परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र
परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (atomic force microscope, AFM), जिसे क्रमवीक्षण बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (scanning force microscope, SFM) भी कहा जाता है, एक अति-विभेदनशील यंत्र है, जो नैनोमीटर के अंशों से भी सूक्ष्म स्तर तक दिखा सकता है, जो कि प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शीओं की तुलना में १००० गुना बेहतर हैं। प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी उनकी विवर्तन सीमा से सीमित हो जाते हैं। इन्हे अगुआ किया गर्ड बिन्निग और हैन्रिक रोह्रर के बनाये अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र (STM) नें, जिसके लिये उन्हे १९८६ में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बिन्निग, कैल्विन केट और क्रिस्टॉफ गर्बर नें १९८६ में पहले AFM का विकास किया। आज नैनो स्तर पर प्रतिबिंबन, मापन और दक्षप्रयोग में यह यंत्र महत्वपूर्ण भुमिका निभा रहा है। इस यंत्र को सूक्ष्मदर्शी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि यह यंत्र एक यांत्रिक अन्वेषिका के प्रयोग से सतह को छूकर प्रतिबिंब बनाता है। पैजोविद्युत तत्वों के प्रयोग से बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर नियंत्रण हो पाता है।
मूल सिद्धांत
परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र में मैक्रोस्तर पर बाहुधारक के एक तरफ की तीक्ष्ण नोक से नमूने का क्रमवीक्षण किया जाता है। बाहुधारक की नोक सिलिकॉन या सिलिकॉन नैट्रेड से बनाया जाता हैं, जिसका अर्द्ध व्यास कुछ नैनोमीटर के करीब होता है। इस नोक को जब नमूने के पास तक लाया जाता है, तो बाहुधारक का हुक सिद्धांत के तहत विक्षेपण होता है। स्थिति के अनुसार सूक्ष्मदर्शी में यांत्रिक संस्पर्श बल, वॉन डर वॉल बल, [[कोशिका
बल|केशिका बल]], रासायनिक बन्धन, वैद्युतस्थैतिक बल, चुम्बकिय बल, कैसिमिर बल, घोलाकर्षण, इत्यादि।
सामान्यतः लेज़र बिन्दु को बाहुधारक पर से फोटो डायोडों के सारणी पर परावर्तित किया जाता है - बाहुधारक के उतार-चढ़ाव को इस तरह जाना जाता है। अन्य विधियों का प्रयोग भी हो रहा है, जैसे की प्रकाशिक इन्टरफैरोमेटरी, संधारितत्विक संकेतन, पैजो़प्रतिरोधक बाहुधारक।
अगर नोक को नियत ऊँचाई पर रखा जाये तो इसके भिड कर नष्ट हो जाने का डर होगा - इसलिये नोक से सतह की दूरी को नकारात्मक प्रतिपुष्टि के द्वारा ठीक किया जाता है।
सामान्यतः, बाहुधारक के x और y दिशाओं में चालन क्रमवीक्षण के लिये होता है और z दिशा संकेतन के लिये। तिपाई विन्यास में तीन पैजो़ क्रिस्टल का प्रयोग तीनों दिशाओं के लिये होता है, जिससे नमूने के स्थलाकृति को जाना जा सकता है।
प्रतिबिंबन के प्रकार
प्राथमिक तौर पर दो प्रकार की प्रणालियों का प्रयोग होता है - स्थैतिक और गतिक। स्थैतिक प्रणाली (static mode) में स्थिर नोक के विक्षेपण के प्रति सूचना का प्रयोग होता है। स्थैतिक सन्केत रव और विसामान्यता प्रवण होते हैं, इसलिये कोमल बाहुधारकों का प्रयोग किया जाता है। नोक के पास आकर्षक बल शक्तिशाली होते हैं, जिससे नोक नमूने से चिपक सकता है - इसलिये सामान्यतः इसे प्रतिरोधात्मक परिस्थितियों में ही प्रयोग में लाया जाता है (जिसके कारण इसे स्पर्श प्रणाली (contact mode) भी कहते हैं)।
गतिक प्रणाली (dynamic mode) में बाहुधारक को दोलानवित किया जाता है उसके अनुनादन आवृति पर। नोक-नमूने के बीच के अंतःक्रिया से दोलन के आयाम, प्रावस्था और आवृति में बदलाव आता है, जो पैमाना होता है नमूने की सतह का। इसे आयाम अधिमिश्रण, प्रावस्था अधिमिश्रण या आवृति अधिमिश्रण कहा जाता है। आवृति अधिमिश्रण के लिये कडे बाहुधारक का प्रयोग किया जाता है - इन्हे सतह के काफी समीप तक रखे जाने की क्षमता के करण ये अति-निर्वात परिस्थितियों में पहले पारुमाणिक स्थरिय सूक्ष्मयंत्र कहलाये जा सकते हैं (Giessibl)।
आयाम अधिमिश्रण की मदद से सतह पर विभिन्न तरह के पदार्थों को पहचाना जाता है।
बल-दूरी मापन
प्रतिबिंबन के सिवाय, परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र का महत्वपूर्ण उपयोगिता बल-दूरी वक्र रेखा बनाने में है। यहाँ यंत्र के नोक को सतह के पास लाया जाता है और दूर ले जाया जाता है। इससे हो रहे पैजो़ आहटों से नैनोस्केल मापन, वॉन डर वॉल बल, रासायनिक बन्धन, कैसिमिर बल, घोलाकर्षण, इत्यादि को मापा जाता है। आज पिको-न्यूटन शक्ति के बलों को 0.1 नैनोमीटर स्थर पर मापन किया जा रहा है।
सतह पर एकल अणुओं का अभिज्ञान
परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र से अणुओं का प्रतिबिंबन और प्रहस्तन कई प्रकार के सतहों में किया जा रहा है। भौतिक वैज्ञानिक ऑस्कर कस्टैन्स (ओसाका विश्वविद्यालय, जापान) और उनके अन्य साथियों ने सिलिकन, त्रपु और सीसा अणुओं को कुधातु के सतह पर पहचानने की तकनीक को विकसित किया है (नेचर 2007, 446, 64), जो इस सिद्धांत पर काम करता है कि यंत्र की नोक के ठीक नीचे वाले अणु का प्रभाव अणु के प्रकार पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ, सिलिकन त्रपु और सीसे की तुलना में २३% और ४१% कम प्रतिक्रियण करता है यंत्र की नोक से।
ऐसी ही तकनीक का प्रयोग हो रहा है कोशिका जीवविज्ञान में। प्रोटीन के खुलनें और कोशिकाओं के अभिलाग के अध्ययन में इसका प्रयोग हुआ है।
फायदे और नुकसान
साधारण इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की तुलना में परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र के कई फायदे हैं।
- ये त्रि-आयामी प्रतिबिंब बनाती हैं, जहाँ इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वि-आयामी प्रतिबिंब बनाती हैं
- नमूने पर किसी भी प्रकार के उपचार की जरूरत नहीं पडती। इससे नमूने के खराब होने की सम्भावना ही नहीं रहती
- इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के चालन के लिये जिस तरह के कीमती सूक्ष्म निर्वात प्रबन्ध की जरूरत होती है, उसकी जरूरत यहाँ नहीं पडती। अधिकांश परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र खुली हवा में, यहाँ तक की द्रवों में भी प्रयोग में लाये जाते हैं। इसलिये इनका प्रयोग विशाल अणुकणिकाओं और जीवित जीवों में भी किया जाता है
- इनकी विभेदन शक्ति इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की तुलना में कई गुना बहतर है, जो आणुविक स्थर पर भी काम कर सकती है। अति-निर्वात परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र की तुलना अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र और प्रेषक इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से की जा सकती है
कुछ खामियाँ
- अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र की तुलना में एक खामी यह है कि ये वर्ग मिलीमीटर के क्षेत्र और कई मिलीमीटर की गहराई की तुलना में सिर्फ १५० वर्ग मैक्रोमीटर क्षेत्रफल और कुछ ही मैक्रोमीटर की गहराई तक क्रमवीक्षण कर सकती हैं
- यंत्र के नोक के गलत चयन से गलत प्रतिबिंबों का उतपाद हो सकता है
- परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र धीमे होते हैं अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र की तुलना में
- इन प्रतिबिंबों में पैजो़विद्युत पदार्थों में शैथिल्य और (x,y,z) धुरीओं के बीच मिश्रित वार्ता के प्रभावों को कम करनें के लिये सॉफ्टवेयर और निस्पंदक का प्रयोग होता है। इन्हे कम करनें के कई तरीके ढूंड लिये गये हैं।
- इनकी बनावट के करण इनका प्रयोग खड़ी ढालों और लटके ढांचों में नहीं किया जा सकता। महंगे बहुधारकों का निर्माण हुआ है जो इस खामी को कुछ हद तक कम करती हैं
और देखें
- परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर हिन्दी लेख
- घर्षण बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र
- अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र
- अवलोकन अन्वेषिका सूक्ष्मदर्शी यंत्र
- अवलोकन वोल्टता सूक्ष्मदर्शी यंत्र
- श्रेणी:सूक्ष्मदर्शी यंत्र
उल्लेख
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