बोनसाई
जापानी भाषा में बोनसाई का मतलब है "बौने पौधे"। यह काष्ठीय पौधों को लघु आकार किन्तु आकर्षक रूप प्रदान करने की एक जापानी कला या तकनीक है। इन लघुकृत पौधों को गमलों में उगाया जा सकता है। इस कला के अन्तर्गत पौधों को सुन्दर आकार देना, सींचने की विशिष्ट विधि तथा एक गमले से निकालकर दूसरे गमले में रोपित करने की विधिया शामिल हैं। इन बौने पौधों को समूह में रखकर घर को एक हरी-भरी बगिया बनाया जा सकता है। बोनसाई पौधों को गमले में इस प्रकार उगाया जाता है कि उनका प्राकृतिक रूप तो बना रहे लेकिन वे आकार में बौने रह जाएं। बोनसाई को पूरे घर में कहीं भी रखा जा सकता है।
'बोनसाई' शब्द मूल चीनी शब्द पेन्जाई (盆栽) का जापानी उच्चारण है। 'बोन' उस पात्र को कहते हैं जिसमें ये पौधे प्राय: उगाये जाते हैं। यह ट्रे के आकार का होता है।
बोनसाई बनाना
सबसे पहले बोनसाई के लिए उपयुक्त पौधे को गमले में उगाया जाता है। फिर उसके बाहरी भाग की कांट-छांट इस प्रकार करते हैं कि वांछित शैली के अनुसार पूर्व निर्धारित आकार दिया जा सके। जड़ों की कांट-छांट कर इसे रोप दिया जाता है। बोनसाई हेतु बीज से तैयार पौधे ठीक रहते हैं।
वृक्षों का चयन
वृक्षों के चयन के समय उनके फूलों की सुन्दरता, कलियों व पत्तियों का रंग-रूप आदि का विशेष ध्यान रखा जाता है।
सदाबहार वृक्ष: अनार, आम, अमलताश, अमरूद, आकाशनीम, आंवला, बरगद, बॉटब्रूश, संतरा, सेमल, गूलर, गुलमोहर, पीपल, जकरेण्डा, लीची, चीड़, नीम, नींबू, केसिया प्रजाति आदि। पतझड़ वृक्ष: ओक, बेर, बर्च, देवदार, फर, नाशपति, सेमल, चमेली, बोगनवेलिया आदि।
गमलों का चयन
बोनसाई हेतु उथले गमलों का प्रयोग किया जाता है। इनकी जड़ों के आसपास मिट्टी कम होती है। वर्गाकार, आयताकार, गोलाकार, अण्डाकार, ष्ट्कोणीय और उथले गमले इन पौधों के लिए ठीक रहते हैं। गमलों में जल निकास का क्षेत्र बड़ा होना चाहिए।
गमला बदलना
धीरे बढ़ने वाले पौधे गर्म व आद्र जलवायु में तीन-चार वर्ष व शुष्क जलवायु में चार-छह वर्ष बाद गमला बदलना चाहिए। गमला बदलने से तात्पर्य पौधे को निकालकर दुबारा से लगाना है।
कांट-छांट
गर्मियों के शुरू होने के साथ कांट-छांट का कार्य किया जाता है। सदाबहार पौधों की कांट-छांट सर्दियां शुरू होने से पहले की जानी चाहिए। गमलों में उद्यान की मिट्टी, पत्ती की खाद और बालू रेत की बराबर मात्रा मिलाकर मिश्रण तैयार करें। पौधे को मिट्टी सहित गमले से निकालकर जड़ों से मिट्टी लकडी की सहायता से झाड़ दें। पर एक तिहाई मिट्टी जड़ों में लगी रहनी चाहिए। कम आयु के पौधों की जड़ों को कांट-छांट गहरी व अधिक आयु के पौधों की हल्की करनी चाहिए।
पौधों को आकार देना
कंटाई-छंटाई का मुख्य उद्देश्य पौधे को आकार प्रदान करना होता है। बोनसाई को लकड़ी इत्यादि का सहारा नहीं देना चाहिए। पतली शाखाओं को तांबे या एल्यूमिनियम के तारों के सहारे सुनिश्चित दिशा दी जाती है। शाखाओं के मजबूत होने पर तारों को हटा दिया जाता है।
सिंचाई
प्रतिदिन हल्की सिंचाई करनी चाहिए। पौधों पर पानी फव्वारे से डालें। पात्र अथवा गमले के नीचे से रिसाव होने तक सिंचाई करें। मिट्टी गीली होने पर सिंचाई न करें।
बोनसाई की शैलियाँ
जापान के बोनसाई विशेषज्ञों के अनुसार बोनसाई को लगभग तेरह तरह से उगाया जा सकता है।
1. सीधे वृक्ष: इसमें तने सीधे ऊपर की ओर पतले, मुख्य तने में चारों ओर की शाखाएं तने से 90 डिग्री का कोण बनाते हुए ऊपर बढ़ती हैं। चीड़, सिल्वर ओक, फर आदि के लिए यह शैली उपयुक्त है।
2. दो तने वाले वृक्ष: पौधों में मिट्टी की सतह से ही प्रति वृक्ष के दो तने बढ़ने दिए जाते हैं। तनों की ऊंचाई अलग-अलग होती है। इसे जापानी भाषा में सोकन कहते हैं।
3. अनेक तने वाले वृक्ष: एक जड़ से 6 या अधिक तने ऊपर सीधे बढ़ने दिए जाते हैं।
4. सिनुअस: अनेक तने विकसित होने दिए जाते हैं।
5. तिरछा बोनसाई: मुख्य तना जमीन से 45 डिग्री कोण पर झुका हुआ सीधा बढ़ता है।
6. ब्रूम: तना सीधा पर मध्य तने से निकलने वाली दूसरी शाखाएं केवल दो विपरीत दिशाओं में बढ़ने दी जाती हैं। इससे वृक्ष का रूप पंखे के समान हो जाता है।
7. खुली जड़ वाले वृक्ष: तना जमीन की सतह से 90 डिग्री या 45 डिग्री के कोण पर ऊपर की ओर बढ़ता है, साथ ही जड़ें भी मिट्टी के ऊपर बढ़ती हुई दिखाई देती हैं। इस शैली में पौधा लगाते समय पौधे की जड़ों को मिट्टी के अंदर ना डालकर ऊपर की ओर खुला रखकर चारों ओर बालू रख देते हैं।
8. कैस्केड: मुख्य तने को आधा झुका दिया जाता है। इसे गमले के पैंदे से नीचे तक झुकाया जाता है।
9. इकाडा वृक्ष: मुख्य तने को मिट्टी की सतह तक झुकाकर दो-तीन स्थानों पर शाखाओं को विकसित होने दिया जाता है।
10. विण्ड स्वेप्ट: वृक्ष भूमि की सतह से 90 डिग्री कोण का निर्माण करता है और साथ ही मुख्य तने से निकलने वाली शाखाओं को एक ही दिशा में बढ़ने दिया जाता है ताकि ऎसा प्रतीत हो कि शाखाएं वायु के झौके से प्रभावित हो गई हैं।
11. वृक्ष समूह: एक गमले में अनेक वृक्ष उगाए जाते हैं। इसके लिए चपटे, उथले व बड़े गमले प्रयोग में लाए जाते हैं।
12. लहराता बोनसाई: एक या दो मुख्य शाखाएं गमले की मिट्टी की सतह से तिरछी निकली हुई होती हैं।
13. चट्टानी बोनसाई: गमले की मिट्टी की सतह पर पुराने पत्थर अथवा चट्टान के टुकड़े रख दिए जाते हैं ताकि उन पर वृक्ष की जड़ें फैल जाएं।
बाहरी कड़ियाँ
- बोनसाई बनाने की विधि (जय हिन्दी)
- चौखट पर पौधे आंगन में खुशियां[मृत कड़ियाँ] (अमर उजाला)
- गमले में बरगद का पेड़ (दैनिक भास्कर)
- The Art of Bonsai Project - galleries of bonsai
- Magical Miniature Landscapes - comprehensive history of bonsai and related arts