पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता
पाकिस्तान का संविधान के अनुसार विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों के अनुयायियों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता की गारन्टी है। किन्तु व्यवहार में स्थिति इससे बहुत अलग है। सन १९४७ में द्विराष्ट्र सिद्धान्त के कान्सेप्ट पर भारत का विभाजन करके पाकिस्तान बना था। उस समय पाकिस्तान ने 'बन्दी सिद्धान्त' (hostage theory) को आगे करके हिन्दुओं के साथ 'उचित व्यवहार' की बात की ताकि भारत में मुसलमानों को सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। किन्तु पाकिस्तान के दूसरे प्रधानमन्त्री ख्वाजा निजामुद्दीन का वक्तव्य इस भाव्ना की धज्जियां उड़ा दिया, मैं नहीं मानता कि मजहब कोई निजी मामला है, मैं यह भी नहीं मानता कि कि किसी इस्लामी राज्य में सभी नागरिकों को एकसमान अधिकार दिए जा सकते हैं।
अनुमान है कि पाकिस्तान के 95% लोग मुसलमान हैं (75-95% सुन्नी, 5-20% शिया और 0.22-2.2% अहमदिया)। अहमदिया मुसलमानों को स्वयं को मुसलमान कहने की अनुमति नहीं है। बचे हुए ५% लोग हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, आदि हैं।
जिया उल हक के समय में पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता सबसे अधिक धक्का पहुँचा।