सामग्री पर जाएँ

बुसी

फ्रेंच सेनानायक बुसी

बुसी (Charles Joseph Patissier, Marquis de Bussy-Castelnau ; १७१८-१७८५ ई.) फ्रांस का यशस्वी सेनानायक तथा सफल कूटनीतिज्ञ था। प्रथम कर्नाटक युद्ध के समय वह लाबूर्दने के साथ पुद्दुचेरी पहुँचा। अंबर के युद्ध (१७४८) में वह डूप्ले का विश्वासपात्र बना।

डूप्ले की साम्राज्य-निर्माण-योजना कार्यान्वित करने में बुसी ने विशेष कौशल दिखाया। इससे भारत में फ्रांसीसियों की प्रतिष्ठा बढ़ी। १७५० में जिंजी की विजय बुसी की पहली सफलता थी। १७५१ में पाँडिचेरी से औरंगाबाद तक उसका प्रयाण तथा मार्ग में मुजफ्फरजंग की मृत्यु के बाद सलाबतजंग को निज़ाम घोषित करके आन्तरिक तथा बाह्य शत्रुओं से उसे सुरक्षित बनाना उसकी बड़ी सफलता थी। इससे दक्षिण भारत में फ्रांसीसियों की धाक जम गई; सैनिक खर्च के लिए उन्हें उत्तरी सरकार के जिले मिले; डूप्ले को कृष्णा नदी के दक्षिण के प्रदेश की सूबेदारी मिली; तथा अंग्रेजों की सभी चालें विफल हुईं।

तृतीय कर्नाटक युद्ध के समय बुसी को हैदराबाद से वापस बुलाया गया। फलत: फ्रांसीसी प्रभाव वहाँ से जाता रहा तथा उत्तरी सरकार प्रदेश उनसे छिन गया। मद्रास के घेरे तथा वांडीवाश के युद्ध में बुसी ने लैली को हार्दिक सहायता दी। सन् १७६० ई में अंग्रेजों ने उसे बंदी बना लिया और संधि हो जाने पर फ्रांस भेज दिया।

सन् १७८३ ई. में वह पुन: भारत आया और कुदालोर में उसने अंग्रेजों से रक्षात्मक युद्ध किया। युद्ध समाप्त होने पर उसे भारत में फ्रांसीसियों का भविष्य निराशाजनक प्रतीत हुआ। १७८५ में उसका देहान्त हो गया।