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नैदानिक मनोविज्ञान

नैदानिक मनोविज्ञान, clinical psychology मनोवैज्ञानिक आधार वाले संकट या दुष्क्रियता से बचाव तथा राहत प्रदान करने या व्यक्तिपरक स्वास्थ्य तथा व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देने वाला एक एकीकृत विज्ञान, सिद्धांत तथा नैदानिक ज्ञान है।[1][2] इस पद्धति के केंद्र में होते हैं मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन तथा मनोचिकित्सा; यद्यपि नैदानिक मनोवैज्ञानिक, अनुसंधान, शिक्षण, परामर्श, विधि चिकित्साशास्त्र संबंधी साक्ष्य (forensic testimony) तथा कार्यक्रम विकास एवं प्रशासन में भी संलिप्त होते हैं।[3] कई देशों में नैदानिक मनोविज्ञान एक नियंत्रित मानसिक स्वास्थ्य पेशा है।

इस क्षेत्र का आरंभ, प्रायः वर्ष 1896 में पेंसिल्वैनिया विश्वविद्यालय में लाइटनर विट्मर (Lightner Witmer) द्वारा प्रथम मनोवैज्ञानिक चिकित्सालय की स्थापना के साथ माना जाता है। 20वीं शताब्दी के प्रथमार्ध में नैदानिक मनोविज्ञान मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन पर केंद्रित था, जिसमें उपचार पर कम ध्यान दिया जाता. 1940 के दशक के बाद, जब द्वितीय विश्व युद्ध में प्रशिक्षित चिकित्सकों की बड़ी संख्या में आवश्यकता हुई, तब इसमें बदलाव आया। तब से लेकर आज तक दो प्रमुख शैक्षणिक प्रारूपों का विकास हुआ- पीएचडी विज्ञान-चिकित्सक प्रारूप (नैदानिक अनुसंधान पर केंद्रित) और मनोवैज्ञानिक (Psy.D.)- चिकित्सक-विद्वान प्रारूप (नैदानिक चिकित्सा पर केंद्रित). नैदानिक मनोवैज्ञानिक अब मनोचिकित्सा के विशेषज्ञ माने जाते हैं, तथा वे सामान्यतः चार प्रमुख प्राथमिक सैद्धांतिक अभिमुखन- मनोगतिकी, मानविकी, व्यवहार उपचार/संज्ञानात्मक स्वभावजन्य तथा प्रणालियों या पारिवारिक उपचारों में प्रशिक्षित होते हैं।

इतिहास

मनोवैज्ञानिक संकट के लिए कई 18 सी. उपचार छद्म वैज्ञानिक विचारों पर आधारित हैं जैसे मस्तिष्क - विज्ञान.

यद्यपि आधुनिक, वैज्ञानिक मनोविज्ञान की शुरुआत वर्ष 1879 में विल्हम वुंड (Wilhelm Wundt) द्वारा स्थापित प्रथम मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला के बाद से माना जाता है, जहां बहुत पहले से मौजूद मानसिक तनाव के मूल्यांकन तथा उपचार-विधियों की खोज का प्रयास किया गया। सबसे पहले दर्ज तरीकों में शामिल था धार्मिक, चमत्कारी तथा/या चिकित्सीय दृष्टिकोणों का एक संयोजन.[4] ऐसे चिकित्सकों के आरंभिक उदाहरणों में शामिल हैं पतंजलि, पद्मसंभव,[5] रैजेस (Rhazes), ऐविसेना (Avicenna),[6] तथा रूमी (Rumi).[7]

19 शताब्दी के आरंभ में कोई व्यक्ति अपने सिर की जांच करवा सकता था जो फ्रेनोलॉजी (phrenology), खोपड़ी के आकार द्वारा व्यक्तित्व का अध्ययन, के जरिए किया जाता था। अन्य लोकप्रिय उपचारों में मुखाकृति विज्ञान - चेहरे के आकार का अध्ययन - तथा सम्मोहन (mesmerism), चुंबकों की मदद से मेस्मर उपचार शामिल थे। अध्यात्मवाद तथा फिनीज किम्बी (Phineas Quimby) का “मानसिक आरोग्य” भी लोकप्रिय था।[8]

जहां वैज्ञानिक समुदायों ने अंततः इन सभी विधियों को ख़ारिज कर दिया, शैक्षणिक मनोवैज्ञानिक भी गंभीर मानसिक रोगों के प्रति चिंतित नही था। शरण-स्थान आंदोलन (asylum movement) में उस क्षेत्र में पहले से ही मनःचिकित्सा तथा तंत्रिका-विज्ञान के विकसित हिस्सों का दखल था।[4] 19वीं शताब्दी के बाद से, जब सिग्मंड फ्रायड (Sigmund Freud) ने वियेना में “वार्तालाप उपचार” ("talking cure") को विकसित किया, मनोविज्ञान का प्रथम वैज्ञानिक नैदानिक अनुप्रयोग आरंभ हुआ।

प्रारंभिक नैदानिक मनोविज्ञान

चित्र:Witmer.jpg
लाइटनर विट्मर आधुनिक नैदानिक मनोविज्ञान के पिता हैं।

18वी शताब्दी के उत्तरार्ध में मनोविज्ञान का वैज्ञानिक अध्ययन विश्वविद्यालयों के प्रयोगशालाओं में भली-भांति स्थापित हो रहा था। यद्यपि छिट-पुट रूप से एक व्यावहारिक मनोविज्ञान के लिए आवाज उठाई जा रही थी, पर सामान्य क्षेत्र ने इस विचार पर असहमति जताई तथा केवल “शुद्ध” विज्ञान को ही प्रतिष्ठित कार्यप्रणाली के रूप में माना.[4] हालांकि जब वुंड (Wundt) के एक पूर्व छात्र तथा पेन्सिल्वैनिया विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष लाइटनर विट्मर (1867–1956) वर्तनी की समस्या के शिकार एक छोटे लड़के के उपचार के लिए सहमत हुए, तब इसमे बदलाव आया। उसके सफल उपचार के परिणामस्वरूप विट्मर ने वर्ष 1896 में पेन (Penn) में प्रथम मनोवैज्ञानिक चिकित्सालय की स्थापना की, जो सीखने की समस्या से ग्रस्त छोटे बच्चों के प्रति समर्पित था।[9] दस वर्ष पश्चात विट्मर ने इस क्षेत्र के प्रथम जर्नल, द साइकोलॉजिकल क्लिनिक (The Psychological Clinic) की नींव डाली, जिसमें उन्होंने “क्लिनिकल साइकोलॉजी (नैदानिक मनोविज्ञान)” शब्द का प्रथम प्रयोग किया, जिसे “परिवर्तन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किए प्रेक्षण या प्रयोग द्वारा व्यक्तियों का अध्ययन” के रूप में परिभाषित किया गया।[10] यह क्षेत्र विटमर के उदाहरण के अनुपालन के लिए धीमा था, पर वर्ष 1914 तक अमेरिका में इस तरह के 26 चिकित्सालय खुल चुके थे।[11]

भले ही नैदानिक मनोविज्ञान का प्रयोग बढ़ रहा था, पर गंभीर मानसिक तनाव वाले रोग मनःचिकित्सा तथा तंत्रिका विज्ञान के अधीन रहे.[12] हालांकि नैदानिक मनोवैज्ञानिक अपने मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन की बढ़ती क्षमता के कारण निरंतर रूप से इस क्षेत्र में कार्य करते रहे. मूल्यांकन विशेषज्ञ के रूप में मनोवैज्ञानिकों की प्रतिष्ठा प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान बढ़ी, जब दो बुद्धि परीक्षण (intelligence test), आर्मी अल्फा (Army Alpha) तथा आर्मी बीटा (Army Beta) [क्रमशः मौखिक तथा अमौखिक क्षमता की जांच] का विकास हुआ, जिसका उपयोग रंगरूटों की बड़ी संख्या पर किया जा सका.[8][9] इन परीक्षणों की भारी सफलता के कारण, अगली चौथाई सदी तक यानि दूसरे विश्वयुद्ध द्वारा इस क्षेत्र को उपचार की ओर अग्रसर करने तक, मूल्यांकन, नैदानिक मनोविज्ञान का प्रमुख विषय बना रहा.

आरंभिक पेशेवर संगठन

वर्ष 1917 में ‘अमेरिकन असोसिएशन ऑफ क्लिनिकल साइकोलॉजी’ की स्थापना के बाद से इस क्षेत्र ने “क्लिनिकल साइकोलॉजी (नैदानिक मनोविज्ञान)” नाम के तहत संगठित होना शुरु किया। यह केवल वर्ष 1919 तक चला, जिसके पश्चात ‘अमेरिकन साइकोलॉजिकल असोसिएशन’ (जी स्टैन्ले हॉल द्वारा 1892 में स्थापित) ने नैदानिक मनोविज्ञान के एक भाग का विकास किया, जिसने वर्ष 1927 तक प्रमाणन प्रदान किया।[11] अगले कुछ वर्षों तक, वर्ष 1930 में विभिन्न असंबद्ध मनोवैज्ञानिक संगठनों के ‘अमेरिकन असोसिएशन ऑफ अप्लायड साइकोलॉजी’ के रूप में एकत्र होने तक, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में APA के पुनर्गठन तक मनोवैज्ञानिकों के लिए एक प्रमुख मंच रहा, इस क्षेत्र में धीमा विकास हुआ।[13] वर्ष 1945 में APA ने वर्तमान में ‘डिविजन 12’ के नाम से जाने जाने वाले संगठन का निर्माण किया, जो इस क्षेत्र का प्रमुख संगठन रहा. मनोवैज्ञानिक सोसाइटी तथा अन्य अंग्रेजी भाषी देशों के संगठनों ने ऐसे ही विभागों (डिविजन) का विकास किया, जिनमें ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड जैसे देश भी शामिल थे।

द्वितीय विश्वयुद्ध तथा उपचार का एकीकरण

द्वितीय विश्वयुद्ध जब आरंभ हुआ, फौजों ने एक बार फिर नैदानिक मनोवैज्ञानिकों की मांग की. चूंकि सैनिक युद्ध से वापस लौटने लगे, मनोवैज्ञानिकों ने “शेल शॉक” (बाद में इसे आघात पश्चात के तनाव रोग का नाम दे दिया गया) नामक मनोवैज्ञानिक आघात पर ध्यान देना शुरु किया, जिन्हें जल्द से जल्द भली-भांति ठीक किया जाता रहा.[9] क्योंकि चिकित्सक (मनोचिकित्सक समेत) शारीरिक जख्मों के इलाज में काफी व्यस्त थे, इस स्थिति से उबरने में मदद के लिए मनोवैज्ञानिकों को बुलाया जाता था।[14] वहीं महिला मनोवैज्ञानिकों (जो युद्ध कार्यों से बाहर थीं) ने मिलकर ‘नेशनल काउंसिल ऑफ वीमन साइकोलॉजिस्ट’ का निर्माण किया, जिसका उद्देश्य था समुदायों को युद्ध के तनाव से उबरने में मदद करना और युवा माँ को बच्चों की देखभाल पर परामर्श प्रदान करना.[10] युद्ध के पश्चात अमेरिका के ‘वेटरंस ऐडमिनिस्ट्रेशन’ ने हजारों सेवानिवृत्त सैनिकों के आवश्यक उपचार हेतु मदद के लिए चिकित्सीय-स्तर के मनोवैज्ञानिकों को प्रशिक्षित करने वाले कार्यक्रमों में भारी निवेश किया। परिणामस्वरूप, जिस अमेरिका के पास वर्ष 1946 में नैदानिक मनोवैज्ञान पर आधारित विश्वविद्यालय कार्यक्रम नहीं थे, वहीं 1950 में प्रदान किए जाने वाले कुल पीएचडी उपाधि में आधे नैदानिक मनोविज्ञान में थे।[10]

द्वितीय विश्वयुद्ध ने न केवल अमेरिका में, बल्कि पूरी दुनिया में नैदानिक मनोविज्ञान में नाटकीय परिवर्तन लाया। मनोविज्ञान की स्नातकीय शिक्षा में नैदानिक मनोविज्ञान में पीएचडी कार्यक्रमों हेतु मनःचिकित्सा विज्ञान तथा वर्ष 1947 के चिकित्सक प्रारूप, जिसे आज बोल्डर मॉडल (Boulder Model) कहा जाता है, आधारित शोध उद्देश्य को शामिल किया जाने लगा.[15] द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात, विशेषकर ‘नेशनल हेल्थ सर्विस’[16] के परिप्रेक्ष्य में ब्रिटेन में नैदानिक मनोविज्ञान अमेरिका की तरह ही विकसित हुआ, जिसमें योग्यताओं, मानकों तथा वेतनों को ब्रिटिश साइकोलोजिकल सोसाइटी द्वारा प्रबंधित किया गया।[17]

मनोविज्ञान में डॉक्टर की उपाधि का विकास

1960 के दशक तक मनःचिकित्सा नैदानिक मनोविज्ञान में अतःस्थापित हो चुकी थी, पर कई पीएचडी शिक्षण प्रारूप अनुसंधान की बजाए चिकित्सा में रुचि रखने वालों को आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान नहीं कर रहे थे। एक बहस छिड़ी हुई थी कि अमेरिका में मनोविज्ञान के क्षेत्र ने नैदानिक चिकित्सा-कार्य में डिग्री प्रदान करने वाले सुस्पष्ट प्रशिक्षण का विकास किया है। चिकित्सा-कार्य आधारित डिग्री पर 1965 में चर्चा हुई तथा अल्प रूप से इलियनिस विश्वविद्यालय (University of Illinois) में 1968 में एक शुरुआती कार्यक्रम के लिए स्वीकृति मिली.[18] इसके बाद कई ऐसे कार्यक्रमों की स्थापना हुई तथा वर्ष 1973 में मनोविज्ञान में व्यावसायिक कार्यक्रमों के वेल सम्मेलन (Vail Conference on Professional Training in Psychology) में नैदानिक मनोविज्ञान के चिकित्सक-विद्वान प्रारूप (Practitioner-Scholar Model of Clinical Psychology)- या वेल मॉडल में मनोविज्ञान में डॉक्टर की डिग्री (Psy.D.) को मान्यता दी गई।[19] यद्यपि शोध कुशलता तथा मनोविज्ञान की एक वैज्ञानिक समझ को शामिल करने के लिए प्रशिक्षण जारी रहेगा, पर चिकित्सा विज्ञान, दंतचिकित्सा विज्ञान तथा कानून की तरह ही उद्देश्य उच्च प्रशिक्षित कर्मियों का निर्माण रहेगा. Psy.D. प्रारूप पर स्पष्ट रूप से आधारित पहले कार्यक्रम की स्थापना रुटगर्स विश्वविद्यालय में की गई।[18] आज नैदानिक मनोविज्ञान विषय में पंजीकृत अमेरिकी स्नातक छात्रों में लगभग आधे Psy.D. कार्यक्रमों के हैं।[19]

एक परिवर्तनशील पेशा

1970 के दशकों से नैदानिक मनोविज्ञान एक मुखर व्यवसाय तथा अध्ययन के शैक्षणिक क्षेत्र में निरंतर रूप से विकसित होता रहा. यद्यपि चिकित्सा-कार्य में लिप्त नैदानिक मनोवैज्ञानिकों की सटीक संख्या अज्ञात है, पर 1974 तथा 1990 के बीच अमेरिका में अनुमानतः यह 20,000 बढ़कर 63,000 हो गई।[20] नैदानिक मनोवैज्ञानिक जराविज्ञान (gerontology), क्रीड़ा तथा आपराधिक न्याय प्रणाली की समस्याओं के निदान पर ध्यान केंद्रित करने के साथ मूल्यांकन तथा मनःचिकित्सा के भी विशेषज्ञ बने हुए हैं। एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है स्वास्थ्य मनोविज्ञान, जो पिछ्ले दशक में नैदानिक मनोवैज्ञानिकों के लिए सर्वाधिक तेजी से विकसित होने वाला रोजगार व्यवसाय रहा.[8] अन्य प्रमुख परिवर्तनों में शामिल हैं मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर प्रबंधित उपचार का प्रभाव; बहु-सांस्कृतिक तथा विविध आबादियों से जुड़ी जानकारियों की अहमियत का बढ़ता एहसास; तथा निर्धारित साइकोट्रॉपिक उपचार के प्रति बढ़ता विशेषाधिकार.

पेशेवर चिकित्सा-कार्य

नैदानिक मनोवैज्ञानिक कई प्रकार की पेशागत सेवाएं पेश करता हैं, जिनमें शामिल है:[10]

  • मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन तथा जांच का प्रबंधन तथा व्याख्या.
  • मनोवैज्ञानिक शोध का आयोजन
  • परामर्श (विशेषकर स्कूलों तथा व्यावसायों के साथ)
  • बचाव तथा उपचार कार्यक्रमों का विकास
  • कार्यक्रम प्रशासन
  • विशेषज्ञ को साक्ष्य प्रदान करना (न्यायालयिक मनोविज्ञान)
  • मनोवैज्ञानिक उपचार प्रदान करना (मनःचिकित्सा)
  • शिक्षण

व्यवहार में नैदानिक मनोविज्ञान व्यक्तियों, दंपत्तियों, परिवारों या विभिन्न व्यवस्थाओं के समूहों, निजी चिकित्सा-कार्यों समेत, अस्पतालों, मानसिक स्वास्थ्य संगठनों, स्कूलों, व्यवसायों एवं गैर-लाभ वाली एजेंसियों के साथ कार्य कर सकते हैं। अनुसंधान तथा शिक्षण में जुटे अधिकतर नैदानिक मनोवैज्ञानिक ऐसा कॉलेज या विश्वविद्यालय के अंतर्गत करते हैं। नैदानिक मनोवैज्ञानिक किसी विशेष क्षेत्र- विशेषज्ञता के सामान्य क्षेत्र, की विशेषज्ञता चुन सकते हैं, उनमें से कुछ बोर्ड प्रमाणन प्राप्त कर सकते हैं, जिनमें शामिल है:[21]

  • बाल तथा किशोर
  • परिवार तथा संबंध परामर्श
  • विधि चिकित्साशास्त्र सम्बंधी
  • स्वास्थ्य
  • तंत्रिका-मनोवैज्ञानिक रोग (Neuropsychological disorders)
  • संगठन तथा व्यवसाय
  • स्कूल
  • विशेष रोग (जैसे, आघात, व्यसन, भोजन, शयन, यौनकर्म, नैदानिक अवसाद, चिंता, या भीति)
  • खेल

चिकित्सा-कार्य हेतु प्रशिक्षण तथा प्रमाणन

नैदानिक मनोविज्ञान में औपचारिक शिक्षा की पेशकश सबसे पहले पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय ने किया था।

नैदानिक मनोवैज्ञानिक मनोविज्ञान के साथ ही स्नातकोत्तर प्रशिक्षण तथा/या नैदानिक स्थापन एवं निरीक्षण के सामानज्ञ (generalist) कार्यक्रमों का अध्ययन करते हैं। प्रशिक्षण की अवधि दुनिया भर में अलग-अलग होती है, जो चार वर्ष के उत्तर-स्नातक पर्यवेक्षित चिकित्सा-कार्य[22] से लेकर तीन से छः वर्षों के डॉक्टर की उपाधि तक होती है, जिसमें नैदानिक स्थापन शामिल होती है।[23] अमेरिका में नैदानिक मनोवैज्ञानिक के लगभग आधे छात्र पीएचडी कार्यक्रमों में प्रशिक्षित किए जा रहे हैं- यह एक ऐसा प्रारूप है, जिसमें अनुसंधान पर बल डाला जाता है; अन्य आधे छात्र Psy.D कार्यक्रम के होते हैं, जो चिकित्सा-कार्य (चिकित्सा विज्ञान तथा कानून के समान पेशेवर डिग्री) पर केंद्रित होता है।[19] दोनों ही प्रारूप को ‘अमेरिकन साइकोलॉजिकल असोसिएशन’[24] तथा कई अन्य अंग्रेजी-भाषी मनोवैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई है। कुछ संख्या में ऐसे स्कूल भी हैं, जो नैदानिक मनोविज्ञान के कार्यक्रमों को उपलब्ध कराते हैं और मास्टर डिग्री प्रदान करते हैं, जो उत्तर-स्नातक के लिए दो से तीन वर्षों का समय लेते हैं।

यूके में नैदानिक मनोवैज्ञानिक नैदानिक मनोविज्ञान में डॉक्टर की डिग्री (D.Clin.Psych.) पूरी करते हैं, जो नैदानिक तथा अनुसंधान अंगों में चिकित्सा-कार्य करने वाला डॉक्टरेट होता है। यह तीन वर्षों का पूर्णकालिक वेतनमान वाला कार्यक्रम होता है, जो नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) द्वारा प्रायोजित किया जाता है एवं विश्वविद्यालकों तथा NHS में उपलब्ध होता है। इन कार्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए काफी प्रतिस्पर्धा होती है तथा इसके लिए मनोविज्ञान की कम से कम तीन वर्षों वाली एक अंतरस्नातक डिग्री तथा कुछ अनुभव की आवश्यकता होती है, जो प्रायः NHS में सहायक मनोवैज्ञानिक (Assistant Psychologist) या शैक्षणिक समुदाय में शोध सहायक (Research Assistant) के रूप में हो सकता है। आवेदकों के लिए किसी शिक्षण पाठ्यक्रम हेतु स्वीकृत होने तक कई बार आवेदन करना सामान्य बात होती है, क्योंकि हर वर्ष कुल आवेदकों के केवल पांचवे हिस्से का ही चयन हो पाता है।[25] ये नैदानिक मनोवैज्ञानिक डॉक्टर की डिग्रियां ‘ब्रिटिश सायकोलॉजिकल सोसाइटी’ तथा ‘हेल्थ प्रोफेशन्स काउंसिल’ (एचपीसी (HPC)) द्वारा मान्यताप्रदत्त होती हैं। यूके में चिकित्सा-कार्य करने वाले मनोवैज्ञानिकों के लिए HPC एक वैधानिक विनियामक निकाय होता है। जो नैदानिक मनोविज्ञान में सफलतापूर्वक डॉक्टर की डिग्री प्राप्त कर चुके होते हैं, वे HPC में नैदानिक मनोवैज्ञानिक बनने के लिए आवेदन कर सकते हैं।

नैदानिक मनोविज्ञान में चिकित्सा-कार्य करने के लिए, अमेरिका, कनाडा, यूके तथा कई अन्य देशों में अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) की आवश्यकता होती है। यद्यपि अमेरिका का हर राज्य आवश्यकताओं तथा लाइसेंस के आधार पर थोड़ा भिन्न है, जिसमें तीन मौलिक तत्त्व हैं:[26]

  1. किसी मान्यताप्राप्त स्कूल से उचित डिग्री के साथ स्नातक
  2. पर्यवेक्षित नैदानिक अनुभव या इंटर्नशिप की पूर्णता
  3. एक लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करना, तथा कुछ राज्यों में मौखिक परीक्षा भी उत्तीर्ण करनी होती है।

सभी अमेरिकी राज्यों तथा कनाडाई प्रातों के लाइसेंस प्रदान करने वाले बोर्ड ‘असोसिएशन ऑफ स्टेट एंड प्रोविंसियल सायकोलॉजी बोर्ड’ (ASPPB) के सदस्य होते हैं, जिसने ‘एग्जामिनेशन फॉर प्रोफेशनल प्रैक्टिस इन सायकोलॉजी’ (EPPP) का गठन किया तथा अब इसका संचालन करता है। कई राज्यों को EPPP के अलावा अन्य परीक्षाओं की भी आवश्यकता होती है, जैसे विधिशास्त्र (अर्थात मानसिक स्वास्थ्य कानून) की परीक्षा तथा/या कोई मौखिक परीक्षा.[26] अधिकतर राज्यों को लाइलेंस पुनर्नवीनीकृत करवाने के लिए प्रतिवर्ष लगातार रूप से कुछ निश्चित शैक्षिक क्रेडिट की आवश्यकता होती है, जो कई माध्यमों से प्राप्त की जा सकती है, जैसे परीक्षित कक्षाएं (audited classes) लेना तथा स्वीकृत कार्यशालाओं में भाग लेना. नैदानिक मनोवैज्ञानिकों को चिकित्सा-कार्य करने हेतु मनोवैज्ञानिक लाइसेंस की जरूरत होती है, यद्यपि ये लाइसेंस मास्टर स्तरीय डिग्री के साथ प्राप्त किए जा सकते है, जैसे ‘मैरिज एंड फेमिली थेरॉपिस्ट’(MFT), ‘लाइसेंस्ड प्रोफेशनल काउंसलर’ (LPC), तथा ‘लाइसेंस्ड साइकोलॉजिकन असोसिएट’ (LPA).[27]

यूके में नैदानिक मनोवैज्ञानिक हेतु ‘हेल्थ प्रोफेशन्स काउंसिल’ (HPC) में पंजीकरण करवाना आवश्यक होता है। यूके में चिकित्सा-कार्य करने वाले मनोवैज्ञानिकों के लिए HPC वैधानिक नियामक होता है। यूके में निम्न उपाधियां “रजिस्टर्ड सायकोलॉजिस्ट” तथा “प्रेक्टिशनर सायकोलॉजिस्ट” कानूनन प्रतिबंधित हैं; इसके अलावा “क्लिनिकल सायकोलॉजिस्ट” की विशेषज्ञता उपाधि भी कानूनन प्रतिबंधित है।

मूल्यांकन

कई नैदानिक मनोवैज्ञानिकों के लिए विशेषज्ञता का महत्वपूर्ण क्षेत्र होता है मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन, तथा यह संकेत मिलते हैं कि लगभग 91% मनोवैज्ञानिक इस प्रमुख नैदानिक चिकित्सा-कार्य में शामिल हैं।[28] ऐसा मूल्यांकन प्रायः सेवा में किया जाता है ताकि मनोवैज्ञानिक या व्यवहारगत समस्यायों के बारे में संकल्पनाओं के निर्माण तथा उनकी गहन जानकारी प्राप्त की जा सके. इस प्रकार ऐसे मूल्यांकनों के परिणामों का उपयोग प्रायः सेवा में सूचना उपचार योजना के प्रति सामान्य धारणाओं (रोगनिदान की बजाए) को निर्मित करने के लिए किया जाता है। इन विधियों में औपचारिक जांच उपाय, साक्षात्कार, पूर्व के रिकॉर्डों का पुनरीक्षण, नैदानिक अवलोकन तथा शारीरिक परीक्षण शामिल हैं।[2]

वास्तव में कई प्रकार के मूल्यांकन संसाधन मौजूद हैं, पर केवल कुछ को ही उच्च वैधता (अर्थात, आकलन की दावे को आकलित करने हेतु जांच) तथा विश्वसनीयता (अर्थात, एकरूपता) प्राप्त है। ये आकलन सामान्यतः कई वर्गों में एक के अंतर्गत आते हैं, जिनमें निम्न भी शामिल हैं:

  • बुद्धि तथा उपलब्धि जांच (Intelligence & achievement tests) – इन जांचों को सामान्य समूहों की तुलना में कुछ विशेष प्रकार के संज्ञानात्मक कार्यों (प्रायः ‘आइक्यू’ के नाम से जाना जाता है) के आकलन के लिए तैयार किया जाता है। ये जांच, जैसे WISC-IV, ऐसे सामान्य ज्ञान, वाचन कुशलता, स्मृति, ध्यान अवधि, तार्किक वितर्कों तथा दृश्य/त्रिविम बोध जैसे लक्षणों का आकलन करने का प्रकास करती हैं। कुछ निश्चित प्रकार के प्रदर्शनों, विशेषकर विद्यालयी प्रदर्शनों को ठीक-ठीक बताने के लिए कई जांचों को प्रदर्शित किया गया है।[28]
  • व्यक्तित्व जांच (Personality tests) – व्यक्तित्व की जांच, ये सामन्यतः दो वर्गों में आते हैं: वस्तुनिष्ठ तथा परियोजनात्मक (projective). वस्तुनिष्ठ आकलन जैसे MMPI, सीमित उत्तरों पर आधारित होते हैं- जैसे हां/नहीं, सही/गलत या रेटिंग स्केल- जो उन अंकों की गणना की अनुमति देता है, जिसकी नियामक समूह के साथ तुलना की जा सकती है। परियोजनात्मक जांच, जैसे रॉर्शाक इंकब्लॉट (Rorschach inkblot) जांच, खुले सिरे वाले उत्तरों की अनुमति देती है, जो प्रायः अनेकार्थी अनुक्रियाओं पर आधारित, अनुमानतः सारगर्भित अ-चेतन शरीर-क्रियावैज्ञानिक गतिकी होती है।
  • तंत्रिका-मनोवैज्ञानिक जांच (Neuropsychological tests) – तंत्रिका-मनोवैज्ञानिक जांचों में ऐसे विशेष रूप से तैयार किए कार्य होते हैं, जिनका प्रयोग एक विशेष मस्तिष्क संरचना या पथ से जुड़े मनोवैज्ञानिक कार्यों के आकलन में किया जाता है। इन्हें विशेषरूप से किसी जख्म या बीमारी के बाद की ऐसी क्षति के आकलन के लिए किया जाता है, जो तंत्रिकासंज्ञानात्मक क्रियाओं को प्रभावित करती है, या शोधकार्यों में प्रायोगिक समूहों के मध्य तंत्रिका-मनोवैज्ञानिक क्षमताओं को विभेदित करती है।
  • नैदानिक अवलोकन (Clinical observation) – नैदानिक मनोवैज्ञानिकों को व्यवहारों के अध्ययन द्वारा भी आंकड़े एकत्र करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। यहां तक कि औपचारिक साधनों के प्रयोग में भी, जिसे संरचनात्मक या असंरचनात्मक रूप में प्रयुक्त किया जाता है, नैदानिक साक्षात्कार मूल्यांकन का एक अहम हिस्सा होता है। ऐसा मूल्यांकन कुछ निश्चित क्षेत्रों पर केंद्रित होता है, जैसे सामान्य हाव-भाव तथा व्यवहार, मानसिक अवस्था तथा प्रभाव, बोध, समझ, अभिमुखन, अंतर्दृष्टि, स्मृति तथा संवाद के तत्त्व. औपचारिक साक्षात्कार वाला एक मनोविकारी उदाहरण है मानसिक दशा का परीक्षण, जिसका प्रायः मनोविकृति में उपचार के साधन तथा अगली जांच के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।[28]

रोग-नैदानिक धारणाएं

मूल्यांकन के पश्चात नैदानिक मनोवैज्ञानिक प्रायः एक रोग-नैदानिक धारणा प्रस्तुत करते हैं। कई देश इंटरनैशनल स्टैटिस्टिकल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज एंड रिलेटेड हेल्थ प्रॉब्लम्स ’ (ICD-10) का इस्तेमाल करते हैं, जबकि अमेरिका में प्रायः डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेन्टल डिसॉर्डर (the DSM version IV-TR) का प्रयोग किया जाता है। दोनों ही धारणाएं चिकित्सीय संकल्पनाएं तथा शर्तों को मानती हैं तथा कहती हैं कि कुछ वर्गीय रोग हैं, जिनका विवरणात्मक मानदंडों की तय सूचियों द्वारा पता लगाया जा सकता है।[29]

मानव विभेदों (व्यक्तित्व के पांच कारक वाले प्रारूप[29][30]) के प्रयोगसिद्ध रूप से अनुप्रमाणित “विमीय प्रारूप” (“डायमेंशनल मॉडल”) तथा एक “मनो-सामाजिक प्रारूप”, जो परिवर्तनशील, अंतरविषयिक दशाओं को अधिक ध्यान में रखता है, आधारित प्रारूप समेत कई नए प्रारूपों की चर्चा चल रही है।[31] इन प्रारूपों के समर्थक दावा करते हैं कि रोगों की चिकित्सा-वैज्ञानिक संकल्पना पर निर्भर हुए बिना वे अधिक रोग-नैदानिक लोचशीलता तथा नैदानिक उपयोगिता उपलब्ध कराएंगे. हालांकि वे यह भी मानते हैं कि ये प्रारूप अभी इतने मुखर नहीं हैं कि इनका व्यापक उपयोग किया जा सके और इसे निरंतर विकास की और बढ़ते रहना चाहिए.

कुछ नैदानिक मनोवैज्ञानिक रोग-निदान की ओर प्रवृत्त नहीं होते, बल्कि वे संरूपण (formulation) का उपयोग करते हैं, जिनमें रोगियों या ग्राहकों द्वारा अनुभव की गई समस्याओं के विशिष्ट ढांचे शामिल होते हैं, जो व्यापक पूर्व-प्रवृत्ति (encompassing predisposing), अवक्षेपण (precipitating) तथा सातत्य (बनाए रखा) वाले कारकों पर आधारित होते हैं।[32]

नैदानिक सिद्धांत एवं हस्तक्षेप

मनोचिकिसा के अंतर्गत चिकित्सक और रोगी – प्राय: कोई व्यक्ति, दंपत्ति, परिवार अथवा कोई छोटा समूह- के बीच औपचारिक संबंध होता है, जिसमें रोगोपचारी गठबंधन बनाने, मनोवैज्ञानिक समास्याओं की प्रकृति के अन्वेषण तथा सोचने, महसूस करने और व्यवहार के नए तरीकों को बढ़ावा देने की अनेक प्रक्रियाओं को व्यवहार में लाया जाता है।[2][33]

चिकित्सकों के पास स्रोत के रूप में वैयक्तिक हस्तक्षेपों की एक विशाल श्रृंखला होती है जो प्राय: उनके प्रशिक्षण द्वारा निर्देशित होती है, उदाहरण के लिए एक संज्ञानात्मक व्यवहारपरक उपचार विधि (CBT) का चिकित्सक द्वारा तनावकारी संज्ञानों को दर्ज करने के लिए कार्यपन्नों का प्रयोग किया जा सकता है, मनोविश्लेषक द्वारा मुक्त सम्मिलन को प्रोत्साहन दिया जा सकता है जबकि गेस्टाल्ट (Gestalt) तकनीकों में प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक द्वारा रोगी और चिकित्सक के बीच त्वरित अंतर्क्रियाओं पर बल दिया जा सकता है। नैदानिक मनोवैज्ञानिक प्राय: अपने कार्य को शोध के प्रमाण तथा परिणाम अध्ययनों एवं प्रशिक्षित चिकित्सीय निर्णय पर आधारित करना चाहते हैं। यद्यपि दर्जनों मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धतीय अभिमुखन हैं, उनके अंतर दो आधार पर वर्गीकृत किए जा सकते हैं: अंतर्दृष्टि बनाम क्रिया और अंत:-सत्र बनाम बाह्य-सत्र.[10]

  • अंतर्दृष्टि – व्यक्ति के विचारों और भावनाओं को दर्शाने वाली प्रवृत्तियों को समझने पर बल दिया जाता है (उदाहरण के लिए मनोगतिकी चिकित्सा पद्धति)
  • क्रिया – व्यक्ति के सोचने और कार्य करने के तरीके को बदलने पर बल दिया जाता है (उदाहरण के लिए निदान केन्द्रित चिकित्सा पद्धति, संज्ञानात्मक व्यवहारपरक चिकित्सा पद्धति)
  • अंत:-सत्र – हस्तक्षेप रोगी और चिकित्सक के बीच तत्काल अंतर्क्रिया पर केन्द्रित होते हैं (उदाहरण के लिए मानवीय पद्धति, गेस्टाल्ट चिकित्सा पद्धति)
  • बाह्य-सत्र – चिकित्सा पद्धतीय कार्य का एक बड़ा भाग सत्र के बाहर संपन्न होता है (उदाहरण के लिए बिब्लियोथेरैपी (bibliotherapy), तार्किक भावात्मक व्यवहार उपचार पद्धति)

प्रयुक्त विधियां संबद्ध जनसंख्या तथा समस्या के संदर्भ और उसकी प्रकृति के अनुसार भी भिन्न-भिन्न होती हैं। उपचार पद्धति सदमाग्रस्त बच्चे, अवसादग्रस्त किंतु उच्च कार्यशील वयस्क, लोगों का समूह जो बड़े परावलम्बन से उबर रहा हो और भयानक विभ्रमों से पीड़ित अवस्था वाले रोगियों के बीच अलग-अलग रूपों में होगी. मनोचिकित्सापद्धति की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिक निभाने वाले अन्य तत्व हैं- पर्यावरण, संस्कृति, आयु, संज्ञानात्मक संक्रिया, अभिप्रेरण और अवधि (संक्षिप्त अथवा दीर्घकालीन चिकित्सा).[33][34]

चार प्रमुख शाखाएं

यह क्षेत्र आवश्यक रूप से चार प्रमुख चिकित्सा शाखाओं द्वारा प्रशिक्षण और चिकित्साकार्य के रूप में संचालित है: मनोगतिकी, मानवतावाद, व्यवहारपरक/संज्ञानात्मक व्यवहारपरक, तथा पारिवारिक चिकित्सा पद्धति की प्रणालियां.[2]

मनोगतिकी

मनोगतिकी परिप्रेक्ष्य का विकास सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) के मनोविश्लेषण से हुआ। मनोविश्लेषण का मुख्य विषय है अचेतन को चेतन बनाना – रोगी को उसके अपने उद्वेगों (जैसे कि यौन एवं आक्रामकता से संबंधित) तथा उनपर नियंत्रण रखने वाले अनेक कारकों से परिचित कराना.[33] मनोविश्लेषक प्रक्रियाओं के मुख्य औजार हैं- मुक्त सम्मिलन तथा रोगी का चिकित्सक की ओर स्थानांतरण, जिन्हें किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति (जैसे- माता-पिता) के बारे में अचेतन विचारों अथवा भावनाओं को धारण करने और उन्हें किसी अन्य व्यक्ति की ओर स्थानांतरण करने की प्रवृत्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है। इन दिनों व्यवहार में लाए जाने वाले फ्रायडीय मनोविश्लेषण के प्रमुख संस्करणों में शामिल हैं स्व-मनोविज्ञान, अहं-मनोविज्ञान एवं वस्तु संबंध सिद्धांत. ये सामान्य अभिमुखन अब मनोगतिकी मनोविज्ञान के अंतर्गत आते हैं जिनके साथ स्थानांतरण और सुरक्षा का परीक्षण, अचेतन की शक्ति की स्वीकृति और इस बात पर बल देना कि रोगी की वर्तमान मनोवैज्ञानिक दशा के लिए उसके बचपन के दिनों में होने वाले विकास जिम्मेदार हैं – जैसे तथ्य शामिल हैं।[33]

मानवतावाद

मानवतावादी मनोविज्ञान का विकास 1950 के दशक में व्यवहारवाद और मनोविश्लेषणवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ। इसके मुख्य कारण थे कार्ल रोगर्स (Carl Rogers) का व्यक्ति केन्द्रित उपचार पद्धति (जिसे प्राय: रोगेरियन पद्धति भी कहा जाता है) तथा विक्टर फ्रैंक और रोलो मे (Victor Frankl और Rollo May) द्वारा विकसित अस्तित्ववादी मनोविज्ञान.[2] रोगर्स का विश्वास था कि चिकित्सीय सुधार को अनुभूत करने के लिए रोगी को चिकित्सक से केवल तीन चीजें चाहिए – सामंजस्य, बिना शर्त सकारात्मक सम्मान और चिकित्सीय समझ.[35] परिघटनाविज्ञान, अंतर्विषयकता और प्रथम पुरुष वर्गीकरण का प्रयोग कर मानवतावादी शाखा संपूर्ण व्यक्ति की छवि प्राप्त करना चाहता है न कि व्यक्तित्व का केवल एक अंश.[36] होलिज़्म (holism) का यह पहलू नैदानिक मनोविज्ञान के मानवतावादी व्यवहार के अन्य सामान्य लक्ष्य से संबद्ध है। यह सामान्य लक्ष्य है संपूर्ण व्यक्ति को अखंडित रूप में देखना जिसे स्व-कार्यान्वयन भी कहा जाता है। मानवतावादी विचार के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर पहले से अंतर्निहित क्षमता और संसाधन विद्यमान रहते हैं जो उन्हें एक सबल व्यक्तित्व और स्वयं के बारे में सबल अवधारणा बनाने में मदद करते हैं।[37] मानवतावादी मनोवैज्ञानिकों का मुख्य उद्देश्य है व्यक्ति द्वारा चिकित्सीय संबंध के जरिए इन संसाधनों को स्वयं अपनाए जाने में मदद करना.

व्यवहारपरक और संज्ञानात्मक व्यवहारपरक

संज्ञानात्मक व्यवहारपरक उपचार विधि (CBT) का विकास संज्ञानात्मक उपचार विधि एवं तार्किक भावात्मक व्यवहार उपचार विधि के सम्मिलन से हुआ। ये दोनों विधियां संज्ञानात्मक मनोविज्ञान और व्यवहारवाद से उत्पन्न हुईं. CBT इस सिद्धांत पर आधारित है कि हम किस प्रकार विचार करते हैं (संज्ञान), हम किस प्रकार महसूस करते हैं (भावना) तथा हम किस प्रकार कार्य करते हैं (व्यवहार) – ये सब आपस में एक दूसरे से जुड़ी बाते हैं और ये एक दूसरे के साथ जटिल रूप में अंतर्क्रिया करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में, संसार को समझने और उसकी व्याख्या करने के मनुष्य के कुछ व्यावहारिक तरीके (प्राय: ‘स्कीमा ’ अथवा धारणाओं के द्वारा) भावनात्मक तनाव अथवा व्यवहारपरक समस्याओं के कारण बनते हैं। अनेक संज्ञानात्मक व्यवहारपरक उपचार विधियों का उद्देश्य होता है संबद्ध होने अथवा अभिव्यक्त करने की पूर्वाग्रहयुक्त अव्यावहारिक तरीकों की खोज एवं पहचान करना तथा विभिन्न प्रणाली विज्ञानों द्वारा रोगी को उसके इन तरीकों से उबरने में मदद करना ताकि उसे अधिकाधिक खुशहाल जीवन जीने में मदद मिले.[38] इस हेतु कई प्रकार के तकनीक प्रयोग में लाए जाते हैं, जैसे कि सुव्यवस्थित असुग्राहीकरण, सुकराती प्रश्न तथा संज्ञानात्मक प्रेक्षण लॉग का उपयोग. द्वंद्वात्मक व्यवहारविधि तथा संचेतना-आधारित संज्ञानात्मक उपचार विधि सहित CBT की श्रेणी में आने वाले उन्नत उपागम भी विकसित हुए.[39]

व्यवहार उपचार विधि की समृद्ध परंपरा रही है। इस पर सबल प्रमाण के आधार पर भली प्रकार शोध किया गया है। इसकी जड़ें व्यवहारवाद में है। व्यवहार उपचार विधि में पर्यावरणीय घटनाओं से हमारे सोचने और महसूस करने के तरीकों के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। हमारा व्यवहार पर्यावरण के लिए इस पर प्रतिक्रिया देने हेतु परिस्थितियों का निर्माण करता है। कभी-कभी यह प्रतिक्रिया हमारे व्यवहार को वृद्धि- सुदृढ़ीकरण तथा कभी-कभी व्यवहार ह्रास-दंड की ओर ले जाती है। प्राय: व्यवहार चिकित्सक को अनुप्रयुक्त व्यवहार विश्लेषक कहा जाता है। उन्होंने विकासात्मक निर्योग्यताओं से लेकर अवसाद और चिंताजनित रोगों तक का अध्ययन किया है। मानसिक स्वास्थ्य तथा व्यसनों के क्षेत्र में हाल के एक आलेख में सुस्थापित एवं आशाजनक वृत्तियों के लिए APA की सूची पर चर्चा की गई है और उनकी एक बड़ी संख्या को सक्रिय एवं प्रतिवादी अनुकूलन के सिद्धांतों पर आधारित पाया गया है।[40] इस अभिगम से बहुमूल्यांकन तकनीक विकसित हुई है जिसमें शामिल है कार्यात्मक विश्लेषण (मनोविज्ञान), जिसने शाखा प्रणाली पर अत्यधिक बल डाला है। इसके अतिरिक्त बहु-हस्तक्षेप कार्यक्रम भी इसी परंपरा से निकले हैं जिसमें शामिल हैं व्यसनों के उपचार हेतु सामुदायिक सुदृढ़ीकरण अभिगम, स्वीकरण एवं प्रतिबद्धता उपचार विधि, द्वंद्वात्मक व्यवहार उपचार विधि एवं व्यावहारात्मक उत्प्रेरण सहित कार्यात्मक विश्लेषणात्मक मनोचिकित्सा. साथ ही, आकस्मिकता प्रबंधन तथा संपर्क उपचार विधि जैसी विशिष्ट तकनीक भी इसी परंपरा से निकली हैं।

व्यवस्था अथवा पारिवारिक उपचार

व्यवस्था अथवा पारिवारिक उपचार दंपत्तियों एवं परिवारों के लिए प्रयुक्त होता है और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के संदर्भ में पारिवारिक संबंधों पर एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में बल देता है। यह मूल रूप से अंतर्वैयक्तिक गतिकी पर, खासकर इस तथ्य पर बल देता है कि एक व्यक्ति के अन्दर होने वाला परिवर्तन किस प्रकार संपूर्ण व्यवस्था को प्रभावित करता है।[41] इसलिए उपचार विधि को इस प्रकार संपन्न किया जाता है कि इसके अंतर्गत “व्यवस्था” के अधिकाधिक महत्वपूर्ण सदस्य शामिल हो सकें. इसके उद्देश्य हैं परस्पर संचार में सुधार, स्वास्थ्यपूर्ण भूमिकाओं की स्थापना, वैकल्पिक आख्यानों का निर्माण, तथा समस्यामूलक व्यवहारों का निबटारा. इस क्षेत्र में योगदान देने वालों में जॉन गॉटमैन (John Gottman), जे हेली (Jay Haley), स्यू जॉन्सन (Sue Johnson) तथा वर्जीनिया सैटर (Virginia Satir) शामिल हैं।

अन्य प्रमुख उपचारात्मक अभिविन्यास

मनोचिकित्सा के दर्जनों स्वीकृत शाखाएं अथवा अभिविन्यास हैं। नीचे दी गई सूची ऐसे कुछ प्रभावशाली अभिविन्यासों को प्रदशित करती है जिनका ऊपर नहीं किया गया है। यद्यपि, उन सब में चिकित्सकों द्वारा कुछ लाक्षणिक तकनीकों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें उपचार विधि का ढांचा और चिकित्सक को अपने मरीज़ के साथ काम करने हेतु निर्देशक के रूप में दर्शन उपलब्ध कराने के लिए अधिक जाना जाता है।

  • अस्तित्वपरक (Existential) –अस्तित्वपरक मनोचिकित्सा यह प्रतिपादित करता है कि लोग इन बातों में व्यापक रूप से स्वतंत्र होते हैं- “मैं कौन हूं” और “मुझे दुनिया की व्याख्या किस रूप में करनी है और उसके साथ किस प्रकार की अंतर्क्रिया करनी है”. इसका उद्देश्य जीवन का अधिक गहरा अर्थ समझने तथा जीवन से संबंधित उत्तरदायित्वों को स्वीकार करने में रोगी की मदद करना है। इसी तरह, यह जीवन के मौलिक विषयों को उठाता है जैसे कि मृत्यु, एकाकीपन और स्वतंत्रता. चिकित्सक द्वारा रोगी के आत्मसजग होने, वर्तमान परिस्थितियों में स्वतंत्र रूप से फैसले लेने, व्यक्तिगत पहचान एवं सामाजिक संबंध स्थापित करने, जीवन का अर्थ खोजने और इसकी स्वाभाविक दुश्चिंताओं से निपटने पर बल दिया जाता है।[42] अस्तित्वपरक चिकित्सा विधि के महत्वपूर्ण लेखकों में रोलो मे (Rollo May), विक्टर फ्रैंक (Victor Frankl), जेम्स ब्युगेंटल (James Bugental) और इरविन यैलोम (Irvin Yalom) शामिल हैं।

    एक प्रभावी उपचार विधि जो अस्तित्वपरक उपचार विधि से विकसित हुई है गेस्टाल्ट उपचार विधि है जो मूल रूप से फ्रिट्ज पर्ल्स (Fritz Perls) द्वारा 1950 में स्थापित की गई थी। यह विभिन्न प्रकारों के आत्म उदबोधन को बढ़ावा देने के लिए तैयार की गई तकनीकों के लिए सुविख्यात है। इन तकनीकों में संभवत: सबसे प्रसिद्ध है “खाली कुर्सी तकनीक” जिसका उद्देश्य आमतौर पर “प्रामाणिक संपर्क” के अवरोध की खोज करना, अंतर्द्वंद्वों को सुलझाना तथा “अधूरे कार्य” को पूर्ण करने में रोगी की मदद करना है।[43]

  • उत्तर आधुनिक (Postmodern) –उत्तर आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार वास्तविकता का अनुभव एक व्यक्तिनिष्ठ ढांचा है जो भाषा, सामाजिक संदर्भ तथा इतिहास पर आधारित होता है।[44] इसमें कोई मूल सत्य नहीं होता. क्योंकि “मानसिक रोग” और “मानसिक स्वास्थ्य” को वस्तुनिष्ठ तथा परिभाषित सत्य के रूप में मान्यता नहीं मिली है, उत्तर आधुनिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा उपचार-विधि के लक्ष्य को, सख्त रूप में, एक ऐसी चीज़ के रूप में देखते हैं जिसका निर्माण रोगी और चिकित्सक- दोनों के द्वारा किया जाता है।[45] उत्तर आधुनिक मनोचिकित्सा के रूपों में शामिल हैं आख्यान उपचार विधि, समाधान केन्द्रित उपचार विधि और सामंजस्य उपचार विधि.
  • अंतर्वैयक्तिक (Transpersonal) –अंतर्वैयक्तिक परिप्रेक्ष्य मानवीय अनुभव के आध्यात्मिक पहलू पर व्यापक बल देता है।[46] यह तकनीकों के एक समूह से अधिक रोगी को आध्यात्मिकता और/अथवा चेतना की उच्चतर अवस्थाओं के अन्वेषण हेतु सहायता करने की उत्सुकता है। इसकी चिंताओं में यह भी शामिल है कि व्यक्ति को उसकी उच्चतम क्षमता हासिल करने में सहायता की जाए. इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण लेखकों में केन विल्बर (Ken Wilber), अब्राहम मैस्लो (Abraham Maslow), स्टैनिस्लाव ग्रोफ (Stanislav Grof), जॉन वेलवुड (John Welwood), डेविड ब्रेज़ियर (David Brazier) तथा रोबर्टो असैगियोली (Roberto Assagioli) शामिल हैं।

अन्य परिप्रेक्ष्य

  • बहु-संस्कृतिवाद (Multiculturalism) –यद्यपि, मनोविज्ञान के सैद्धांतिक आधार की मूल यूरोपियन संस्कृति में निहित हैं, अब यह माना जाने लगा है कि विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक समूहों के बीच गहरा अंतर होता है और मनोचिकित्सा की प्रणालियों के लिए यह आवश्यक है कि इन अंतरों को ध्यान में रखा जाए.[34] साथ ही प्रवासियों के आव्रजन के बाद तैयार होने वाली नई पीढ़ियों में दो या अधिक संस्कृतियों का सम्मिलन पाया जाएगा- कुछ कारक माता-पिता से और कुछ परिवेशी समाज से उन्हें मिलेंगे और समेकन की यह प्रक्रिया उपचार विधि में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है (यह स्वयं भी समस्या का निर्माण कर सकती है). परिवर्तन, सहयोग प्राप्ति, नियंत्रण, प्राधिकार और व्यक्ति बनाम समूह के महत्व के बारे में विचारों को संस्कृति प्रभावित करती है। इन सब का टकराव मुख्य धारा की मनोचिकित्सीय उपचार सिद्धांत और क्रिया के कुछ तत्वों के साथ हो सकता है।[47] इसी तरह चिकित्सीय कार्य को सांस्कृतिक रूप से अधिक संवेदी और प्रभावशाली तरीके से करने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बारे में जानकारियों के समेकन का अभियान भी जोर पकड़ रहा है।[48]
  • नारीवाद (Feminism) –नारीवादी उपचार विधि का विकास अधिकतर मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के मूल (जिनके प्रवर्तक पुरुष थे) और मनोचिकित्सीय परामर्श को इच्छुक अधिकतर व्यक्तियों के स्त्री होने के बीच असंगति के कारण हुआ। यह विधि परामर्श की प्रक्रिया में सामने आने वाले मुद्दों के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक कारणों तथा उनके समाधान पर केन्द्रित है। यह दुनिया भर में मनोवैज्ञानिक समाधान चाहने वाले व्यक्तियों को अधिक सामाजिक और राजनैतिक तरीके से भागीदारी करने को प्रोत्साहित करती है।[49]
  • सकारात्मक मनोविज्ञान (Positive psychology) –सकारात्मक मनोविज्ञान मनुष्य की खुशियों और उसके कल्याण का वैज्ञानिक अध्ययन है जो 1998 में APA के तात्कालीन अध्यक्ष[50] मार्टिन सेलिग्मैन (Martin Seligman) के आह्वान के परिणामस्वरूप विकसित हुआ। मनोविज्ञान का इतिहास दर्शाता है कि यह क्षेत्र आरंभ में मानसिक स्वास्थ्य के बजाए मानसिक रोग के बारे में विचार करने को समर्पित था। अनुप्रयुक्त सकारात्मक मनोविज्ञान का ध्यान मुख्यत: जीवन के बारे में लोगों के सकारात्मक अनुभव को बढ़ाने और भविष्य के बारे में आशावादी नजरिए को विकसित कर उनकी क्षमता में वृद्धि करने, वर्तमान के बारे में प्रवाहशीलता का भाव जगाने तथा साहस, अध्यवसाय एवं परोपकारिता जैसे व्यक्तिगत गुणों को विकसित करने पर केन्द्रित है।[51][52] अब यह दर्शाने के लिए प्राथमिक अनुभवसिद्ध प्रमाण उपलब्ध हैं कि सेलिग्मैन द्वारा प्रतिपादित खुशहाली के तीन तत्वों- सकारात्मक मनोभाव (आनन्दपूर्ण जीवन), व्यस्तता (व्यस्त जीवन) तथा सार्थकता (सार्थक जीवन) को व्यवहार में लाकर सकारात्मक उपचार विधि चिकित्सीय अवसाद में कमी ला सकती है।[53]

एकीकरण

पिछले दो दशकों के दौरान, खासकर सांस्कृतिक, लैंगिक, आध्यात्मिक तथा यौनविषयक ज्ञान में वृद्धि के साथ विभिन्न चिकित्सीय अभिगमों के एकीकरण के अभियान ने जोर पकड़ा है। चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक प्रत्येक अनुकूलन की विभिन्न खूबियों और खामियों पर विचार करने लगे हैं और साथ ही तंत्रिका विज्ञान, सुजननकी, उद्विकासीय जीव विज्ञान और मन:औषधी विज्ञान जैसे संबंधित क्षेत्रों मं भी कार्य करने लगे हैं। इसके परिणामस्वरूप विभिन्नदर्शनग्रहण की प्रवृत्ति बढ़ने लगी है और साथ ही मनोवैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न प्रणालियों और उपचार विधियों की सर्वोत्तम प्रभावी तरीकों का ज्ञान प्राप्त किया जाने लगा है, जिसका उद्देश्य है किसी भी समस्या के लिए सर्वोत्त्म समाधान प्रस्तुत करना.[54]

पेशागत आचार संहिता

चिकित्सीय मनोविज्ञान को अनेक देशों में आचार संहिता द्वारा कठोरतापूर्वक नियंत्रित किया जाता है। अमेरिका में पेशागत आचारशास्त्र व्यापक रूप से APA की आचार संहिता द्वारा परिभाषित किया जाता है। इसका प्रयोग प्राय: राज्यों द्वारा अनुज्ञप्ति की आवश्यकताओं को निरूपित करने हेतु किय जाता है। APA संहिता द्वारा, आमतौर पर कानून द्वारा, आवश्यक मापदंड की तुलना में उच्चतर मापदंड तय किया जाता है क्योंकि इसे दायित्वपूर्ण व्यवहार, रोगी की सुरक्षा और व्यक्तियों, संगठनों और समाज के सुधार हेतु तैयार किया गया है।[55] यह संहिता शोध एवं अनुप्रयोग के क्षेत्र में कार्यरत सभी मनोवैज्ञानिकों पर लागू होती है।

APA संहिता 5 सिद्धांतों पर आधारित है: उपकारिता और गैर-हानिकारिता, ईमानदारी और उत्तरदायित्व, सत्यनिष्ठा, न्याय एवं मानव के अधिकार और गरिमा का सम्मान.[55] विषद तत्वों द्वारा नैतिक मुद्दे, सुयोग्यता, मानवी संबंध, निजता और गोपनीयत, प्रचार, अभिलेखन, शुल्क, प्रशिक्षण, शोध, प्रकाशन मूल्यांकन और उपचार विधि के बारे में बताया जाता है।

अन्य मानसिक स्वास्थ्य के पेशों के साथ तुलना

इसे भी देखें : मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर (See also: Mental health professional)

मनोरोग

फ्लूक्सेनटाइन हाइड्रोक्लोराइड मनोचिकित्सकों द्वारा निर्धारित एक आम प्रत्यवसादक औषधि है जिसे लिली ने प्रोज़ैक का नाम दिया है। मनोवैज्ञानिकों को योग्य करने के लिए कम लेकिन बढ़ती हुई मात्रा में औषधपत्र विशेषाधिकार दिया जाता है।

यद्यपि, चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक के बारे में यह कहा जा सकता है कि दोनों का ही समान मौलिक उद्देश्य है मानसिक अवसाद का निवारण, किंतु उनके प्रशिक्षण, दृष्टिकोण तथा प्रक्रिया-विज्ञान प्राय: भिन्न होते हैं। शायद सबसे महत्वपूर्ण भिन्नता यह है कि मनोचिकित्सक अनुज्ञप्ति प्राप्त चिकित्सक होते हैं। इसी तरह मनोचिकित्सक प्राय: मानसिक समस्याओं के लिए चिकित्सीय मॉडल का प्रयोग करते हैं (अर्थात् जिनका वे उपचार करते हैं उन्हें रोगग्रस्त मरीज माना जाता है) – यद्यपि बहुत से मनोचिकित्सक मानसिक उपचार विधि का भी सहारा लेते हैं।[56] मनोचिकित्सक और औषधि मनोवैज्ञानिक (ये भी चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक होते हैं किंतु इन्हें नुस्खा लिखने का अधिकार होता है) शारीरिक परीक्षण करने, प्रयोगशाला परीक्षणों एवं EEG करवाने की सलाह देने और व्याख्या करने तथा CT अथवा CAT, MRI और PET स्कैनिंग करवाने की सलाह देने में सक्षम होते हैं।

चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक प्राय: दवा नहीं लिखते, यद्यपि मनोवैज्ञानिकों के लिए सीमित मात्रा में दवा लिखने के अधिकार के लिए आन्दोलन जोर पकड़ रहा है।[57] इन औषधीय विशेषाधिकारों के लिए अतिरिक्त प्रशिक्षण और शिक्षा आवश्यक है। वर्तमान में औषधि मनोवैज्ञानिकों को गुआम, न्यू मैक्सिको और लुसियाना राज्यों में मनोअनुवर्ती औषधयन की सलाह देने का अधिकार रखते हैं, साथ ही कुछ सैन्य मनोवैज्ञानिकों को भी यह अधिकार है।[58]

परामर्श मनोविज्ञान

परामर्श मनोवैज्ञानिक मानसिक उपचार विधि और मूल्यांकन सहित उन्हीं हस्तक्षेप-प्रक्रियाओं एवं विधियों का अध्ययन और प्रयोग करते हैं जो चिकित्सकीय मनोवैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है। पारम्परिक रूप से परामर्श मनोचिकित्सक लोगों को सामान्य अथवा हल्का मानी जाने वाली मनोवैज्ञानिक समस्याओं में सहायता करते हैं। इस तरह की समस्याओं के उदाहरण है दुश्चिंता अथवा अवसाद जो प्राय: जीवन में घटे किन्हीं बड़े परिवर्तनों अथवा घटनाओं के कारण उत्पन्न होते हैं।[3][10] अनेक परामर्श मनोवैज्ञानिकों द्वारा कॉरियर मूल्यांकन, सामूहिक उपचार विधि एवं संबंध परामर्श का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया गया होता है, यद्यपि कुछ परामर्श मनोवैज्ञानिक ऐसी गंभीर समस्याओं पर भी कार्य करते हैं जिनके लिए औषधीय मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षित होते हैं। मनोभ्रम (dementia) अथवा मनोविक्षिप्ति (psychosis) इस प्रकार की समस्याओं के उदाहरण हैं।

औषधीय मनोविज्ञान की तुलना में परामर्श मनोविज्ञान के अध्ययन के लिए स्नातक कार्यक्रमों की संख्या कम है और साथ ही उन्हें मनोविज्ञान के बजाए शिक्षा विभागों में चलाया जाता है। दोनों पेशे समान प्रकार की व्यवस्थाओं में उपयोगी हो सकते हैं, किंतु मनोचिकित्सक के अस्पतालों और व्यक्तिगत चिकित्सा व्यवसाय में कार्यरत होने की तुलना में परामर्श मनोवैज्ञानिक की नियुक्ति की संभावना विश्वविद्यालय के परामर्श केन्द्रों में अधिक होती है।[59] दोनों क्षेत्रों के बीच अनेक बातों में महत्वपूर्ण समानताएं हैं और उनके बीच के अंतर लगातार धूमिल पड़ते जा रहे हैं।

विद्यालय मनोविज्ञान

विद्यालय मनोवैज्ञानिक मुख्य रूप से शैक्षिक परिवेश में बच्चों एवं किशोरों के अकादमिक, समाजिक और भावनात्मक कल्याण के लिए कार्य करते हैं। यू॰के॰ में उन्हें “शैक्षणिक मनोवैज्ञानिक” कहते हैं। औषधि मनोवैज्ञानिकों एवं परामर्श मनोवैज्ञानिकों की भांति डॉक्टोरल डिग्रियों के साथ विद्यालय मनोचिकित्सक स्वास्थ्य सेवा मनोवैज्ञानिक के रूप में अधिकृत होते हैं तथा बहुत से विद्यालय मनोचिकित्सक अपना निजी प्रैक्टिस करते हैं। औषधि मनोवैज्ञनिकों के विपरीत वे शिक्षा, बाल विकास और व्यवहार तथा सीखने की प्रक्रिया से संबंधित मनोविज्ञान के बारे में अधिक प्रशिक्षित होते हैं। सामान्य डिग्रियों में शामिल हैं शैक्षणिक विशेषज्ञता की डिग्री (Ed.S.), डॉक्टर ऑफ फिलॉसॉफी (Ph.D.) तथा डॉक्टर ऑफ एज़ुकेशन (Ed.D.).

विद्यालयी व्यवस्था में नियुक्त विद्यालय मनोचिकित्सक के पारंपरिक कार्य विद्यालय में विशेष शिक्षा सेवाओं हेतु योग्यता निर्धारण के लिए छात्रों के मूल्यांकन तथा छात्रों के लिए मध्यस्थता की रूप-रेखा तैयार करने और मध्यस्थता करने हेतु शिक्षकों एवं विद्यालय के अन्य कर्मियों के साथ परामर्श पर केन्द्रित होता है। इनकी अन्य मुख्य भूमिकाओं में शामिल हैं बच्चों और उनके परिवार के लिए वैयक्तिक एवं सामूहिक उपचार विधि का प्रयोग करना, मध्यस्थता कार्यक्रम (उदाहरण के लिए, स्कूली शिक्षा बीच में ही छोड़ने के बारे में) तैयार करना, स्कूल कार्यक्रमों का मूल्यांकन करना एवं शिक्षकों तथा विद्यालय प्रशासकों के साथ मिलकर महत्तम शैक्षणिक दक्षता हेतु कार्य करना.[60][61]

चिकित्सीय सामाजिक कार्य

सामाजिक कार्यकर्ता विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करते हैं जो प्राय: सामाजिक समस्याओं, उनके करणों और उनके समाधानों से संबंधित होते हैं। विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर चिकित्सीय सामाजिक कार्यकर्ता भी पारंपरिक समाज कार्य करने के अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक परामर्श उपलब्ध कराने में सक्षम हो सकते है (जैसा अमेरिका और कनाडा में किया जा रहा है). अमेरिका में, समाज कार्य में स्नातकोत्तर कार्यक्रम दो वर्षीय तथा 60 क्रेडिट वाला होता है जिसमें कम से कम एक वर्ष प्रायोगिक होता है (चिकित्साकर्मियों के लिए दो वर्ष).[62]

उपजीविका उपचार विधि

उपजीविका उपचार विधि जिसे संक्षेप में प्राय: OT कहा जाता है, “उत्पादक अथवा रचनात्मक क्रियाकलाप को शारीरिक, संज्ञानात्मक अथवा भावनात्मक रूप से अक्षम व्यक्तियों के उपचार अथवा पुनर्वास हेतु प्रयोग करने की विधि है”.[63] पेशेवर मनोचिकित्सक शारीरिक-मानसिक अक्षमता से ग्रस्त व्यक्तियों के साथ कार्य कर उन्हें उनकी दक्षता और क्षमता के महत्तम उपयोग करने में मदद करते हैं। पेशेवर मानसिक चिकित्सक ऐसे दक्ष चिकित्सक होते हैं जिनकी शिक्षा में रोग और क्षति के शारीरिक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक सांस्कृतिक, संज्ञानात्मक एवं पर्यावरणीय घटकों पर विशेष बल देते हुए मानवीय वृद्धि और विकास का अध्ययन शामिल है। वे समान्य रूप से आंतरिक रोगी तथ बाह्य रोगी मानसिक स्वास्थ्य, पीड़ा प्रबन्धन चिकित्सालयों, भोजन संबंधी गड़बड़ियों हेतु चिकित्सालय तथा बाल विकास सेवाओं जैसी व्यवस्थाओं में औषधि मनोवैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करते हैं। मानसिक रोग के लक्षणों का पता लगाने तथा जीवन के क्रियाकलापों में क्रियाशीलता को महत्तम स्तर तक बढ़ाने के लिए OT के प्रयोग द्वारा समूहों तथा व्यक्तियों के परामर्श सत्र एवं क्रियाकलाप आधारित अभिगम की मदद की जाती है।

आलोचना और विवाद

चिकित्सा मनोविज्ञान एक विभिन्नतापूर्ण क्षेत्र है और इस बात को लेकर बार-बार विवाद होता रहता है कि अनुभव सिद्ध शोध द्वारा सहायता प्रदत्त उपचारों के लिए चिकित्सीय कार्य किस स्तर तक सीमित होना चाहिए.[64] सभी मुख्य चिकित्सीय विधियां समान प्रभावशीलता के लिए हैं- इस तथ्य को दर्शाने वाले कुछ प्रमाणों के बावजूद चिकित्सीय मनोविज्ञान में प्रयुक्त होने वाले उपचार के विभिन्न रूपों की दक्षता के बारे में बहुत अधिक विवाद पाया जाता है।[65][66][67]

इस बात की सूचना मिली है कि चिकित्सीय मनोविज्ञान ने स्वयं को शायद ही रोगी समूहों के साथ संबद्ध किया है और उन व्यापक आर्थिक राजनैतिक और सामाजिक असमानताओं के मुद्दों को नजरअंदाज करने के लिए इसकी प्रवृत्ति समस्याओं को वैयक्तिक बनाने की होती है जो रोगी की जिम्मेदरी नहीं होती.[64] इस बात को लेकर बहस है कि उपचारात्मक कार्यवृत्ति अनिवार्य रूप से शक्ति में असमानताओं से सीमाबद्ध होती है जिसका उपयोग अच्छे और बुरे दोनों के लिए किया जा सकता है।[68] एक आलोचनात्मक मनोवैज्ञानिक आन्दोलन ने इस बात पर जोर दिया है कि चिकित्सीय मनोविज्ञान तथा अन्य व्यवसाय जो मनोवैज्ञानिक संकुल ("psy complex") का निर्माण करते हैं, प्राय: असमानताओं तथा क्षमता में अंतर पर ध्यान देने में प्राय: असफल रहे हैं किंतु ये चाहें तो असुविधा, विपथन और अशांति के सामाजिक और नैतिक नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।[69][70]

नेचर पत्रिका के अक्टूबर 2009 अंक के संपादकीय में यह बताया गया है कि अमेरिका में बड़ी संख्या में चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक वैज्ञानिक प्रमाण को “अपने व्यक्तिगत चिकित्सीय अनुभव के तुलना में महत्वहीन नहीं मानते हैं”.[71]

चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक जर्नल

चित्र:Psychologicalcliniccover.jpg
लाइटनर विट्मर द्वारा नैदानिक मनोविज्ञान की पहली पत्रिका कवर ऑफ़ द साइकोलॉजिकल क्लिनिक है जो 1907 में प्रकाशित हुई.

निम्नलिखित द्वारा चिकित्सीय मनोविज्ञान के क्षेत्र से संबंधित महत्वपूर्ण जर्नलों की एक सूची (अपूर्ण) दर्शायी जाती है।

  • अमेरिकन जर्नल ऑफ़ साइकोथेरपी
  • एन्नुअल रिवियु ऑफ़ क्लिनिकल साइकोलॉजी [1]
  • एन्नुअल रिवियु ऑफ़ साइकोलॉजी [2]
  • ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ साइकोथेरपी
  • ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल साइकोलॉजी
  • क्लिनिकल साइकोलॉजी और साइकोथेरपी
  • क्लिनिकल साइकोलॉजी रिवियु
  • नैदानिक मनोविज्ञान: विज्ञान और अभ्यास
  • सभा काल में: मनश्चिकित्सा के अभ्यास
  • इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ साइकोपथालॉजी
    साइकोफर्माकोलॉजी और साइकोथेरपी
  • इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइकोथेरपी
  • जर्नल ऑफ़ एब्नोर्मल साइकोलॉजी
  • जर्नल ऑफ़ अफेक्टिव डिसऑर्डर
  • जर्नल ऑफ़ ऐंगज़ाइअटी डिसऑर्डर
  • जर्नल ऑफ़ चाइल्ड साइकोथेरपी
  • जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल चाइल्ड साइकोलॉजी
  • जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल साइकाइट्री
  • जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल साइकोलॉजी
  • जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल साइकोलॉजी इन मेडिकल सेटिंग्स
  • जर्नल ऑफ क्लीनिकल साइकोफर्माकोलॉजी
  • जर्नल ऑफ़ कंसल्टिंग एंड क्लिनिकल साइकोलॉजी
  • जर्नल ऑफ़ कन्टेम्परेरी साइकोलॉजी
  • जर्नल ऑफ़ फैमली साइकोथेरपी
  • जर्नल ऑफ़ साइकोथेरपी इन्टग्रेशन
  • जर्नल ऑफ़ साइकोथेरपी प्रैक्सिस एंड रिसर्च
  • जर्नल ऑफ़ रेशनल-इमोटिव एंड कोगनिटिव बिहेविअर थेरपी
  • जर्नल ऑफ़ सोशल एंड क्लिनिकल साइकोलॉजी
  • साइकोपथालॉजी
  • साइकोथेरपी एंड साइकोसोमैटिक
  • साइकोथेरपी रिसर्च

इन्हें भी देखें: अ लिस्ट ऑफ़ एम्पेरिकल जर्नल्स पब्लिश्ड बाई द एपीए (APA)

प्रमुख प्रभाव

  • आरौन बेक
  • अब्राहम मौस्लो
  • एल्बर्ट बैनडूरा
  • अल्बर्ट एलिस
  • एलफ्रेड एडलर
  • अन्ना फ्रिउड
  • कार्ल गसटव जंग
  • कार्ल रोजर्स
  • डेविड शेको
  • डॉनल्ड वुड्स विन्निकॉट
  • एरिच फ्रॉम
  • एरिक एच. एरिक्सन
  • फ्रिट्ज पर्ल्ज़
  • जॉर्ज केली
  • गॉर्डन अल्पोर्ट
  • हंस आइसेंक
  • हैरी स्टाक सल्लिवन
  • हाइन्ज़ कोहट
  • अर्विन यालोम
  • जेम्स बजेंटल
  • जॉन बोल्बी
  • जॉन गौटमैन
  • जोसेफ वोल्प
  • कैरेन होर्नी
  • लाइटनर विट्मर
  • मिल्टन एच. एरिक्सन
  • ओट्टो ऍफ़. कर्न्बर्ग
  • ओट्टो रैंक
  • रॉबर्ट यर्केस
  • रौल्लो मे
  • रोनाल्ड डेविड लाइंग
  • सिगमंड फ्रिउड
  • स्टानिस्लव ग्रौफ
  • मार्शा एम. लाइनहन
  • मार्टिन सेलिगमैन
  • मैरी एन्स्वर्थ
  • मेलानी क्लीन
  • मॉरिटा शौमा
  • विक्टर फ्रैंक
  • विल्हेम रीच

इन्हें भी देखें

  • नैदानिक परीक्षा (शिक्षा)
  • शिक्षा मनोविज्ञान
  • एंटी-साइकाइअट्री
  • एप्लाइड साइकोलॉजी
  • रोगविषयक संयोजन (मनोविज्ञान)
  • रोगविषयक तंत्रिका-मनोविज्ञान
  • रोगविषयक परीक्षण
  • रोगविषयक मनोवैज्ञानिक की सूची
  • मनोविज्ञान में प्रत्यायक की सूची
  • मनोविज्ञान विषयों की सूची
  • मनोचिकित्साओं की सूची
  • मनोरोग और मानसिक स्वास्थ्य नर्सिंग
  • साइकोन्यूरोइम्यूनोलॉजी

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ