ब्रह्मा
ब्रह्मा | |
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सृष्टि के रचयिता | |
हंस पर आरूढ़ भगवान ब्रह्मा | |
अन्य नाम | विधाता, स्वयंभू, चतुरानन आदि |
देवनागरी | ब्रह्मा |
संस्कृत लिप्यंतरण | Brahmā |
संबंध | हिन्दू देवता |
निवासस्थान | ब्रह्मलोक |
मंत्र | ॐ ब्रह्मणे नमः ।। |
अस्त्र | देवेया धनुष, ब्रह्मास्त्र, वेद, जप माला |
जीवनसाथी | सावित्री |
माता-पिता | श्री विष्णु |
भाई-बहन | लक्ष्मी |
संतान | सनकादि ऋषि,नारद मुनि और दक्ष प्रजापति और सप्तर्षि |
सवारी | हंस (हन्स का नाम है हन्सकुमार) |
महरौर क्षत्रिय के राजा पृथु के वंशज है ब्रह्मा क्षात्रधर्म के अनुसार सृजन के देव है।[1] ब्राह्म, राजा पृथु के पुत्र, पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। राजा पृथु को विशेष रूप से प्रसिद्धि मिली क्योंकि उन्हें पृथ्वी का सृजनकर्ता माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा पृथु ने अपनी शासकीय क्षमता और बुद्धिमत्ता से पृथ्वी को समृद्ध किया और इस प्रकार पृथ्वी का नाम उनके नाम पर "पृथ्वी" पड़ा।
ये हिन्दू दर्शनशास्त्र की परम सत्य की आध्यात्मिक संकल्पना ब्रह्मन् से अलग हैं।[2][3] ब्रह्मन् लिंगहीन हैं परन्तु ब्रह्मा पुलिंग हैं।[2][3] प्राचीन ग्रंथों में इनका सम्मान किया जाता है पर इनकी पूजा बहुत (श्राप के कारण) कम होती है।[4][5] भारत और थाईलैण्ड में इन पर समर्पित मंदिर हैं। राजस्थान के पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर[6] [7][8] और बैंकॉक का इरावन मंदिर (अंग्रेज़ी: Erawan Shrine)[9][10] इसके उदाहरण हैं।
ब्रह्मा जी आयु
श्रीमद्भागवत के अनुसार ब्रह्मा जी का 51 वां वर्ष चल रहा है[11], 100 वर्ष आयु भगवान ब्रह्मा की बताई गई है। संसार में तीनों देवताओं को अजर-अमर बताया गया है जबकि वास्तविकता कुछ ओर है, ब्रह्मा जी कुल आय (सात करोड़ बीस लाख) चतुर्युग बताई गई है, ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इंद्र का शासन काल बहत्तर चतुर्युग का होता है। इसलिए वास्तव में ब्रह्मा जी का एक दिन (72 गुणा 14) = 1008 चतुर्युग का होता है तथा इतनी ही रात्रि, परन्तु इस को एक हजार चतुर्युग मानकर चलते हैं। 1 महीना = 30 गुणा 2000 = 60000 (साठ हजार) चतुर्युग. 1 वर्ष = 12 गुणा 60000 = 720000 (सात लाख बीस हजार) चतुर्युग की। 100 वर्ष = 100 गुण 720000 = 72000000 (सात करोड़ बीस लाख चतुर्युग) इस प्रकार जब ब्रह्मा जी के 100 वर्ष पूरे हो जाते हैं तब वे अपना शरीर छोड़ देते हैं [12] ब्रह्मा जी की आयु पूरी होने पर उनकी मृत्यु हो जाती है अत: फिर ब्रह्मा के पद पर ब्रह्म द्वार किसी और को नियुक्त किया जाता है
व्युत्पत्ति
हिंदू त्रिमूर्ति में भगवान ब्रह्मा इक्कीस ब्रह्मांडो के स्वामी है। भगवान ब्रह्मा,सृष्टि के तीन गुणों सत्व रजस् और तमस् में से रजस् गुण प्रधान है। इसी प्रकार, भगवान विष्णु सतोगुण और भगवान शिव तमोगुण प्रमुख हैं।
क्षात्र धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा क्षत्रियों के पुत्र है और उनके १० पुत्रों को जन्म दिया जिन्हें मानसपुत्र कहा जाता है। भागवत पुरान के अनुसार ये मानसपुत्र ये हैं- अत्रि, अंगरिस, पुलस्त्य, मरीचि, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष, और नारद हैं। इन ऋषियों को प्रजापति भी कहते हैं।
इतिहास
वैदिक साहित्य
विष्णु और शिव के साथ ब्रह्मा के सबसे पुराने उल्लेखों में से एक पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व में लिखित मैत्रायणी उपनिषद् के पांचवे पाठ में है। ब्रह्मा का उल्लेख पहले कुत्सायना स्तोत्र कहलाए जाने वाले छंद ५.१ में है। फिर छंद ५.२ इसकी व्याख्या करता है।[13][14]
सर्वेश्वरवादी कुत्सायना स्तोत्र कहता है[13] कि हमारी आत्मा ब्रह्मन् है और यह परम सत्य या ईश्वर सभी प्राणियों के भीतर मौजूद है। यह आत्मा का ब्रह्मा और उनकी अन्य अभिव्यक्तियों के साथ इस प्रकार समीकरण करता है: तुम ही ब्रह्मा हो, तुम ही विष्णु हो, तुम ही रूद्र (शिव) हो, तुम ही अग्नि, वरुण, वायु, इंद्र हो, तुम सब हो।[13][15]
छंद ५.२ में विष्णु और शिव की तुलना गुण की संकल्पना से की गई है। यह कहता है कि ग्रन्थ में वर्णित गुण, मानस और जन्मजात प्रवृत्तियां सभी प्राणियों में होती हैं।[15][16] मैत्री उपनिषद का यह अध्याय दावा करता है कि ब्रह्माण्ड अंधकार (तमस) से उभरा है। जो पहले आवेग (रजस) के रूप में उभरा था पर बाद में पवित्रता और अच्छाई (सत्त्व) में बदल गया।[13][15] फिर यह ब्रह्मा की तुलना रजस से इस प्रकार करता है:[17]
फिर उसका वो भाग जो तमस है, हे पवित्र ज्ञान के विद्यार्थियों (ब्रह्मचारी), रूद्र है।
उसका वो भाग जो रजस है, हे पवित्र ज्ञान के विद्यार्थियों, ब्रह्मा है।
उसका वो भाग जो सत्त्व है, हे पवित्र ज्ञान के विद्यार्थियों, विष्णु है।
वास्तव में वो एक था, वो तीन बन गया, आठ, ग्यारह, बारह और असंख्य बन गया।
यह सबके भीतर आ गया, वो सबका अधिपति बन गया।
यही आत्मा है, भीतर और बाहर, हाँ भीतर और बाहर।
हालांकि मैत्री उपनिषद ब्रह्मा की तुलना हिन्दू धर्म के गुण सिद्धांत के एक तत्व से करता है, पर यह उन्हें त्रिमूर्ति का भाग नहीं बताता है। त्रिमूर्ति का उल्लेख बाद के पुराणिक साहित्य में मिलता है।[18]
पौराणिक साहित्य
भागवत पुराण में कई बार कहा गया है कि ब्रह्मा वह है जो "कारणों के सागर" से उभरता है।.[19] यह पुराण कहता है कि जिस क्षण समय और ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ था, उसी क्षण ब्रह्मा हरि (विष्णु, जिनकी प्रशंसा भागवत पुराण का मुख्य उद्देश्य है) की नाभि से निकले एक कमल के पुष्प से उभरे थे। यह पुराण कहता है कि ब्रह्मा निद्रा में हैं, गलती करते हैं और वे ब्रह्माण्ड की रचना के समय अस्थायी रूप से अक्षम थे।[19] जब वे अपनी भ्रान्ति और निद्रा से अवगत हुए तो उन्होंने एक तपस्वी की तरह तपस्या की, हरि को अपने हृदय में अपना लिया, फिर उन्हें ब्रह्माण्ड के आरंभ और अंत का ज्ञान हो गया, और फिर उनकी रचनात्मक शक्तियां पुनर्जीवित हो गईं। भागवत पुराण कहता है कि इसके बाद उन्होंने प्रकृति और पुरुष: को जोड़ कर चकाचौंध कर देने वाली प्राणियों की विविधता बनाई।[19]
भागवत पुराण माया के सृजन को भी ब्रह्मा का काम बताता है। इसका सृजन उन्होंने केवल सृजन करने की खातिर किया। माया से सब कुछ अच्छाई और बुराई, पदार्थ और आध्यात्म, आरंभ और अंत से रंग गया।[20]
पुराण समय बनाने वाले देवता के रूप में ब्रह्मा का वर्णन करते हैं। वे मानव समय की ब्रह्मा के समय के साथ तुलना करते हैं। वे कहते हैं कि महाकल्प (जो कि एक बहुत बड़ी ब्रह्मांडीय अवधि है) ब्रह्मा के एक दिन और एक रात के बराबर है।[21]
ब्रह्मा के बारे में विभिन्न पुराणों की कथाएँ विविध और विसंगत हैं। उदाहरण के लिए स्कन्द पुराण में पार्वती को "ब्रह्माण्ड की जननी" कहा गया है। यह ब्रह्मा, देवताओं और तीनों लोकों को बनाने का श्रेय भी पार्वती को देता है। यह कहता है कि पार्वती ने तीनों गुणों (सत्त्व, रजस और तपस) को पदार्थ (प्रकृति) में जोड़ कर ब्रह्माण्ड की रचना की।[22]
पौराणिक और तांत्रिक साहित्य ब्रह्मा के रजस गुण वाले देव के वैदिक विचार को आगे बढ़ाता है। यह कहता है कि उनकी पत्नी सरस्वती में सत्त्व (संतुलन, सामंजस्य, अच्छाई, पवित्रता, समग्रता, रचनात्मकता, सकारात्मकता, शांतिपूर्णता, नेकता गुण) है। इस प्रकार वे ब्रह्मा के रजस (उत्साह, सक्रियता, न अच्छाई न बुराई पर कभी-कभी दोनों में से कोई एक, कर्मप्रधानता, व्यक्तिवाद, प्रेरित, गतिशीलता गुण) को अनुपूरण करती हैं।[23][24][25]
ब्रह्मा के अवतार
विष्णुपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में ब्रह्मा के सात अवतारों का वर्णन है और रामायण के जामवंत जी को भी ब्रह्मा का अंश कहा गया है।
- महर्षि वाल्मीकि
- महर्षि कश्यप
- महर्षि बछेस
- चंद्रदेव
- बृहस्पति
- कालिदास
- महर्षि खट
- जामवंत
सन्दर्भ
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- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अक्तूबर 2015.
- ↑ Brian Morris (2005), Religion and Anthropology: A Critical Introduction, Cambridge University Press, ISBN 978-0521852418, page 123
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 6 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अक्तूबर 2015.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अक्तूबर 2015.
- ↑ SS Charkravarti (2001), Hinduism, a Way of Life, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120808997, page 15
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अक्तूबर 2015.
- ↑ Ellen London (2008), Thailand Condensed: 2,000 Years of History & Culture, Marshall Cavendish, ISBN 978-9812615206, page 74
- ↑ ब्रह्मा जी आयु. https://archive.org/details/srimad-bhagavat-mahapuran-2-volume-set-sanskrit-hindi/Srimad%20Bhagavat%20Mahapuran%20Volume%201%20Sanskrit%20Hindi/page/n479/mode/2up?sort=title_asc: Srimad Bhagavat Mahapuran. पपृ॰ Canto 3 Chap 11 Verse 34.सीएस1 रखरखाव: स्थान (link)
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नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ अ आ इ ई उ Hume, Robert Ernest (1921), The Thirteen Principal Upanishads, Oxford University Press, पपृ॰ 422–424
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में बाहरी कड़ी (मदद) - ↑ [1] EB Cowell (Translator), Cambridge University, Bibliotheca Indica, page 255-256
- ↑ अ आ इ ई Max Muller, The Upanishads, Part 2, Maitrayana-Brahmana Upanishad Archived 2016-03-11 at the वेबैक मशीन, Oxford University Press, pages 303-304
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