फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता
Pulmonary embolism वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
Chest spiral CT scan with radiocontrast agent showing multiple filling defects of principal branches of the pulmonary arteries, due to acute and chronic pulmonary embolism. | |
आईसीडी-१० | I26. |
आईसीडी-९ | 415.1 |
डिज़ीज़-डीबी | 10956 |
मेडलाइन प्लस | 000132 |
ईमेडिसिन | med/1958 emerg/490 radio/582 |
एम.ईएसएच | D011655 |
फुफ्फुसीय अन्त: शल्यता (PE) फेफड़े की मुख्य धमनी या इसके किसी भाग में किसी पदार्थ के द्वारा होने वाला एक रूकावट है जो शरीर के किसी अन्य भाग से रक्त प्रवाह (इंबोलिज्म) के माध्यम से आता है। यह आमतौर पर पैर के गहरे नसों सेथ्रंबस(रक्त थक्का) के एंबोलिज्म को कारण होता है, इस प्रक्रिया को शिरापरक थ्रंबोइंबोलिज्म कहते हैं। इसका एक छोटा अनुपात हवा, वसा या उल्बीय तरल के इंबोलाइजेशन के कारण होता है। फेफड़े में रक्त प्रवाह की रूकावट और परिणामस्वरूप हृदय केदाहिने सुराग में दबाव पीई के लक्षण और संकेत को दिशा देता है। विभिन्न अवस्थाओं में पीई का खतरा बढ़ जाता है, जैसेकिकैंसर और लंबे समय का आराम.[1]
फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता के लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, छाती में अचानक दर्द और घबराहट होना शामिल है। नैदानिक लक्षणों में निम्न रक्त ऑक्सीजन संतृप्ति और श्यावता,सांस तेज होना और दिल का तेजी से धड़कना शामिल हैं। पीई के गंभीर मामले शक्तिपात, असामान्य निम्न रक्त चाप और अचानक मौत की ओर ले जाते हैं।[1]
निदान परीक्षण इन चिकित्सकीय निष्कर्षों के साथ ही प्रयोगशाला परीक्षण (जैसे कि डी-डीमर परीक्षण) इमेंजिंग अध्ययन, प्राय: सीटी फुफ्फुसीय एंजियोग्राफी पर आधारित है। उपचार आमतौर पर एंटिकोगुलंट मेडिकेशन के साथ हपारिन तथा वारफरिन से किया जाता है। गंभीर मामलों मेंथ्रंबोलाइसिस के साथ टिशु प्लासमिनोजेन एक्टिवेटर(tPA) की जरूरत होती है या फुफ्फुसीय थ्रंबेक्टोमी से होकर शल्य हस्तक्षेप की जरूरत पड़ सकती है।[1]
संकेत और लक्षण
डिस्पिनिया (सांस की कमी) का अचानक आक्रमण,टैचिप्निया (तेजी से सांस लेना), "प्ल्युरिटिक" तरह का छाती में दर्द(सांस लेकर बुरा हाल), कफ एवं हेमोप्टाइसिस (कफ के साथ खून आना) पीई के लक्षण हैं। अधिक गंभीर मामलों मेंसियानोसिस (नीला धब्बा, प्राय: होंठ और अंगुलियों के), शक्तिपात और संचार स्थिरता को शामिल किया जा सकता है। पीई के कुल मामले में से 15% की अचानक मौत हो जाना निश्चित होता है।[1]
शारीरिक परीक्षा करते समय स्टेथेस्कोप को फेफड़े के प्रभावित क्षेत्रों पर रखने से फुफ्फुस रगड़ को सुना जा सकता है। दांयी वेंट्रिकल पर तनाव को बांया पैरास्टरनल सूजन, द्वितीय हृदय ध्वनि के एक लाउड फुफ्फुसीय घटक, के रूप में पता किया जा सकता है, यह कंठ से जुड़े शिरा दबाव और दुर्लभ पांव सूजन को बढ़ा देती है।[1]
प्राय: 14% फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता वाले व्यक्तियों में निम्न स्तर का बुखार पाया जाता है।[2]
रोग निदान
पीई का निदान मुख्य रूप से चुनिंदा परीक्षण युक्त विधिमान्य चिकित्सकीय मानदण्ड पर आधारित है क्योंकि पारंपरिक नैदानिक प्रतिपादन (सांस की तकलीफ, सीने में दर्द) को निश्चित तौर पर सीने में दर्द तथा सासं की तकलीफ के अन्य कारणों से अलग नहीं किया जा सकता। मेडिकल इमेजिंग करने का निर्णय आमतौर पर क्लीनिकल ग्राउण्ड पर आधारित है, अर्थात् चिकित्सकीय इतिहास, लक्षण एवं शारीरिक परीक्षण के पश्चात चिकित्सकीय संभाव्यता का मूल्यांकन किया जाता है।[1]
चिकित्सकीय संभाव्यता की भविष्यवाणी के लिए सर्वाधिक उपयोग में लाई जाने वाली विधि, वेल्स स्कोर, एक चिकिस्कीय भविष्यवाणी नियम है जिसका उपयोग उसके एकाधिक संस्करण होने के कारण जटिल है। 1995 में वेल्स एट अल. ने शुरूआती तौर पर चिकित्सकीय मानदंड पर आधारित एक भविष्यवाणी नियम (एक साहित्य खोज पर आधारित) का विकास किया, जिससे PE की सम्भावना की भाविष्यवाणी की जा सके.[3] भविष्यवाणी नियम को 1998 में संशोधित किया गया[4] इस भविष्यवाणी नियम को बाद में वेल्स एट अल द्वारा इसके सत्यापन के दौरान इसे 2000 साल में सरलीकृत किया गया।[5] 2000 साल के प्रकाशन में, वेल्स ने समान भविष्यवाणी नियम के साथ 2 या 4 के कटऑफ्स का प्रयोग करते हुए दो भिन्न स्कोरिंग व्यवस्था प्रस्तावित की.[5] 2001 में, वेल्स ने तीन श्रेणी बनाने के लिए 2 से अधिक कटऑफ का प्रयोग कर निष्कर्ष प्रकाशित कराया.[6] एक अतिरिक्त संस्करण को, 2 के अद्यतन कटऑफ का प्रयोग कर "संशोधित विस्तृत संस्करण" लेकिन वेल्स के प्रारंभिक अध्ययनों[3][4] के निष्कर्षों को शामिल करते हुए प्रस्तावित किया गया।[7] बहुत हाल ही में, बाद के एक अध्ययन ने केवल दो श्रेणी के निर्माण के लिए वेल्स के 4 प्वाइंट[5] के एक कटऑफ के प्रारंभिक उपयोग को उलट दिया.[8]
PE के लिए जेनेवा नियम जैसे अतिरिक्त भविष्यवाणी नियम हैं। अधिक महत्वपूर्ण रूप से, किसी भी नियम का उपयोग थ्रंबोइबोलिज्म के आवर्तक में कमी के साथ जुड़ा हुआ है।[9]
वेल्स स्कोर:[10]
- चिकित्सकीय रूप से संदिग्ध DVT - 3.0 अंक
- वैकल्पिक निदान पीई की तुलना में कम संभावित होता है - 3.0 अंक
- टैचिकार्डिया - 1.5 अंक
- पिछले चार हफ्तों में स्थिरीकरण/ सर्जरी - 1.5 अंक
- PE याDVT का इतिहास - 1.5 अंक
- हेमोप्टाइसिस - 1.0 अंक
- हानिकरता (6 महीने के अंदर इलाज के लिए, प्रशामक) -1.0 अंक
- स्कोर 6.0> - उच्च (एकत्रित डेटा पर 59% संभाव्यता[12])
- स्कोर 2.0 से 6.0 - मध्यम (एकत्रित डेटा पर 29% संभाव्यता[12])
- स्कोर<2.0 - निम्न (एकत्रित डेटा पर 15% संभाव्यता[12])
- स्कोर> 4 - पीई की संभावना>. नैदानिक इमेजिंग पर विचार करें.
- स्कोर> 4 या कम - पीई संभावना नहीं है। PE को हटाने के लिए डी-डिमर पर विचार करें. .
रक्त परीक्षण
पहले के प्राथमिक अनुसंधान से पता चलता है कि PE का निम्न/मंद संदेह, एक सामान्य डी-डिमर स्तर (रक्त परीक्षण में दर्शाया हुआ), थ्रंबोटिक PE की संभावना को बाहर करने के लिए काफी है।[13] PE के निम्न पूर्व-परीक्षण संभाव्यता युक्त रोगी के अध्ययनों की हालिया सुनियोजित समीक्षा द्वारा इसकी पुष्टि की गई है और नकारात्मक डी-डिमर परिणाम ने इस इस तरह के आचरण से अलग किए गए रोगियों में थ्रंबोइंबोलिक परिघटना के तीन महीने का खतरा पाया और जो 0.05 से 0 .41 % के विश्वास अन्तराल 95% युक्त 0.14 % था, यद्दपि यह समीक्षा केवल एक रैंडोमाइज्ड कंट्रोल्ड चिकित्सकीय परीक्षण के द्वारा सीमित था, अध्ययन का अवशेष भविष्यदर्शी साथियों द्वारा किया जा रहा है।
जब एक PE का पता किया जा किया जा रहा होता है, PE के दोयम दर्जे के महत्वपूर्ण कारणों को हटाने के लिए भारी संख्या में रक्त परीक्षण किये जाते हैं। इनमें पूर्ण रक्त गणना, थक्के की अवस्था(PT,aPTT, TT) एवं कुछ स्क्रीनिंग परीक्षण (एरिथ्रोसाइट सेडिमेंटेशन दर, रेनल कार्य, लीवर एंजाइम, इलेक्ट्रोलाइट्स) शामिल हैं। इनमें से यदि एक भी असामान्य है, तो आगे की जांच जारी रह सकती है।
मेडिकल इमेजिंग
फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता (पीई) के इलाज का सबसे अच्छा फुफ्फुसीय एंजियोग्राफी निदान है। सीटी स्कैन की व्यापक स्वीकृति के कारण, जो गैर-आक्रामक है, फुफ्फुसीय एंजियोग्राफी का अक्सर कम ही प्रयोग किया जाता है।
- गैर-आक्रामक इमेजिंग
सीटी फुफ्फुसीय एंजियोग्राफी(CTPA) दांया हृदय कैथीटेराइजेशन की बजाय रेडियोकंट्रास्ट युक्त कम्प्युटेड टोमोग्राफी का उपयोग कर हासिल किया गया एक फुफ्फुसीय एंजियोग्राम होता है। इसकी नैदानिक तुल्यता, इसकी गैर-आक्रामक प्रकृति, अधिक से अधिक रोगियों के लिए इसकी उपलब्धता और फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता न होने के मामले में विभेदक इलाज के द्वारा अन्य फेफड़े की बिमारियों की पहचान इसके फायदे हैं। सीटी फुफ्फुसीय एंजियोग्राफी की सटीकता का मूल्यांकन मल्टिडिटेक्टर सीटी (MDCT) मशीनों में उपलब्ध डिटेक्टरों की कतारों की संख्या में तीव्र परिवर्तन द्वारा किया जाता है।[14]. एक समूह के अध्ययन के अनुसार एकल- टुकड़ा सर्पिल सीटी फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता के संदिग्ध रोगियों के बीच इलाज का पता लगाने में मदद कर सकता है।[15] इस अध्ययन में 69% संवेदनशीलता और 84% विशिष्टता थी। इस अध्ययन में, जिसके पास रोग की खोज का प्रचलन 32% था, 67% का सकरामत्मक भविष्यसूचक मूल्य और 85.2% का नकारात्मक भविष्यसूचक मूल्य(उच्चतर या कम जोखिम वाले मरीजों की पहचान के परिणामों को समायोजित करने के लिए यहाँ क्लिक करें Archived 2011-09-30 at the वेबैक मशीन). हालांकि, इस अध्ययन के परिणाम संभवत: संयोग पूर्वाग्रह की वजह से पक्षपाती हो सकते है, लेकिन फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता के रोगियों में CT स्केन अंतिम नैदानिक उपकरण था। लेखकों ने ध्यान रखा कि एक नकारात्मक एकल टुकड़ा सीटी स्कैन अपनी बदौलत फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता को हटाने के लिए अपर्याप्त है। 4 टुकड़े और 16 टुकड़े स्कैनरों के एक मिश्रण युक्त एक अलग अध्ययन ने 83% की संवेदनशीलता तथा 96% की विशिष्टता को सूचित किया। इस अध्ययन ने टिपण्णी किया कि अतिरिक्त परीक्षण आवश्यक है यदि नैदानिक संभावना इमेजिंग से असंगत है।[16] CTPA VQ स्कैनिंग से निम्न नहीं है और VQ स्कैनिंग से अधिक एम्बोली की पहचान (परिणाम में आवश्यक सुधार के बिना) करता है।[17]
वेंटिलेशन/परफ्युजन स्कैन (या V/Q स्कैन या फेफड़ा सिंटिग्राफी), जो यह दिखाता है कि फेफड़े के कुछ भाग में हवा दी जा रही है लेकिन रक्त के साथ उनका छिडकाव नहीं किया जा रहा (थक्के के द्वारा रुकावट के कारण). सीटी तकनीक की अधिक व्यापक उपलब्धता के कारण इस प्रकार की परीक्षा प्रयोग प्रायः कम किया जाता है, हालांकि आयोडाइनेटेड कंट्रास्ट से एलर्जी वाले रोगियों में या सीटी से कम रेडियेशन प्रदर्शन के कारण गर्भावस्था में यह उपयोगी हो सकता है।[18]
- निम्न संभाव्यता नैदानिक परीक्षण/ गैर नैदानिक परीक्षण
परीक्षण जो अक्सर किए जाते हैं, वो PE के लिए संवेदनशील नहीं होते, लेकिन वे नैदानिक हो सकते हैं।
- चेस्ट एक्स-रे अक्सर सांस की तकलीफ वाले मरीजों पर अन्य कारणों, जैसे कंगेस्टिव हर्ट फेलिअर और रिब फ्रैक्चर, को दूर करने के लिए किया जाता है। PE में चेस्ट एक्स-रे शायद ही कभी सामान्य होता है,[19] बल्कि संकेत को प्राय: कम करता है, जो PE के इलाज को सुझाव देते हैं (अर्थात् वेस्टरमार्क संकेतहंप्टन का हंप).
- गहन शिरापरक थ्रोंबोसिस की खोज में पैरों का अल्ट्रासोनोग्राफी, जिसे लेग डॉप्पलर के रूप में भी जाना जाता है। पैरों के अल्ट्रासोनोग्राफी में दर्शायी गयी, DVT की उपस्थिति, V/Q या स्पाइरल सीटी स्केन की जरूरत के बिना ही वारंट एंटीकोगुलेशन के लिए खुद में पर्याप्त होती है। गर्भावस्था में यह वैध दृष्टिकोण हो सकता है, जिसमें अन्य तौर-तरीके अजन्मे शिशु में जन्म दोष के खतरे को बढ़ा सकते हैं। हालांकि, एक नकारात्मक स्केन पीई को दूर नहीं कर सकता और निम्न रेडियेशन खुराक स्केनिंग की जरूरत पड़ सकती है यदि मां फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता होने के उच्च जोखिम पर होती है।
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम निष्कर्ष
एक इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम(ईसीजी) सीने के दर्द वाले मरीजों पर, मायोकार्डियल इनफार्क्शन(दिल के दौरे) के जल्द इलाज के लिए, नियमित तौर पर किया जाता है। एक ईसीजी दाहिने हृदय के तनाव को या गंभीर PEs के मामले में तीव्रकोर पलमोनेल को दरशा सकता है - लेड I में एक दीर्घ S वेव, लेड II में एक दीर्घ Q वेव, लेड III में एक उल्टा T वेव ("S1Q3T3") क्लासिक संकेत हैं।[20] यह कभी कभी मौजूद होता है (20% तक), लेकिन अन्य गंभीर फेफड़ों की स्थिति में भी पैदा हो सकता है और इसके पास सीमित नैदानिक मूल्य हैं। ईसीजी में सामान्यत: अधिकांश दिखाई पड़ने वाला संकेत साइनस टैचिकार्डिया है, दांया अक्ष विचलन और दांया गठ्ठा शाखा अवरोध है।[21] साइनस टैचिकार्डिया हलांकि अभी भी PE ग्रस्त 8-69% लोगों में पाया जाता है।[22]
इकोकार्डियोग्राफी के निष्कर्ष
गंभीर और कुछ कम गंभीर PE में इकोकार्डियोग्राफी पर हृदय के दांईं ओर की अकर्मण्यता को देखा जा सकता है, यह एक संकेत कि फुफ्फुसीय धमनी गंभीर रूप से बाधित है और हृदय दबाव को मैच करने में असमर्थ है। कुछ अध्ययनों (नीचे देखें) का सुझाव है कि यह खोज थ्रोंबोलाइसिस के लिए एक संकेत हो सकता है। फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता (संदिग्ध) के हर मरीज के लिए इकोकार्डियोग्राम की जरूरत नहीं होती, लोकिन कार्डियक ट्रोपोनिन्स या दिमागी न्युट्रियुरेटिक पेप्टाइडमें बढ़ोतरी हृदय के तनाव का संकेत देती है और इकोकार्डियोग्राम को न्यायसंगत ठहराती है।[23]
इकोकार्डियोग्राफी पर दायें वेंट्रिकल की विशिष्ट उपस्थिति को McConnell's संकेत के रूप में संदर्भित किया जाता है। यह मध्य मुक्त दीवार लेकिन सिरा की सामान्य गति के अकिनेसिया की खोज है। इस तथ्य में तीक्ष्ण फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता के इलाज के लिए 77% संवेदनशीलता और 94% विशिष्टता है।[24]
एल्गोरिथ्म्स में परीक्षणों का संयोजन
एक नैदानिक एल्गोरिथ्म के लिए हाल ही की सिफारिशें PIOPED जंचकर्ताओं द्वारा प्रकाशित किया गया है, लेकिन ये सिफारिशें 64 स्लाइस MDCT 64 का उपयोग कर किए गए अनुसंधान को प्रतिबिंबित नहीं करती.[12] इन जांचकर्ताओं ने सिफारिश की:
- निम्न नैदानिक संभाव्यता. अगर नकारात्मक डी-डिमर, पीई शामिल नहीं है। यदि सकारात्मक डी-डिमर, MDCT को प्राप्त करता है और उपचार को परिणामों पर आधारित कर देता है।
- उदार नैदानिक संभाव्यता. अगर नकारात्मक डी-डिमर, पीई शामिल नहीं है। हालांकि, लेखकों को इस बात से लेना-देना नहीं था कि इस सेटिंग में नाकारात्मक डी-डिमर युक्त नकारात्मक MDCT के पास 5% ही झूठ होने की सम्भावना है। मुमकिन है, 64 टुकड़ा MDCT का और अधिक प्रयोग किया जाता है तो 5% त्रुटि दर नीचे आ जायेगा. यदि सकारात्मक डी-डिमर, MDCT को प्राप्त करता है और उपचार को परिणामों पर आधारित करता है।
- उच्च नैदानिक संभाव्यता. MDCT तक जाता है। सकारात्मक है, तो इलाज करता है, अगर नकारात्मक है, तो पीई को दूर करने के लिए अतिरिक्त परीक्षण की आवश्यकता पड़ती है।
फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता को दूर करने का मानदंड
फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता को दूर करने का मानदंड, या PERC नियम, उन रोगियों का आकलन करने में मदद करता है, जिनमें फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता के होने का संदेह है, लेकिन संभावना नहीं है। वेल्स स्कोर और जिनेवा स्कोर के विपरीत, जो पीई होने के संदेह युक्त रोगियों के खतरों को वर्गीकृत करने के भावी नौदानिक भविष्यवाणी हैं, PERC नियम को रोगियों में PE के खतरे को दूर करने के लिए डिजाइन किया जाता है जब चिकित्सक पहले ही उन्हें कम खतरे वाले वर्ग में वर्गीकृत कर चुके होते हैं।
इनमें से किसी भी मानदण्ड के बिना कम खतरे वाले वर्ग के रोगी पीई के लिए आगे के परीक्षणों से नहीं भी गुजर सकते हैं : हाइपोक्सिया - SaO2 <95%, एकतरफा पैरों में सुजन, हेमेप्टाइसिस, पूर्व डीवीटी या पीई, अद्यतन शल्यक्रिया या ट्रउमा, उम्र>50 हार्मोन उपयोग, टैचिकार्डिया. इस निर्णय के पीछे का तर्क है कि बाद के परीक्षण (विशेष रूप से छाती का सीटी एंजियोग्राम) पीई के खतरे से अधिक नुकसान (रेडिएशन पड़ने और कन्ट्रास्ट डाइ) के कारण बन सकरते हैं।[25] PERC नियम के अंदर 1.0% (16/1666) के एक मिथ्या नकारात्मक दर के साथ 97.4% की संवेदनशीलता और 21.9% की विशिष्टता है।[26]
उपचार
ज्यादातर मामलों में, एंटिकोगुलंट थ्रिरेपी उपचार का मुख्य आधार है। तीव्र रूप से, सहायक उपचार, जैसे ऑक्सीजन या एनलजेसिया की प्राय: जरूरत पड़ती है।
एंटिकोगुलेशन
अधिकतर मामलों में सबसे अधिक, एंटिकोगुलेंट चिकित्सा उपचार का मुख्य आधार है। हपारिन, निम्न आणविक भार हपारिन्स (जैसे एनोक्सापारिन और डाल्टेपारिन) या फोंडापैरिनक्स को शूरू में प्रशासित किया जाता है, जबकि वारफारिन, असिनोकाउमरोल, या फेनप्रोकोउमोन थिरेपी की शुरूआत की जाती है (इसमें कई दिनों का समय लग सकता है, प्राय: जब रोगी अस्पताल में होता है). कोचरेम सहयोग के द्वारा रैंडोमाइज्ड नियंत्रित परीक्षण की सुनियोजित समीक्षा के अनुसार हपारिन की तुलना में निम्न आणविक भार हपारिन फुफ्फुसीय अंत:शल्यता के रोगियों के बीच ब्लिडिंग को कम कर सकता है।[27]सापेक्षिक जोखिम कमी 40.0% थी। इस पर अध्ययन के समान जोखिम वाले रोगियों में (निम्न आणविक भार हपारिन से इलाज नहीं करने पर 2.0% रोगियों में ब्लिडिंग हो रहा था), यह 8% की निरपेक्ष कमी का नेतृत्व करता है। 125.0 रोगियों का इलाज उनके लाभ के लिए किया जाना चाहिए (इलाज के लिए जरूरतमंदों की संख्या= 125.0. ब्लिंडिग के निम्न और उच्च खतरे वाले रोगियों के लिए इन परिणामों को समायोजित करने के लिए यहां क्लिक करें Archived 2011-07-22 at the वेबैक मशीन).
यह हालांकि संभव है कि निम्न खतरे वाले रोगियों का इलाज बाह्यरोगियों की तरह किया जाय.[28] एक चल रहा चिकित्सीय परीक्षण[29] प्रेक्षणीय आध्ययनों के एक अद्यतन सुनियोजित समीक्षा द्वारा संक्षेपित साक्ष्य के आधार पर इस अभ्यास की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस सुनियोजित समीक्षा ने रोगसूचक फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता वाले बाह्यरोगियों के इलाज की जांच की और पाया कि सभी कारणों से मृत्यु की श्रेणी 5 से 44%, अन्य जटिलताओं की घटना जैसे आवर्ती थ्रोंबोइबोलिज्म की श्रेणी 1 से 9%, तथा गंभीर ब्लिडिंग की श्रेणी 0 से 4 % थी।[30]
वारफरिन चिकित्सा में अक्सर INR के आवर्ती खुराक समायोजन और निगरानी की जरूरत पड़ती है। पीई में, 2.0 और 3.0 के बीच INRs को सामान्यत: आदर्श माना जाता है। वारफरिन उपचार के अंतर्गत पीई का कोई अन्य प्रकरण उपस्थित होता है तो INR खिड़की को उदारणार्थ 2.5 -3.5 तक बढाया जा सकता है (जबतक काँट्रेइंडिकेशन रहता है) या एंटिकोगुलेशन एक भिन्न एंटिकोगुलेंट में परिवर्तित हो जाता है उदारणार्थ निम्न आणविक भार हपारिन. एक अंतर्निहित आसाध्यता वाले रोगी के लिए क्लॉट परीक्षण के परिणामों पर आधारित वारफरिन पर निम्न आणविक भार हपारिन कोर्स थ्रिरेपी का समर्थन किया जा सकता है।[31] इसी तरह, गर्भवती महिलाओं की भी प्राय: वारफरिन के ज्ञात टैरेटोजेनिक प्रभाव को रोकने के लिए, विशेषकर गर्भावस्था के प्रारंभिक चरणों में, निम्न आणविक भार हपारिन पर देखरेख की जाती है। लोग आमतौर पर उपचार के प्रारंभिक चरणों में अस्पताल में भर्ती कराये जाते हैं और अंत:रोगी देखभाल के अंतर्गत रखे जाते हैं, जबतक INR उपचारात्मक स्तर पर नहीं पहुंच जाता. इसके बाद, कम जोखिम वाले मामलों को DVT के उपचार में आमतौर पर पहले से प्रचलित परम्परा में बाह्यरोगी आधार पर व्यवस्थित किया जाता है।[32]
वारफरिन चिकित्सा आमतौर पर 3-6 महीने तक चलती है, या "आजीवन" अगर DVTs या PEs, या सामान्य जोखिम वाले कारकों में से कोई भी मौजूद नहीं हो. चिकित्सा के अंत में डी-डिमर का असमान्य स्तर प्रथम अनुत्तेजित फुफ्फुसीय एंबोलस रोगियों में इलाज के जारी रखने का संकेत दे सकता है।[33]
थ्रंबोलाइसिस
गंभीर PE के कारण हुई हेमोडाइनेमिक अस्थिरता (सदमा और/या हाइपोटेंशन, एक सिस्टोलिक रक्तचाप के रूप में परिभाषित <90 mmHg या 40 mmHg के एक दबाव ड्रॉप> 15 min के लिए यदि न्यू-ऑनसेट अरहाइथ्मिया, हाइपोवोलेमिया या सेप्सिस के कारण से नहीं) थ्रंबोलाइसिस, मेडिकेशन युक्त क्लॉट के एंजाइमेटिक क्षरण, के लिए एक संकेत है। इस तरह की अवस्था में चिकित्सा उपचार में उपलब्ध यह सबसे अच्छा है और नैदानिक दिशा निर्देशों द्वारा समर्थित है।[34][35][36]
अगंभीर PEs में थ्रंबोलाइसिस का उपयोग अभी भी बहस का विषय है। थिरेपी का उद्देश्य थक्के को भंग करना है, लेकिन वहां स्ट्रोक या ब्लिडिंग का एक आनुषंगिक खतरा रहता है।[37] थ्रंबोलाइसिस का मुख्य संकेत उपगंभीर PE में है जहां दांया वेन्ट्रिकुलर दुष्क्रिया को इकोकार्डियोग्राफी पर और प्रांगण में दिखाई देने योग्य थ्रोंबस की उस्थिति को प्रमाणित किया जा सकता है।[38]
सर्जिकल प्रबंधन
तीव्र फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता (फुफ्फुसीय थ्रोंबेक्टमी) का सर्जिकल प्रबंधन असाधारण और खराब लंबे परिणामों की वजह से व्यापक तौर पर उपेक्षित होता है। हालांकि, हाल ही में, यह सर्जिकल तकनीक के संशोधन के साथ पुनरुत्थान की ओर बढ़ा है और लगता है कि यह कुछ चुनिन्दा रोगियों के लिए लाभकारी है।[39]
क्रोनिक फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता फुफ्फुसीय उच्च रक्तचाप (क्रॉनिक थ्रंबोइमबोलिक हाइपरटेंशन के रूप में ज्ञात) की ओर बढ़ जाता है जिसका इलाज फुफ्फुसीय थ्रंबोइंडारटेरेक्टोमी के रूप में ज्ञात सर्जिकल प्रक्रिया द्वारा किया जाता है।
निम्म वेना कावा फिल्टर
अगर एंटिकोगुलेंट चिकित्सा प्रतिदिष्टित और/या अप्रभावी होती है, या नए एंबोली को फुफ्फुसीय धमनी में प्रवेश करने से रोकती है और एक मौजूद रूकावट के साथ जुड़ जाती है तब एक निम्न वेना कावा फिल्टर का प्रत्यारोपण किया जा सकता है।[40]
पूर्वानुमान
पीई का इलाज नहीं कराने पर 26% की मौत हो जाती है। यह आंकड़ा, 1960 में बैरिट और जॉर्डन[41] द्वारा प्रकाशित एक परीक्षण का है, जो पीई के प्रबंधन के लिए प्रायोगिक औषध के विरूद्ध एंटिकोगुलेशन की तुलना करता है। बैरिट और जॉर्डन ने अपना अध्ययन 1957 में ब्रिस्टॉल रॉयल इनफरमैरी में किया था। केवल यह अध्ययन ही अबतक प्रायोगिक औषध नियंत्रित परीक्षण है जो पीई के इलाज में एंटिकोगुलेंट्स के स्थान की जांच करता है और जिसके परिणाम इतने विश्वसनीय हैं कि परीक्षण को कभी दुहराया नहीं जाता मानो ऐसा करना कोई अनैतिक काम हो. कहा गया, प्रायोगिक औषध समूह में 26% मृत्यु दर की रिपोर्ट संभवत: बड़बोलापन है और बताया गया क़ि आज की तकनीक ने केवल गंभीर PEs की ही पहचान की है।
पूर्वानुमान प्रभावित फेफड़े की मात्रा और अन्य मेडिकल अवस्थाओं के सह-अस्तित्व पर निर्भर करता है; फेफड़े का क्रोनिक इंबोलाइजेशन फुफ्फुसीय हाइपरटेंशन की ओर बढ़ जाता है। एक गंभीर पीई के बाद, रोगी को जिन्दा रखने के लिए एंबोलस को किसी तरह सुलझाना अत्यन्त आवश्यक है। थ्रंबोटिक पीई में, खून के थक्के को फिब्रिनोलाइसिस द्वारा तोड़ा जा सकता है, या इसको व्यवस्थित और दुबारा सारणिबद्ध किया जा सकता है जिससे कि थक्के से एक नया चैनल बन सके. एक पीई के बाद पहले या दुसरे दिन रक्त प्रवाह को बडी तेजी से प्रत्यावर्तित किया जाता है।[42] इसके बाद सुधार उसे धीमा कर देती है और कुछ दोष स्थायी रूप से रह सकते हैं। इस पर विवाद है कि क्या छोटे सबसगमेंटल PEs का पूरी तरह से इलाज किया जा सकता है या नहीं और कुछ साक्ष्य हैं कि सबसंगमेंटल PEs से ग्रस्त रोगी बिना इलाज के भी अच्छा कर सकते हैं।[16][43][44]
एक बार एंटिकोगुलेशन के बंद होने पर है, घातक फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता का जोखिम प्रति वर्ष 0.5% है।[45]
मृत्यु दर की भविष्यवाणी
PESI और जिनेवा भविष्यवाणी नियम मृत्यु दर का अनुमान और रोगियों, जिन्हे बाह्यरोगी थिरेपी के योग्य समझा जा सकता है, के बहुत सारे मार्गदर्शम का चयन कर सकते हैं।[46]
अंतर्निहित कारण
प्रथम पीई के बाद, दुसरे दर्जे के कारणों की खोज आमतौर पर संक्षिप्त होती है। केवल जब दूसरा PE घटित होता है और विशेषकर जब एंटिकोगुलेंट थिरेपी चल रही होती है, अंतर्निहित परिस्थितियों के लिए आगे की एक खोज को जारी रखा जाता है। इसमें फैक्टर V लेडेन म्युटेशन ("थ्रंबोफिलिया स्क्रीन"), एंटिफोस्फोलिपिड एंटिबॉडीज, प्रोटीन सी एवं एस, एंटिथ्रोंबिन स्तर, एवं बाद का प्रोथ्रोंबिन म्युटेशन, MTHFR म्युटेशन, फैक्टर VIII एकाग्रता और दुर्लभ आनुवांशिक कोगुलेशन असमान्यताओं के लिए परीक्षण शामिल होंगे.
जानपदिकरोग विज्ञान (एपिडेमियोलॉजी)
जोखिम के कारक
अन्त: शल्यता के सबसे आम स्रोत प्रॉक्सिमल पांव का डीप वेनस थ्रंबोसिस(DVTs) /या श्रोणि संबंधी नस थ्रंबोसेस हैं। DVT के लिए कोई जोखिम कारक भी जोखिम को बढ़ा देता है कि शिरापरक थक्का हट जाएगा और फेफड़े के परिसंचरण में चला जाएगा, जो सभी DVTs के 15% में यह घटित होता है। यह अवस्था सामन्यतः वेनस थ्रोंबोइंबोलिज्म (VTE) के रूप में जानी जाती है।
थ्रोंबोसिस का विकास शास्त्रीय रूप से वीरचाउ का ट्राइआड (रक्त प्रवाह में परिवर्तन, दीवार नलिका के कारकों और रक्त के गुणों को प्रभावित करने वाले कारक) नामक एक समूह के कारण होता है। अक्सर, एक से अधिक जोखिम कारक मौजूद रहते हैं।
- रक्त के प्रवाह में बदलाव: स्थिरीकरण (सर्जरी के बाद, चोट या लंबी दूरी की हवाई यात्रा), गर्भावस्था (प्रोकोगुलैंट भी), मोटापा (प्रोकोगुलैंट भी)
- दीवार नलिका के कारक : VTE में सीमित प्रत्यक्ष प्रासंगिकता
- रक्त के गुणों को प्रभावित करने वाले कार क (प्रोगुलैंट अवस्था):
- हार्मोनल गर्भनिरोधक युक्त आस्ट्रोजीन
- आनुवंशिक थ्रोंबोफिलिया (कारक वी लेइडेन,प्रोथ्रोंबिन म्युटेशन G20210A, प्रोटीन सी की कमी, प्रोटीन एस कमी, एंटिथ्रोंबिन की कमी, हाइपरहोमोसिस्टेनिमिया और प्लाजमाइनोजेन/फिब्रिनोलाइसिस विकार).
- उपार्जित थ्रंबोफिलिया (एंटिफोस्फोलिपिड सिंड्रोम, नेफ्रोटिक सिंड्रोम, पैरोक्सिस्मल नॉक्टर्नल हिमोग्लोबिन्युरिया)
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