पवन-वातायन
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जालीदार शिला में पवन के अपरदन द्वारा पवनोन्मुखी भाग मे छिद्र हो जाता हैं, पवन धीरे-धीरे इस छिद्र के अपरदित पदार्थो को उडा-उडा कर उस छिद्र को बडा करती रहती हैं। लम्बे समय तक यही क्रिया निरन्तर होने के कारण्यह छिद्र शैल के आर-पार हो जाता हैं। शैल के इस आर-पार छिद्र को पवन खिडकी या पवन-वातायन कहा जाता हैं।