पारिजात वृक्ष (किन्तूर)
पारिजात वृक्ष, किन्तूर Parijaat tree, Kintoor | |
---|---|
पारिजात वृक्ष, किन्तूर उत्तर प्रदेश में स्थान | |
जाति | गोरखचिंच (Adansonia digitata) |
स्थान | किन्तूर, बाराबंकी ज़िला, उत्तर प्रदेश, भारत |
निर्देशांक | 27°00′13″N 81°28′54″E / 27.0035°N 81.4817°Eनिर्देशांक: 27°00′13″N 81°28′54″E / 27.0035°N 81.4817°E |
बीजण तिथि | 1208 से 1244 ईसवी के बीच (रेडियोकार्बन कालनिर्धारण द्वारा अनुमानित) |
पारिजात वृक्ष (किन्तूर) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बाराबंकी ज़िले के अंतर्गत किन्तूर ग्राम में स्थित एक गोरखचिंच का वृक्ष है। भारत सरकार द्वारा संरक्षित यह वृक्ष सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लोकमत इसका संबंध महाभारतकालीन घटनाओं से जोड़ता है।[1][2]
भौगोलिक स्थिति
ग्राम बरौलिया बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में स्थित है। इसी ग्राम में विश्व प्रसिद्ध पारिजात वृक्ष स्थित है। यह वृक्ष सरकार द्वारा संरक्षित है।[3]
पौराणिक महत्व
माना जाता है कि किन्तूर गांव का नाम पाण्डवों की माता कुन्ती के नाम पर है। जब धृतराष्ट्र ने पाण्डु पुत्रों को अज्ञातवास दिया तो पांडवों ने अपनी माता कुन्ती के साथ यहां के वन में निवास किया था। इसी अवधि में ग्राम किन्तूर में कुंतेश्वर महादेव की स्थापना हुयी थी। भगवान शिव की पूजा करने के लिए माता कुंती ने स्वर्ग से पारिजात पुष्प लाये जाने की इच्छा जाहिर की। अपनी माता की इच्छानुसार अर्जुन ने स्वर्ग से इस वृक्ष को लेकर यहां स्थापित कर दिया[3]
दूसरी पौराणिक मान्यता यह है कि एक बार श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी के साथ व्रतोद्यापन समारोह में रैवतक पर्वत पर आ गए। उसी समय नारद अपने हाथ में पारिजात का पुष्प लिए हुए आए। नारद ने इस पुष्प को श्रीकृष्ण को भेंट कर दिया। श्रीकृष्ण ने इस पुष्प को रुक्मिणी को दे दिया और रुक्मिणी ने इसे अपने बालों के जूड़े में लगा लिया इस पर नारद ने प्रशंसा करते हुए कहा कि फूल को जूड़े में लगाने पर रुक्मिणी अपनी सौतों से हजार गुना सुन्दर लगने लगी हैं। पास में खडी हुयी सत्यभामा की दासियों ने इसकी सूचना सत्यभामा को दे दी। श्री कृष्ण जब द्वारिका में सत्यभामा के महल में पहुंचे तो सत्यभामा ने पारिजात वृक्ष लाने के लिए हठ किया। सत्यभामा को प्रसन्न करने के लिए स्वर्ग में स्थित पारिजात को लाने के लिए देवराज इंद्र पर आक्रमण कर पारिजात वृक्ष को पृथ्वी पर द्वारिका ले आये और वहाँ से अर्जुन ने इस पारिजात को किन्तूर में स्थापित कर दिया।[4]
विशेषताएँ
लोकमत इस वृक्ष की आयु लगभग 1000 वर्ष मानता है। सन् 2019 में हुए रेडियोकार्बन कालनिर्धारण में इसकी आयु तब 793±37 वर्ष मापी गई। इसके तने का परिमाप 50 फ़ीट और ऊंचाई लगभग 45 फ़ीट होगी। [3] गोरखचिंच (बाओबाब) जाति के वृक्ष केवल अफ्रीका के कुछ भागों में ही उगते हैं, इसलिए इस वृक्ष की यहाँ उपस्थिति एक रहस्य है।
पुष्प
इसका पुष्प श्वेत रंग का और सूखने पर सुनहरे रंग का हो जाता है। इस वृक्ष में पुष्प बहुत ही कम संख्या में और कभी-कभी ही गंगा दशहरा (जून के माह) के अवसर पर लगते हैं। पुष्प सदैव रात्रि में ही पुष्पित होते हैं और प्रातः काल मुरझा जाते हैं। रात्रि के समय पुष्प पुष्पित होने पर इसकी सुगंध दूर-दूर तक फैल जाती है।[3]
इन्हें ही देखें
- गोरखचिंच (अफ्रीकी बाओबाब)
- किन्तूर
- बाराबंकी ज़िला
सन्दर्भ
- ↑ "Parijaat Tree | District Barabanki, Government of Uttar Pradesh | India".
- ↑ Wickens, Gerald E.; Pat Lowe (2008). The Baobabs: Pachycauls of Africa, Madagascar and Australia. Springer Science+Business Media. पृ॰ 61. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4020-6430-2.
- ↑ अ आ इ ई "संग्रहीत प्रति". मूल से 18 दिसंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अगस्त 2016.
- ↑ "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल से 5 मार्च 2016 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 21 अगस्त 2016.