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बेनी बंदीजन(रीतिग्रंथकार कवि)

बेनी बंदीजन रीतिकाल के हिन्दी कवि थे।

बेनी बंदीजन रायबरेली जिले के बेंती नामक स्थान के निवासी और अवध के वजीर महाराज टिकैतराय के दरबारी कवि थे। शिवसिंह सेंगर के मतानुसार ये सं. १८९२ वि. में पर्याप्त वृद्ध होकर मरे थे। 'टिकैतराय प्रकाश' (अथवा 'अलंकारशिरोमणि'), 'रसविलास' और अनेक भँड़ौवों की रचना इस कवि ने की है। इनके अतिरिक्त खोज रिपोर्ट से कवि की 'यशलहरी' नामक एक अन्य रचना का पता चला है जिसका रचनाकाल सं. १८५० वि. है। 'मिश्रबंधुविनोद' और खोज विवरणों के अनुसार 'रसविलास' का रचनाकाल सं. १८७५ वि. है। यह प्रमुख रूप से रसांतर्गत नायिका-नायक-भेद का विवेचन करनेवाला ग्रंथ है। कवित्व और शास्त्रीय दोनों दृष्टियों से यह महत्वपूर्ण रीतिग्रंथ है। यह ग्रंथ पद्माकर कृत 'जगद्विनोद' के आकार का है। भँड़ौवा कवि के कृतित्व में अनूठे स्थान का अधिकारी है। इनसे उसको पर्याप्त ख्याति और प्रसिद्धि मिली है। इस कवि के भँड़ौवों की एक संग्रह भारतजीवन प्रेस, काशी में हुआ था। यशलहरी में नाना देवी देवताओं का गुणानुवाद किया गया है।

इससे पूर्व भँड़ौवा शैली की रचनाओं की स्थिति नहीं देखी गई थी। भँड़ौवा हास्येत्पादक मनोरंजनप्रधान रचना होती है, जिसे उर्दू में 'हजो' और अंग्रेजी में 'सटायर' कहते हैं। इससे किसी व्यक्ति, वस्तु आदि की निंदा अथवा प्रशंसा दोनों की जा सकती है। दयाराम के आमों, लखनऊ के ललकदास और किसी से पाई हुई रजाई की इस शैली में अच्छी खिल्ली उड़ाई गई है। ये प्रसंग बड़े रोचक बन पड़े हैं और प्राय: इनकी ऐसी रचनाएँ प्राचीन काव्यरसिकों की जबान पर होती हैं। सुकुमार भावव्यंजना और कलागत वैशिष्ट्य के भी दर्शन कवि की रचनाओं में होते हैं।