नवरात्र
नवरात्र | |
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अन्य नाम | नवरात्रि |
अनुयायी | हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी |
प्रकार | Hindu |
आरम्भ | चैत्र माह, माघ माह, आषाढ़ माह और अश्विन माह |
तिथि | प्रतिपदा से नवमी तिथि तक |
नवरात्र[1][2] अथवा नवरात्रि, हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है। नवरात्र एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातों का समय'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी की पूजा की जाती है। साल में चार बार नवरात्रि आते हैं। माघ, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन। इनमें से माघ और आषाढ़ में आने वाले नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। यह चंद्र-आधारित हिंदू महीनों में चैत्र, माघ, आषाढ़ और अश्विन (क्वार) प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। चैत्र मास में वासंतिक अथवा वासंतीय और दूसरा अश्विन मास में शारदीय नवरात्र, माघ और आषाढ़ मास की नवरात्रि गुप्त नवरात्रि होती हैं। शारदीय नवरात्र का समापन दशहरा को दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के रूप में होता है। गौर से देखे तो नवरात्रि में तीन तीन माह का अंतर होता है । हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से के सबसे पहले चैत्र मास में 9 दिन चैत्र नवरात्रि के होते है । उसके बाद तीन माह बाद आषाढ़ में गुप्त नवरात्रे आते है । उसके फिर तीन माह बाद शारदीय नवरात्रे और फिर अंत में गुप्त नवरात्रे माघ माह में आते है ।
नवरात्र भारत के विभिन्न भागों में अलग ढंग से मनाया जाता है। गुजरात में इस त्योहार को बड़े पैमाने से मनाया जाता है। गुजरात में नवरात्र समारोह डांडिया और गरबा खेल कर मनाया जाता है । यह पूरी रात भर चलता है। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, 'आरती' से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद। पश्चिम बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में दुर्गा पूजा बंगाली कैलेंडर में, सबसे अलंकृत रूप में उभरा है।
महत्व
नवरात्र उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। ये दो समय मे मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माना जाता है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्र पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्र के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं। नवरात्र में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर भारी मेले लगते हैं । माता के सभी शक्तिपीठों का महत्व अलग-अलग हैं। लेकिन माता का स्वरूप एक ही है। कहीं पर जम्मू कटरा के पास वैष्णो देवी बन जाती है। तो कहीं पर चामुंडा रूप में पूजी जाती है। बिलासपुर हिमाचल प्रदेश मे नैना देवी नाम से माता के मेले लगते हैं तो वहीं सहारनपुर में शाकुंभरी देवी के नाम से माता का भारी मेला लगता है।
धार्मिक कार्य
चौमासे में जो कार्य स्थगित किए गए होते हैं, उनके आरंभ के लिए साधन इसी दिन से जुटाए जाते हैं। क्षत्रियों का यह बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं। विजयादशमी या दशहरा एक राष्ट्रीय पर्व है। अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय 'विजयकाल' रहता है।[क] यह सभी कार्यों को सिद्ध करता है। आश्विन शुक्ल दशमी पूर्वविद्धा निषिद्ध, परविद्धा शुद्ध और श्रवण नक्षत्रयुक्त सूर्योदयव्यापिनी सर्वश्रेष्ठ होती है। अपराह्न काल, श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का प्रारंभ विजय यात्रा का मुहूर्त माना गया है। दुर्गा-विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाग, शमी पूजन तथा नवरात्र-पारण इस पर्व के महान कर्म हैं। इस दिन संध्या के समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है। क्षत्रिय/राजपूतों इस दिन प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर संकल्प मंत्र लेते हैं।[ख] इसके पश्चात देवताओं, गुरुजन, अस्त्र-शस्त्र, अश्व आदि के यथाविधि पूजन की परंपरा है।[3] नवरात्र के दौरान कुछ भक्त उपवास और प्रार्थना, स्वास्थ्य और समृद्धि के संरक्षण के लिए रखते हैं। नवरात्री के नौवें दिन, जिसे नवमी कहते हैं, इस दिन 9 कन्याओं को घर में आमंत्रित कर उनकी पूजा की जाती है। कुछ लोग आठवें दिन यह पूजा करते हैं जिसे अष्टमी कहा जाता है। [4]भक्त इस व्रत के समय मांस, शराब, अनाज, गेहूं और प्याज नहीं खाते। नवरात्र और मौसमी परिवर्तन के काल के दौरान अनाज आम तौर पर परहेज कर दिया जाते है क्योंकि मानते है कि अनाज नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता हैं। नवरात्र आत्मनिरीक्षण और शुद्धि का अवधि है और पारंपरिक रूप से नए उद्यम शुरू करने के लिए एक शुभ और धार्मिक समय है।
और धर्मों में
नवरात्री और देवी पूजा का उल्लेख सिक्ख धर्म के ऐतिहासिक ग्रंथों में मिलता है, ख़ासकर गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ में। इतिहासकारों के मुताबिक़ सिक्खों की देवी शक्ति और शस्त्रों के लिए इज़्ज़त और श्रद्धा शक्ता हिंदूओं की परंपराओं से काफ़ी मिलती जुलती है।[5][6] सिक्ख धर्म के दूसरे गुरु, गुरु अंगद देव, देवी दुर्गा के एक परम भक्त थे।[7]
जैन धर्म के पैरोकारों ने अक्सर हिंदूओं के साथ नवरात्री के सामाजिक और संस्कृतिक जश्न मनाए हैं, ख़ासकर गरबा जैसे लोक नाचों में।[8]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ बाहरी, हरदेव (1990). राजपाल हिन्दी शब्दकोश. Rajpal & Sons. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7028-086-6. अभिगमन तिथि 17 अक्टूबर 2023.
- ↑ वर्मा, श्याम बहादुर (2010). Prabhat Brihat Hindi Shabdakosh (Vol-1): Bestseller Book by Dr Shyam Bahadur Verma: Prabhat Brihat Hindi Shabdakosh). Prabhat Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7315-769-1. अभिगमन तिथि 17 अक्टूबर 2023.
- ↑ "दशहरा पूजन". वेब दुनिया. पपृ॰ ०२. मूल (एचटीएम) से 26 सितंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १९ अक्तूबर २००७.
- ↑ "Happy Navratri Status In Hindi". shayariwali.com. अभिगमन तिथि 13 मार्च 2023.
- ↑ Louis E. Fenech (2013). The Sikh Zafar-namah of Guru Gobind Singh: A Discursive Blade in the Heart of the Mughal Empire. Oxford University Press. पपृ॰ 112, 255 with note 54. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-993145-3.
- ↑ Nidar Singh Nihang; Parmjit Singh (2008). In the master's presence: the Sikh's of Hazoor Sahib. History. Kashi. पपृ॰ 122 and Glossary. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0956016829.
- ↑ Arvind-Pal Singh Mandair (2013). Sikhism: A Guide for the Perplexed. Bloomsbury Academic. पृ॰ 26. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4411-1708-3.
- ↑ M. Whitney Kelting (2001). Singing to the Jinas: Jain Laywomen, Mandal Singing, and the Negotiations of Jain Devotion. Oxford University Press. पपृ॰ 87–88. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-803211-3.