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पारमाण्विक कक्षकों का रैखिक संयोग

तरंग यान्त्रिकी के अनुसार पारमाण्विक कक्षक को एक तरंग फलन (φ) के रूप में दर्शाया जा सकता है। यह फलन इलेक्ट्रॉन तरंग के आयाम को दर्शाता है तथा इसे श्रोडिङर समीकरण के हल द्वारा प्राप्त किया जाता है, किन्तु एकाधिक इलेक्ट्रॉन वाले निकाय हेतु श्रोडिङर समीकरण का हल नहीं किया जा सकता। इसलिए आण्विक कक्षक, जो अण्वों के लिए एक इलेक्ट्रॉन तरंग फलन है, को श्रोडिङर समीकरण के हल से सीधे प्राप्त करना कठिन है। इस काठिन्य का निराकरण एक सन्निकट विधि के सहारे किया जाता है। इस विधि को पारमाण्विक कक्षकों का रैखिक संयोग कहते हैं। [1]

यह 1929 में सर जॉन लेनर्ड-जोन्स द्वारा आवर्त सारणी की प्रथम आवर्त के द्विपारमाण्विक अण्वों में आबन्धन के विवरण के साथ पेश किया गया था, किन्तु पहले लिनस पौलिङ द्वारा H2+ हेतु प्रयोग किया गया था। [2]

शर्तें

आण्विक कक्षकों के निर्माण हेतु निम्नोक्त शर्तें अपरिहार्य हैं:

  • संयोग होने वाले पारमाण्विक कक्षकों की ऊर्जा समान या लगभग समान होनी चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि एक 1s कक्षक दूसरे 1s कक्षक से संयोग कर सकता है परंतु 2s कक्षक से नहीं, क्योंकि 2s कक्षक की ऊर्जा 1s कक्षक की ऊर्जा से अत्यधिक होती हैं। यह सत्य नहीं है यदि परमाणु अति भिन्न प्रकार के हैं।
  • संयोग होने वाले पारमाण्विक कक्षकों की आण्विक अक्ष के परितः समान सममिति होनी चाहिए। परिपाटी के अनुसार z-अक्ष को आण्विक अक्ष मानते हैं। यहाँ यह तथ्य महत्त्वपूर्ण हैं कि समान या लगभग समान ऊर्जा वाले परमाणु कक्षक केवल तभी संयोग करेंगे, जब उनकी सममिति समान है, अन्यथाः नहीं। उदाहरणार्थ-2pz पारमाण्विक कक्षक दूसरे परमाणु के 2Pz कक्षक से संयोग करेगा, किन्तु 2Px या 2Py कक्षकों से नहीं, क्योंकि उनकी सममितियाँ समान नहीं हैं।
  • संयोग करने वाले पारमाण्विक कक्षकों को अधिकतम अतिव्यापन करना चाहिए। जितना अधिक अतिव्यापन होगा, आण्विक कक्षकों के नाभिकों के मध्य इलेक्ट्रॉन घनत्व उतना ही अधिक होगा।

समनाभिकीय द्विपारमाण्विक अणु

समनाभिकीय द्विपारमाण्विक अणु, H2 पर इस विधि का अनुप्रयोग किया जा सकता है। मान लें कि हाइड्रोजन अणु दो हाइड्रोजन परमाण्वों 1 तथा 2 से बना है। दोनों परमाणु एक समान ही हैं, केवल सुविधा हेतु उन्हें 1 तथा 2 से चिह्नित किया गया है। प्रत्येक हाइड्रोजन परमाणु की मूलावस्था में उसके 1s कक्षक में एक इलेक्ट्रॉन होता है। इन पारमाण्विक कक्षकों को तरंग फलनों φ1 तथा φ2 द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं। गणितीय रूप से आण्विक कक्षकों को पारमाण्विक कक्षकों के रैखिक संयोग भिन्न पारमाण्विक कक्षकों के तरंग फलनों के योग या अन्तर द्वारा किया जाता है, जैसा नीचे दर्शाया गया है।

इस प्रकार दो आण्विक कक्षक σ और σ* प्राप्त होते हैं।

पारमाण्विक कक्षकों के योग से निर्मित आण्विक कक्षक, σ, को आबन्धन आण्विक कक्षक तथा परमाणु कक्षकों के अन्तर से निर्मित आण्विक कक्षक, σ*, को 'प्रत्याबन्धन आण्विक कक्षक' कहते हैं।

गुणात्मक रूप से आण्विक कक्षकों का निर्माण संयोग होने वाले परमाण्वों के इलेक्ट्रॉन तरंगों के रचनात्मक तथा विनाशात्मक व्यतिकरण के रूप में समझा जा सकता है। आबन्धन आण्विक कक्षक के निर्माण में आबन्धित परमाण्वों की दो इलेक्ट्रॉन तरंगें एक दूसरे को प्रबलित करती हैं, अर्थात् इनमें रचनात्मक व्यतिकरण होता है। दूसरी ओर प्रत्याबन्धन आण्विक कक्षक के निर्माण में ये इलेक्ट्रॉन तरंगें परस्पर को निरस्त करती हैं, अर्थात् इनमें विनाशात्मक व्यतिकरण होता है। इनके फलस्वरूप आबन्धन आण्विक कक्षक में अधिकांश इलेक्ट्रॉन घनत्व आबन्धित परमाण्वों के मध्य अवस्थित होता है। नाभिकों के बीच प्रतिकर्षण बहुत कम होता है, जबकि प्रत्याबन्धित आण्विक कक्षक में अधिकांश इलेक्ट्रॉन घनत्व दोनों नाभिकों के बीच के क्षेत्र से दूर अवस्थित होता है। वास्तव में दोनों नाभिकों के मध्य एक निस्पंद तल होता हैं, जहाँ पर इलेक्ट्रॉन घनत्व शून्य होता है। अतः नाभिकों के बीच उच्च प्रतिकर्षण होता है। आबन्धित आण्विक कक्षकों में उपस्थित इलेक्ट्रॉन नाभिकों को परस्पर बांधे रखने की प्रवृत्ति रखते हैं। अतः ये अणु को स्थायित्व प्रदान करते हैं। इस प्रकार एक आबन्धन आण्विक कक्षक उन पारमाण्विक कक्षकों से सदैव कम ऊर्जा रखता है, जिनके संयोग से वह बनता है। इसके विपरीत प्रत्याबन्धन आण्विक कक्षक में इलेक्ट्रॉन अणु को अस्थायी कर देते हैं। इलेक्ट्रॉनों एवं नाभिकों के बीच आकर्षण इस कक्षक में इलेक्ट्रॉनों के बीच परस्पर प्रतिकर्षण से कम होता है और इससे ऊर्जा में सकल वृद्धि होती हैं।

प्रत्याबन्धन कक्षक की ऊर्जा संयोग करने वाले पारमाण्विक कक्षकों की ऊर्जा से उतनी मात्रा में अधिक हो जाती हैं, जितनी मात्रा में आबन्धन आण्विक कक्षक की ऊर्जा कम होती हैं। इस प्रकार दोनों आण्विक कक्षकों की कुल ऊर्जा वही रहती है, जो दो मूल पारमाण्विक कक्षकों की होती है।

सन्दर्भ

  1. Huheey, James. Inorganic Chemistry:Principles of Structure and Reactivity
  2. Mulliken, Robert S. (1967-07-07). "Spectroscopy, Molecular Orbitals, and Chemical Bonding". Science. American Association for the Advancement of Science (AAAS). 157 (3784): 13–24. PMID 5338306. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0036-8075. डीओआइ:10.1126/science.157.3784.13. बिबकोड:1967Sci...157...13M.