प्राकृतिक विधि
प्राकृतिक विधि (Natural law, or the law of nature) विधि की वह प्रणाली है जो प्रकृति द्वारा निर्धारित होती है। प्रकृति द्वारा निर्धारित होने के कारण यह सार्वभौमिक है। परम्परागत रूप से प्राकृतिक कानून का अर्थ मानव की प्रकृति के विश्लेषण के किए तर्क का सहारा लेते हुए इससे नैतिक व्यवहार सम्बन्धी बाध्यकारी नियम उत्पन्न करना होता था।
प्राकृतिक कानून की प्रायः प्रत्यक्षवादी कानून (positive law) से तुलना की जाती है। प्राकृतिक विधि प्रकृति के आदेश आत्मक नियमों का एक समूह है। या मानवी विधि का एक आदर्श है। मनुष्य द्वारा बने हुए कानून प्राकृतिक विधि के अनुसार होने चाहिए। प्राकृतिक विधि को अनेक नामों से पुकारा जाता है। यह ईश्वरीय विधि है क्योंकि यह मनुष्य द्वारा नहीं बल्कि ईश्वर द्वारा लागू की जाती है। या नैतिक विधि है क्योंकि इसके द्वारा न्याय और अन्याय का निर्णय होता है। यह एक ऐसा मापदंड है जिसके सहारे यह निश्चय किया जाता है कि मनुष्य द्वारा बना हुआ कौन सा कानून उचित है और कौन सा अनुचित। यह आलिखित विधि है क्योंकि यह विधि किसी सिला चट्टान संहिता आदि पर लिखी नहीं है या प्रकृति या ईश्वर की अंगुलियों द्वारा आदमी के दिल और दिमाग पर ही लिखी होती है। या सार्वभौमिक विधि है क्योंकि यह सभी जगहों पर सब समय में सभी व्यक्तियों या जीवो पर समान रूप से लागू होती है। या शाश्वत विधि है क्योंकि या सृष्टि के आदि से लेकर आज तक एक ही रूप में कायम है। थॉमस एक्विनास प्राकृतिक कानूनों का तात्पर्य स्पष्ट करते हुए लिखता है कि मनुष्य इन कानूनों की सहायता से भले और बुरे का ज्ञान प्राप्त करता है प्राकृतिक कानूनों की उत्पत्ति शाश्वत कानूनों से हुई है सांसद कानूनों को मनुष्य पूर्ण रूप से नहीं समझ पाता है परंतु प्राकृतिक कानून अधिक बोद्ध गम और स्पष्ट हैं प्राकृतिक कानून विश्व की सभी वस्तुओं में समान रूप से व्याप्त है मनुष्य के अतिरिक्त यह वनस्पतियों और पशुओं आदि में भी व्याप्त है किंतु मनुष्य में प्राकृतिक कानून का सुंदर ढंग से अभिव्यक्त करण हुआ है क्योंकि पौधे और पशु तो अचेतन रूप से कार्य करते हैं परंतु मनुष्य विवेक के साथ कार्य करता है शोभा इन प्राकृतिक कानून के संबंध में उदाहरण देते हैं कि मानव जीना चाहता है और जीने के लिए जीवन सुरक्षा की आवश्यकता है जीवन की सुरक्षा अर्थात आत्मरक्षा प्राकृतिक कानून है इतना ही नहीं जैसा कि अरस्तु ने भी कहा था मनुष्य ऐसे जीवन की इच्छा करता है जिसमें विवेक यह स्वभाव की सिद्धि हो प्राकृतिक कानून ईश्वरीय अभिव्यंजना है यह कानून अपरिवर्तनीय और इसके साथ साथ आवश्यक भी है प्राकृतिक कानून कोई अलग वस्तु नहीं वरन मनुष्य में निहित देवी प्रेरणा है मनुष्य सताए इन कानूनों के आधार पर कार्यों के भले बुरे रूप कोई जांच कर कदम बढ़ाता है और आदर्श व्यवस्था को प्राप्त करता है जीवन की रक्षा कानून पर निर्भर करती है और मनुष्य में परोपकार की भावना दीन दुखियों की सहायता करना आज प्रवृत्तियां प्राकृतिक कानून से ही संबंधित है