नारायण श्रीधर बेंद्रे
नारायण श्रीधर बेंद्रे का जन्म 21 अगस्त 1910 में मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ उन्होंने 1933 ईस्वी में आगरा यूनिवर्सिटी से स्नातक शिक्षा ग्रहण की उन्होंने कला की शिक्षा प्रसिद्ध गुरु श्री डीडी देवीलालकर से प्राप्त की उन्होंने 1934 ईस्वी में मुंबई से चित्रकला में डिप्लोमा ग्रहण किया 1937 से 1939 ईस्वी तक उन्होंने कश्मीर में विजिटर्स ब्यूरो में कार्य किया उन्होंने कश्मीर घाटी के अनेक चित्र वर्ग का चित्र बनाएं उसके बाद उन्होंने मुंबई में एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में कार्य आरंभ क्या व अनेक व्यक्ति चित्र विचित्र कथाओं पर दृष्टांत चित्र बनाएं इसी समय उन्होंने अनेक शिष्यों को कला शिक्षा भी दी मद्रास में उन्होंने एक फिल्म में कला निर्देशन का कार्य भी किया बेंद्रे ने 1941 ईस्वी में मुंबई आर्ट सोसाइटी का स्वर्ण पदक प्राप्त किया 1968 सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्राप्त की बाद में वे सोसायटी के अध्यक्ष भी चुने गए 1943 ईस्वी में उन्होंने मुंबई में अपनी पहली एकल प्रदर्शनी की 1947 से 1948 ईस्वी में उन्होंने अमेरिका फ्रांस पोलैंड बेल्जियम आदि देशों की यात्रा की वह सत्य कला के नए पुराने सभी महान कलाकारों के चित्रों का अध्ययन क्या न्यू रात में उन्होंने छापा कला में भी कार्य किया बेंद्रे के चित्र में जल रंग में दृश्य चित्र विशेष आकर्षक रहे जिनमें तूलिका का भी सशक्त प्रयोग हैं यद्यपि उन्होंने अनेक आकारों में चित्र बनाएं किंतु रंगों का सभी चित्रों में विशेष महत्व रहा बेंद्रे के प्रमुख चित्र श्रृंगार सूर्यमुखी फूल बेचने वाली आधी है फूल बेचने वाली स्त्रियां चित्र में बेंद्रे ने अत्यंत आकर्षक व चमकदार रंगों का प्रयोग क्या है आरम्भ में वे यथार्थवादी रहे।
तत्पश्चात् प्रभाववादी विधि में कुछ परिवर्तन के साथ सुन्दर कार्य किया। उनके दृश्यांकनों में हमें उनकी प्रयोगशीलता के विविध उदाहरण मिलते हैं। अमेरिका में उन्होंने ग्राफिक तथा सिरेमिक का कार्य सीखा पर ये प्रधानतः तूलिकांकन के आचार्य ही बने रहे ये घनवाद को बीसवीं शती का एक आधारभूत आन्दोलन मानते थे। आरम्भ में वे यथार्थवादी रहे। बेंद्रे की मृत्यु फरवरी 1992 ईस्वी में हुई