बिहार लोकसेवा अधिकार अधिनियम २०११
१५ अगस्त २०११ से बिहार में लागू यह विधेयक आम लोगों को निर्धारित समय सीमा के भीतर कुछ चुनी हुई लोक सेवाएं उपलब्ध कराने को सुनिश्चित करने वाला कानून है। इसके अंतर्गत राज्य सरकार ने फ़िलहाल दस विभागों से जुड़ी 50 सेवाएँ सूचीबद्ध की है। इनमें राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और ज़मीन-जायदाद के दस्तावेज़ दिए जाने के अलावा आवास, जाति, चरित्र और आमदनी से संबंधित प्रमाण पत्र दिए जाने जैसी सेवाएँ प्रमुख हैं।[1] इस अधिनियम का सबसे ख़ास प्रावधान यह है कि तय की गई अवधि में आवेदकों को लोक सेवाएँ उपलब्ध नहीं करा सकने वाले सरकारी कर्मचारी या अधिकारी दंडित होंगे। इसके अंतर्गत ढाई सौ रूपए से लेकर अधिकतम पांच हज़ार रूपए तक के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है और ज़रूरत पड़ी तो विभागीय कार्रवाई का डर दिखाया गया है।[1] लेकिन इस क़ानून के तहत दोषी कर्मचारी या अधिकारी को दंडित करने के किए गए ये प्रावधान बहुत ढीले, मामूली और बेअसर जैसे हैं।
इतिहास
बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से इस संबंध में तैयार नियमावली की अधिसूचना गत तीन मई को ही जारी कर दी गई थी।[1]
सरकारी दफ़्तरों में कर्मियों और ज़रूरी साधनों की कमी और सबसे ज़्यादा आवेदनों पर कार्रवाई की निगरानी ठीक से नहीं हो पाने की आशंकाएँ बनी हुई हैं। इसके अलावा इस क़ानून का सबसे कमज़ोर पक्ष ये माना जा रहा है कि जो तय समय-सीमा होगी, उसकी अंतिम तिथि से पहले कोई लोक सेवा उपलब्ध कराने में रिश्वत का खेल हो सकता है। जैसे कि दो-तीन दिनों में किसी को आवासीय प्रमाणपत्र लेना अत्यंत ज़रूरी हो, तो वह 21 दिनों की निर्धारित समय-सीमा तक इंतज़ार करने के बजाय घूस देकर जल्दी काम करा लेने को विवश हो सकता है।
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ संवाददाता, मणिकांत ठाकुर बीबीसी; पटना. "बिहार में लोकसेवा अधिकार लागू". BBC News हिंदी. अभिगमन तिथि 2020-09-11.