प्रलय
प्रलय का अर्थ होता है संसार का अपने मूल कारण प्रकृति में सर्वथा लीन हो जाना, सृष्टि का सर्वनाश, सृष्टि का जलमग्न हो जाना।
पुराणों में काल को चार युगों में बाँटा गया है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जब चार युग पूरे होते हैं तो प्रलय होती है। इस समय ब्रह्मा सो जाते हैं और जब जागते हैं तो संसार का पुनः निर्माण करते हैं और युग का आरम्भ होता है।
प्रकृति का ब्रह्म में लीन (लय) हो जाना ही प्रलय है। संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई हैं जो सबसे शक्तिशाली है।[1]
कथानक
वैवस्वत मन्वन्तर में जो अभी भी चल रहा है, जब प्रलय समीप आया तो प्रलय से सात दिन पहले भगवान ने मत्स्य अवतार लिया। इसी समय ब्रह्मा ने भूल से वेदों का ज्ञान निकाल दिया जिसे भगवान मत्स्य नारायण नें बचाया। और सत्यव्रत जो एक महान राजा थे उसे प्रलय से अवगत कराया।
जब राजा सुबह स्नान हेतु एक नदी में गया तो उसे एक असहाय मछली की पुकार सुनाई दी, वह कह रही थी कि कोई उसे सुरक्षित करे। राजा नें उसे कमंडल में रखा, घर तक पहुँचते हुए वह मछली कमंडल के आकार की हो गई तब राजा नें उसे एक पात्र में रखा। पात्र भी छोटा पड़ने लगा, तब समुद्र में छोंडा और समुद्र भी उस मछली के लिये छोटा पड़ने लगा।
तभी उस मछली नें बोला कि कि सात दिन पश्चात प्रलय होगा, राजा! तुम सप्तर्षि तथा अन्य जीवों को इकट्ठे करो और मेरे भेजे गए नाव पर बैठ जाना। राजा नें एसा ही कियाऔर सब बच गए।
सन्दर्भ: मत्स्य अवतार
इससे मिलती जुलती कथाएँ अन्य धर्मों में भी मिलतीं हैं--
इस्लाम
जब धरती पर पाप बढ़ा तब ईश्वर ने नूह नामक एक पैगंबर को धरती में भेजा जो लोगों को अच्छे उपदेश देते थे। 1000 वर्ष बाद कुल बीस पुरुष तथा बीस महिलाएँ उनसे प्रभावित हुए और बाँकी उनके दुश्मन हो गए। तब नूह नें ईश्वर से दुनिया को बचाने की प्रार्थना की। अल्लाह ने नूह को एक कश्ती बनाकर सात दिन बाद अपने सारे शिष्य तथा जोड़े पशु पक्षियों के साथ बैठने को कहा, नुह ने ऐसा ही किया। उसके बाद प्रलय शुरू हुआ तथा धरती पापियों से पवित्र हो गई और कब नए युग की स्थापना हुई।[2]
नूह की कहानी
उस वक्त नूह की उम्र छह सौ वर्ष थी जब यहोवा (ईश्वर) ने उनसे कहा कि तू एक-जोड़ी सभी तरह के प्राणी समेत अपने सारे घराने को लेकर कश्ती पर सवार हो जा, क्योंकि मैं पृथ्वी पर जल प्रलय लाने वाला हूँ।
सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा। धीरे-धीरे जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया। यहाँ तक कि सारी धरती पर जितने बड़े-बड़ेपहाड़ थे, सब डूब गए। डूब गए वे सभी जो कश्ती से बाहर रह गए थे, इसलिए वे सब पृथ्वी पर से मिट गए। केवल हजरत नूह और जितने उनके साथ जहाज में थे, वे ही बच गए। जल ने पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक पहाड़ को डुबोए रखा। फिर धीरे-धीरे जल उतरा तब पुन: धरती प्रकट हुई और कश्ती में जो बच गए थे उन्ही से दुनिया पुन: आबाद हो गई।
नूह ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम के पैगंबर हैं। इस पर शोध भी हुए हैं। जल प्रलय की ऐतिहासिक घटना संसार की सभी सभ्यताओं में पाई जाती है। बदलती भाषा और लम्बे कालखंड के चलते इस घटना में कोई खास रद्दोबदल नहीं हुआ है।
आफ्रीका
एक बच्ची गेहूँ पीस रही थी तभी एक बकरी आटा खाने आई जिसे बच्ची नें भगा दिया। जब वह बकरी दूसरी बार आटा खाने आई तब बच्ची नें उसे नहीं भगाया तब बकरी नें बताया की आज से सातवें दिन प्रलय होगा, तुम नाव बनाकर अपने भाई के संग उसमें बैठ जाना। बच्ची ने ऐसा ही किया और प्रलय से बच गए। बहुत समय तक दोनों भाई बहन जीवनसाथी ढूँढते रहे पर कोई नहीं मिला, तब वो बकरी पुन: आई और दोनो से कहा कि तुम दोनो एक दूसरे से विवाह करके प्रजनन करो। दोनो ने प्रजनन किया जिसके संतानों ने नई दुनिया की नीव रखी।
प्रलय के प्रकार
हिन्दू शास्त्रों में प्रलय के चार प्रकार बताए गए हैं- नित्य, नैमित्तिक, द्विपार्थ और प्राकृत। एक अन्य पौराणिक गणना अनुसार यह क्रम है नित्य, नैमित्तक आत्यन्तिक और प्राकृतिक प्रलय।
नित्य प्रलय
वेंदांत के अनुसार जीवों की नित्य होती रहने वाली मृत्यु को नित्य प्रलय कहते हैं। जो जन्म लेते हैं उनकी प्रति दिन की मृत्यु अर्थात प्रतिपल सृष्टी में जन्म और मृत्य का चक्र चलता रहता है।[3]
आत्यन्तिक प्रलय
आत्यन्तिक प्रलय योगीजनों के ज्ञान के द्वारा ब्रह्म में लीन हो जाने को कहते हैं। अर्थात मोक्ष प्राप्त कर उत्पत्ति और प्रलय चक्र से बाहर निकल जाना ही आत्यन्तिक प्रलय है।[4]
नैमित्तिक प्रलय
वेदांत के अनुसार प्रत्येक कल्प के अंत में होने वाला तीनों लोकों का क्षय या पूर्ण विनाश हो जाना नैमित्तिक प्रलय कहलाता है। पुराणों अनुसार जब ब्रह्मा का एक दिन समाप्त होता है, तब विश्व का नाश हो जाता है। चार हजार युगों का एक कल्प होता है। ये ब्रह्मा का एक दिन माना जाता है। इसी प्रलय में धरती या अन्य ग्रहों से जीवन नष्ट हो जाता है।
नैमत्तिक प्रलयकाल के दौरान कल्प के अंत में आकाश से सूर्य की आग बरसती है। इनकी भयंकर तपन से सम्पूर्ण जलराशि सूख जाती है। समस्त जगत जलकर नष्ट हो जाता है। इसके बाद संवर्तक नाम का मेघ अन्य मेघों के साथ सौ वर्षों तक बरसता है। वायु अत्यन्त तेज गति से सौ वर्ष तक चलती है।[5]
प्राकृत प्रलय
ब्राह्मांड के सभी भूखण्ड या ब्रह्माण्ड का मिट जाना, नष्ट हो जाना या भस्मरूप हो जाना प्राकृत प्रलय कहलाता है। वेदांत के अनुसार प्राकृत प्रलय अर्थात प्रलय का वह उग्र रूप जिसमें तीनों लोकों सहित महतत्त्व अर्थात प्रकृति के पहले और मूल विकार तक का विनाश हो जाता है और प्रकृति भी ब्रह्म में लीन हो जाती है अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड शून्यावस्था में हो जाता है। न जल होता है, न वायु, न अग्नि होती है और न आकाश और ना अन्य कुछ।
पुराणों अनुसार प्राकृतिक प्रलय ब्रह्मा के सौ वर्ष बीतने पर अर्थात ब्रह्मा की आयु पूर्ण होते ही सब जल में लय हो जाता है। कुछ भी शेष नहीं रहता। जीवों को आधार देने वाली ये धरती भी उस अगाध जलराशि में डूबकर जलरूप हो जाती है। उस समय जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में और आकाश महतत्व में प्रविष्ट हो जाता है। महतत्व प्रकृति में, प्रकृति पुरुष में लीन हो जाती है।[6]
उक्त चार प्रलयों में से नैमित्तिक एवं प्राकृतिक महाप्रलय ब्रह्माण्डों से सम्बन्धित होते हैं तथा शेष दो प्रलय देहधारियों से सम्बन्धित हैं।
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कल्प
प्रत्येक कल्प के अंत में महाप्रलय होता है। हमारा एक कल्प बीत चुका है जिसे ब्रह्म कल्प कहते हैं, वर्तमान के कल्प को वाराह कल्प कहते हैं जिसका वर्तमान में प्रथम चरण है तथा भविष्य के (इसके पश्चात के) कल्प को पद्म कल्प कहते हैं। एक कल्प को चार अरब बत्तीस करोड़ मानव वर्षो के बराबर बताया गया है यह ब्रह्मा का एक दिवस अथवा सहस्त्र चतुर्युगों (चार युगों के समूह को चतुर्युग कहते हैं।) के बराबर माना गया है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड की आयु अनुमानत: 13 अरब वर्ष है, 4 अरब वर्ष पूर्व जीवनोत्पत्ति मानते है। दो कल्प = ब्रह्मा के 24 घंटे = 259,200,000,000 मानवीय वर्ष। ब्रह्मा के 50 वर्ष को एक परार्ध कहते हैं, दो परार्ध एक ब्रह्मा की आयु होती है। ब्रह्मा के 15 वर्ष व्यतीत होने के पश्चात एक नैमित्तिक प्रलय होता है। ब्रह्मा का एक कल्प पूरा होने पर प्रकृति, शिव और विष्णु की एक पलक गिर जाती है। अर्थात उनका एक क्षण पूरा हुआ, तब तीसरे प्रलय द्विपार्थ में मृत्युलोक में प्रलय शुरू हो जाता है। फिर जब प्रकृति, विष्णु, शिव आदि की एक सहस्रबार पलकें गिर जाती हैं तब एक दंड पूरा माना गया है। ऐसे सौ दंडों का एक दिन 'प्रकृति' का एक दिन माना जाता है- तब चौथा प्रलय 'प्राकृत प्रलय' होता है- जब प्रकृति उस ईश्वर (ब्रह्म) में लीन हो जाती है। अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड भस्म होकर पुन: पूर्व की अवस्था में हो जाता है, जबकि सिर्फ ईश्वर ही विद्यमान रह जाते हैं। न ग्रह होते हैं, न नक्षत्र, न अग्नि, न जल, न वायु, न आकाश और न जीवन। अनंत काल के बाद पुन: सृष्टि प्रारंभ होती है।
जो जन्मा है वह मरेगा- पेड़, पौधे, प्राणी, मनुष्य, पितर और देवताओं की आयु नियुक्त है, उसी तरह समूचे ब्रह्मांड की भी आयु है। इस धरती, सूर्य, चंद्र सभी की आयु है।
छोटी-मोटी प्रलय और उत्पत्ति तो चलती ही रहती है। किंतु जब महाप्रलय होता है तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड वायु की शक्ति से एक ही जगह खिंचाकर एकत्रित हो भस्मीभूत हो जाता है। तब प्रकृति अणु वाली हो जाती है अर्थात सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणुरूप में बदल जाती है।[7]
सन्दर्भ
- ↑ जोशी 'शतायु', अनिरुद्ध. "हिंदू प्रलय की धारणा कितनी सच?". hindi.webdunia.com. मूल से 25 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
- ↑ "प्रलय की कथा सभी धर्म में है". hindi.speakingtree.in. मूल से 13 जून 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 जनवरी 2019.
- ↑ नित्य प्रलय Archived 2014-02-07 at the वेबैक मशीन,Webduniya
- ↑ आत्यन्तिक प्रलय Archived 2014-02-07 at the वेबैक मशीन,Webduniya
- ↑ नैमित्तिक प्रलय Archived 2014-02-07 at the वेबैक मशीन,Webduniya
- ↑ प्राकृत प्रलय Archived 2014-02-07 at the वेबैक मशीन,Webduniya
- ↑ कल्पों का प्रलय से संबन्ध Archived 2011-09-17 at the वेबैक मशीन,Webduniya
इन्हें भी देखें
- ↑ जोशी 'शतायु', अनिरुद्ध. "Water Holocaust | जल प्रलय : राजा मनु-नूह की नौका". hindi.webdunia.com. मूल से 12 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.