नवाब शमशेर बहादुर
जीवन
बुंदेलखंड के हिंदू राजा छत्रसाल और उनकी एक पारसी पत्नी रुहानी बाई की बेटी मस्तानी बाई से पेशवा बाजीराव प्रथम ने शादी की। पेशवा परिवार और पुणे के ब्राह्मणों ने इस शादी को स्वीकार नहीं किया। उनके पुत्र थे शमशेर बहादुर उर्फ कृष्णा राव जिनकी शिक्षा और हथियारों का प्रशिक्षण बाजीराव के बाकी पुत्रों के साथ हुआ जो उनकी पहली पत्नी काशीबाई के थे। १७४० में बाजीराव और मस्तानी की मृत्यु के बाद काशीबाई ने ही शमशेर का संरक्षण किया। 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में लड़ने के लिए नवाब शमशेर बहादुर ने भी मराठा सेना को समर्थन किया और वह भी पानीपत के तृतीय युद्ध में अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ लड़ने के लिए पानीपत पहुंचे जहां उन्हें काफी घाव हो गए और 14 जनवरी 1761 को युद्ध से निकले और दीग में आते-आते उनकी मौत हो गई ।[1]
राजा छत्रसाल से प्राप्त कालपी और बांदा (जो स्वातंत्र्योत्तर भारत के उत्तर प्रदेश में हैं), की जागीर नवाब शमशेर बहादुर को प्रदान कर दी गयी थी। शमशेर बहादुर को मराठा साम्राज्य की ओर से बांदा का नवाब घोषित किया गया। उस वक्त इस जागीर से सालाना ४० लाख रुपयों की अर्थप्राप्ति होती थी। उनकी मृत्यु के बाद अली बहादुर बांदा के नवाब बने। [1]