सामग्री पर जाएँ

प्रभावतीगुप्त

'''Sk boss royal jat 0044'''

प्रभावतीगुप्त
रानी एवं वाकाटक राजवंश की संरक्षिक
शासनावधि385-405 ई॰
जीवनसंगीरुद्रसेन द्वितीय
संतानदिवाकरसेन, दामोदरसेन या प्रवरसेन द्वितीय
पिताचंद्रगुप्ता द्वितीय
माताकुबेरनगा

प्रभावतीगुप्ता गुप्ता सम्राट चन्द्रगुप्ता द्वितीय की पुत्री थी। उसका विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय के साथ 380 ई॰ के आसपास हुआ था। रुद्रसेन द्वितीय शैव मतानुयायी था जबकि प्रभावती वैष्णव मत को मानने वाली थी। विवाह के बाद रुद्रसेन भी वैष्णव हो गया था। अपने अल्प शासन के बाद 390 ई॰ में रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गई और 13 वर्ष तक प्रभावती ने अपने अल्प-वयस्क पुत्रों ‍‌‍‌(दिवाकर सेन तथा दामोदर सेन)की संरक्षिका के रूप में शासन किया। दिवाकर सेन की मृत्यु प्रभावती के संरक्षण काल में ही हो गई और दामोदर सेन वयस्क होने पर सिंहासन पर बैठा। यही 410 ई॰ में प्रवरसेन द्वितीय के नाम से वाकाटक शासक बना। उसने अपनी राजधानी नन्दिवर्धन से परिवर्तन करके प्रवरपुर बनाई। शकों के उन्मूलन का कार्य प्रभावती गुप्त के संरक्षण काल में ही संपन्न हुआ। इस विजय के फलस्वरूप गुप्त सत्ता गुजरात एवं काठियावाड़ में स्थापित हो गई।[1]

प्रभावतीगुप्ता और दगुन गांव= प्रभावती गुप्त ने अपने अभिलेख में यह कहा हैं : प्रभावती ग्राम कुटुम्बिनो (गांव के गृहस्थ और कृषक), ब्राह्मणों, और दगून गांव के अन्य वासियों को आदेश देती है... "आपको ज्ञात हो कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादसी तिथि को धार्मिक पुण्य प्राप्ति के लिए इस ग्राम को जल अर्पण के साथ आचार्य चनालस्वामी को दान किया गया है। आपको इनके सभी आदेशों का पालन करना चाहिए। एक अग्रहार के लिए उपयुक्त निम्नलिखित रियासतों का निर्देश भी देती हूं। इस गांव में पुलिस या सैनिक प्रवेश नहीं करेंगे। दौरे पर आने वाले शासकीय अधिकारियों को यह गांव घास देने और आसन में प्रयुक्त होने वाली जानवरों की खाल और कोयला देने के दायित्व से मुक्त है। साथ ही वे मदिरा खरीदने और नमक हेतु खुदाई करने के राजसी अधिकार को कार्यान्वित किए जाने से मुक्त हैं। इस गांव को खनीज-

पदार्थ और खदिर

  1. शान्ति कुमार, स्याल. "गौरवशाली भारतीय वीरांगनाएँ". भारतीय साहित्य संग्रह. राजपाल एंड सन्स. मूल से 1 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 दिसम्बर 2018.