फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान
फूलों की घाटी (नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान) फूलों की घाटी का जन्म पिंडर से हुआ है जिसे पिंडर घाटी या(pindervalley) भी कहते हैं। पिंड+घाटी पिंड का अर्थ हिम और घाटी का अर्थ पहाड़ों का क्षेत्र जहां महादेव भगवान शिव का निवास होता है जो मुख्य रूप से चमोली जिले के पिंडर घाटी का ही क्षेत्र में स्थित है। और देवी देवताओं का निवास स्थान है आज भी पिंडर घाटी में भगवान शिव के गण और देवताओं के वंशज निवास है, और हर वर्ष माता पार्वती नंदा देवी को हिमालय तक भगवान शिव के तपावस्वी स्थान तक पहुंचाने आते हैं जिसे वर्तमान में नंदा देवी यात्रा या भगवती भैट से भी जाना जाता है Image = | |
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विश्व धरोहर सूची में अंकित नाम | |
देश | भारत |
प्रकार | प्राकृतिक |
मानदंड | vii, x |
सन्दर्भ | 335 |
युनेस्को क्षेत्र | एशिया-प्रशांत |
शिलालेखित इतिहास | |
शिलालेख | 1988 (12वां सत्र) |
विस्तार | 2005 |
फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक फूलों की घाटी का नाम है, जिसे अंग्रेजी में Valley of Flowers कहते हैं। यह भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में है। यह फूलों की घाटी विश्व संगठन, यूनेस्को द्वारा सन् 1982 में घोषित विश्व धरोहर स्थल नन्दा देवी अभयारण्य नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान का एक भाग है। हिमालय क्षेत्र पिंडर घाटी अथवा पिंडर वैली के नाम से भी जाना जाता है,
भौगोलिक स्थिति
यह उद्यान 87.50 किमी² क्षेत्र में फैला हुआ है।
इतिहास
किंवदंती है कि रामायण काल में हनुमान संजीवनी बूटी की खोज में इसी घाटी में पधारे थे। इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ (अंग्रेजी: Frank S Smith) और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ (अंग्रेजी: R.L.Holdsworth) ने लगाया था, जो संंयोग से 1931 में अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे। इसकी बेइंतहा खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1937 में इस घाटी में वापस आये और, 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब प्रकाशित करवायी।[1] हिमाच्छादित पर्वतों से घिरा हुआ और फूलों की 500 से अधिक प्रजातियों से सजा हुआ यह क्षेत्र बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए एक विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया।[2]
भ्रमण का बेहतर माैसम
फूलों की घाटी भ्रमण के लिये जुलाई, अगस्त व सितंबर के महीनों को सर्वोत्तम माना जाता है। सितंबर में ब्रह्मकमल खिलते हैं।
आवागमन
फूलों की घाटी तक पहुँचने के लिए चमोली जिले का अन्तिम बस अड्डा गोविन्दघाट 275 किमी दूर है। जोशीमठ से गोविन्दघाट की दूरी 19 किमी है। यहाँ से प्रवेश स्थल की दूरी लगभग 13 किमी है जहाँ से पर्यटक 3 किमी लम्बी व आधा किमी चौड़ी फूलों की घाटी में घूम सकते हैं।
पायी जाने वाली पुष्प प्रजातियॉं
नवम्बर से मई माह के मध्य घाटी सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है। जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान एल्पाइन जड़ी की छाल की पंखुडियों में रंग छिपे रहते हैं। यहाँ सामान्यतः पाये जाने वाले फूलों के पौधों में एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि प्रमुख हैं।
विभिन्न पुष्प चित्र
- गुलाबी पुष्प पर ओस की बूँदें
- बहुमंजिला पुष्प
- एक मनोहारी श्वेत पुष्प
- एक पुष्प
सन्दर्भ
- ↑ फूलों की घाटी Archived 2010-06-26 at the वेबैक मशीन। रीडर्स कैफ़े-उत्तरांचल
- ↑ पादप एवं पशु जगत[मृत कड़ियाँ]। चारधाम