पूर्वोत्तर रेलवे (भारत)
पूर्वोत्तर रेलवे भारतीय रेल की एक इकाई है। इसे लघुरूप में एन॰ई॰आर॰ कहा जाता है।
सन 1875 में दलसिंहसराय से दरभंगा तक की एक 38 मील की रेल लाइन अकालग्रस्त क्षेत्र में बिछायी गई और पूर्वोत्तर रेलवे के इतिहास में एक नींव का पत्थर बन गई।
पूर्वोत्तर रेलवे 14 अप्रैल, 1952 को उस समय अस्तित्व में आई जब अवध तिरहुत रेलवे, असम रेलवे और पुरानी बी.बी. एंड सी.आई. रेलवे के फतेहगढ़ जिले को एक प्रणाली में विलय कर दिया गया और भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू द्वारा इसका उदघाटन किया गया। इसकी सीमायें पश्चिम में आगरा के निकट अछनेरा से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल की सीमा-रेखा के निकट “लीडो” तक फैली थीं।
पन्द्रह जनवरी 1958 को इसे दो जोनों में विभाजित कर दिया गया (।) उत्तर पूर्व सीमान्त रेलवे व (।।) पूर्वोत्तर रेलवे, जिसका मुख्यालय गोरखपुर में है व जिसमें पांच मण्डल यथा - इज़्ज़तनगर, लखनऊ,वाराणसी, समस्तीपुर एवं सोनपुर थे।
एक अक्टूबर, 2002 को पूर्वोत्तर रेलवे के सोनपुर एवं समस्तीपुर मण्डलों का विलय, नव-सृजित पूर्व मध्य रेलवे में कर दिया गया जिसका मुख्यालय हाजीपुर में स्थित है।
वर्तमान में पूर्वोत्तर रेलवे में तीन मण्डल हैं जिनके मुख्यालय वाराणसी, लखनऊ और इज़्ज़तनगर में स्थित हैं। यह रेलवे यात्री उन्मुख प्रणाली होने के कारण उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल और पश्चिमी बिहार के लोगों को विश्वसनीय यातायात सेवा उपलब्ध कराती है और साथ ही इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास को भी प्रोत्साहित करती है। यह रेलवे पड़ोसी देश नेपाल की यातायात आवश्यकताओं की भी पूर्ति करती है।
प्रणाली :
पूर्वोत्तर रेलवे प्रणाली उत्तर प्रदेश, उत्तरांखण्ड और बिहार राज्यों से होती हुई, पश्चिम से पूर्व को जोड़ती है। इस रेल प्रणाली का अधिकांश भाग गंगा नदी के उत्तर में स्थित है और गंगा के तट से गुज़रती हुई नेपाल सीमा के अनेक स्थानों जैसे नेपालगंज रोड, बढ़नी, नौतनवा आदि को छूती है। नेपाल से आरम्भ होने वाली विभिन्न नदियाँ जैसे शारदा, घाघरा, राप्ती, गंडक और उनकी विभिन्न उप-धाराएं इस रेलवे द्वारा सेवित क्षे़त्र से हो कर गुजरती हैं।
गंगा, गोमती, सरयू जैसी प्रमुख नदियां इस रेलवे प्रणाली को अनेक स्थानों पर काटती हुई जाती हैं। इन नदियों में अचानक बाढ़ आने की संभावना रहती है, जिससे पूर्वोत्तर रेलवे के अनेक खण्ड खतरे में रहते हैं और वर्षा के दौरान इनमें कटाव की संभावना बनी रहती है। यह रेलवे विभिन्न नदियों पर बने अपने पुलों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें से प्रत्येक पुल इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना है।
पूर्वोत्तर रेलवे प्रथमत: एक यात्री उन्मुख प्रणाली है जो पश्चिमी बिहार, उत्तर प्रदेश, और उत्तरांखण्ड में सेवा प्रदान करती है। यह वाराणसी, सारनाथ, लखनऊ, इलाहाबाद, कुशीनगर, गोरखपुर, लुम्बिनी,अयोध्या, मगहर, मथुरा आदि जैसे प्रमुख पर्यटन स्थलों और सांस्कृतिक केन्द्रों से हो कर गुजरती है।
दिनांक 31.03.2023 को इस रेलवे पर 498 स्टेशन, दो यांत्रिक कारखाने (गोरखपुर एवं इज़्ज़तनगर में एक-एक), चार लोको शेड (गोण्डा, इज़्ज़तनगर, गोरखपुर एवं सैदपुर में एक-एक), एक ब्रिज कारखाना गोरखपुर में और एक सिगनल कारखाना गोरखपुर में हैं।
मंडल
इसके अंतर्गत आने वाले मंडल हैं: इज्जत नगर, लखनऊ, वाराणसी
†कोंकण रेलवे भारतीय रेल के एक अनुषांगिक इकाई के रूप में परंतु स्वायत्त रूप से परिचालित होनेवाली रेल व्यवस्था है जिसका मुख्यालय नवी मुंबई के बेलापुर में रखा गया है। यह सीधे रेलवे बोर्ड एवं केंद्रीय रेलमंत्री के निगरानी में काम करता है।