पद्माकर विष्णु वर्तक
डॉ॰ पद्माकर विष्णु वर्तक (अंग्रेज़ी: Dr. Padmakar Vishnu Vartak, जन्म- २५-०२-१९३३) पेशे से चिकित्सक रहे हैं। आध्यात्मिक विचारधारा के डॉ॰ वर्तक मूलतः मराठी भाषा के अनुसंधाता (researcher) लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं।
जीवन-परिचय
डॉ॰ पद्माकर विष्णु वर्तक का जन्म पुणे नगरी में २५ फरवरी, १९३३ ई॰ को हुआ था। आरंभ से ही वे पढ़ाई-लिखाई में मेधावी थे। उन्होंने प्राथमिक विद्यालय से लेकर उच्च विद्यालय एवं महाविद्यालय तक में हमेशा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्णता प्राप्त की।[1] इंटरमीडिएट की ड्रॉइंग परीक्षा में सभी विषयों में उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। शरीर सौष्ठव (body beautiful) की स्पर्धा में भी वे प्रथम रहे थे। सन् १९४६ में लंदन चेंबर ऑफ कॉमर्स की परीक्षा में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। १९५६ में पुणे के बी॰ जे॰ मेडिकल कॉलेज से उन्होंने एम॰बी॰बी॰एस॰ की परीक्षा उत्तीर्ण की। निरोधक चिकित्सा (preventive medicine) में उन्हें विशेष योग्यता (distinction) प्राप्त हुई।[1] चिकित्सा क्षेत्र में उन्होंने सर्जरी का अधिक अभ्यास किया है। सन् १९५७ से १९६९ के बीच वे 'सेठ ताराचंद रामनाथ आयुर्वेदिक रुग्णालय' में ऑनररी सर्जन तथा 'लोकमान्य तिलक आयुर्वेद महाविद्यालय' में सर्जरी के प्राध्यापक रहे। सन् १९५६ में उन्होंने स्वयं की प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिस की शुरुआत की और 'विष्णु प्रसाद नर्सिंग होम' स्थापित किया। इसी समय से उन्होंने योगाभ्यास तथा अध्यात्म शास्त्र का भी अध्ययन आरंभ किया।
डॉ॰ वर्तक की चिकित्सा की विभिन्न शाखाओं में समान गति है। निदान में कुशल होने के साथ-साथ वे ऑपरेशन करने में भी कुशल हैं तथा क्षकिरण एवं हृदय विकार के भी वे ज्ञाता हैं। चिकित्सा के अतिरिक्त चित्रकला, ज्योतिष, खगोल शास्त्र, इतिहास, तर्कशास्त्र, संस्कृत आदि विषयों में भी उनकी अच्छी गति है।
लेखन-कार्य
डॉ॰ पी॰ वी॰ वर्तक के शोधात्मक लेखन का आरंभ महाभारत से संदर्भित लेखन के रूप में हुआ। सन् १९६८ के मध्य से उन्होंने सम्पूर्ण महाभारत का अध्ययन आरंभ किया और मनोयोग पूर्वक एक वर्ष तक अध्ययन करते रहे। महाभारत पढ़ते हुए वे भीम के तत्त्वज्ञान से काफी प्रभावित हुए। सामान्य जन के साथ-साथ विद्वानों द्वारा भी भीम के बुद्धिवादी पक्ष के प्रति अति उपेक्षा भाव के बावजूद उन्होंने भीम के तत्त्वज्ञान को समझने पर बल दिया और मित्रों के द्वारा प्रबल आग्रह के परिणाम स्वरूप इससे सम्बद्ध विस्तृत निबन्ध लिखा।[2] इसी क्रम में उन्होंने महाभारत के समय आदि से संबंधित शोध (research) आरंभ किया और विस्तृत शोधात्मक निबंध लिखे। इन्हीं दोनों विषयों से सम्बद्ध उनकी पहली पुस्तक स्वयंभू मराठी में प्रकाशित हुई। हिन्दी में भी अनूदित उनकी इस पुस्तक में विषय-वस्तु की दृष्टि से वस्तुतः दो खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में भीम पर केन्द्रित लेखन है तथा द्वितीय खण्ड में महाभारत से सम्बद्ध अन्वेषणात्मक लेखन है। इस पुस्तक के प्रथम दो अध्याय भीम से सम्बद्ध हैं एवं बाद के तीन अध्याय तथा परिशिष्ट महाभारत के काल एवं अन्य विषयों से सम्बन्धित अन्वेषण पर केन्द्रित हैं। इस पुस्तक में डॉ॰ वर्तक ने महाभारत के विभिन्न पक्षों पर अन्वेषण करके पर्याप्त प्रमाणों के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत किया है और अत्यधिक महत्त्व का कार्य यह किया है कि अनेकानेक प्रमाणों के साथ महाभारत युद्ध आरंभ (१६ अक्टूबर ५५६१ ईसा पूर्व) से लेकर युद्ध की समाप्ति (२ नवंबर ५५६१ ई॰पू॰) की तिथि तो निर्धारित की ही है; इससे पहले पाण्डवों के वनवास आरंभ (४ सितंबर ५५७४ ई॰पू॰ से लेकर युद्ध के पश्चात धृतराष्ट्र के वनवास (१८ अगस्त ५५४५ ई॰पू॰) तक की तिथि निर्धारित की है।[3][4]
इसी प्रकार अपनी सुविख्यात पुस्तक 'वास्तव रामायण' में डॉ॰ वर्तक ने मुख्यतः ग्रहगतियों के आधार पर गणित करके[5] वाल्मीकीय रामायण में उल्लिखित ग्रहस्थिति के अनुसार भगवान राम की वास्तविक जन्म-तिथि ४ दिसंबर ७३२३ ईसापूर्व को सुनिश्चित किया है। उनके अनुसार इसी तिथि को दिन में १:३० से ३:०० बजे के बीच राम का जन्म हुआ होगा।[6]
योगाभ्यास एवं चामत्कारिक अनुभव
सन् १९५९ से डॉ॰ वर्तक को आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होने लगे। बाद में योगाभ्यास के चामत्कारिक परिणाम भी सामने आने लगे। योग समाधि द्वारा १० अगस्त १९७५ को उन्होंने मंगल ग्रह का जायजा लिया और अपने सभी अनुभवों को लिखित रूप में प्रकाशित करवाया। २१ जुलाई १९७६ को व्हायकिंग १ द्वारा उनके प्रकाशित २१ अनुभवों में से २० सही निकले। मंगल पर प्राचीन काल में पानी तथा शैवाल था, यह कथन १९९७ में पाथ फाइंडर द्वारा और २००४ में स्पिरीट द्वारा सत्य सिद्ध हुआ।[7] मंगल ग्रह का समाधि द्वारा जायजा लेने का दूसरा प्रयोग १९७६ में किया गया; वह भी सत्य सिद्ध हुआ। १९७७ में बृहस्पति ग्रह का जायजा लिया। उसके फलितार्थ भी वायेजर यान द्वारा सत्य सिद्ध हुए। १९८० में उन्हें हमारे निकट की सूर्यमाला के एक ग्रह पर मनुष्य की प्रतीति हुई।[1] अपनी इन समाधिगत यात्राओं एवं अनुभवों का विवरण उन्होंने 'My Scientific Experiments in Yoga' नामक आलेख में विस्तार से लिखा है।[8]
प्रकाशित पुस्तकें
- मराठी में-
- स्वयंभू (भीम एवं महाभारत पर; हिन्दी अनुवाद नाग पब्लिशर्स, जवाहर नगर, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
- वास्तव रामायण (वाल्मीकि रामायण पर अन्वेषणात्मक पुस्तक)
- उपनिषदों का विज्ञाननिष्ठ निरूपण (दो भागों में)
- पातंजल योग का विज्ञाननिष्ठ निरूपण
- गीता : विज्ञाननिष्ठ निरूपण
- ब्रह्मर्षि की स्मरण यात्रा
- पुनर्जन्म
- येशु ख्रिस्त हिंदू था
- प्रताप सूर्य थोरले बाजीराव पेशवे
- वीर सावरकर : मूर्तिमन्त गीता
- वीर हनुमान
- वैदिक विज्ञान व वेदकाल निर्णय
- संगीत दमयंती परित्याग
- अंग्रेजी में-
- The Scientific Dating of The Mahabharata War - 1989 (The Veda Vidnyana Mandal, Pune; 'स्वयंभू' के महाभारत सम्बन्धी अंशों का अंग्रेजी रूपान्तरण)
- Scientific Knowledge in The Vedas - 1995 (Distributed by Nag Publishers, Delhi)
- The Scientific Dating of The Ramayana and The Vedas - 1999 (The Veda Vidnyana Mandal, Pune)
- Jesus the Christ was a Hindu (published by Vedic Science, Delhi)
- A REALISTIC APPROACH TO THE VALMIKI RAMAYANA (Translation of the Original Book ‘VASTAVA RAMAYANA’ in Marathi) Blue Bird (India) Limited, Pune; First Edition - 2008.
- Veda the Root of Science - 2011 (The Veda Vidnyana Mandal, Pune)
सम्मान
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ स्वयंभू, डॉ॰ पद्माकर विष्णु वर्तक, नाग पब्लिशर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2005, प्रथम आवरण फ्लैप पर लेखक-परिचय में।
- ↑ डॉ॰ पद्माकर विष्णु, वर्तक (2005). स्वयंभू. जवाहर नगर, नयी दिल्ली: नाग पब्लिशर्स. पृ॰ IX.
- ↑ स्वयंभू, डॉ॰ पद्माकर विष्णु वर्तक, नाग पब्लिशर्स, नयी दिल्ली, संस्करण-2005, पृ॰ ३६८-३७० (तालिका)।
- ↑ The Scientific Dating of The Mahabharata War, Dr. Padmakar Vishnu Vartak, The Veda Vidnyana Mandal, Pune, First edition-1989, p.77-78.
- ↑ A REALISTIC APPROACH TO THE VALMIKI RAMAYANA (Translation of the Original Book ‘VASTAVA RAMAYANA’ in Marathi), Dr. Padmakar Vishnu Vartak, English Translation by Vidyakar Vasudev Bhide, Blue Bird (India) Limited, Pune, First Edition-2008, p.290-300.
- ↑ A REALISTIC APPROACH TO THE VALMIKI RAMAYANA, ibid, p.300.
- ↑ The Scientific Dating of The Mahabharata War, Dr. Padmakar Vishnu Vartak, The Veda Vidnyana Mandal, Pune, First edition-1989, p.7.
- ↑ 'My Scientific Experiments in Yoga', Articles Compiled, Dr. P.V. Vartak, page-181-184.