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बलोच

हिम्मत बंदा मदद खुदा घोड़े जी पुठ तलवार जी मुठ.. हिम्मत रखेंगे मदद खुदा करेगा।हमारा तो काम है घोड़े की सवारी और तलवार हाथ में।इतिहास में राजस्थान के बलोचों का स्थान सदैव गौरवशाली रहा हैं।यहां के बलोचों को कहा जाता है कि वीरता सदैव बलोचों की चेरी बनकर रहीं हैं।इतने वीर सपूत होने पर भी यहां के कुछ रण रसियों ने बिना लड़े अंग्रेजो की अधिनता स्वीकार कर ली थी।लेकिन बाड़मेर जिले के चौहटन के बलोचों ने अंग्रेजों को बलोची तलवारों का चिरस्मरणीय जौर दिखाया था।किंतु दुर्भाग्य से उनके इस रण कौशल के इतिहास के स्वर्गिय पन्ने अपने में नहीं समेट सके।बात उस समय की है जब जोधपुर रियासत का मालाणी क्षेत्र स्वयं भू भाग था।जोधपुर नरेश ने बलोचों को अपने-अपने क्षेत्र की सत्ता का अधिकार सौंप रखा था।जागीदार ही अपने-अपने क्षेत्र में हासल(कर)इकठ्ठी करके उनमें से थोड़ा सा हिस्सा जोधपुर का नजराना के रूप में पेश कर देते थे।

चोहटन का सटा इलाका और एक प्रसिद्ध गांव नीलसर।इसकी पहचान और ख्याति एक टेभा हैं।उस दौर में रेतीले टीले इस रेगिस्तान के लिए किसी श्राप से कमतर नहीं थे।बलोच कबीले के लोग उसी गांव के अंदर गांव और आसपास के क्षेत्रों की नजर प्रत्यक्ष जाए और आते जाते हुए व्यक्ति पर भी नजर रहे ऐसे ही बड़े टीले पर निवास कर रहे थे।जहां उनका निवास था उसके ही ठीक पास उनकी और से चिकनी मिट्टी से एक टेभा(तालाब)का निर्माण करवाया गया।पानी का रंग और टेभा (तालाब) के निर्माण के बाद इस गांव का नाम नील (आसमानी)सर(तालाब)नाम आज भी प्रचलित है। टेभे को बनवाने में जिस परिवार ने मेहनत और परिश्रम किया वो आज भी फेरू खान के टेभे के नाम से प्रख्यात हैं।


      (फेरू खान का टेभा निलसर फोटो)


              मैप के जरिए लिया गया दृश्य
  ख़ैर उस दौर में डकेती,लुटपाट और धाड़ेल का तमगा केवल सरायों(बलोचों)के ही जिम्मे रहता था।यह कार्य किसी गरीब या मजलूम के साथ नही बल्कि किसी रियासत के राजाओं के साथ ही किया जाता था।निलसर से जैसलमेर,सिंध और बाड़मेर की दूरी बराबर ही थी।बलोच फेरू खान,शादी खान, अहमद खान, वसाया खान सैकड़ों वीर योद्धाओं के चर्चे और ख्याति आसपास के सभी दरबारों में थी।

बलोचों पर अंग्रेज़ सरकार का नाम मात्र का अंकुश रहता था।सिंध के क्षेत्र एंव जैसलमेर के कुच्छ हिस्सों में लूटपाट करना इसमें विशेष कर उन लोगों को जो सक्षम और अपनी दादागिरी के लिए मशहूर हुआ करते थे।अपने आज के चलन के हिसाब से आप उसे सुपारी देना भी समझ सकते हैं।तब कुछ राजा महाराजा अपने क्षेत्र में किसी को निकालना या उनसे युद्ध के लिए इनको भेजना हमेशा से काम में लेते या भेजते थे।अंग्रेज हुकूमत और कुछ राजा महाराजा ऐसे भी हुआ करते थे।उनमें खौफ और दहसत का एक माहौल इस कदर भी था कि उनके नाम से खौफ खाया करते थे।लोग आज भी किसी को उलाहने के रूप में यहां तक कह देते हैं कि आपको सरआई ले जाए।

निलसर वैसे तो जोधपुर दरबार का ही हिस्सा हुआ करता था।किंतु निलसर में जो योद्धा रहते थे उनसे न कुंता न ही ढल और न ही किसी तरह का कर वसूला जाता था।वो स्वयं में जागीरदार थे और सक्षम थे।जिन्हे चो सीमाएं चालीस कोस की दूरी तो लगती ही नही थी उन्हे दरबारों से क्या लेना देना।ख़ैर वक्त ने अपनी करवट बदली तो बलोचों ने जैसलमेर दरबार के हिस्सों में आना जाना प्रारंभ किया।आए दिन वहां से धाड़ा (डाका)डालकर पुनः निलसर और चोहटन अपने निवास आ जाया करते थे।जैसलमेर दरबार ने अपने पूर्ण प्रयास किए किंतु तलवार और युद्ध से बलोचों के आगे जीत नही पाए।


विक्रमी संवत 1890 इश्वी सन 1833 एक घटना के अनुसार जैसलमेर के नरेश ने जोधपुर के नरेश के पास मालाणी के बलोचों की शिकायत की।उसमें भी बाड़मेर एंव चौहटन के जागीरदारों की शिकायत लिखित में भेजी गई थी।जिसमें स्पृष्ट तौर पर बलोच सराई उनके राज्य में लूटपाट करके प्रजा को तंग करते हैं।स्वजातिय सगई भाई होने के कारण जोधपुर महाराजा ने शिकायत की कोई प्रवाह नहीं की।कुछ दिनों तक शिकायत को देखने के बाद उन्होंने अंग्रेजों के राजनीतिक एजेंट के पास माउंट आबु शिकायत भेजी।अंग्रेजों के राजनीतिक एजेंट ने मालाणी के बलोच खोसो को दबाने के लिए एरनपुरा छावनी से 10 कंपनियां भेजी।जिसमें 5 कंपनियों ने बाड़मेर को घेरा एंव 5 कंपनियों ने चौहटन को चारों दिशाओं से घेर लिया।पहाड़ों के चारों ओर से इस कदर छावनियां हो गई कि मानो चौहटन के पहाड़ भी थर थर कांपने लग गए।इस कद्र फिरंगियों को देखकर बाड़मेर के राजपूतों ने अंग्रेजों से समझौता कर लिया था।

मध्य दिन की घटना थी चौहटन के अधिक बलोच अपने नित्य कार्य लूटपाट व वसूली पर गये हुए थे।जैसे ही वह वापस अपने कबीलों में आए तो गांव में रईस शादीखान खोसो जिनको अंग्रेजों की फौज के कर्नल ने बातचीत के लिए प्रातःकाल अति शीघ्र बुलाया।शादीखान के मन में अंग्रेजों की लूट खसोट जबर्दस्ती हिंदुस्तान पर आधिपत्य जमाने के कारण तीव्र क्षोभ और रोष हमेशा से सुनाई देता था।इसलिए क्रोध से वह इस कदर उनके नाम लेने भर से और सुनने भर से ज्वालामुखी की तरह लाल पीला हो गया।

वैसे साधीखान अपने समय और ज़बान का पाबंद हुआ करता था। फेरू खान और शादी खान और उनके खासमखास योद्धा ज़बान और समय के बड़े पाबंद थे। किंतु उस दिन प्रातः जानबूज कर कैंप तक जानें में कुछ ढीलाई लेटलतीफी और लचीलापन दिखाया।जिससे अंग्रेज हुकूमत को कुछ एहसास हो।राजपूत राजा महाराजाओं के साथ रहने से उनका रहन-सहन और मान मनवार भी उन्हीं की तरह हुआ करते थे।सादीखान ने सुबह-सुबह ही गांव के रिवाज अनुसार रिहान की अफीम लिया और दिया।उसके बाद अपने 32 विश्वास पात्र लड़ाकू व्यक्तियों के साथ पुरी तैयारी करके अंग्रेज कर्नल से मिलने के लिए उनके कैंप की ओर रवाना हुए।32 विश्वास पात्र बहादुरों में वसाया खान,अहमद बलोच,फेरुखान बलोच,छोटू खान बलोच, मोहमद हमद बलोच,फतेहमोहमद बलोच,बाधा भील, लउआ भील,चांदिया कामदार शेरसिंह बीखर,राजाखान बलोच, गंगाराम सेठिया सब एक जगह एकत्रित हुए।तब शादीखान ने क्रोध में इस तरह व्याकुल और ललाट पर गमन ना होते हुए शेर की तरह दहाड़ते हुए सबके सामने कहा की हम किसी के सामने मस्तिष्क नहीं झुकाएगें...यदि हमने गोरों(अंग्रेजों) के आगे मस्तक झुकाया तो चौहटन के ऊंचे ऊंचे पहाड़ लज्जित हो जाएंगे...



सादीखान ने राजा खान बलोच को खत लिख कर भेजा और कहा आप उनकी कैंप जाएं और अंग्रेजों को कहें की आप हमेशा की तरह वापस लौट जाएं।राजा खान खत लेकर वहां से अंग्रेज कैंप की और रवाना हुए।राजा खान ने वहां जाते ही कैंप के बाहर खड़े संत्री से पूछा ? साहब कहां हैं ? संत्री ने धीमी आवाज में कहा साहब अंदर है....राजा खान ने अपने पांव आगे लिए जैसे ही कैंप के अंदर पांव रखा ! संतरी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि किसके हुकुम से और क्या व्यवहार से आप अंदर जा रहे हैं ? राजा खान ने सिंधी भाषा में कहा कि हुकुम अल्लाह जो अहे व्यवहार त असां वट लठ जो अहे(राजा खान ने कहा की हुकुम तो हम अल्लाह का मानते हैं और व्यवहार हमारे पास लाठी का है।यह बात सुनकर संतरी गुस्साए और तिलमिला उठे।

     विशेष धन्यवाद यह दो शख्स जिनकी बदौलत 
जैसे ही संतरी ने राजा खान को रोका तो राजा खान ने कहा कि मुझे सिवाय सादीखान के बाकी कोई हुकुम देने वाला होता कौन है ? राजा खान ने अपने बल का प्रयोग करते हुए अंग्रेज सिपाही को धक्का दिया जो जमीन से 20 फुट दूरी पर जाकर गिरा और अपनी म्यान से तलवार निकालते हुए अंदर कैंप में कर्नल को संदेश देने के लिए रवाना हो गया।अंग्रेज कर्नल ने जब राजा खान को नंगी तलवार हाथ में लहराते हुए आते देखा तो अपनी पिस्टल राजा पर दाग दी।लेकिन राजा गोली खाकर गिरा नहीं बल्कि तलवार लेकर कर्नल पर झपटा और उसका काम तमाम कर दिया।


 स्थानीय लोग जिनसे राब्ता हुआ और तहकीकात
रईस सादीखान तक अंग्रेज कंपनी की यह कायराना हरकत और घटना की खबर पहुंच गई।रईस ने अपने सभी वीर साथियों को ललकारा और उन्हें युद्ध के लिए तैयार होने के लिए हुंकार भरी।देखते ही देखते 32 बहादुर पांच सौ फिरंगियों पर इस कदर टूट पड़े की फिरंगिओं के छक्के छुड़ा दिए।घमासान लड़ाई इस कदर हुई कि बलोचों की तलवारों से टोपी वालों की लाशें कट कट कर जमीन पर गाजर मूली की तरह धराशाई होते देखे जा रहे थे।एक तरफ बाधा और लहुआ भी अपने प्राण हथेली पर लेकर लड़ रहे थे "अचानक" बंदूक की गोली वसाया खान की टांग में घुस गई ! उधर से सादीखान ने वसाया खान को लंगड़ाते हुए देख लिया। हौसला अफजाई करते हुए कहा तूं पड़े जद धरा लाजे तूं लंगड़ी टांग लड़...(तुम गिरोगे तो यह धरती लज्जित हो जाएगी इसलिए लंगड़ी टांग पे भी लड़ यह महसूस ना होने दे कि तू लंगड़ा है...


                फेरू खान की कब्र

वसाया खान वीर था उसको इस बात ने अंदर से इतना उफान और इस कदरजोश भरा कि मानो अब तो लाशों के यहां अंबार लगा ही दम लेगा।यह सुनकर खून में उबाल इस कदर आया की तलवार चमकने लगी एक ही टांग पर लड़कर कई अंग्रेज सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया।यह सब मंजर देखकर अंग्रेज सैनिकों के पांव उखड़ गए।और उनके घोड़े भाग खड़े हुए और सैनिक सब वहां से अधमरी हालात में अपने अपने घोड़ों से भाग निकले। इस कदर अंग्रेजी हुकूमत से और उनके सैनिकों को मार गिरा कर चौहटन के बलोचों ने जो यस कमाया और आज भी चौहटन का पर्वत गौरव से ऊंची भुजाओं से रहीस शादी खान का अभिनंदन करता है।

          सादी खान बलोच की कब्र चोहटन 
     ऐतिहासिक कथनों के अनुसार इस जंग में फेरू खान और शादी खान छः अन्य बलोच योद्धा शहीद हो गए।परिणस्वरूप इस युद्ध में सात बलोच योद्धा शाहिद हो गए।सादी खान की लास पहचान में नही आ रही थी।इस बात की पुष्टि के लिए सादी खान की मां ने राजपूत शासकों और योद्धाओं से कहा की मेरा बेटा शेर था।एक बार इन सभी लाशों को देखा जाए जिसकी अंगुलिया मुट्ठी अभी भी तलवार को दबा कर रखी हुई हो वही सादी खान हैं। कहा जाता है चोहटन दरबार ने सादी खान को उसी पहाड़ की आगाेस में परंपरा और सभी रीती रिवाजों के अनुसार दफ़न किया।बाकी के 7 योद्धा जिसमें फेरू खान इनको काबिलाई बलोच स्थानीय जगह निवास नीलसर ले आए।


सात वीर शहीदों की पत्नियां और कुछ परिवार के सदस्य उस मंझर के बाद इस कदर हताश और निराश हो गए की वहां से पलायन कर भलगांव,सामी वेरी के पास रहने चले गए।इसके पश्चात कबिलाई सरदार के तौर पर फैरू खान के वंश में वसाया खान को पगड़ी पहनाई गई और कबीले का सरदार चुना गया।

इस मार्मिक और महासंग्राम लड़ाई से कई सालों तक स्थानीय लोगों के अनुसार गांव के उस और आने और जाने में डर सा लगने लगा था।सभी सात वीर शहीदों की कब्र आज भी निलसर के उस जगह पर आबाद हैं।टीले की ऊंचाई से जहां चोहटन के पर्वत, निलसर की वो खूनी धरा आज भी रो रोकर उनकी विरताओं के चर्चे हर ज़बान पर ला रही हैं।पौराणिक परम्पराओं के अनुसार आज भी फेरू खान के टेभे पर स्थानीय लोग कुन्नी(मीठे चावल) बनाकर बच्चों और मासूम बच्चियों को बांटते हैं।

    राजस्व रिकार्ड अनुसार स्थानीय लोगों और बुजुर्गों द्वारा बकायदा पेमाइश के दौर में उस जगह जहां इन वीर शहीदों के पानी पीने का जल स्रोत था उस जमीं को फेरू खान का टैभे के नाम राजस्व रिकार्ड में नामंत्रण कर दिया गया। जहां सात वीर शहीदों की कब्रिस्तान हैं वहां आज भी स्थानीय लोगों द्वारा कोई खड़ाई या जुताई नही की जा रही हैं।


चौहटन के मुट्ठी भर बलोच ने अंग्रेज सेना के 500 बंदूकधारियों को लोहे के चने चबाने को मजबूत कर दिया था।इस कदर वीरता और साहस से प्रभावित होकर तब अंग्रेज सरकार के एक अफसर ने साधीखान सन ऑफ इज्जत अली खान खोसो गांव चौहटन को एक प्रमाण पत्र दिया था।जितनी तक इनकी औलाद और वंश रहेगा उतनी तक बिना लाइसेंस का हथियार लेकर यह घुमा करेगा।चौहटन के पर्वत के नीचे आज भी साधीखान खोसे की कब्र मौजूद हैं।जिसके अंदर हर सोमवार हिंदू-मुस्लिम जाया करते हैं।महान क्रांतिकारी शादीखान खोसे, फेरू खान,के लिए दिल से खीराज़ ए अकीदत पेश करते हैं ऐसे महान सपूत देश के लिए जिए मरे उनको आज भी दुनिया याद कर सलाम करती है। मैं और मेरा गांव यह फक्र के साथ कह सकते है की हमारी आठवी पीढ़ी थी जिन्होंने अंग्रेजों से मुकाबला किया और उनसे लड़े और शहीद हुए।तभी तो कहता हूं हिम्मत ए बंदा मदद ए खुदा घोड़े जी पुठ तलवार जी मुठ..बलोच धाड़ो हंणदा खाईदा पर गुलामी मंजूर न कंधा