बीदरी
बिदरी एक लोककला है जो की कर्नाटक के बीदर शहर से शुरु हुआ था। और बाद मे धीरे-धीरे इस कला का उपयोग आन्ध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर मे भी होने लगा।
एक धातु हस्तशिल्प कि 14वीं सदी में बिदर, कर्नाटक, में उत्पन्न बिदर है, बहमनी सुल्तानों के शासन के दौरान शब्द 'Bidriware' बदर, जो अभी भी निर्माण के लिए मुख्य केंद्र है की बस्ती से निकलती है द्वितीय metalware [प्रशस्ति पत्र की जरूरत]. इसके हड़ताली जड़ना कलाकृति के लिए कारण, Bidriware भारत की एक महत्वपूर्ण निर्यात हस्तशिल्पि और धन के एक प्रतीक के रूप में बेशकीमती है। धातु इस्तेमाल किया शुद्ध चांदी की पतली शीट के साथ एक काला मिश्र धातु जस्ता और तांबा जड़ा है।[1][2]
बबिदरी कला के लिए कर्नाटक के बींदरी कलाकार राशिद अहमद को 2023 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है
इतिहास
स्थानिय परंपरा के अनुसार वारांगल के काकतिया राजा ने भगवान शिव का मन्दिर तेरहवी सदी के मध्य मे बनवाया था। जो शहर धीरे धीरे बड़ा हुआ और बिदर नाम से जाना जाने लगा। १३४७ ईसवी मे गुलबर्ग का पहला ग्रामिन भमन शाह गंगू जो कि अलाउद्दीन बहमन शाह के नाम से प्रसिद था, ने बीदर विजय प्राप्त की थी।[3]
कच्चा माल
- जस्ता
- तांबा
- लाल मिट्टी
- राल
- कैस्टर ऑयल
- संगजीरा (सफेद पत्थर का चूर्ण)
- कोयला
- कॉपर सलफ़ेट
- चांदी
- सोना
- सैंड पेपर
- पुराने किला की मिटी का शोरा
- सिक्का
- साल अमोनिक
- टिंन
- मूँगफली का तेल
- लकड़ी का कोयला (चारकोल)
इसके पहले चरण मे ऊपर दि गई सामग्री १ से लेकर ७ तक का उपयोग ढाँचा बनाने के लिये किया जाता था। और इसके दुसरे चरण मे सामग्री ८ से लेकर १२ तक का उपयोग नक्काशी के लिये किया जाता था और आखिर तिसरे चरण मे सामग्री १३ से लेकर १८ तक तैयार उत्पाद को संवारने के लिये किया जाता था।
उपकरण और औजार
- अलग अलग आकार देने के लिये फाइल
- बरमा
- हथोडा
- धोंकनी
- छोटी हथोडी
- छोटा स्टूल
- चक्की
- आरी
- कैंची
- सरौता
- तार खिंचने का पैमाना (तरपत्ती)
- चिमटा
- स्टोन (औजारौ को धार दार बनाने के लिये पत्थर)
- तराजू
- मापक यन्त्र
- क्रुसिबल
- ब्रुश
- पॉलिश करने के लिये ब्रुश
विधि
बीदरी को कांस धातू से बनाई जाती है और इसके अन्दर जस्ता और मिश्र धातु का उपयोग भी किया जाता है। कोई भी कलाकृति बनाने से पूर्च उस पर नमूना अथवा डिज़ाइन बनाया जाता है। इसके बाद चाहे वह फूलदान हो अथवा बक्सा आदि उसे एक अड्डे पर बिठाया जाता है। इसके साथ ही कलाकार चाँदी अथवा सोने के तारों से फूल-पत्तियों के डिज़ाइनों पर तार जमाता चला जाता है। बीदरी का उत्पाद बन जाने के बाद उस पर तेल की परत लगाई जाती है जिस से उसका रंग गहरा हो जाता है जिस से उस उत्पाद पर चमक आ जाती है और वह उत्पाद काले और चमकीले रंग का दिखता है।
रचना या बनावट
सन्दर्भ
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जुलाई 2012.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 10 फ़रवरी 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जुलाई 2012.
- ↑ imperial gazzetter of india vol lII p 240