निर्मल वर्मा
निर्मल वर्मा (३ अप्रैल १९२९- २५ अक्तूबर २००५) हिन्दी के आधुनिक कथाकारों में एक मूर्धन्य कथाकार और पत्रकार थे। शिमला में जन्मे निर्मल वर्मा को मूर्तिदेवी पुरस्कार (१९९५), साहित्य अकादमी पुरस्कार (१९८५) उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। परिंदे से प्रसिद्धि पाने वाले निर्मल वर्मा की कहानियां अभिव्यक्ति और शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ समझी जाती हैं।[] ब्रिटिश भारत सरकार के रक्षा विभाग में एक उच्च पदाधिकारी श्री नंद कुमार वर्मा के घर जन्म लेने वाले आठ भाई बहनों में से पाँचवें निर्मल वर्मा की संवेदनात्मक बुनावट पर हिमाचल की पहाड़ी छायाएँ दूर तक पहचानी जा सकती हैं। हिन्दी कहानी में आधुनिक-बोध लाने वाले कहानीकारों में निर्मल वर्मा का अग्रणी स्थान है। उन्होंने कम लिखा है परंतु जितना लिखा है उतने से ही वे बहुत ख्याति पाने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहानी की प्रचलित कला में तो संशोधन किया ही, प्रत्यक्ष यथार्थ को भेदकर उसके भीतर पहुँचने का भी प्रयत्न किया है।[1] हिन्दी के महान साहित्यकारों में से अज्ञेय और निर्मल वर्मा जैसे कुछ ही साहित्यकार ऐसे रहे हैं जिन्होंने अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर भारतीय और पश्चिम की संस्कृतियों के अन्तर्द्वन्द्व पर गहनता एवं व्यापकता से विचार किया है।[2]
प्रारंभिक जीवन
इनका जन्म ३ अप्रैल १९२९ को शिमला में हुआ था।[3] दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कालेज से इतिहास में एम ए करने के बाद कुछ दिनों तक उन्होंने अध्यापन किया। इन्हें वर्ष १९५९ से १९७२ तक यूरोप में प्रवास करने का अवसर मिला था और इस दौरान उन्होंने लगभग समूचे यूरोप की यात्रा करके वहाँ की भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का नजदीक से परिचय प्राप्त किया था।[2] १९५९ से प्राग (चेकोस्लोवाकिया) के प्राच्य विद्या संस्थान में सात वर्ष तक रहे। उसके बाद लंदन में रहते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया के लिये सांस्कृतिक रिपोर्टिंग की। १९७२ में स्वदेश लौटे। १९७७ में आयोवा विश्व विद्यालय (अमरीका) के इंटरनेशनल राइटर्स प्रोग्राम में हिस्सेदारी की। उनकी कहानी माया दर्पण पर फिल्म बनी जिसे १९७३ का सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का पुरस्कार प्राप्त हुआ।[4] वे इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ एडवांस स्टडीज़ (शिमला) के फेलो रहे (१९७३) और मिथक-चेतना पर कार्य किया,[5] निराला सृजनपीठ भोपाल (१९८१-८३) और यशपाल सृजनपीठ (शिमला) के अध्यक्ष रहे (१९८९)। १९८८ में इंगलैंड के प्रकाशक रीडर्स इंटरनेशनल द्वारा उनकी कहानियों का संग्रह द वर्ल्ड एल्सव्हेयर प्रकाशित।[4] इसी समय बीबीसी द्वार उनपर डाक्यूमेंट्री फिल्म प्रसारित हुई थी। फेफड़े की बीमारी से जूझने के बाद ७६ वर्ष की अवस्था में २६ अक्तूबर, २००५ को दिल्ली में उनका निधन हो गया।[3]
अपनी गंभीर, भावपूर्ण और अवसाद से भरी कहानियों के लिए जाने-जाने वाले निर्मल वर्मा को आधुनिक हिंदी कहानी के सबसे प्रतिष्ठित नामों में गिना जाता रहा है, उनके लेखन की शैली सबसे अलग और पूरी तरह निजी थी।[] निर्मल वर्मा को भारत में साहित्य का शीर्ष सम्मान ज्ञानपीठ १९९९ में दिया गया। 'रात का रिपोर्टर', 'एक चिथड़ा सुख', 'लाल टीन की छत' और 'वे दिन' उनके बहुचर्चित उपन्यास हैं। उनका अंतिम उपन्यास १९९० में प्रकाशित हुआ था--अंतिम अरण्य। उनकी एक सौ से अधिक कहानियाँ कई संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं जिनमें 'परिंदे', 'कौवे और काला पानी', 'बीच बहस में', 'जलती झाड़ी' आदि प्रमुख हैं। 'धुंध से उठती धुन' और 'चीड़ों पर चाँदनी' उनके यात्रा वृतांत हैं जिन्होंने लेखन की इस विधा को नए मायने दिए हैं। निर्मल वर्मा को सन २००२ में भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
अपने निधन के समय निर्मल वर्मा भारत सरकार द्वारा औपचारिक रूप से नोबेल पुरस्कार के लिए नामित थे।[6]
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास
- वे दिन -1964
- लाल टीन की छत -1974
- एक चिथड़ा सुख -1979
- रात का रिपोर्टर -1989
- अंतिम अरण्य -2000
कहानी संग्रह
- परिन्दे -1959[4]
- जलती झाड़ी -1965
- पिछली गर्मियों में -1968
- बीच बहस में -1973
- कव्वे और काला पानी -1983
- सूखा तथा अन्य कहानियाँ -1995
- थिगालियां -2024
यात्रा-संस्मरण एवं डायरी
- चीड़ों पर चाँदनी -1963
- हर बारिश में -1970
- धुंध से उठती धुन -1997
निबन्ध संग्रह
- चीड़ो पर चाँदनी –1964
- हर बारिश में –1970
- शब्द और स्मृति -1976
- कला का जोखिम -1981
- ढलान से उतरते हुए -1985
- भारत और यूरोप : प्रतिश्रुति के क्षेत्र -1991
- इतिहास, स्मृति, आकांक्षा -1991
- शताब्दी के ढलते वर्षों में –1995
- दूसरे शब्दों में –1997
- आदि, अन्त और आरम्भ -2001
- सर्जना पथ के सहयात्री -2005
- साहित्य का आत्म-सत्य -2005
संचयन
- मेरी प्रिय कहानियाँ -1973
- दूसरी दुनिया -1978
- प्रतिनिधि कहानियाँ -1988
- शताब्दी के ढलते वर्षों में (प्रतिनिधि निबन्ध) -1995
- ग्यारह लम्बी कहानियाँ -2000
नाटक
- तीन एकान्त -1976
संभाषण/साक्षात्कार/पत्र
- दूसरे शब्दों में -1999
- प्रिय राम (अवसानोपरांत प्रकाशित) -2006
- संसार में निर्मल वर्मा (अवसानोपरांत प्रकाशित) -2006
अनुवाद
- कुप्रिन की कहानियाँ -1955
- रोमियो जूलियट और अँधेरा -1964
- कारेल चापेक की कहानियाँ -1966
- इतने बड़े धब्बे -1966
- झोंपड़ीवाले -1966
- बाहर और परे -1967
- बचपन -1970
- आर यू आर -1972
- एमेके एक गाथा -1973
सन्दर्भ
- ↑ मेरी प्रिय कहानियाँ, निर्मल वर्मा, राजपाल एंड सन्ज़, कश्मीरी गेट, दिल्ली, संस्करण-2014, अंतिम आवरण पर उल्लिखित।
- ↑ अ आ निर्मल वर्मा के चिंतन में भारत और यूरोप का द्वन्द्[मृत कड़ियाँ]। सृजन शिल्पी। ७ अक्टूबर २००६
- ↑ अ आ साहित्यकार निर्मल वर्मा का निधन Archived 2009-05-01 at the वेबैक मशीन। बीबीसी-हिन्दी। २६ अक्टूबर २००५
- ↑ अ आ इ भारत और यूरोप : प्रतिश्रुति के क्षेत्र, निर्मल वर्मा, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, द्वितीय संस्करण-2001, अंतिम आवरण फ्लैप पर लेखक-परिचय के अंतर्गत उल्लिखित।
- ↑ परिंदे, निर्मल वर्मा, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-1999, पृष्ठ-1.
- ↑ शताब्दी के ढलते वर्षों में, निर्मल वर्मा, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, चतुर्थ संस्करण-2006, अंतिम आवरण फ्लैप पर उल्लिखित।
बाहरी कड़ियाँ
- निर्मल वर्मा की कृतियाँ - पुस्तक.ऑर्ग पर
- निर्मल वर्मा - गद्यकोश पर
- निर्मल का लेखन चित्रमय ही नहीं, चलचित्रमय भी – गाँधी। सृजनगाथा। निर्मल वर्मा स्मृति व्याख्यान। १२ मई २००७
- 'स्वस्थ साहित्य किसी की नक़ल नहीं करता'- निर्मल वर्मा के प्रेमचंद पर विचार (बीबीसी-हिन्दी)