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बाब अल-मन्देब जलसन्धि

बाब अल-मन्देब
बाब अल-मन्देब -
तटवर्ती क्षेत्र यमन  जिबूती  सोमालिया  इरीट्रिया
अधिकतम लंबाई80 मील (130 कि॰मी॰)
अधिकतम चौड़ाई25 मील (40 कि॰मी॰)
औसत गहराई−609 फीट (−186 मी॰)
द्वीपपेरीम, सात भाई
लाल सागर का नक़्शा जिसमें बाब अल-मन्देब नीचे दाई तरफ़ है

बाब अल-मन्देब (अरबी: باب المندب‎, अंग्रेजी: Bab el-Mandeb) अरबी प्रायद्वीप पर यमन और अफ़्रीका के सींग पर जिबूती, इरित्रिया और उत्तरी सोमालिया के बीच स्थित एक जलडमरू है जो लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ता है।

नाम की उत्पत्ति

अरबी भाषा में 'बाब अल-मन्देब' का मतलब 'दुख के द्वार' होता है। ध्यान दें कि यही 'मन्देब' शब्द हिन्दी में थोड़े परिवर्तित अर्थ के साथ 'मांदा' रूपों में देखा जाता है (मसलन 'थका-मांदा' में)। कहते हैं कि नाविकों के लिए इस जगह से गुज़ारना ख़तरनाक होता था और उनमें से बहुत यहाँ पानी के तीज बहाव में डूबकर जान खो बैठते थे। एक अन्य पारंपरिक कथा के अनुसार यहाँ बहुत पहले एक बड़ा भूकंप आया था जिस से एशिया और अफ़्रीका अलग हुए और इसमें बहुत से लोग मारे गए।

विवरण

बाब अल-मन्देब हिन्द महासागर और भूमध्य सागर के बीच का एक बहुत ही महत्वपूर्ण समुद्री रास्ता है। सुएज़ नहर में जाने के लिए इस से भी निकलना ज़रूरी है। सन् २००६ में यहाँ से रोज़ ३३ लाख बैरल तेल निकला गया था, जो दुनिया की ४.३ करोड़ बैरल दैनिक उत्पादन का मापा जा सकने वाला भाग है।[1] यमन के रास मनहेली से जिबूती के रास सियान तक इस जलडमरू की चौड़ाई लगभग ३० किमी है। इसमें पेरीम (بريم‎‎, Perim) नाम का एक द्वीप है जो इस जलडमरू को दो हिस्सों में बांटता है। पूर्वी भाग 'बाब इस्कंदर' (अर्थ: 'सिकंदर का द्वार') है जो सिर्फ़ ३ किमी चौड़ा और ३० मीटर गहरा है। पश्चिमी भाग २५ किमी चौड़ा और ३१० मीटर गहरा 'दक़्त अल​-मायून​' (دقة المايون‎, Dact-el-Mayun) है। जिबूती के तट के पास टापुओं का एक गुट हैं जो 'सात भाई' (Seven Brothers) कहलाते हैं। पूर्वी जलडमरू में सतह पर एक लाल सागर के अन्दर की तरफ़ जाने वाला प्रवाह है जबकि पश्चिमी जलडमरू में सतह के नीचे लाल सागर से बाहर ले जाने वाला एक शक्तिशाली प्रवाह चलता है।

मानव इतिहास में महत्व

बहुत से इतिहासकारों का मनना है कि पूर्वी अफ़्रीका में उत्पन्न होने के बाद मानव जाति आज से लगभग ६०,००० वर्ष पूर्व बाब-अल-मन्देब लांघकर एशिया पहुंची थी। उस युग में समुद्रतल थोड़ा नीचे था और इन जलडमरुओं में या तो पानी कम था या यह सूखे ही थे। इस धारणा के अनुसार मानव यहीं से निकलकर सबसे पहले उस समय के मानव-रहित भारतीय उपमहाद्वीप में पहुंचे थे।[2][3]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. World Oil Transit Chokepoints, Energy Information Administration, US Department of Energy
  2. Spencer Wells, The Journey of Man Archived 2011-04-27 at the वेबैक मशीन
  3. Stephen Oppenheimer. The Gates of Grief Archived 2014-05-30 at the वेबैक मशीन