नैमिषारण्य
नैमिषारण्य लखनऊ से ८० किमी दूर लखनऊ क्षेत्र के अर्न्तगत सीतापुर जिला में गोमती नदी के बाएँ तट पर स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है। मार्कण्डेय पुराण में अनेक बार इसका उल्लेख ८८००० ऋषियों की तपःस्थली के रूप में आया है। वायु पुराणान्तर्गत माघ माहात्म्य तथा बृहद्धर्मपुराण, पूर्व-भाग के अनुसार इसके किसी गुप्त स्थल में आज भी ऋषियों का स्वाध्यायानुष्ठान चलता है। लोमहर्षण के पुत्र सौति उग्रश्रवा ने यहीं ऋषियों को पौराणिक कथाएं सुनायी थीं।
वाराह पुराण के अनुसार[1] यहां भगवान द्वारा निमिष मात्र में दानवों का संहार होने से यह 'नैमिषारण्य' कहलाया। वायु, कूर्म आदि पुराणों के अनुसार भगवान के मनोमय चक्र की नेमि (हाल) यहीं विशीर्ण हुई (गिरी) थी, अतएव यह नैमिषारण्य कहलाया।
- प्रययुस्तस्य चक्रस्य यत्र नेमिर्व्यशीर्यत।
- तद् वनं तेन विख्यातं नैमिषं मुनिपूजितम्॥
नाम व्युत्पत्ति
'नैमिष' की व्युत्पत्ति 'निमिष' शब्द से बताई जाती है, क्योंकि गौरमुख ने एक निमिष में असुरों की सेना का संहार किया था (कर्निघम, आ.स.रि. भाग १)। एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार इस स्थान पर अधिक मात्रा में पाए जानेवाले फल निमिष के कारण इसका नाम नैमिष पड़ा। व्युत्पत्ति के विषय में तीसरा मत है कि असुरों के दलन के अवसर पर विष्णु के चक्र की निमि नैमिष में गिरी थी (मत्स्य २२/१२/१४, वायुपुराण १/१५, ब्रह्माण्ड पुराण १/२/८)। किंतु दूसरे आख्यान के अनुसार जब देवताओं का दल महादेव के नेतृत्व में ब्रह्मा के पास असुरों के आतंक से पीड़ित होकर पहुँचा, तो ब्रह्मा ने अपना चक्र छोड़ा और उन्हें वह स्थान तपस्या के लिए निर्देशित किया जहाँ चक्र गिरे। नैमिष में चक्र गिरा अत: वह स्थल आज भी चक्रतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। चक्रतीर्थ षट्कोणीय है। व्यास १२० फुट है। पवित्र जल नीचे के सोंतों से आता है और एक नाले के द्वारा बाहर की ओर बहता रहता है, जिसे 'गोदावरी नाला' कहते हैं। चक्र तीर्थ के अतिरिक्त व्यासगद्दी, ललिता देवी का मंदिर, भूतनाथ का मंदिर, कुशावर्त, ब्रह्मकुंड, जानकीकुंड और पंचप्रयाग आदि आकर्षक स्थल हैं।
पौराणिक सन्दर्भ
नैमिषारण्य का प्रायः प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध-काण्ड की पुष्पिका में प्राप्त होता है। पुष्पिका में उल्लेख है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे राम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों में वाल्मीकि रचित काव्य का गायन किया।
महर्षि शौनक के मन में दीर्घकाल तक ज्ञान सत्र करने की इच्छा थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें एक चक्र दिया और कहा- `इसे चलाते हुए चले जाओ। जहां इस चक्र की `नेमि' (बाहरी परिधि) गिर जाय, उसी स्थल को पवित्र समझकर वहीं आश्रम बनाकर ज्ञान सत्र करो।' शौनकजी के साथ अदृसी सहस्र ऋषि थे। वे सब लोग उस चक्र को चलाते हुए भारत में घूमने लगे। गोमती नदी के किनारे एक तपोवन में चक्र की नेमि गिर गयी और वही वह चक्र भूमि में प्रवेश कर गया। चक्र की नेमि गिरने से वह तीर्थ 'नैमिष' कहा गया। जहां चक्र भूमि में प्रवेश कर गया, वह स्थान चक्रतीर्थ कहा जाता है। यह तीर्थ गोमती नदी के वाम तट पर है और ५१ पितृस्थानों में से एक स्थान माना जाता है। यहां सोमवती अमावस्या को मेला लगता है।
शौनकजी को इसी तीर्थ में सूतजी ने अठारहों पुराणों की कथा सुनायी। द्वापर में श्रीबलरामजी यहां पधारे थे। भूल से उनके द्वारा लोमहर्षण सूत की मृत्यु हो गयी। बलराम जी ने उनके पुत्र उग्रश्रवा को वरदान दिया कि वे पुराणों के वक्ता हों। और ऋषियों को सतानेवाले राक्षस बल्वल का वध किया। संपूर्ण भारत की तीर्थयात्रा करके बलराम जी फिर नैमिषारण्य आये और यहां उन्होंने यज्ञ किया।
दर्शनीय स्थल
नैमिषारण्य तीर्थ अंतर्गत कई प्राचीन पौराणिक धर्मस्थल/देवस्थल है जिनमे मुख्यतः चक्रतीर्थ,माँ ललिता देवी मंदिर , भूतेश्वर नाथ मंदिर ,व्यास गद्दी,सूत गद्दी, मनु-सतरूपा तपस्थली , हनुमान गढ़ी, काशी कुंड तीर्थ , देवपुरी ,काशी विश्वनाथ मंदिर , रुद्रावर्त तीर्थ , देवदेवेश्वर , संत आपानारायण स्वामी समाधि स्थल , , चार धाम मंदिर, बालाजी मंदिर,त्रिशक्ति धाम, हत्या हरण तीर्थ, कालिका देवी,काली पीठ, प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। नैमिषारण्यसे कुछ दूरी पर मिश्रिख है- दधीचि कुंड। वृत्तासुर राक्षस के वध के लिए वज्रायुध के निर्माण हेतु फाल्गुनी पूर्णिमा को जब इन्द्रादि देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियों निवेदन किया तो महर्षि दधीचि ने कहा मैं समस्त तीर्थों में स्नान कर देवताओं के दर्शन करना चाहता हूं तो इन्द्र ने विश्व के समस्त तीर्थों और समस्त देवताओं का आव्हान किया तो समस्त तीर्थों और पवित्र नदियों ने एक सरोवर में मिश्रण हुए महर्षि दधीचि ने स्नान किया तब से इस कुण्ड का नाम 'दधीचि कुण्ड'या 'मिश्रित तीर्थ' के नाम से जाना जाता है और समस्त देवताओं ने 84 कोस के नैमिषारण्य में अपना स्थान ग्रहण किया दधीचि जी ने सभी देवताओं का दर्शन किया परिक्रमा करने के बाद अपनी अस्थियों को दान में दे दिया तब से समस्त तीर्थ '35000000'साढे तीन करोड़ तीर्थ' एवं समस्त देवता '(33) तेंतीस कोटि देवता नैमिषारण्य में वास करते हैं और आज भी भक्त समस्त तीर्थों और देवताओं का दर्शन 84कोश परिक्रमा करने के लिए देश विदेश से आते हैं ।
चक्रतीर्थ
नैमिषारण्य स्टेशन से लगभग एक मील दूर चक्रतीर्थ है। यहां एक सरोवर है, जिसका मध्यभाग गोलाकार है और उससे बराबर जल निकलता रहता है। उस मध्य के घेरे के बाहर स्नान करने का घेरा है। यहीं नैमिषारण्य का मुख्य तीर्थ है। इसके किनारे अनेक मंदिर हैं। मुख्य मंदिर भूतनाथ महादेव का है। चक्रतीर्थ का बड़ी महिमा है। एक बार अट्ठासी हजार ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मा जी से निवेदन कि जगत कल्याण के लिये तपस्या हेतु विश्व में सौम्य और शांन्त भूमि का निर्देश करें। उस समय ब्रह्मा जी ने अपने मन से एक चक्र उत्पन्न करके ऋषियों कहा कि इस चक्र के पीछे चलकर उसका अनुकरण करो, जिस भूमि पर इस चक्र की नेमि (अर्थात मध्य भाग) स्वतः गिर जाये तो समझ लेना कि, पॄथ्वी का मध्य भाग वही है, तथा विश्व की सबसे दिव्य भूमि भी वही है। इस परम पवित्र भूमि के दर्शन विना जीव का जीवन भी कभी सफल नहीं होता।
परिक्रमा व दर्शनीय स्थल
नैमिषारण्य की परिक्रमा ८४ कोस की है। यह परिक्रमा प्रतिवर्ष फाल्गुनमास की अमावस्या के बाद की प्रतिपदा को प्रारंभ होकर पूर्णिमा को पूर्ण होती है । नैमिषारण्य की छोटी (अंतर्वेदी) में यहां के सभी तीर्थ आ जाते हैं। यहां के प्रमुख तीर्थों में:
- पंचप्रयाग - यह पक्का सरोवर है। इसके किनारे अक्षयवट नामक वृक्ष हैं।
- ललितादेवी- पुराणों में नैमिषारण्य में लिंग धारिणी नाम से देवी का वर्णन है, लेकिन अब यह ललिता देवी के नाम से विख्यात है। देवी भागवत में भी श्लोक है कि वाराणस्यां विशालाक्षी नैमिषेलिंग धारिणी, प्रयागे ललिता देवी कामुका गंध मादने...। नैमिषारण्य में ललिता देवी का वर्णन 108 देवी पीठाें में आता है। देवी भागवत में लिखा है कि दक्ष द्वारा अपने पति के अपमान को न सह सकीं और आहत होकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। तब शंकर जी ने अपने गणों के साथ यज्ञ को नष्ट कर डाला और सती के शव को लेकर इधर-उधर विचरण करने लगे। उनके नरसंहार से विरत न होते देखकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के 108 टुकड़े कर डाले। शव के अंश जिन-जिन स्थानों पर गिरे, वहां पर देवी पीठ बने। नैमिषारण्य में सती जी का हृदय गिरा था, जिससे यह स्थान भी सिद्ध पीठ के नाम से विख्यात हुआ।
- काशीविश्वनाथ मंदिर ( विश्वेश्वर महादेव ) - चक्रतीर्थ ललिता देवी मार्ग से आधा किलोमीटर की दूरी पर एक प्राचीन शिवधाम है जहाँ के बारे में मान्यता है कि सावन मास में एक माह तक यहां निरन्तर दर्शन करने से सारे कार्य सिद्ध होते हैं , नैमिष स्थित काशी तीर्थ के निकट स्थित भोले बाबा का पवित्र धाम काशीविश्वनाथ मंदिर स्थित है , इस देवस्थल की महिमा ऐसी है कि जो व्यक्ति वाराणसी जाकर बाबा काशीविश्वनाथ के दर्शन न कर सके उसे यहाँ दर्शन करने से पूरा फल मिलता है ये बेहद प्राचीन मंदिर सहसा ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है , इस मन्दिर के प्रबन्धक पं पुरुषोत्तम शास्त्री बताते है कि इस शिवालय को शिवपुराण में विश्वेश्वर के नाम से भी सम्बोधित किया गया है , वर्णन है कि धर्मराज के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव विश्वेश्वर महादेव के रूप में यहां प्रकट हुए थे , वहीं एक मान्यता ये भी है कि जब देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियां दान करने का निवेदन किया तो दधीचि ऋषि ने मनुष्य योनि से मुक्ति के लिए सभी तीर्थों और देवस्थलों के दर्शन करने का देवताओं से आग्रह किया । जिस पर देवराज इंद्र ने नैमिष तीर्थ में सभी देवो व तीर्थो को आमन्त्रित किया । सभी ने नैमिष की चौरासी कोसीय परिक्रमा में अपना स्थान ग्रहण किया। जिनके दर्शन और पूजन से महर्षि दधीचि को मोक्ष मिला और उनकी अस्थियों से परम् शक्तिशाली वज्र शक्ति का निर्माण हुआ एवं दुष्ट वृत्तासुर का वध हुआ । इसी क्रम में चक्रतीर्थ के पूर्व में स्थित काशी क्षेत्र में काशीकुण्ड के निकट द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से प्रमुख प्रभु काशी विश्वनाथ जी का आगमन हुआ है उनके स्वरूप की प्रतिकृति यहाँ आज भी विद्यमान है मान्यता है कि इस शिवलिंग के दर्शन पूजन से वाराणसी के काशी विश्वनाथ के समकक्ष पुण्य अर्जित होता है ये शिवालय चिरकाल से यहाँ आने वाले शिवभक्तो की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है । इसके अलावा इस स्थान पर मां अन्नपूर्णा देवी का भी मंदिर है जो वाराणसी में अन्नपूर्णा दर्शन के समान ही फल प्रदान करता है ।
- परमसंत आपा नारायण स्वामी समाधि स्थल
- काशीविश्वनाथ मंदिर के निकट नैमिष के परमसंत आपा नारायण स्वामी की समाधि स्थल है । यह नैमिष के परम् विरक्त सन्त हुए । आपा नारायण स्वामी ने यहां तपस्या रत रहते हुए विश्व कल्याण के लिए जीवित समाधि ली और चिरनिद्रा में लीन हुए । मन्दिर प्रबन्धक पं पुरुषोत्तम शास्त्री का कहना है कि यहां आये है तो यहाँ देवों ऋषियों से ईश्वर की भक्ति और पापकर्मो , पुनर्जन्म से मुक्ति मांगिये क्योंकि इसी से मानव जीवन का कल्याण है वहीं नैमिष में जो मनुष्य आकर धन, संपदा का लोभ करता है पाप करता है उसका सर्वनाश हो जाता है ।
- व्यास-शुकदेव के स्थान- एक मंदिर में भीतर शुकदेवजी की और बाहर व्यासजी की गद्दी है तथा पास में मनु और शतरूपा के चबूतरे हैं। *ब्रह्मावर्त- सूखा सरोवर। गंगोत्तरी, सूखा सरोवर रेत से भरा। पुष्कर- सरोवर है। गोमती नदी।
- दशाश्वमेध टीला- टीले पर एक मंदिर में श्रीकृष्ण और पाण्डावों की मूर्तियां हैं।
- पाण्डव किला- एक टीले पर मंदिर में श्रीकृष्ण तथा पाण्डवों की मूर्तियां हैं।
- चारों धाम मंदिर भारत के चारों दिशाओं में आदिशंकराचार्य जी के द्वारा स्थापित चारों धाम मंदिर नैमिषारण्य में महर्षि गोपाल दास जी के द्वारा स्थापित चारों धाम १जगन्नाथ धाम २बद्रीनाथ धाम ३द्वारिकाधीश धाम ४रामेश्वरम धाम एक साथ दर्शन
- सूतजी का स्थान- एक मंदिर में सूतजी की गद्दी है। वहीं राधा-कृष्ण तथा बलरामजी की मूर्तियां हैं।
- यहां स्वामी श्रीनारदनंदजी महाराज का आश्रम तथा एक ब्रह्मचर्याश्रम भी है, जहां ब्रह्मचारी प्राचीन पद्धति से शिक्षा प्राप्त करते हैं। आश्रम में साधक लोग साधना की दृष्टि से रहते हैं। धारणा है कि कलियुग में समस्त तीर्थ नैमिष क्षेत्र में ही निवास करते हैं।
त्रि शक्ति मंदिर भी देखने योग्य है। इसमें दक्षिण भारत की कलाकृति देखने लायक है।
सन्दर्भ
- ↑ वाराह पुराण अध्याय:११। श्लोक:१०८