पूँजीगत लाभ
शेयर, बॉण्ड, अचल सम्पत्ति आदि के विक्रय से प्राप्त लाभ को पूँजीगत लाभ (capital gain) कहते हैं। पूंजीगत लाभ वह आय है जो पूँजीगत निवेश के विक्रय से व्युत्पन्न होती है। पूंजीगत निवेश घर, कृषि भूमि, खेत, पारिवारिक व्यवसाय, कलात्मक कार्य इत्यादि हो सकता है।
पूंजीगत लाभ कर
पूंजीगत लाभ उस राशि को कहा जाता है जो परिसंपत्तियों के विक्रय से प्राप्त राशि में से परिसंपत्ति को क्रय करने के लिए व्यय की गई राशि को घटाने से प्राप्त होती है। पूंजीगत लाभ में वह राशि भी शामिल की जाती है जो पूंजीगत परिसंपत्तियों के ‘‘हस्तांतरण’’ (इसमें विक्रय और विनिमय भी शामिल है) से प्राप्त लाभ के रूप में होती है। इसे अल्पकालीन लाभ और दीर्घ कालीन लाभ में वर्गीकृत किया जाता है।
पूंजीगत लाभ कर अधिकांश अन्य कराधानों से इन मायने में अलग है कि यह एक स्वैच्छिक कर है। चूंकि कर का भुगतान केवल तभी किया जाता है जब परिसंपत्ति का विक्रय किया जाता है, अतः करदाता अपनी परिसंपत्तियों को बनाये रख कर वैधानिक रूप से कर से बच सकते हैं - यह एक अवधारणा है जिसे ‘‘लॉक-इन इफेक्ट‘‘ कहा जाता है। पूंजीगत परिसंपत्ति का दायरा, इसमें पुरातात्विक संग्रहों, तैलचित्रों, चित्रों, शिल्पों और कला की अन्य रचनाओं जैसी व्यक्तिगत वस्तुओं को समाविष्ट करके, बढाया जा रहा है। वर्तमान में व्यक्तिगत वस्तुओं के हस्तांतरण पर किसी प्रकार का पूंजीगत लाभ कर देय नहीं है, क्योंकि ये वस्तुएं पूंजीगत परिसंपत्तियों के दायरे में नहीं आती हैं। इस प्रावधान के दुरूपयोग को रोकने के लिए पूंजीगत परिसंपत्तियों की परिभाषा का विस्तार करके इसमें उन व्यक्तिगत वस्तुओं को भी शामिल किया जा रहा है, जैसे पुरातात्विक संग्रह, तैलचित्र, चित्र, शिल्प और कला की अन्य रचनाएँ। आज दिनांक को व्यक्तिगत वस्तुएं होने के बावजूद इन वस्तुओं के हस्तांतरण पर भी अब पूंजीगत लाभ उसी प्रकार लागू होगा जैसे वह आभूषणों पर लागू होता है।
अल्पकालीन और दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ
हस्तांतरण से पूर्व 36 महीनों से कम (किसी कंपनी के अंश भाग, या भारत के किसी मान्यताप्राप्त शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनी की अन्य प्रतिभूतियों या साझा कोषों के यूनिट्स के लिए 12 महीने) समय के लिए बनाये रखी गई पूंजीगत परिसंपत्ति के हस्तांतरण से अर्जित लाभ को अल्पकालीन कहा जाता है। इस अवधि से अधिक अवधि के लिए बनाये रखी गई पूंजीगत परिसंपत्ति के हस्तांतरण से अर्जित लाभ को दीर्घकालीन कहा जाता है। आयकर अधिनियम का अनुच्छेद 112 सूचीकरण के लाभ के साथ अभिकलित दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ की 20 प्रतिशत दर का प्रावधान करता है, और सूचीकरण के लाभ के बिना अभिकलित (सूचीबद्ध प्रतिभूतियों या यूनिट्स के मामले में) दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ की 10 प्रतिशत दर का प्रावधान करता है।