पञ्चजन
पंचजन एक वैदिक पद है जिसके कई संबंधित शब्द वेदों (मुख्यतया ऋग्वेद) में मिलते हैं। सायण आचार्य ने इनका अर्थ चार वर्ण और पाँचवां निषाद किया है , जबकि पंडित शिवशंकर काव्यतीर्थ ने इनको पाँच जाति (race,नस्ल) के लोग कहा है। [1] सायणाचार्य ने पंचजनाः शब्द का अर्थ चार ऋत्विक और एक यजमान को मिलाकर पाँच भी किया है।
इसके अलावे वेदों में पाञ्चजन्य (ऋ. ५.३२.११, ९.६६.२०), पंचक्षितिनाम्, पंचजात (ऋ ६.६१.१२) पंचचर्षिणी, पंचकृष्टि (ऋग्वेद २.२.१०) जैसे शब्द भी आए हैं।
सन्दर्भ
- ↑ पुस्तक जाति निर्णय, पृष्ठ २१९