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बिक्री कर

बिक्री कर (सेल्स टैक्स) सरकार किसी भी सामान की खरीद-फरोख्त पर कर वसूलती है। भारत के ज्यादातर राज्यों मे अब बिक्री कर की जगह वैट ने ले ली है, लेकिन सेल्स टैक्स सेवाओं पर भी वसूला जाता है।

बिक्री कर का उद्ग्रहण पहली बार उत्‍पादित या आयातित तथा बेची गई किसी वस्‍तु की बिक्री कर किया जाता है। यदि उत्‍पाद को आगे और प्रसंस्‍कृत किए बिना तदनंतर बेचता जाता है तो वह बिक्री कर से छूट प्राप्‍त होगा।

बिक्री कर भारत में वस्‍तुओं के क्रय तथा बिक्री पर एक उद्ग्रहण है तथा इस का उद्ग्रहण केन्‍द्रीय विधान (केन्‍द्रीय बिक्री कर) तथा राज्‍य सरकार विधानों (बिक्री कर), दोनों के प्राधिकारांतर्गत किया जाता है। सरकार मुख्‍यत: वस्‍तुओं की अंतर राज्‍य बिक्री पर बिक्री कर का उद्ग्रहण करती है। राज्‍य उन लेनदेनों पर भी कर का उद्ग्रहण करती है मानी गई बिक्री होते हैं यथा निर्माण कार्य संविदाएं तथा पट्टे।

बिक्री कर के अतिरिक्‍त, कुछ राज्‍य अतिरिक्‍त कर, अधिकार, कारोबार कर तथा समान प्रकार के करों का उद्ग्रहण भी करती है। साधारणतया, बिक्री कर की वसूली क्रेता से वस्‍तुओं की बिक्री के लिए प्रतिफल के भाग के रूप में की जाती है।

इस तथ्‍य के बावजूद कि समुचित राज्‍य के कर कानूनों के अंतर्गत वस्‍तुओं की बिक्री पर कर का कोई दायित्‍व नहीं डाला गया है, अंतर राज्‍य व्‍यापार या वाणिज्‍य के दौरान प्रत्‍येक व्‍यापारी द्वारा उसके द्वारा की गई किन्‍हीं वस्‍तुओं की बिक्री पर बिक्री कर अदा किया जाता है।

बिक्री कर 'आई डी' संख्‍या

एक राज्‍य बिक्रीकर आईडी संख्‍या अनिवार्यत: आपकी सामाजिक सुरक्षा संख्‍या का व्‍यवसाय रूपातंर है जिसके तहत आप ऐसी, किसी भी सेवा या उत्‍पाद, जिसे आप बेचते हैं, के लिए कर का संग्रहण तथा भुगतान करते हैं, जो बदले में आप के राज्‍य में कराधान के लिए अर्हक होता है।

बिक्री कर के लिए व्‍यावहारिक नियम यह है कि अधिकांश सेवाएं छूट प्राप्‍त है तथा खाद्यपदार्थों एवं औषधों के अलावा अधिकांश उत्‍पाद कर योग्‍य हैं यद्यपि हालिया इतिहास दर्शाता है कि राज्‍य धीरे धीरे कर योग्‍य सेवाओं की सूची बढ़ाते जा रहे हैं।

वैट

वैट वस्‍तुओं की खपत पर अप्रत्‍यक्ष कर है जिसकी अदायगी वस्‍तुओं के इस के अन्‍त्‍य उपभोक्‍ताओं के अंतरित किए जाने पर अथवा वस्‍तुओं में बदलाव पर इसके मूल्‍य उत्‍पादकों द्वारा अदा किया जाता है। यह अंतरिति द्वारा मूल्‍यवर्धन के अंतर के संबंध में एक कर हैं तथा केवल मात्र लाभ नहीं है।

इसक अर्थ है कि वस्‍तुओं का प्रत्‍येक विक्रेता तथा सेवा प्रदायक निविष्टि कर क्रेडिट का उपभोग करने के पश्‍चात कर प्रभारित करता है। यह बिक्री कर संग्रहण का स्‍वरूप है जिसके तहत वस्‍तुओं के मूल्‍यवर्धन के प्रत्‍येक चरण पर कर का संग्रहण किया जाता है। व्‍यवहार में, डीलर उपभोक्‍ता को बेचे गए माल की पूर्ण कीमत पर कर प्रभावित करता है तथा कर अवधि की प्रत्‍येक समाप्ति पर बिक्री पर संग्रहित कर तथा डीलर जिससे उसने माल खरीदा था, द्वारा उस पर प्रभारित कर को कम कर देता है तथा कर की इस राशि को सरकारी राजकोष में जमा कर देता है।

विश्‍व भर में वैट वस्‍तुओं तथा सेवाओं पर संदेय है क्‍योकि वे राष्‍ट्रीय स.घ.उ. का एक हिस्‍सा हैं। इसका अर्थ है कि वस्‍तुओं का प्रत्‍येक विक्रेता तथा सेवा प्रदायक निविष्टि कर क्रेडिट का उपभोग करने के पश्‍चात कर प्रभारित करता है। इसका अर्थ है कि वस्‍तुओं का प्रत्‍येक विक्रेता तथा सेवा प्रदायक निविष्टि कर क्रेडिट का उपभोग करने के पश्‍चात कर प्रभारित करता है। यह बिक्री कर संग्रहण का स्‍वरूप है जिसके तहत वस्‍तुओं के मूल्‍यवर्धन के प्रत्‍येक चरण पर कर का संग्रहण किया जाता है। व्‍यवहार में, डीलर उपभोक्‍ता को बेचे गए माल की पूर्ण कीमत पर कर प्रभावित करता है तथा कर अवधि की प्रत्‍येक समाप्ति पर बिक्री पर संग्रहित कर तथा डीलर जिससे उसने माल खरीदा था, द्वारा उस पर प्रभारित कर को कम कर देता है तथा कर की इस राशि को सरकारी राजकोष में जमा कर देता है।

संग्रहण की विधि

भारत में वैट के संग्रहण की दो विधियां है। प्रथम विधि में खरीद पर अदा किए गए कर तथा बिक्री पर संदेय कर (इन्‍वायस में पृथक रूप से दर्शित) के आधार पर कर को पृथक प्रभारित किया जाता है। अत: क्रय पर अदा किए गए तथा इन्‍वायस के अनुसार बिक्री पर संदेय कर के बीत अंतर वैट है।

दूसरी विधि में, वस्‍तुओं पर लागू कर की दर को प्रयोज्‍य करके बिक्री तथा क्रय पर संदेय कर के सकल मूल्‍य पर कर संग्रहीत तथा प्रभारित किया जाता है। अत: बिक्री मूल्‍य एवं क्रय मूल्‍य के बीच अंतर वैट होगा। इसका अर्थ है कि वैट वह कर है जिसका सामना अंतत: उपभोक्‍ता करते है जो प्रत्‍येक चरण पर संग्रहित किया जाता है।