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पशुधन

घरेलू भेड़ और एक गाय (बछिया) दक्षिण अफ्रीका में एक साथ चराई करते हुए

एक या अधिक पशुओं के समूह को, जिन्हें कृषि सम्बन्धी परिवेश में भोजन, रेशे तथा श्रम आदि सामग्रियां प्राप्त करने के लिए पालतू बनाया जाता है, पशुधन के नाम से जाना जाता है। शब्द पशुधन, जैसा कि इस लेख में प्रयोग किया गया है, में मुर्गी पालन तथा मछली पालन सम्मिलित नहीं है; हालांकि इन्हें, विशेष रूप से मुर्गीपालन को, साधारण रूप से पशुधन में सम्मिलित किया जाता हैं।

पशुधन आम तौर पर जीविका अथवा लाभ के लिए पाले जाते हैं। पशुओं को पालना (पशु-पालन) आधुनिक कृषि का एक महत्वपूर्ण भाग है। पशुपालन कई सभ्यताओं में किया जाता रहा है, यह शिकारी-संग्राहक से कृषि की ओर जीवनशैली के अवस्थांतर को दर्शाता है।

इतिहास

पशुओं को पालने-पोसने का इतिहास सभ्यता के अवस्थांतर को दर्शाता है जहां समुदायों ने शिकारी-संग्राहक जीवनशैली से कृषि की ओर जाकर स्थिर हो जाने का निर्णय लिया। पशुओं को 'पालतू' कहा जाता है जब उनका प्रजनन तथा जीवन अवस्थाएं मनुष्यों के द्वारा संचालित होती हैं। समय के साथ, पशुधन का सामूहिक व्यवहार, जीवन चक्र, तथा शरीर क्रिया विज्ञान मौलिक रूप से बदल गया है। कई आधुनिक फ़ार्म पशु अब जंगली जीवन के लिए अनुपयुक्त हो चुके हैं। कुत्तों को पूर्वी एशिया में लगभग 15,000 वर्ष पूर्व पालतू बनाया गया था, बकरियां तथा भेड़ें लगभग 8000 वर्ष ईपू एशिया में पालतू बनायीं गयी थीं। शूकर अथवा सूअर 8000 वर्ष ईपू पहले मध्य एशियाचीन में पालतू बनाये गए थे। घोड़े को पालतू बनाये जाने के सबसे प्राचीन प्रमाण लगभग 4000 ईपू से समय से प्राप्त होते हैं।[1]

प्राचीन अंग्रेजी स्रोत, जैसे बाइबल के किंग जेम्स संस्करण, में पशुधन को "कैटल" (मवेशी) द्वारा इंगित किया जाता है न कि "डीयर" (हिरन) के द्वारा, इस शब्द का प्रयोग ऐसे जंगली पशुओं के लिए किया जाता था जो किसी के स्वामित्व में नहीं होते थे। शब्द कैटल की उत्पत्ति मध्यकालीन अंग्रेजी शब्द चैटल से हुई है, जिसका अर्थ सभी प्रकार की व्यक्तिगत चल संपत्तियों से है,[2] जिसमें पशुधन सम्मिलित है, तथा जो अचल भूमि-संपत्ति से अलग है ("वास्तविक संपत्ति"). बाद में अंग्रेजी में, कभी-कभी छोटे पशुधन को "स्माल कैटल" भी कहा जाता था तथा जिसका चल-संपत्ति अथवा भूमि के अभिप्राय में प्रयोग होता था तथा जो भूमि के क्रय अथवा विक्रय किये जाने पर स्वतः ही हस्तांतरित नहीं हो जाती थी। आज, शब्द "मवेशी" का अर्थ, बिना किसी विशेषक के, आमतौर से पालतू गोवंशीय पशु होता है (मवेशी देखें).[] बॉस वर्ग की अन्य प्रजातियों को कभी कभी जंगली मवेशी कहा जाता है।

प्रकार

शब्द "पशुधन" अस्पष्ट है तथा इसको संकीर्ण अथवा विस्तीर्ण रूप से परिभाषित किया जा सकता है। एक विस्तीर्ण दृष्टिकोण से, पशुधन का अर्थ पशुओं की किसी भी ऐसी प्रजाति अथवा जनसंख्या है जिसे मनुष्यों द्वारा उपयोगी अथवा व्यावसायिक कारण से रखा जाता हो. इसका अर्थ पालतू पशु, अर्ध-पालतू अथवा कैद किया हुआ जंगली पशु हो सकता है। अर्ध-पालतू पशु उसको कहते हैं जिसे सिर्फ अल्प रूप से पालतू बनाया जा सका हो अथवा उसकी स्थिति विवादित हो. ये पशु अपने पालतू बनाये जाने के प्रक्रिया के किसी चरण में हो सकते हैं। कुछ लोग पशुधन शब्द का प्रयोग सिर्फ पालतू पशुओं के लिए करते हैं, यहां तक कि कुछ मामलों में सिर्फ लाल गोश्त वाले पशुओं के लिए.

घरेलू
बैन्तेंग अज्ञात दक्षिणपूर्वी एशिया, जावामांस, दूध, ड्रॉट
गवल
स्तनधारी, शाकाहारी
कैद में (इसे भी देखें भैंस) लागू नहीं 19वीं सदी के अंत में उत्तरी अमेरिकामांस, चमड़ा
ऊंट
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू जंगली ड्रामाइडेरी तथा बैकत्रियन ऊंट 4000 ईपू से 1400 ईपू एशियासवारी, ढुलाई पशु, मांस, दुग्ध उत्पादन, ऊंट के बाल
बिल्ली
स्तनधारी, मांसाहारी
घरेलू अफ्रीकी जंगली बिल्ली 7500 ईपू[3][4][5][6]पूर्व के पास कीट नियंत्रण, साहचर्य, मांस
मवेशी
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू औरोक्स (विलुप्त) 6000 ईपू दक्षिण पश्चिम एशिया, भारत, उत्तरी अफ्रीका (?) मांस (बीफ, वील, रक्त), दुग्ध उत्पादन, चमड़ा, ड्रॉट
हिरण
स्तनधारी, शाकाहारी
कैद में लागू नहीं 1970 []उत्तरी अमेरिका []मांस (वेनिसन), चमड़ा, ऐन्ट्लर, ऐन्ट्लर मखमल
कुत्ता
स्तनधारी, सर्वभक्षी
घरेलू भेड़िया 12000 ईपू भारवाही पशु, ड्रॉट, शिकार, हर्डिंग, खोजना/इकठ्ठा करना, निगरानी करना/रक्षा करना, मांस
गधा
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू अफ्रीकी जंगली गधा 4000 ईपू मिस्रसवारी, भारवाही पशु, ड्रॉट, मांस, दुग्ध उत्पादन
गायल
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू गौरअज्ञात दक्षिण-पूर्व एशियामांस, ड्रॉट
बकरी
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू जंगली बकरी 8000 ईपू दक्षिण पश्चिम एशिया दुग्ध उत्पादन, मांस, ऊन, चमड़ा, हल्का ड्रॉट
गिनी पिग
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू कैविया स्कुदी (Cavia tschudii) 5000 ईपू दक्षिण अमेरिकामांस
घोड़ा
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू जंगली घोड़ा4000 ईपू यूरेशियन स्टेप्स सवारी, ड्रॉट, दुग्ध उत्पादन, मांस, भारवाही पशु
लामा
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू ग्वुंनाको 3500 ईपू एंडीज़हलकी सवारी, भारवाही पशु, ड्रॉट, मांस, ऊन
खच्चर
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू घोड़े एवं गधे का अप्रजायी संकर     सवारी, भारवाही पशु, ड्रॉट
सुअर
स्तनधारी, सर्वाहारी
घरेलू जंगली सूअर7000 ईपू पूर्वी एनाटोलिया मांस (पोर्क, बेकन आदि), चमड़ा
खरगोश
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू जंगली खरगोश400-900 ईपू के बीच फ्रांसमांस, फर
रेनडियर
स्तनधारी, शाकाहारी
अर्द्ध-घरेलू रेनडियर 3000 ईपू उत्तरी रूसमांस, चमड़ा, एंट्लर, दुग्ध उत्पादन, ड्रॉट
भेड़
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू एशियाई मफ्लौन भेड़ 9000 ईपू से 11000 ईपू के बीच दक्षिण पश्चिम एशिया ऊन, दुग्ध उत्पादन, चमड़ा, मांस (मटन, लैम्ब)
जल भैंस
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू वन्य एशियाई जल भैंस, (अर्नी) 4000 ईपू दक्षिण एशियासवारी, ड्रॉट, मांस, दुग्ध उत्पादन
याक
स्तनधारी, शाकाहारी
घरेलू याक 2500 ईपू तिब्बत, नेपालमांस, दुग्ध उत्पादन, ऊन, सवारी, भारवाही पशु, ड्रॉट

 

पशु पालन

स्विस ऐल्प्स में एक भूरी स्विस गाय

'पशुधन' की परिभाषा, अपने भागों में, इस उद्देश्य से परिभाषित होती है जिसके लिए इन्हें पाला गया हो, जैसे भोजन, रेशों तथा/अथवा श्रम का उत्पादन.

पशुओं के आर्थिक मूल्य में शामिल हैं:

मांस
आहार उपयोगी प्रोटीन तथा ऊर्जा का उत्पादन
डेयरी उत्पाद
स्तनधारी पशुधन का प्रयोग दूध के स्रोत के रूप में होता है, जिसे आसानी से संसाधित करके अन्य डेयरी उत्पादों में परिवर्तित किया जा सकता है, जैसे दही, चीज़, मक्खन, आइस क्रीम, केफीर अथवा क्यूमिस. पशुधन का प्रयोग इस कारण से किये जाने से प्राप्त भोजन ऊर्जा उन्हें काटने से प्राप्त ऊर्जा से कई गुना अधिक होती है।
रेशा (फाइबर)
पशुधन से रेशों/वस्त्रों की एक श्रृंखला का उत्पादन होता है। उदाहरण के लिए भेड़ों तथा बकरियों से ऊन तथा मौहेर प्राप्त होता है; गाय, हिरन तथा भेड़ की खाल से चमड़ा बनाया जाता है; तथा इनकी हड्डियों, खुरों तथा सींगों का भी प्रयोग किया जा सकता है।
उर्वरक
गोबर की खाद का प्रयोग फसल की खेतों में डाल कर उनकी पैदावार को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण कारण है जिससे ऐतिहासिक रूप से पौधे तथा पालतू पशु एक दूसरे से महत्वपूर्ण रूप से जुड़े हुए हैं। गोबर की खाद का प्रयोग दीवालों तथा फर्शों के प्लास्टर में तथा आग जलाने की ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है। पशुओं के रक्त हड्डियों का प्रयोग भी उर्वरक के रूप में किया जाता है।
श्रम
घोड़े, गधे तथा याक जैसे पशुओं का प्रयोग यांत्रिक ऊर्जा के लिए किया जा सकता है। भाप की शक्ति से पहले, पशुधन गैर-मानव श्रम का एकमात्र उपलब्ध स्रोत था। इस उद्देश्य के लिए वे आज भी विश्व के कई भागों में प्रयोग किये जाते हैं, जैसे खेत जोतने के लिए, सामान ढुलाई के लिए तथा सैन्य प्रयोग के लिए भी.
भूमि प्रबंधन
पशुओं की चराई को कभी कभी खर-पतवार तथा झाड-झंखाड़ के नियंत्रण के रूप में प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, उन क्षेत्रों में जहां जंगल की आग लगती है, बकरियों तथा भेड़ों का प्रयोग सूखी पत्तियों को खाने के लिए किया जाता है जिससे जलने योग्य सामग्री कम हो जाती है तथा आग का खतरा भी कम हो जाता है।

पशु पालन के इतिहास के दौरान, ऐसे कई उत्पादों का विकास किया गया जिससे उनके कंकालों का प्रयोग किया जा सके तथा कचरे को कम किया जा सके. उदाहरण के लिए, पशुओं आतंरिक अखाद्य अंग, तथा अन्य अखाद्य भागों को पशु भोजन तथा उर्वरक में बदला जा सकता है। अतीत में, इस तरह के अपशिष्ट उत्पादों को कभी-कभी पशुओं के भोजन के रूप में भी खिलाया गया है। हालांकि, अंतर-प्रजाति पुनर्चक्रण (intra-species recycling) बीमारियों का खतरा प्रस्तुत करता है, जिससे पशु एवं यहां तक कि मनुष्य भी खतरे में आ जाते हैं (बोवाइन स्पौंजीफॉर्म एंकेफैलोपैथी (बीएसई), स्क्रैपी व प्रायन देखें). मुख्य रूप से बीएसई (मैड काऊ डिज़ीज़) के कारण पशु अवशिष्ट को पशुओं को खिलाया जाने पर अनेक देशों में रोक लगा दी गयी है, कम से कम जुगाली करने वाले पशुओं तथा सूअरों पर तो यह रोक है ही.

पालन प्रथायें

1 सप्ताह के युवा के साथ बकरी का परिवार

विश्व भर में पालन विधियां कई प्रकार के पशुओं के बीच नाटकीय रूप से पृथक होती हैं। पशुधन को आमतौर पर किसी बाड़े में रखा जाता है, तथा वे मनीषयों द्वारा प्रदत्त भोजन खाते हैं[] तथा उनका प्रजनन इच्छानुसार कराया जाता है, परन्तु कुछ पशुधन बड़े में नहीं रखे जाते हैं, तथा प्राकृतिक संसाधनों से भोजन करते हैं, अथवा उन्हें मुक्त रूप से प्रजनन करने दिया जाता है, अथवा इनमें से कोई भी संयोजन उपस्थित हो सकता है। ऐतिहासिक रूप से पशु पालन भौतिक संस्कृति के खानाबदोश अथवा चारागाही सम्बन्धी रूप का भाग है। विश्व के कुछ भागों में ऊंटों अथवा रेनडियर के झुंडों को रखना निष्क्रिय कृषि से सम्बंधित नहीं होता है। कैलिफोर्निया की सियेरा नेवाडा पर्वत श्रृंखला में पशुओं के झुंडों का ट्रांसह्यूमेंस रूप अभी भी प्रचलन में है, जिसमें मवेशियों, भेड़ों अथवा बकरियों को मौसम परिवर्तन होने के साथ ही सर्दियों में चराई के लिए कम ऊंचाई की घाटियों में तथा वसंतगर्मियों में चराई के लिए अल्पाइन क्षेत्र के पर्वत आधारों में ले जाने की परम्परा है। मवेशियों को पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका व कनाडा, अर्जेंटीना के पाम्पस तथा विश्व के अन्य प्रेरी व स्टेपी क्षेत्रों में खुले क्षेत्र में पालने का प्रचलन है।

कृषि के इतिहास में पशुधन को चरागाहों तथा खलिहानों में बंद बाड़ों में पाला जाना अपेक्षाकृत एक नया विकास है। जब मवेशियों को बंद बाड़ों में रखा जाता है, तब 'बाड़े' एक छोटे खांचे से लेकर एक बड़े चारदीवारी वाले चारागाह अथवा पशुओं के अहाते तक हो सकते हैं। भोजन का प्रकार प्राकृतिक रूप से उगने वाली घास से लेकर उच्च परिष्कृत संसाधित भोजन तक हो सकता है। पशुओं का प्रजनन इच्छानुसार कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से या पर्यवेक्षित संभोग के माध्यम किया जाता है। आंतरिक उत्पादन प्रणालियों का प्रयोग आमतौर पर सिर्फ सूअरों तथा मुर्गियों के साथ ही साथ वील मवेशियों के लिए किया जाता है। अन्दर रखे जाने वाले पशुओं का पालन गहन रूप से किया जाता है, क्योंकि अधिक स्थान की आवश्यकता अन्दर किये जाने वाले पालन को गैर-लाभकारी तथा असंभव बना देगी. परन्तु अन्दर की जाने वाली पालन प्रणालियां अपने अपशिष्ट उत्पादन, गंध सम्बन्धी समस्याएं, भूगर्भ जल को प्रदूषित करने की क्षमता तथा पशुओं की देखभाल सम्बन्धी चिंताओं के कारण विवादित हैं। (गहन पालन पशुधन पर और अधिक चर्चा के लिए, देखें फैक्ट्री पालन तथा गहन सूअर पालन).

अन्य पशुधन का खुले क्षेत्र में पालन किया जाता है, हालांकि बाड़ों का आकार तथा देख-रेख के स्तर विभिन्न हो सकते हैं। बड़े, खुले क्षेत्रों में पशुओं का सिर्फ कभी-कभी निरीक्षण किया जाता है, अथवा उन्हें किसी प्रांगण में "राउंड-अप" करते हैं या एकत्रित करते हैं (पशुधन). पशुधन को एकत्रित करने के लिए हर्डिंग कुत्तों का प्रयोग किया जाता है, साथ ही काऊबॉय, स्टॉकमेन तथा अश्वारोही जैकारूज़ का भी प्रयोग होता है, अथवा वाहनों एवं हेलीकौप्टर का प्रयोग भी किया जाता है। कांटेदार तार के आगमन (1870 में) तथा बिजली की बाड़ की प्रौद्योगिकी के आने के बाद बाड़दार चरागाहें अधिक सुविधाजनक हो गयीं तथा चारागाह प्रबंधन सरल हो गया। चरागाहों का आवर्तन पोषण तथा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की की एक आधुनिक तकनीक है जिसमें भूमि को होने वाली क्षति को भी रोका जा सकता है। कुछ मामलों में पशुओं की एक बहुत बड़ी संख्या को आंतरिक अथवा बाहरी कार्यप्रणाली में रखा जा सकता है (फीडलौट पर), जहां पशुओं के भोजन को वहीं अथवा कहीं अन्य संसाधित किया जा सकता है तथा उसे स्थल पर संचित करके पशुओं को खिलाया जा सकता है।

पशुधन को - विशेष रूप से मवेशी - को स्वामित्व तथा आयु इंगित करने के लिए ब्रांडीकृत किया जा सकता है, परन्तु आधुनिक पालन में पहचानचिन्ह के रूप में ब्रांडीकरणसे कहीं अधिक कान में लगाये जाने वाले टैग प्रयुक्त किये जाते हैं। भेड़ को भी कान के निशानों अथवा कान के टैगों से अक्सर चिन्हित किया जाता है। जैसे-जैसे मैड काऊ डिज़ीज़ तथा अन्य महामारी बीमारियों का भय बढ़ता जा रहा है, भोजन उत्पादन प्रणालियों में पशुओं की निगरानी तथा पहचान के लिए इम्प्लान्टों के प्रयोग का चलन भी बढ़ रहा है, कई बार इसकी आवश्यकता सरकार के नियमों के कारण भी होती है।

आधुनिक पालन तकनीकें मानवीय हस्तक्षेप को न्यूनतम करने, पैदावार को बढ़ने तथा पशु स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर ध्यान देती हैं। लाभ, गुणवत्ता तथा उपभोक्ता की सुरक्षा, ये सब पशुओं के पालन के तरीकों पर निर्भर करते हैं। दवाइयों का प्रयोग तथा भोजन अनुपूरक (अथवा भोजन का प्रकार भी) पर उत्पाद को उपभोक्ता के स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा पशुओं की देखभाल की कीमत पर न बढ़ने देने के लिए नियंत्रण अथवा निषेध किया जा सकता है। ये प्रथाएं दुनिया भर में अलग-अलग हो सकती हैं, उदाहरण के लिए विकास हार्मोन के प्रयोग की अनुमति संयुक्त राज्य अमेरिका में है परन्तु जिसकी बिक्री यूरोपीय संघ में होनी हो, उस पर नहीं. आधुनिक पालन तकनीकों से प्राप्त पशुओं का बेहतर स्वास्थ्य पर अब प्रश्न उठने लगे हैं। मवेशियों को मकई खिलाया जाना जो सदैव घास खाती रही हैं, इसका एक उदाहरण है; जहां पर मवेशी इसके अधिक अभ्यस्त नहीं है, यह प्रथम अमाशय का pH मान बढ़ा कर उसे अधिक अम्लीय कर देता है, जिससे उनके लीवर के क्षतिग्रस्त होने तथा अन्य कठिनाइयों की सम्भावना बढ़ जाती है।[] अमेरिकी एफडीए अभी भी फीडलौट्स को मवेशियों को नौन-रयूमिनेंट पशु प्रोटीन खिलने की अनुमति देता है। उदाहरण के लिए मुर्गियों की बीट तथा मुर्गियों का भोजन मवेशियों को खिलाया जाना स्वीकार्य है तथा भैंसे तथा सूअर का मांस मुर्गियों को खिलाया जा रहा है।

शिकार

पशुधन पालकों को जंगली पशुओं द्वारा शिकार तथा रस्लर्स द्वारा उन्हें चुराए जाने का खतरा रहता है। उत्तरी अमेरिका में भूरे भेड़िये, ग्रिज्ली भालू, तेंदुए, काले भालू, तथा कायोट आमतौर पर पशुधन के लिए खतरा माने जाते हैं। यूरेशिया और अफ्रीका में भेड़िया, भूरे भालू, तेंदुआ, बाघ, शेर, ढोल, काले भालू, चकत्तेदार लकड़बग्घा तथा अन्य पशुधन की मृत्यु का कारण बनते हैं। ऑस्ट्रेलिया में डिंगो, लोमड़ियां, वेज-पूंछ वाली चील, शिकारी तथा पालतू कुत्ते (विशेष रूप से) चरवाहों के लिए परेशानी का कारण बनते हैं क्योंकि वे मजे के लिए शिकार करते हैं।[7][8] लैटिन अमेरिका में जंगली कुत्ते रात में पशुधन को मार देते हैं।

रोग

पशुओं की बीमारियों से पशुओं की देखभाल प्रभावित होती है, उत्पादकता घाट जाती है तथा मनुष्यों में संक्रमण हो सकता है। पशु-पालन के द्वारा पशुओं के रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास तथा उन्हें कम किया जा सकता है अथवा उन्हें एंटी-बायोटिक्स तथा टीकों की सहायता से कम किया जा सकता है। विकासशील देशों में पशुपालन में पशुओं के रोगों को सहन किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप काफी कम उत्पादकता प्राप्त होती है, विशेष रूप से खराब स्वास्थ्य वाले विकासशील देशों के पशु समूहों में. अक्सर किसी कृषि नीति को लागू करने में लिया गया पहला कदम उत्पादकता में लाभ के लिए रोग प्रबंधन ही होता है।

पशुपालन में परिवर्तन के माध्यम से रोग प्रबंधन प्राप्त किया जा सकता है। ये उपाय जैव-सुरक्षा साधनों के द्वारा बीमारी के फैलाव को सीमित करने के लक्ष्य के साथ किये जाते हैं, इनमें पशुओं के मिलने पर रोक लगायी जाती है, पालन स्थल पर जाने वालों का प्रवेश नियंत्रण करके तथा रक्षात्मक कपडे पहन कर एवं बीमार पशुओं को अलग करके. रोगों को टीकों और एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग के द्वारा भी नियंत्रित किया जा सकता है। एंटीबायोटिक्स की उप-चिकित्सकीय खुराक विकास वृद्धि के लिए भी प्रयोग में लायी जाती है, इनसे विकास में 10-15% की वृद्धि हो सकती है।[9] एंटीबायोटिक प्रतिरोध के मुद्दे के कारण रक्षात्मक खुराक की प्रथा सीमित हो गयी है, उदाहरण के लिए एंटीबायोटिक मिला हुआ भोजन. देशों में पशु-चिकित्सक के प्रमाणपत्र की आवश्यकता पशुओं के स्थानांतरण, बिक्री तथा प्रदर्शन से पहले होती है। रोग से मुक्त क्षेत्रों में अक्सर संभावित रोगग्रस्त पशुओं के प्रवेश के लिए नियम कड़ी से लागू किये जाते हैं, जिसमें संगरोधन भी शामिल है।

परिवहन और विपणन

घास खाने वाले मवेशियों का सेल्सयार्ड, वालका, एनएसडब्ल्यू

चूंकि अधिकांश पशुधन चरने वाले पशु होते हैं, ऐतिहासिक रूप से उन्हें बिक्री के लिए "जीवित" अवस्था में हांक कर बाज़ार लाया जाता था जो कि एक क़स्बा अथवा कोई अन्य केन्द्रीय स्थल होता था। अमेरिकी जन युद्ध के पश्चात के समय काल में टेक्सास में लंबे सींग वाले मवेशियों की प्रचुरता हो गयी थी, तथा उत्तरी बाज़ारों में गोमांस की मांग थी, जिसकी वजह से प्राचीन पश्चिमी मवेशी अभियान के क्रियान्वन की आवश्यकता उत्पन्न हुई. यह पद्धति अभी भी दुनिया के कुछ भागों में प्रचलित है। ट्रक परिवहन अब विकसित देशों में आम हो चुका है। स्थानीय और क्षेत्रीय पशुधन की नीलामी तथा जिंस बाजार पशुधन के व्यापार की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। अन्य क्षेत्रों में, पशुधन को बाज़ार में खरीदा एवं बेचा जाता है, जैसा कि केन्द्रीय एशिया के कई स्थानों में पाया जाता है, अथवा ऐसा पुरानी वस्तुओं को बेचने के बाजार के रूप में किया जा सकता है।

माल का प्रदर्शन तथा मेले ऐसे कार्यक्रम हैं जहां लोग अपने सर्वश्रेष्ठ पशुधन का प्रदर्शन करके एक दुसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। 4-एच, ब्लॉक एंड ब्रिडल तथा एफएफए कुछ ऐसे संगठन हैं जो युवाओं को प्रदर्शन के उद्देश्य से पशुधन का पालन करने को प्रोत्साहित करते हैं। विशेष भोजन खरीदा जाता है, तथा प्रदर्शन प्रारंभ होने के कुछ घंटे पहले से पशुओं को सजाया जाता है ताकि वे सबसे सुन्दर दिखें.मवेशियों में भेड़ें तथा सूअरों के प्रदर्शन में, विजयी पशुओं को अक्सर सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को नीलाम कर दिया जाता है, तथा प्राप्त राशि को इसके स्वामी की छात्रवृत्ति कोष में डाल दिया जाता है। 2004 में रिलीज़ फिल्म ग्रैंड चैंपियन में टेक्सास के एक युवा लड़के की अनुभवों की कहानी है जो पुरस्कृत बैल का पालन करता है।

पशु कल्याण

भारत का एक चरवाहा लड़का.छोटीभूमि वाले ग्रामीण किसानों की जीविका के लिए पशुधन अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से विकासशील देशों में.

मानव हित के लिए पशुओं को पालने का मुद्दा मनुष्यों तथा पशुओं के बीच सम्बन्ध पर पशुओं की स्थिति तथा लोगों के दायित्व पर प्रश्न उठाता है। पशु कल्याण एक दृष्टिकोण है कि मनुष्यों की देखभाल में रह रहे पशुओं को अनावश्यक रूप से कष्ट नहीं उठाना चाहिए. 'अनावश्यक' कष्ट उठाना क्या है, इसके विषय में विभिन्न मत हो सकते हैं। आम तौर पर, हालांकि, पशु कल्याण खेती प्रथाओं पर वैज्ञानिक अनुसंधान की एक व्याख्या के परिप्रेक्ष्य पर आधारित है। इसके विपरीत, पशुओं के अधिकार का दृष्टिकोण है कि लाभ के लिए पशुओं का उपयोग, अपनी प्रकृति के अनुसार, पालन प्रथाओं के बावजूद, आमतौर पर शोषण ही है। पशु-अधिकार कार्यकर्ता आम तौर पर शाक खाने वाले अथवा शाकाहारी ही होते हैं, हालांकि पशु-अधिकार दृष्टिकोण के साथ ही सुसंगत है कि उत्पादन प्रक्रम के आधार पर मांस खाया जा सकता है।

पशु कल्याण समूह आम तौर पर पशुधन पालन की प्रथाओं पर सार्वजनिक चर्चा करते हुए पशुधन के उद्योगों पर अधिक नियंत्रण तथा जांच का अनुमोदन करते हैं। पशु अधिकार समूह आमतौर पर पशुओं की पालन का उन्मूलन चाहते हैं, हालांकि कुछ समूह पहले अधिक कठोर विनियमन को प्राप्त करने की आवश्यकता को पहचानते हैं। पशु कल्याण समूह जैसे आरएसपीसीए, अक्सर, पहली दुनिया के देशों में सरकारी स्तर पर नीति के विकास पर आवाज उठाते हैं। पशु अधिकार समूह अपनी बात रखने में कठिनाइयां महसूस करते हैं, अतः वे और अधिक आगे बढ़ते हुए जन अवज्ञा अथवा हिंसा पर उतर आते हैं।

कई पशुपालन प्रथाएं 1990 तथा 2000 के दशक में आन्दोलनों का कारण बनी हैं तथा कई देशों में इनसे सम्बंधित क़ानून भी बनाये गए हैं। छोटे और अप्राकृतिक स्थान में पशुधन को भर देना कई बार अर्थ-सम्बन्धी तथा स्वास्थ्य कारणों से किया जाता है। पशु को न्यूनतम आकार के पिंजरे या पेन में रखा जाता है जहां उसके लिए गतिविधि का कोई स्थान नहीं होता है। जहां पशुधन को शक्ति के स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, उन्हें अपनी श्रम सम्बन्धी सीमाओं से परे धकेल दिया जाता है। इस दुरुपयोग की सार्वजनिक दृश्यता का अर्थ यह था कि यूरोपीय देशों में उन्नीसवीं सदी में इससे सम्बन्धी विधान बनाये गए, परन्तु एशिया के कुछ हिस्सों में अभी भी जारी है। ब्रौइलर मुर्गियों की चोंच काट दी जाती है, सूअरों के डिसिडुअस दांत निकल दिए जाते हैं, मवेशियों के सींग हटा दिए जाते हैं तथा इनका ब्रान्डीकरण कर दिया जाता है, डेयरी की गायों तथा भेड़ों की पूंछ काट दी जाती है, मरीनो भेड़ों को म्यूल्सीकरण किया जाता है, तथा कई प्रकार के नर पशुओं का बधियाकरण किया जाता है। पशुओं को बेचने और वध के लिए लंबी दूरी तक यात्रा करनी पड़ सकती है। भीड़ की स्थिति, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र की गर्मी तथा भोजन, पानी तथा आराम की अनुपलब्धता विधान बनाने तथा विरोध का कारण बनते हैं। (देखें जीवित निर्यात) पशुधन का वध सम्बन्धी विधान शुरूआती लक्ष्यों में से एक था। ऐसे अभियान हलाल और कोषेर जैसी धार्मिक वध तकनीकों को भी निशाने पर लाते हैं।

पर्यावरणीय प्रभाव

शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट "लाइवस्टॉक्स लौंग शैडो" जैसी रिपोर्टों से पशुधन क्षेत्र (मुख्य रूप से मवेशी, मुर्गीपालन, तथा सूअर) पर संकट आया, क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार यह क्षेत्र सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं के सर्वाधिक बड़े दो या तीन अंशदाताओं में से एक माना गया था। संयुक्त राष्ट्र ने विवादास्पद[] रूप से अपनी कार्यप्रणाली में वनों की कटाई से उत्पन्न उत्सर्जन को शामिल किया था। 18% आंकड़े के स्थान पर, जो इस क्षेत्र के लिए उत्सर्जन के बड़े अंशदाता के रूप में निर्धारित किया गया है, एक वास्तविक आंकड़ा है, वनों की कटाई दरअसल 12% है[]. अप्रैल 2008 में [संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी] ने संयुक्त राज्य में उत्सर्जन के प्रमुख स्टॉकटेक जारी किये जिसका शीर्षक इन्वेंटरी ऑफ यूं.एस. ग्रीनहाउस गैस एमिशन्स एंड सिंक्स: 1990-2006 था [2]. 6.1 पर यह पाया गया "2006 में कृषि क्षेत्र 454.1 टेराग्राम्स के समतुल्य (Tg CO2 Eq.), CO2 के उत्सर्जन, अथवा संयुक्त राज्य के कुल ग्रीनहाउस गैसों के 6 प्रतिशत का जिम्मेदार पाया गया।" तुलना करने की दृष्टि से, संयुक्त राज्य में कुल उत्सर्जन का 25% परिवहन से प्राप्त होता है।

पशुधन के नीति के केंद्र में रहने का मुद्दा अभी जीवित है, विशेष रूप से नियोट्रॉपिकल क्षेत्रों में वनों की कटाई, भूमि की दुर्दशा, जलवायु परिवर्तन व वायु प्रदूषण, पानी की कमी व जल प्रदूषण तथा जैव विविधता की कमी. होक्केदो स्थित ओबिहिरो यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड वेट्रीनरी मेडिसिन के एक शोध दल ने पाया कि पशु के भोजन में सिस्टीन, जो कि एक प्रकार का अमीनो एसिड है, तथा नाइट्रेट शामिल करने से उनके द्वारा पैदा की जाने वाली मीथेन गैस की मात्र में कमी लायी जा सकती है, तथा साथ ही मवेशी की उत्पादकता अथवा मांस व दूध की गुणवत्ता भी प्रभावित नहीं होती. [3]

वनों की कटाई वनों की कटाई कार्बन चक्र (तथा वैश्विक और क्षेत्रीय जलवायु) को प्रभावित करती है और साथ ही कई प्रजातियों के प्राकृतिक निवास की हानि का कारण बनती है। वन, जो कि कार्बन चक्र के लिए सिंक का कार्य करते हैं, कटाई के कारण खोते जा रहे हैं। वनों को या तो काटा जा रहा है अथवा इन्हें जला कर समतल भूमि बनायीं जा रही है, क्षेत्र के लिए आवश्यक समय विस्तृत है। वनों की कटाई से भी खंडन होता है, प्रजातियों के लिए उनका प्राकृतिक निवास खण्डों में मिल पता है। अगर ये खंड दूर और छोटे हों तो जीन प्रवाह कम हो जाता है, प्राकृतिक निवास परिवर्तित हो जाता है, किनारे प्रभावित होते हैं और आक्रामक प्रजातियों के आक्रमण के लिए अवसर अधिक होता है।[10]

भूमि अवनति 2008 में बोत्सवाना विश्वविद्यालय की शोध में पाया गया कि किसानों के द्वारा सूखे से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए अधिक पशुओं को पाले जाने से पारिस्थितिकी तंत्र अधिक नाज़ुक हो जाता है तथा मवेशियों के चरागाहों को दीर्घावधि की क्षति पहुंचती है, परिणामस्वरुप दुर्लभ जैव ईंधन की क्षति होती है। बोत्सवाना के क्गात्लेंग जिले के अध्ययन से भविष्यवाणी मिलती है कि 2050 तक, जलवायु परिवर्तन के कारण क्षेत्र में मध्यम सूखे का चक्र छोटा होता जायेगा (दो वर्षों के स्थान पर 18 महीने). [4]

जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण मीथेन पशुधन खाद से उत्सर्जित गैसों में से एक है; यह लंबी अवधि तक बनी रहती है और एक ग्रीन हाउस गैस है। कार्बन डाइऑक्साइड के पश्चात यह दूसरी सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध ग्रीन हाउस गैस है।[11] हालांकि मीथेन कार्बन डाइ ऑक्साइड है कम मात्रा में है, वातावरण को गर्म करने की इसकी क्षमता 25 गुना अधिक है।[11]

पानी की कमी पशुधन की खपत के लिए पानी की आवश्यकता होती है परन्तु भोजन के लिए जल ड्रॉप्स की भी आवश्यकता होती है। पशुधन को अक्सर अनाज खिलाया जाता है, जिसमें अमेरिका में उत्पन्न होने वाला 50% अनाज शामिल है साथ ही विश्व भर में होने वाला 40% अनाज भी शामिल है।[12] अनाज तथा अन्य फसलों के उत्पादन के लिए भी जल की अलग-अलग मात्राओं की आवश्यकता होती है, अनाज से उत्पन्न एक किलोग्राम बीफ के लिए 100,000 लीटर जल की आवश्यकता पड़ती है, गेहूं से तुलना करने पर यह मात्रा 900 लीटर होती है।[12]

जल प्रदूषण पशुओं के गोबर पर आधारित खादों की सहायता से उगाई जाने वाली फसलें (जैसे अन्न तथा चारा) जिनमें फॉसफोरस तथा नाइट्रोजन होता है, जिनका लगभग 95% वातावरण में नष्ट हो जाता है।[13] तब प्रदूषक तत्व पौधों तथा जलीय जंतुओं के लिए मृत क्षेत्र बना देते हैं क्योंकि पानी में ऑक्सीज़न का आभाव होता है।[14] ऑक्सीजन के आभाव को यूट्रोफिकेशन के नाम से जाना जाता है, जिसमें जल में उपस्थित जीवधारी अत्यधिक बढ़ जाते हैं तथा उसके पश्चात ऑक्सीजन का प्रयोग करते हुए सड़ जाते हैं। इसका सबसे प्रमुख उदाहरण मैक्सिको की खाड़ी है, जहां उर्वरकों में मौजूद पोषक तत्वों के अत्यधिक उपयोग से वे मिसिसिपी नदी से होकर खाड़ी में पहुंच गए तथा वहां बहुत बड़े मृत क्षेत्र बन गए। अन्य प्रदूषक, हालांकि ये अधिक prachlit nahin है, एंटीबायोटिक दवायें तथा हार्मोन हैं। दक्षिणी एशिया में जिन गिद्धों ने पशुधन के मृत शरीरों को खाया, उनकी संख्या 95% तक कम हो गयी और इसका कारण डिक्लोफेनैक नामक एंटीबायोटिक थी।[10]

विकल्प ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने पशुधन की आंतों में कंगारू में पाया जाने वाला बैक्टीरिया प्रयोग करके उनमें मीथेन को कम करने का प्रयास किया है।[15]

अर्ध शुष्क परिक्षेत्रों में, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के ग्रेट प्लेन्स, में ऐसी शोध हुई हैं जिनसे यह पता लगता है कि घास के मैदानों के प्राकृतिक आवास को संरक्षित करने में पशुधन उपयोगी हो सकता है। पशुधन प्राकृतिक आवास का निर्माण तथा उनकी को बड़ी प्रजातियों के लिए बनाये रख सकते हैं।[16]

कानूनी परिभाषायें

संयुक्त राज्य अमेरिका संघीय कानून कभी कभी शब्द की संकीर्ण परिभाषा देता है ताकि विशिष्ट कृषि उत्पादों को किसी कार्यक्रम अथवा गतिविधि के लिए ग्राह्य अथवा अग्राह्य बनाया जा सके. उदाहरण के लिए, 1999 का पशुधन अनिवार्य एक्ट (पी.एल. 106-78, टाइटल IX) पशुधन के रूप में सिर्फ मवेशी, सूअर तथा भेड़ों को परिभाषित करता है। हालांकि, 1988 आपदा सहायता विधेयक इसी शब्द को "मवेशी, भेड़, बकरियां, सूअर तथा मुर्गी-पालन (जिसमें अंडा उत्पादक मुर्गी-पालन शामिल है), अश्वीय पशु जिनका प्रयोग भोजन में अथवा भोजन उत्पादन में किया जाता है, भोजन में प्रयुक्त मछलियां, तथा सचिव द्वारा स्वीकृत अन्य पशु" के रूप में परिभाषित करता है।[17]

इन्हें भी देखें

  • कृषि
  • कृषि व्यवसाय
  • कृषि पारिस्थितिकी
  • अनुगामी प्रजातियां
  • एक्वाकल्चर (पौधों और जलीय जंतुओं का पालन)
  • मधुमक्खी पालन
  • कैलिफोर्निया प्रस्ताव 2 (2008)
  • पशु (बहुविकल्पी)
  • क्यूनीकल्चर (खरगोश पालन)
  • मांस उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव
  • फर की खेती
  • लीव दि गेट ऐज़ यू फाइंड इट
  • लाइवस्टॉक्स लौंग शैडो - इन्वयारन्मेंटल इशूज़ एंड ऑप्शंस (संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट)
  • मुर्गीपालन
  • पशुपालन
  • सेरीकल्चर (रेशम के कीड़ों का पालन)
  • भेड़ पालन
  • पश्चिमी मेला

सन्दर्भ

  1. "Breeds of Livestock". Department of Animal Science - Oklahoma State University. मूल से 24 दिसंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-09-30.
  2. http://dictionary.reference.com/browse/chattel Archived 2009-08-14 at the वेबैक मशीन चल-संपत्ति का उद्भव, अगस्त 15, 2009 को देखा गया
  3. [1] Archived 2007-03-03 at the वेबैक मशीन, साइप्रस में बिल्ली का पालतूकरण, नेशनल ज्योग्राफिक.
  4. "Oldest Known Pet Cat? 9500-Year-Old Burial Found on Cyprus". National Geographic News. 2004-04-08. मूल से 3 मार्च 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-03-06.
  5. Muir, Hazel (2004-04-08). "Ancient remains could be oldest pet cat". New Scientist. मूल से 16 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-11-23.
  6. Walton, Marsha (अप्रैल 9, 2004). "Ancient burial looks like human and pet cat". CNN. मूल से 22 दिसंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-11-23.
  7. नौर्दर्न डेली लीडर, 20 मई 2010, कुत्ते ने 30 भेड़ों को क्षति पहुंचाई (तथा उन्हें मार दिया), पृष्ठ 3, रूरल प्रेस
  8. दि टाइम्स: भेड़ की हत्या के लिए कुत्तों को जब्त किया गया Archived 2012-01-11 at the वेबैक मशीन 2010-6-2 को देखा गया
  9. "एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका - मूल पोषक तत्व एवं एडिटिव्स » एंटीबायोटिक दवायें व अन्य विकास उत्प्रेरक". मूल से 19 अक्तूबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 मई 2011.
  10. "लाइवस्टॉक्स लौंग शैडो - इन्वयारन्मेंटल इशूज़ एंड ऑप्शंस." एफएओ होम: एफएओ. स्रोत: संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन, 2006. वेब. 16 जनवरी 2011. http://www.fao.org/docrep/010/a0701e/a0701e00.HTM Archived 2008-07-26 at the वेबैक मशीन
  11. "ग्लोबल मीथेन सम्बन्धी पहल - तथ्य पत्रक." वैश्विक मीथेन पहल. वेब. 4 फ़रवरी 2011. http://www.globalmethane.org/gmi Archived 2011-03-12 at the वेबैक मशीन
  12. पिमेंटेल, डेविड. "कॉर्नेल विज्ञान समाचार: पशुधन उत्पादन." कार्नेल क्रॉनिकल ऑनलाइन. 7 अगस्त 1997. वेब. 16 फ़रवरी 2011. http://www.news.cornell.edu/releases/aug97/livestock.hrs.html Archived 2013-03-12 at the वेबैक मशीन
  13. पेलेशियर, नेथन और पीटर टाइडमर्स. "पशुधन उत्पादन की संभावित वैश्विक पर्यावरण लागत का पूर्वानुमान 2000-2050." संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की कार्यवाही 107.43 (2010): 18371-8374. वेब ऑफ साइंस. वेब. 17 जनवरी 2011. http://www.pnas.org.offcampus.lib.washington.edu/content/107/43/18371
  14. स्टार्मे, एलानौर. "लेवलिंग दि फील्ड - इशु ब्रीफ # 2 पशुधन उत्पादन में पर्यावरणीय व स्वास्थ्य समस्याएं: भोजन प्रणाली में प्रदूषण." अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ 94.10: 1703-709. वेब. 5 फ़रवरी 2011. <http://ase.tufts.edu/gdae/pubs/rp/AAI_Issue_Brief_2_1.pdf Archived 2011-09-26 at the वेबैक मशीन
  15. ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ता पशुधन में संशोधन के लिए कंगारू बैक्टीरिया पर शोध कर रहे हैं
  16. डर्नर, जस्टिन डी. विलियम के. लौएनरुथ, पॉल स्टैप व डेविड जे. ऑगस्टाइन. "उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी ग्रेट मैदानों में घास के मैदानों के पक्षियों के आवास के लिए पारिस्थितिकी तंत्र के इंजीनियर्स के रूप में पशुधन." रैंगेलैंड पारिस्थितिकी और प्रबंधन 62.2 (2009): 111-18. वेब ऑफ साइंस. वेब. फरवरी 2011.
  17. "सीआरएस रिपोर्ट फॉर कौंग्रेस: कृषि: शब्दों, प्रोग्राम तथा नियमों की शब्दावली, 2005 संस्करण - ऑर्डर कोड 97-905" (PDF). मूल (PDF) से 12 फ़रवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 मई 2011.

बाहरी कड़ियाँ