteenth Century, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 422–446, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924678-5
- Moore, Robin J. (2001b), "India in the 1940s", प्रकाशित Winks, Robin (संपा॰), Oxford History of the British Empire: Historiography, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 231–242, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924680-7
- Raj, Kapil (2000), "Colonial Encounters and the Forging of New Knowledge and National Identities: Great Britain and India, 1760-1850", Osiris, 2nd Series, 15 (Nature and Empire: Science and the Colonial Enterprise): 119–134
- Ray, Rajat Kanta (1995), "Asian Capital in the Age of European Domination: The Rise of the Bazaar, 1800-1914", Modern Asian Studies, 29 (3): 449–554
- Raychaudhuri, Tapan (2001), "India, 1858 to the 1930s", प्रकाशित Winks, Robin (संपा॰), Oxford History of the British Empire: Historiography, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 214–230, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924680-7
- Robb, Peter (1997), "The Colonial State and Constructions of Indian Identity: An Example on the Northeast Frontier in the 1880s", Modern Asian Studies, 31 (2): 245–283
- Roy, Tirthankar (2002), "Economic History and Modern India: Redefining the Link", The Journal of Economic Perspectives, 16 (3): 109–130
- Simmons, Colin (1985), "'De-Industrialization', Industrialization and the Indian Economy, c. 1850-1947", Modern Asian Studies, 19 (3): 593–622
- Talbot, Ian (2001), "Pakistan's Emergence", प्रकाशित Winks, Robin (संपा॰), Oxford History of the British Empire: Historiography, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 253–263, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924680-7
- Tinker, Hugh (1968), India in the First World War and after. Journal of Contemporary History, Vol. 3, No. 4, 1918-19: From War to Peace. (Oct., 1968), pp. 89-107, Sage Publications, ISSN: 00220094 .
- Tomlinson, B. R. (2001), "Economics and Empire: The Periphery and the Imperial Economy", प्रकाशित Porter, Andrew (संपा॰), Oxford History of the British Empire: The Nineteenth Century, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 53–74, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924678-5
- Washbrook, D. A. (2001), "India, 1818-1860: The Two Faces of Colonialism", प्रकाशित Porter, Andrew (संपा॰), Oxford History of the British Empire: The Nineteenth Century, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 395–421, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924678-5
- Watts, Sheldon (1999), "British Development Policies and Malaria in India 1897-c. 1929", Past and Present (165): 141–181
- Wylie, Diana (2001), "Disease, Diet, and Gender: Late Twentieth Century Perspectives on Empire", प्रकाशित Winks, Robin (संपा॰), Oxford History of the British Empire: Historiography, Oxford and New York: Oxford University Press, पपृ॰ 277–289, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924680-7
शास्त्रीय इतिहास और ग़ज़ेटिअर
- Imperial Gazetteer of India vol. IV (1907), The Indian Empire, Administrative, Published under the authority of His Majesty's Secretary of State for India in Council, Oxford at the Clarendon Press. Pp. xxx, 1 map, 552.
- Lovett, Sir Verney (1920), A History of the Indian Nationalist Movement, New York, Frederick A. Stokes Company, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7536-249-9
- Majumdar, R. C.; Raychaudhuri, H. C.; Datta, Kalikinkar (1950), An Advanced History of India, London: Macmillan and Company Limited. 2nd edition. Pp. xiii, 1122, 7 maps, 5 coloured maps. .
- Smith, Vincent A. (1921), India in the British Period: Being Part III of the Oxford History of India, Oxford: At the Clarendon Press. 2nd edition. Pp. xxiv, 316 (469-784) .
तृतीयक स्रोत
- Oldenburg, Philip (2007), ""India: Movement for Freedom" (Archived 31 अक्टूबर 2009)", Encarta Encyclopedia
|chapter=
में बाहरी कड़ी (मदद) . - Wolpert, Stanley (2007), "India: British Imperial Power 1858-1947 (Indian nationalism and the British response, 1885-1920; Prelude to Independence, 1920-1947)", Encyclopædia Britannica
|chapter=
में बाहरी कड़ी (मदद) .