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फ्रांसिस टरबाइन

एक मिश्रित प्रवाह प्रतिक्रिया टरबाइन है। इसमें दाब पर पानी, रनर की परिधि पर त्रिज्यतः प्रवेश करता है और केन्द्र पर अक्षीय ढंग से बाहर निकलता है। यह टरबाइन सामान्यतया पानी के मध्यम शीर्ष (25 मीटर से 250 मीटर तक) के लिये प्रयोग की जाती है। ऊर्ध्वाधर शाफ्ट वाली टरबाइन है।

पेन-स्टॉक द्वारा पानी जलाशय से टरबाइन तक पहुँचाया जाता है जहाँ यह एक सर्पिल आवरण में प्रवेश करता है। इसके आवरण की काट का क्षेत्रफल पानी के प्रवेश पर अधिकतम होता है और प्रवाह की दिशा में धीरे-धीरे कम होता जाता है। इस आवरण में रनर चारों ओर से बन्द रहता है। आवरण में से पानी, रनर के चारों ओर लगे स्थिर फलक गाइड में से होता हुआ रनर के फलकों में त्रिज्यतः प्रवेश करता है। गाइड फलकों का काम, पानी को रनर में परिधि पर सरल रूप से प्रवेश कराना है। रनर से पानी का निकास अक्षीय होता है और वह ड्राफ्ट ट्यूब में आ जाता है जहाँ से टेल-रेस में भेज दिया जाता है |

इस टरबाइन पर पानी आवरण को पूरा भरकर बहता है। जब पानी रनर फहित होता है तो इसके कम होती जाती है बढ़ती जाती है। रनर फलकों की विशेष आकृति के कारण, फलकों के प्रवेश तथा निकास के बीच दाब अन्तर स्थापित हो जाता है। इस दाब के अन्तर के कारण फलकों पर बल कार्य करता है जिससे रनर अपनी ऊर्ध्वाधर शाफ्ट पर घूमने लगता है। इस प्रकार रनर पर यांत्रिक ऊर्जा प्राप्त होती है। टरबाइन को क्रिया करते समय पानी से पूरा भरा रखना आवश्यक है इसलिये ड्राफ्ट ट्यूब को भी टेल-रेस में जल के अन्दर डुबोकर रखते हैं|

छोटे आकार के रनर ढलवाँ-लोहे के तथा बड़े आकार वालों को ढलवाँ-इस्पात का बनाया जाता है। आवश्यक स्थानों पर रनर काँसे के भी बनाये जाते हैं। फ्रांसिस टरबाइन में 150 MW शक्ति तक प्राप्त की जाती है। इस टरबाइन की दक्षता लगभग 88% होती है।