बलराज मधोक
बलराज मधोक | |
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चित्र:Balraj madhok.jpg | |
पद बहाल 1966–1967 | |
पूर्वा धिकारी | बच्छराज व्यास |
उत्तरा धिकारी | दीनदयाल उपाध्याय |
जन्म | 25 फ़रवरी 1920 स्कर्दू, जम्मू और कश्मीर (अब गिलगिट-बल्तीस्तान, पाकिस्तान) |
मृत्यु | 2 मई 2016 राजेन्द्र नगर, दिल्ली | (उम्र 96)
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राजनीतिक दल | भारतीय जन संघ |
शैक्षिक सम्बद्धता | देव कॉलेज, दयानन्द आंग्ल-वैदिक कॉलेज, लाहोर |
व्यवसाय | राजनीतिज्ञ |
पेशा | प्रोफेसर, इतिहास |
धर्म | हिन्दू |
प्रोफेसर बलराज मधोक (२५ फ़रवरी १९२० - ०२ मई २०१६) भारत के एक राष्ट्रवादी विचारक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक, जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक और मन्त्री, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक, भारतीय जन संघ के एक संस्थापक और अध्यक्ष थे। वे उन्नीस सौ साठ के दशक के वरिष्ट राजनेता थे। वे संसद (लोकसभा) के दो बार सदस्य रह चुके हैं। वे गणमान्य शिक्षाविद, विचारक, इतिहासवेत्ता, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक भी थे। न वह खरी-खरी बोलने में हिचकते थे न किसी के सामने अपनी बात रखने में। किसी दौर में वो भारत की दक्षिणपन्थी राजनीति के सिरमौर हुआ करते थे। १९६० के दशक में उन्होने गौहत्या विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व किया।
जीवनी
बलराज मधोक का जन्म २५ फ़रवरी १९२० को जम्मू एवं काश्मीर राज्य के अस्कार्डू में हुआ था। उनका परिवार मूलतः जम्मू का एक खत्री परिवार था जो आर्य समाज से निकट से जुड़ा हुआ था।[1] उनके पिता जगन्नाथ मधोक पश्चिमी पंजाब के गुजरवालां जिले के जालेन के रहने वाले थे। वे जम्मू कश्मीर रियासत के लद्दाख डिविजन में एक कर्मचारी थे।[2] बलराज मधोक का बचपन जालेन में बीता। उन्होने श्रीनगर और जम्मू के प्रिन्स ऑफ वेल्स कॉलेज में हुई। उच्च शिक्षा लाहौर विश्वविद्यालय के दयानन्द ऐंग्लो-वैदिक कॉलेज में हुई। उन्होने १९४० में इतिहास में हॉनर्स के साथ बीए किया।[3]
विनायक दामोदर सावरकर, भगत सिंह और मदन लाल ढींगरा उनके आदर्श थे। सन १९३८ में १८ वर्ष की आयु में अपने छात्रजीवन में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये जिसे वे आर्य समाज के विचारों के निकट समझते थे। सन १९४२ में भारतीय सेना में सेवा (कमीशन) का प्रस्ताव ठुकराते हुए उन्होने आर एस एस के प्रचारक के रूप में देश की सेवा करने का व्रत लिया। १९४२ में उन्हें जम्मू में आरएसएस के प्रचारक का दायित्व सौंपा गया। लगभग ८ मास तक इस कार्य को करते हुए उन्होने संघ का एक नेटवर्क खड़ा किया।[4] बाद १९४४ मे सिर्फ 24 वर्ष की आयु में श्रीनगर के डीएवी पोस्ट ग्रेड्यूट कालेज में इतिहास के व्याख्या बनाए गए। यहाँ भी उन्होने संघ कार्य जारी रखा। उन्होने कश्मीर घाटी में संघ का नेटवर्क खड़ा कर दिया।
अगस्त १९४७ में पाकिस्तान बनने के बाद पूरे जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के षड्यंत्र पूरे उफान पर थे। जवाहर लाल नेहरू, शेख अब्दुल्ला की मोहब्बत में गिरफ्तार थे। जिन्ना की हार्दिक इच्छा थी कि सम्पूर्ण कश्मीर पर पाकिस्तान का शासन हो। वे जम्मू कश्मीर के डोगरा हिन्दू शासक को पदच्युत कर घाटी में इस्लामी शासन की स्थापना करना चाहते थे। पाकिस्तान से भागकर आने वाले हिन्दू शरणार्थी कुछ श्रीनगर भी आए। कुछ संघ की शाखाओं में भी आने लगे। इन लोगों से मधोक ने गुप्त सूचना एकत्र की जिससे पता चला पाकिस्तान २१ अक्टूबर को कश्मीर पर आक्रमण की योजना बना रहा है। यह सूचना उन्होने अधिकारियों को भी बता दी। महाराजा के कहने पर मधोक ने २३ अक्टूबर को श्रीनगर हवाई अड्डे की रक्षा के लिए २०० स्वयंसेवक तैयार किए। समय आने पर ये स्वयंसेवक बहुत काम आए।[5]
१९४८ में मधोक दिल्ली आ गए और पंजाब विश्वविद्यालय कॉलेज में शिक्षण करने लगे जो पंजाब से आए शरणार्थियों की शिक्षा के के लिए स्थापित किया गया था। बाद में वे दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध डीएवी कॉलेज में इतिहास के प्रवक्ता बन गए।
१९५१ में उन्होने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विद्यार्थियों का संगठन है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जब भारतीय जनसंघ की स्थापना की तब मधोक उनके सम्पर्क में आए और पार्टी के प्रचार और विकास में हाथ बंटाया। उन्हें पार्टी का संस्थापक सचिव बनाया गया।
दिल्ली और पंजाब में पार्टी को बढ़ाने का काम मधोक को सौंपा गया। उन्होंने दोनों जगह जनसंघ की राज्य इकाई की स्थापना की। इसी साल मधोक ने आरएसएस की छात्र इकाई एबीवीपी की स्थापना भी की। इसके बाद मधोक निरन्तर बढ़ते रहे। मधोक 1961 में नई दिल्ली से लोकसभा का चुनाव जीते।
वर्ष 1966 में उन्हें भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष बना दिया गया। १९६७ में उन्हीं के नेतृत्व में पहली बार पार्टी ने देशभर में चुनाव लड़ा और 35 सीटें जीतीं। वह खुद भी दूसरी बार दिल्ली से सांसद बने। दिल्ली में जनसंघ ने सात में से छह सीटें जीती थीं, उन्होंने उन जगहों पर जीत हासिल की थीं जहाँ कोई उम्मीद नहीं कर सकता था। यही नहीं, पंजाब में जनसंघ की संयुक्त सरकार बनी थी और उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित आठ प्रमुख राज्यों में जनसंघ मुख्य विपक्षी दल बनने में सफल हुआ था। इसी के बाद ही जनसंघ की विपक्षी दल के तौर पर पुख्ता पहचान बनी।
1968 में जनसंघ अध्यक्ष दीनदयाल उपाध्याय की मुग़लसराय (अब, दीदयाल उपाध्याय नगर) में हुई हत्या के बाद जब भारतीय जनसंघ ने उनकी जगह अटल बिहारी वाजपेयी को अपना अध्यक्ष चुना, तभी से बलराज मधोक के राजनीति में हाशिए में जाने का सिलसिला शुरू हो गया। विश्लेषकों का कहना है कि वाजपेयी और मधोक दोनों ही महत्वाकाँक्षी थे और दोनों ही आगे आना चाहते थे, वाजपेयी मधोक की तुलना में अधिक उदार थे, इसलिए दूसरे लोगों को अधिक स्वीकार्य थे।
1971 में वे लोकसभा चुनाव हार गए। उसी वर्ष इन्दिरा गांधी ने बांग्लादेश को विमुक्त कराया था, जिससे जनसामान्य में कांग्रेस के प्रति भारी समर्थन आ गया था।
अपनी विचारधारा से प्रतिबद्ध होने के बावजूद बलराज मधोक की छवि एक अव्यवहारिक राजनेता की रही। कहा जाता है कि अपनी बेबाक छवि के कारण उनकी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं से नहीं बनती थी, उनमें से एक लालकृष्ण आडवाणी भी थे। यही कारण है कि जिस जनसंघ की स्थापना और उसे बढ़ाने में उनका खास योगदान रहा एक दिन उसी से उन्हें निकाल दिया गया।
फरवरी, 1973 में कानपुर में जनसंघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सामने मधोक ने एक नोट पेश किया। उस नोट में मधोक ने आर्थिक नीति, बैंकों के राष्ट्रीयकरण पर जनसंघ की विचारधारा के उलट बातें कही थीं। इसके अलावा मधोक ने कहा था कि जनसंघ पर आरएसएस का असर बढ़ता जा रहा है। मधोक ने संगठन मंत्रियों को हटाकर जनसंघ की कार्यप्रणाली को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने की मांग भी उठाई थी। लालकृष्ण आडवाणी उस समय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। वे मधोक की इन बातों से इतने नाराज हो गए कि आडवाणी ने मधोक को पार्टी का अनुशासन तोड़ने और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से उन्हें तीन साल के लिये पार्टी से बाहर कर दिया गया। [6]
इसके बारे में दूसरी कहानी यह है कि पार्टी नेतृत्व ने उन्हें एक रिपोर्ट बनाने को दी थी, मधोक ने वह रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष को सौंप दी थी। इससे पहले कि उस रिपोर्ट पर विचार किया जाता, बलराज मधोक का कहना है कि आडवाणी ने कुछ पत्रकारों को लंच पर बुलाया और उस रिपोर्ट की कापी दे दी। अगले दिन जब वो रिपोर्ट अख़बारों में छपी तो मधोक से पूछा गया कि ये रिपोर्ट प्रेस के हाथ में कैसे पहुंची?मधोक इस आरोप से इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने उसी समय अधिवेशन छोड़कर बाहर निकल आये। वे पहले रेलवे स्टेशन पहुँचे और फिर रेलवे लाइन के सहारे चलते चलते अगले स्टेशन पहुँचे और वहाँ से उन्होंने दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ी। मधोक को लगता था जिस तरह दीनदयाल उपाध्याय की भी हत्या की गई थी, उसी तरह उनकी भी हत्या हो सकती है। इसलिए उन्होंने कानपुर स्टेशन से ट्रेन पकड़ने के बजाए अगले स्टेशन से ट्रेन पकड़ना उचित समझा।
पार्टी से निकाले जाने के बाद वे इतने आहत हुए थे कि फिर पार्टी में कभी नहीं लौटे।
उन्होंने राज नारायण से मिलकर चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में भारतीय लोक दल बनवाया, लेकिन तभी आपातकाल लग गया और मधोक को गिरफ़्तार कर लिया गया। उन्होने 18 महीने जेल में बिताए। आपातकाल समाप्त होने के बाद जब जनता पार्टी बनी तो मधोक भी उसमें सम्मिलित हुए। चरण सिंह, राज नारायण और भारतीय जनसंघ तीनों ने ये तय कर लिया कि बलराज मधोक को जनता पार्टी की मुख्य धारा से अलग रखना है। मधोक फिर अलग-थलग पड़ गए। मधोक जनसंघ के जनता पार्टी में विलय के खिलाफ थे। 1979 में उन्होंने जनता पार्टी त्याग दी और 'अखिल भारतीय जनसंघ' नाम से जनसंघ को पुनः जीवित करने का प्रयत्न किया। उन्होंने अपनी पार्टी को बढ़ाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई।
मधोक जनसंघ के जनता पार्टी में विलय के खिलाफ थे। 1979 में उन्होंने 'अखिल भारतीय जनसंघ' को जनता पार्टी से अलग कर लिया। उन्होंने अपनी पार्टी को बढ़ाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई।
96 वर्ष की आयु में 2 मई 2016 को उनकी मृत्यु हो गई।
व्यक्तिगत जीवन
प्रोफेसर बलराज मधोक ने कमला के साथ विवाह किया जो दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थीं। उनकी दो पुत्रियाँ हैं।
अपनी उम्र के अन्तिम दशक में वे उतने सक्रिय तो नहीं रह गये थे किन्तु बीच-बीच में वे न्यू राजेन्द्र नगर आर्य समाज के कार्यक्रमों भाग लेते रहते थे। वे अपनी पुत्रियों के साथ रहते थे। उनका ज्यादातर समय पुस्तकें पढ़ने में ही गुजरता था।
अपने अन्तिम दिनों में वे बीमार चल रहे थे और उन्हें नयी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भरती कराया गया था। ०२ मई २०१६ को उनका निधन हो गया। उनके निधन पर भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और लालकृष्ण आडवानी सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने संवेदना व्यक्त की थी। नरेन्द्र मोदी उनके अन्तिम दर्शन के लिए उनके घर गए थे।
विचारधारा
बहुत कम लोगों को पता है कि मधोक भीमराव आंबेडकर के काफ़ी नज़दीक थे और उनके अंतिम दिनों में अक्सर उनके 26, अलीपुर रोड वाले निवास पर उनसे मिलने जाते थे। वे पूरे भारत में गौहत्या पर प्रतिबंध चाहते थे। उन्होंने पूरे भारत में घूम कर गौ हत्या विरोध का माहौल बनाने की कोशिश की थी। 1968 में वे पहले नेता थे जिन्होंने अयोध्या में बाबरी मस्जिद हिंदुओं के हवाले करने की माँग उठाई थी। उसके बदले में उन्होंने हिंदुओं द्वारा मुसलमानों के लिए एक भव्य मस्जिद बनाने की पेशकश की थी।
बलराज मधोक हिंदुत्व राजनीति के असली संस्थापक थे। उन्होंने अक्तूबर, 1951 में श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ मिल कर भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी लेकिन श्यामा प्रसादजी अधिक दिन जीवित नहीं रहे और जल्दी ही उनका निधन हो गया। इन्होंने भारत के विभाजन से पहले ही हिंदुत्व राजनीति की कई चीजें लिख दी थीं। उन्होंने कई पीढ़ियों पर अपनी छाप छोड़ी थी जिसमें आडवाणी, सुब्रमण्यम स्वामी और नरेन्द्र मोदी शामिल थे।
उन्होंने पहले अपने मित्रों और फिर सहयोगियों को नाराज किया और नाराजगी का ये दायरा बढ़ता चला गया और अंततः वो अलगथलग पड़ गए। शायद दीनदयाल उपाध्याय की हत्या के बाद वो मानते थे कि जनसंघ का नेतृत्व करने की क्षमता सिर्फ़ उनमें ही है, दूसरे किसी में नहीं है। उनकी इस धारणा को न तो उनके सहयोगियों ने माना और न ही संघ ने। यही कारण है कि उनमें असंतोष और निराशा बढ़ती गई और वो अपने सहयोगियों और संघ के बारे में अनाप-शनाप बोलने लगे। वह संगठन कौशल और लोगों को जोड़ने की कला को सीख नहीं पाए और यही उनके राजनैतिक पतन का कारण बना।
बलराज मधोक ने भारतीय अल्पसंख्यकों के कथित "भारतीयकरण" की अवधारणा दी थी। उनका कहना था कि -
- मुसलमानों को भारत की मुख्यधारा में लाने की जरूरत है। इसके लिए दो कदम ज़रूरी हैं। पहला क़दम ये है कि उनके दिमाग से निकालो कि मुसलमान बनने के कारण तुम्हारी संस्कृति बदल गई। संस्कृति तुम्हारी वही है जो भारत की है। भाषा तुम्हारी वही है जो तुम्हारे माँ-बाप की थी। उर्दू, हिन्दी का एक शैली है। मैं भी उसे पसन्द करता हूँ, क्योंकि मेरी शिक्षा भी उर्दू मे हुई है। लेकिन उर्दू मेरी भाषा नहीं है। मेरी भाषा पंजाबी है।
- दूसरी बात उन्हें ये बताओ कि देश माँ की तरह है। सारे जापानी बौद्ध हैं। वो भारत आते हैं। उसे पुण्यभूमि मानते हैं लेकिन वो जापान से प्यार करते हैं। हिन्दुस्तान में इस्लाम के मज़हब को पूजा-विधि के रूप में कोई खतरा नहीं है, लेकिन यहाँ ये नहीं चल सकता कि जो मोहम्मद को माने वो भाई हैं और बाकी काफ़िर हैं।
भारत के विभाजन को मधोक ने कभी स्वीकार नहीं किया और आजीवन हर मंच पर उसका विरोध करते रहे। मधोक का कहना था,
- "दुर्भाग्य ये हुआ कि उस समय हमने विभाजन तो स्वीकार कर लिया लेकिन उससे निकलने वाले परिणामों को अनदेखा कर दिया। विभाजन ने दो बातें साफ़ कर दीं। ये जो 'साझा संस्कृति' को जो बात थी, वो समाप्त हो गई। हर देश की साझा संस्कृति होती है लेकिन कोई इसे 'साझा' नहीं कहता। विश्व में आज सबसे अधिक साझा संस्कृति अमरीका की है लेकिन वो भी उसे साझा नहीं कहते। वो इसे 'अमरीकन कल्चर' कहते हैं। गंगा के अन्दर अनेक नदियाँ मिलती हैं , लेकिन मिलने के बाद गंगाजल हो जाता है। ये 'गंगा-जमुनी' की बात गलत है। जब जमुना, गंगा मे मिल जाती है तो कोई गंगा के पानी को गंगा-जमुनी पानी नहीं कहता। वह गंगाजल कहलाता है।"
बलराज मधोक द्वारा रचित पुस्तकें
श्री बलराज मधोक ने 1947-48 में ऑर्गनाइज़र और 1948 में वीर अर्जुन का सम्पादन किया। सन १९४७ लिखना आरम्भ करके ३० से अधिक पुस्तकें लिखी है। इनमें से प्रमुख हैं:
- विभाजित भारत में मुस्लिम समस्या का पुनरोदय
- कश्मीर : जीत में हार
- खण्डित कश्मीर
- जीत या हार
- डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी - एक जीवनी
- कश्मीर : सेंटर ऑफ़ न्यू अलाइन्मेंट्स
- पाकिस्तान : आदि और अन्त
- जिंदगी का सफर, भाग-१,२,३
- Hindustan on the Cross Roads (Mehta Brothers, Lahore, 1946)
- Portrait of a Martyr: Biography of Shyama Prasad Mukerjee
- Kashmir: The Storm Center of The World (A. Ghosh, Texas, 1992)
- A Story of Bungling in Kashmir (Young Asia Publications, 1972)
- Kargil and Indo-Pak Relations,
- Rationale of Hindu State, etc.
- Kashmir Problem: A Story of Bungling (Bharti Sahitya Sadan, 1952)
- Kashmir: Centre of New Alignments (Deepak Prakashan, 1963)
- Jammu, Kashmir and Ladakh: Problem & Solution (Reliance Publishing House, 1987)
- Kargil and Indo-Pak Relations
- Indian Nationalism (Bharati Sahitya Sadan, 1969)
- Indianisation? What, Why and How (S. Chand, 1970)
- Political Trends in India (S. Chand, 1959)
- India's Foreign Policy & National Affairs (Bharatiya Sahitya Sadan, 1969)
- Murder of Democracy (S. Chand, 1973)
- Reflections of a Detenu (Newman Group, 1978)
- Stormy Decade: Indian Politics, 1970–1980 (Indian Book Gallery, 1980)
- Punjab problem, the Muslim connection (Hindu World Publications, 1985)
सम्मान
- वाकणकर पुरस्कार (२०११)
- वीर सावरकर पुरस्कार (२०१२)
सन्दर्भ
- ↑ Jaffrelot, Religion, Caste and Politics Archived 2019-05-22 at the वेबैक मशीन 2011, p. 288.
- ↑ Balraj Madhok: A Life Sketch" Archived 2017-08-26 at the वेबैक मशीन. Jana Sangh Today. February 2007. Retrieved 3 March 2016.
- ↑ Balraj Madhok: A Life Sketch" Archived 2017-08-26 at the वेबैक मशीन. Jana Sangh Today. February 2007. Retrieved 3 March 2016.
- ↑ "Sahagala, Jammu & Kashmir: A State in Turbulence 2011, p. 73". मूल से 22 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 मई 2020.
- ↑ "Madhok, Kashmir Storm Centre of the World 1992, Chapter 6". मूल से 22 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 मई 2020.
- ↑ "Jaffrelot, Hindu Nationalism Reader 2007, p. 159". मूल से 22 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 मई 2020.