बंदिश
हिन्दुस्तानी गायन या वादन में बंदिश से तात्पर्य एक निश्चित सुरसहित रचना से है। बंदिश किसी विशेष राग में निर्मित होती है। इसे गाने/बजाने के साथ तबला या पखावज द्वारा ताल मिलाया जाता है और सारंगी, वायलिन अथवा हारमोनियम द्वारा सुस्वरता प्रदान की जाती है।
बंदिश मानक संरचित गायन हेतु संगीत को साहित्यिकता प्रदान करती है। भूतकाल में कई घरानों ने अपनी बंदिशों को अपने घराने से बाहर जाने से रोकने के उपाय किए। गायन में 'बंदिश' को 'चीज़' कहते हैं।
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में राग संरक्षण हेतु पारम्पारिक बन्दिशो की महत्वूपर्ण भूमिका रही है। भारतीय रागदारी संगीत में रागों को निर्धारित नियमावली के अन्तर्गत गाया जाता है, जिनको राग के सर्वसाधारण नियम कहते है। तथा यह पारम्पारिक शास्त्रीय बन्दिशों में अत्यन्त सुव्यवस्थित एवं सुगठीत रूप में विद्यमान है। इन बन्दिशों के माध्यम से राग को सहजतापूर्वक पहचाना भी जा सकता है और राग विस्तार करने हेतु बन्दिश मार्गदर्शक का भी कार्य करती है। एक-एक बन्दिश के अन्तर्गत राग का संपूर्ण शास्त्र समाहित है, जो गेय स्वरुप में जल्दही कंठस्थ हो जाता है। रागो के नियमों का निर्वाह इन बन्दिशों द्वारा किया जाता है। उन नियमों को बन्दिश द्वारा गेय रूप में निबद्ध करके रागों को कैसे सुराक्षित किया गया है। इनमें सदारंग-अदारंग इनकी कुछ पारम्पारिक बन्दिशों का उदाहरण स्वरुप कुछ विलंबित तथा मध्यलय के ख्याल बन्दिशपर विचार प्रस्तुत किये जायेंगे।